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मोहिनी एकादशी की कथा और व्रत विधि

mohini ekadashi


मोहिनी एकादशी का मह्त्व

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते है। पद्म पुराण में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सभी एकदशियों की कथा सुनाई थी।  

मोहिनी एकादशी का वर्णन करते हुए भगवान ने कहा कि एक सहस्त्र गाय दान करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है वही फल मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से तथा कथा सुनने और सुनाने से प्राप्त होता है। 

स्कंद पुराण के अनुसार जब समुद्र मंथन से अमृत निकला था तब उस अमृत को सुरों और असुरों के बीच बाँटने के लिये इसी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था। 

मोहिनी एकादशी की कथा

युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा, हे प्रभु कृप्या मुझे वैशाख शुक्ल एकादशी का मह्त्व क्या है,  उसका नाम क्या है और क्या कथा है, ये भी बताए।  

भगवान कृष्ण बोले, हे युधिष्ठिर!  मैं जो कथा कहने जा रहा हूँ,यह कथा महर्षि वशिष्ठ ने दशरथ पुत्र राम चंद्र से कही थी।  वही कथा मैं तुम्हें सुनाता हूँ।  

एक बार श्री राम चंद्र ने अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ से कहा, हे गुरुवर!  कोई ऐसा पूजन और व्रत बताईये जिसके करने से मनुष्य सभी पाप नष्ट हो जाएं। 

जैसे मैने सीता के वियोग में अनेक दुख भोगे है, वैसे किसी और को दुख न भोगना पड़े उसके लिये कौन सा व्रत मनुष्य को करना चाहियें।  

महर्षि वशिष्ठ जो कि भली भांति जानते थे कि श्री राम स्वयं विष्णु के अवतार है, वह श्री राम का प्रश्न सुनकर बोले कि हे प्रिय राम! तुमने मनुष्यों के कल्याण के लिये बहुत उत्तम प्रश्न पूछा है।  

वैसे तो तुम्हारे नाम के स्मरण से ही मनुष्यों के जीवन के सारे दुख तथा पाप कर्म भी नष्ट हो जाते है।  परन्तु जग कल्याण के लिये ऐसा व्रत कौन सा है यह मैं बताता हूँ।  

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत समस्त पापो को नष्ट करने वाला व्रत होता है। इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते है।  

इस दिन व्रत करने वाले मनुष्यों के सभी पाप कट जाते है तथा वे संसार के मोह माया के जाल से मुक्त होकर देवलोक को प्राप्त होते है।  

हे वत्स! आज मैं तुम्हें मोहिनी एकादशी की कथा सुनाता हूँ, ध्यान पूर्वक सुनो।  एक समय की बात है तब सरस्वती नदी के किनारे एक भद्रावती नामक एक नगर था,जहाँ द्युतिमान नामक राजा का शासन था।  

उसी नगर में एक अत्यंत धनाढ्य वैश्य भी रहता था जो कि बहुत पुण्य कर्म करता था।  वह भगवान विष्णु का महान भक्त था।  वह बहुत धर्म शील तथा परोपकारी था।  

वह अपने धन को लोक कल्याण के कार्यों में व्यय करता था।  उसने कई धर्मशालाएं, भोजनालय, कुएं, सरोवर आदि बनवाये तथा अनेको फलदार वृक्ष लगा कर वह धरती को हरा-भरा रखने में सहयोग देता था।  

उसके पाँच पुत्र थे - मेधावी, सुकृति, सुमना, सद्बुद्धि तथा धृष्टबुद्धि।  

उसके चार पुत्र तो उसी की तरह धर्म का पालन करने वाले थे।  परन्तु पाँचवा पुत्र धृष्टबुद्धि एक पापाचारी था।  वह सदैव दुष्कर्मों में लिप्त रहता था।  

वह माँस मदिरा जैसे राक्षसी भोजन का सेवन करता था।  वह सदा दुराचरी मित्रों तथा वैश्याओं से घिरा रहता था तथा अपने पिता का परिश्रम से अर्जित किया हुआ धन वैश्याओं पर तथा जुआं खेलने में नष्ट करता था।  

पिता उसकी आदतों से बहुत दुखी रहता था।  अंतत: एक दिन उसके कुकर्मों से व्यथित होकर वैश्य ने उसे घर से निकाल दिया।  

कुछ समय तक तो धृष्टबुद्धि अपने गहनो को बेच कर अपना जीवन निर्वाह करता रहा।  परंतु कुछ समय बाद उसके पास निर्वाह करने के लिये कुछ नही बचा।  

स्वार्थी मित्रों और वैश्याओं ने भी उसका साथ नही दिया।  वह भूखा-प्यासा इधर-उधर भटकने लगा।  फिर उसने भोजन के लिये चोरी करना प्रारंभ कर दिया।  

एक बार राज सैनिकों ने उसे चोरी करते पकड़ लिया।  परंतु जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि वह नगर के प्रसिद्ध वैश्य का पुत्र है तो उसे छोड़ दिया।  

परंतु कुछ समय पश्चात वह फिर चोरी करते हुए पकडा गया।  इस बार सैनिकों ने उसे कारागृह में डाल दिया।  

उसकी चोरियों की अनेको घटनाओं के बारे में जानकर राजा ने उसे कारागृह में कड़ा दंड देने तथा उसके पश्चात नगर से निकाल देने की आज्ञा दे दी।  

सैनिको ने उसे नगर की सीमा से बाहर कर दिया।  अब वह जंगल में रहने लगा।  वह माँस भक्षी तो था ही अब वह जंगल में पशुओं को ही मार कर खाने लगा।  जंगल में रहते-रहते वह बहेलिया बन गया और धनुष बाण लेकर विचरता रहता था।  

एक बार उसे खाने के लिये कुछ भी नही मिला।  वह भूख-प्यास से व्याकुल भटकता हुआ कौडिण्य ऋषि के आश्रम में पहुँचा।  उस समय वैशाख मास चल रहा था तथा कौडिण्य ऋषि गंगा स्नान करके भीगे वस्त्रों में आश्रम में आ रहे थे।  

उनके भीगे वस्त्रों के छींटे धृष्टबुद्धि पर पड़ गए।  गंगा जल की पवित्र बूंदें जब उस पर पड़ी तो उसकी बुद्धि निर्मल हो गई।  उसे अपने पापों का भान होने लगा।  

वह कौडिण्य मुनि को प्रणाम कर के उनसे विनती करने लगा कि हे ऋषिवर!  मैं महापापी हूँ।  कृपा कर के मुझे कोई उपाय बताए, जिससे मेरे पापों का प्रायश्चित हो सके।  

ऋषि को उसकी स्थिति देखकर उस पर दया आ गई।  ऋषि ने कहा, वत्स! तुम वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की  एकादशी जिसे मोहिनी एकादशी कहते है, उस दिन का विधिपूर्वक व्रत रखो यह व्रत तुम्हें सारे पापों से मुक्ति देगा।  

फिर उस वैश्य पुत्र ने ऋषि के कथनानुसार व्रत का पालन किया। व्रत के प्रभाव से उसकी बुद्धि शुद्ध हो गई तथा सभी पाप कर्म त्याग कर सदाचार का पालन करने लगा।  

अंत काल में वह भी पुण्यात्माओं के लोक को प्राप्त हुआ।  वशिष्ठ मुनि बोले, हे प्रिय राम! यह व्रत करने से मनुष्य सभी पाप कर्मों से मुक्त होकर सद्बुद्धि तथा सदाचरण को प्राप्त होता है तथा उसके मुक्ति के द्वार खुल जाते है। 


मोहिनी एकादशी व्रत विधि

  • इस दिन प्रात: घर की साफ-सफाई कर के स्नान आदि  कर के व्रत रखे।
  • पूजा स्थल को साफ करके एक चौकी पर भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति को स्थापित करें। 
  • धूप-दीप से आरती करें।
  • व्रत कथा का पठन-पाठन करें।
  • भगवान को फलों का भोग लगायें।
  • भगवान विष्णु के इस मंत्र का जाप करें,
  • "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय"।



वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
  1. चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  2. चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  3. वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
  4. वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  5. ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
  6. ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  7. आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  8. आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
  9. श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  10. श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  11. भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  12. भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
  13. आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  14. आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
  15. कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
  16. कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
  17. मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  18. मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
  19. पौष कृष्ण सफला एकादशी
  20. पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  21. माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
  22. माघ शुक्ल जया एकादशी
  23. फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  24. फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी 
  25. अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
  26. अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी






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