एकादशी का महत्व
एकादशी की तिथि प्रति माह दो बार आती है। हिन्दू धर्म का पंचांग चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार रचा गया है।
जब चन्द्रमा क्षीण होता है तो उसे कृष्ण पक्ष कहते है तथा जब वृद्धि को प्राप्त होता है तो उसे शुक्ल पक्ष कहते है तथा दोनो पक्षो को मिला कर हिन्दू धर्म का एक माह होता है।
दोनो पक्षों में 1 से 14 तक सभी तिथियाँ दो बार आती है। कृष्ण पक्ष के पन्द्रहवें दिन अमावस्या होती है तथा शुक्ल पक्ष के पन्द्रहवें दिन पूर्णिमा होती है। दोनो पक्षों की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते है।
एकादशी के व्रत का शास्त्रों में अत्यंत मह्त्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार यह तिथि विष्णु जी की प्रिय तिथि मानी जाती है। इसलिये इस दिन विष्णु जी का व्रत तथा पूजन करने से विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
वर्ष की 26 एकादशी
एक हिन्दू वर्ष में 12 माह होते है तथा प्रत्येक माह में दो एकादशी होती है। इस प्रकार वर्ष में 24 एकादशी आती है।
परंतु प्रति तीन वर्ष बाद एक अधिक मास आता है, जिसे मलमास या पुरुषोत्तमी मास भी कहते है। इस माह में दो अन्य एकादशी भी आती है। इसलिये एकादशी कुल मिला कर 26 हो जाती है।
यहाँ सभी 26 एकादशियों कें नाम दिये जा रहे है।
- चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
- चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
- वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
- वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
- ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
- ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
- आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
- आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
- श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
- श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
- भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
- आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
- आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
- कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
- कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
- मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
- मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
- पौष कृष्ण सफला एकादशी
- पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
- माघ शुक्ल जया एकादशी
- फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
- फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
- अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
- अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी
एकादशी व्रत में क्या खाएं?
एकादशी व्रत करने वाले व्यक्तियों को इनके नियमो की जानकारी प्राप्त करके नियमपूर्वक व्रत रखना चाहियें। व्रत रखने वाले व्यक्तियोंं के परिवार जनों को भी कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
एकादशी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्तियों को दशमी के दिन से ही भोजन सम्बंधी नियमों का पालन करना होता है।
दशमी के दिन एक समय भोजन करना चाहियें। दशमी तथा एकादशी के दिन व्रती व्यक्ति के परिवार जनों को भी सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहियें।
एकादशी के दिन भोजन में लहसून, प्याज़, मसूर दाल, चना, बैंगन, गाजर, गोभी, शलजम, हरी सब्जियां, चावल, जौ, सभी अनाज, सभी फलियाँ, शहद, पान जैसे पदार्थ निषेध है तथा कांसे के बर्तन में भोजन करना भी निषेध है।
फल, सूखे मेवे, दूध, जल, चीनी, कुट्टू का आटा, सेंधा नमक, काली मिर्च का सेवन कर सकते है।
एकादशी के दिन व्रती व्यक्ति को पूरा दिन निराहार रहना होता है। संध्याकाल का पूजन करके फलाहार किया जाता है।
द्वादशी के दिन सुबह पूजन करने के बाद ही अन्न ग्रहण करना चाहियें।
एकादशी के दिन चावल क्यों नही खाते?
एकादशी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्तियों के लिये कुछ विशेष खाद्य पदार्थ निषेध माने गए है। जिनमें चावल सम्मिलित है।
चावल विशेष रूप से एकादशी के दिन निषेध माने जाते है, इसलिये जो लोग एकादशी का व्रत नही रखते है वह भी इस दिन चावल नही खाते है। इसका धार्मिक कारण भी है तथा वैज्ञानिक कारण भी।
इसका धार्मिक कारण यह है कि इस दिन चावलों को रेंगने वाले कीड़ो के समान माना जाता है। इसलिये इस दिन चावल खाना कीड़े खाने के समान समझा जाता है।
इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि एकादशी के दिन ही महर्षि मेधा ने माँ आदि शक्ति के क्रोध से बचने के लिये अपने प्राणों का स्वयं ही त्याग कर दिया था।
उनका सूक्ष्म शरीर पृथ्वी में समाहित हो गया था। जिस भूमि में उनका सूक्ष्म शरीर समाहित हुआ था, भूमि के उसी स्थान से चावल की उत्पत्ति हुई।
इसी कारण चावल में ऋषि मेधा का अंश माना जाता है तथा इनको ग्रहण करना ऋषि मेधा का माँस ग्रहण करने के समान हो जायेगा। ऐसी मान्यता के कारण एकादशी के दिन लोग चावल का भोजन नही करते है।
इसका एक वैज्ञानिक कारण यह है कि चावल एक जलीय प्रकृति का खाद्य पदार्थ है। तथा जल चन्द्रमा का कारक है।
जिस प्रकार चन्द्रमा की चुम्बकीय शक्ति सागर के जल में ज्वार-भाटा उत्पन्न करने की शक्ति रखता है वैसे ही शरीर में जल की अधिकाधिक मात्रा होने पर यह शरीर तथा मन पर भी प्रभाव डालता है।
इसलिये शास्त्रों में एकादशी के व्रत में निर्जल तथा निराहार रहना उचित बताया गया है। ताकि शरीर में जल की मात्रा अधिक न बढ़े और मन संतुलित रह सके।
एकादशी व्रत के नियम
- एकादशी से एक दिन पूर्व दशमी को एक ही समय भोजन करना चाहिये तथा एकादशी में निषेध भोज्य पदार्थ दशमी को भी ग्रहण नही करने चाहियें।
- दशमी के रात्रि को धरती पर ही आसन बिछा कर सोना चाहिये तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहियें।
- एकादशी के दिन सुबह दाँतो को भली प्रकार स्वच्छ कर लें। इस दिन लकड़ी की दातून निषेध है। नीम्बू, आम या जामुन का पत्ता चबा कर दांत साफ किये जाते है तथा पत्ता तोड़ना नही चाहियें, पेड़ से स्वयं गिरा हुआ पत्ता ही प्रयोग किया जाता है। शास्त्रों में एकादशी के दिन 12 बार कुल्ला कर के मुख को साफ करने का निर्देश भी दिया गया है।
- एकादशी के दिन फूल, पत्ते आदि तोड़ना वर्जित है। इसलिये पूजा में प्रयुक्त होने वाले फूल तथा तुलसी के पत्ते एक दिन पहले ही तोड़ कर रख लेने चाहिएं।
- एकादशी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करके व्रत करना अति उत्तम माना जाता है, लेकिन आजकल के व्यस्त जीवन में ऐसा संभव नही हो पाता है। इसलिये स्नान के जल में थोड़ा सा गंगा जल मिला कर स्नान करें। सभी हिन्दू परिवारों में पूजा सम्बन्धी कार्यों के लिये लोग गंगा जल अवश्य ही घर में रखते है। इस दिन गंगा जल का छिड़काव भी घर में अवश्य करें।
- एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी तथा लक्ष्मी जी की एक साथ पूजा करें। पूजा में गाय के घी का दीपक, धूप, गुग्गल, कपूर को आरती के लिये प्रयोग करें। तिलक के लिये हल्दी या चन्दन प्रयोग करें। भगवान को पंचामृत तथा तुलसी दल अवश्य अर्पित करें।
- एकादशी के दिन व्रती व्यक्ति को केवल फलाहार ही करना होता है इसलिये भगवान को भी केवल फल या फलो से बने व्यंजनो का ही नैवेद्य अर्पित करना चाहियें।
- भगवान विष्णु को पीला रंग अति प्रिय है, इसलिये पूजा में यथा संभव पीले रंग की वस्तुओं का ही प्रयोग करना चाहियें। जैसे कि चौकी पर पीला वस्त्र बिछायें। पूजा में पीले फूलों तथा फलों का प्रयोग करें। भगवान विष्णु को पीतांबर वस्त्र पहनाएं तथा माता लक्ष्मी को लाल चुनरी अर्पित करें। व्रती व्यक्ति स्वयं भी पीले वस्त्र धारण करें।
- रात्रि जागरण का एकादशी के व्रत में बहुत मह्त्व है। इसलिये रात्रि जागरण करके भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए समय व्यतीत करना चाहियें। मन को एकाग्र करने के लिये विष्णु जी के मंत्र 'ऊँ भगवते वासुदेवाय नम:' का जाप करना चाहिये।
- इस दिन मन को सभी दुश्विचारों से दूर रखना चाहियें। परनिंदा, द्वेष, ईर्ष्या, असत्य भाषण जैसे दुर्गुणो को त्यागने का प्रयास करना चाहियें। इन्द्रियों के विषयों काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को वश में करके मन को सदाचरण में लगाना चाहियें।
- द्वादशी के दिन सुबह भगवान विष्णु की पूजा के साथ यह व्रत पूर्ण होता है। एकादशी के व्रत में दान का बहुत मह्त्व है। इसलिये इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने तथा दान-दक्षिणा देने का नियम है। शास्त्रों में अन्न, फल, तिल, जल से भरा घड़ा, वस्त्र, गाय, भूमि, स्वर्ण आदि बहुत सी वस्तुओं का दान करना बताया गया है। दान अपनी श्रद्धानुसार जितना भी सरलता से संभव हो उतना अवश्य कर देना चाहिये।
Comments
Post a Comment