निर्जला एकादशी का महत्व
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहते है। वर्ष की सभी एकादशियों का वर्णन भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर तथा अन्य पान्डवों से किया था जिसकी जानकारी पद्म पुराण द्वारा ऋषि वेद व्यास ने जन-जन तक पहुंचाई।
इस एकादशी का महात्मय व्यास जी ने मुख्यत: भीम से कहा था इसलिये इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते है। यह वर्ष की चौबीस एकादशियों में से सबसे कठिन मानी जाती है। क्योंकि इस एकादशी का व्रत निर्जल रह कर किया जाता है।
ज्येष्ठ का अर्थ होत है 'बड़ा'। ज्येष्ठ मास सभी मासो से अधिक बड़ा होता है। और यही वह समय होता है जब दिन सबसे अधिक बड़े होते है और राते छोटी।
इसका अर्थ है कि यह सबसे अधिक गर्मी का महीना होत है। इसलिये इस माह में निर्जल रह कर व्रत करना किसी तपस्या से कम नही है।
इसी कारण इस एकादशी को सबसे बड़ी एकादशी माना जाता है तथा एकमात्र इसका व्रत करने से वर्ष भर की एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।
निर्जला एकादशी की कथा
युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा हे प्रभु! अब कृप्या हमें ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के बारे में बताईए। इस एकादशी का क्या नाम है, तथा क्या मह्त्व है?
भगवान कृष्ण बोले, हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की विस्तार पूर्वक व्याख्या महर्षि वेदव्यास जी करेंगे।
उसके उपरांत महर्षि वेदव्यास बोले, हे पान्डवों! प्रत्येक माह की दोनो एकादशियों को जो मनुष्य निराहार व्रत रख कर द्वादशी के दिन व्रत का पारण करते है, वह मनुष्य भगवान विष्णु के परम प्रिय होते है।
एकादशी के दिन निराहार रह कर प्रभु विष्णु का ध्यान और मनन करना मनुष्य का परम कर्तव्य है। व्यास जी के मुख से निराहार रहने की बातें सुनकर भीमसेन विचलित होने लगे।
उन्होने व्यास जी से अपनी दुविधा कही। हे पितामह! हमारी माता तथा भ्राता युधिष्ठिर और भ्राता अर्जुन तथा मेरे अनुज नकुल और सहदेव तथा द्रौपदी सभी प्रत्येक एकादशी को निराहार रह कर व्रत रखते है तथा ये सभी मुझसे भी निराहार व्रत करने को कहते है।
परन्तु मेरे लिये यह सम्भव नही है। दोनो समय तो क्या मैं एक समय भी भोजन के बिना नही रह सकता।
क्षुधा सहन करना मेरे लिये असम्भव कार्य है, साथ ही यदि प्रति माह दो बार पूरे दिन की क्षुधा सहन करनी पड़े तो यह और भी कठिन प्रतीत होता है।
व्यास जी बोले, वत्स! यदि तुम्हें मृत्यु के उपरांत स्वर्ग का अधिकारी बनने की इच्छा हो, भगवान विष्णु के सानिध्य की इच्छा हो तो तुम्हे दोनो एकदशियों का व्रत भक्ति-भाव से रखना चाहिये।
फिर भीम ने व्यास जी को अपनी समस्या बताई। हे पितामह! मेरे उदर में वृक नामक अग्नि है जो सदा ज्वलंत रहती है, तथा यह भोजन करने पर ही शान्त होती है।
अत: हे मुनिवर, कृप्या मुझे कोई ऐसा व्रत बताये जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े तथा उस से स्वर्ग के द्वार भी मेरे लिये खुल जाये।
यदि कोई ऐसा व्रत हो तो मैं अवश्य ही एक दिन के लिये अपनी क्षुधा को सहन करने का प्रयास कर सकता हूँ। व्यास जी ने मुस्कुराकर कहा, हे पुत्र! तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है।
इस दिन एकादशी के सूर्योदय से अगले दिन की द्वादशी के सूर्योदय तक निर्जल तथा निराहार रह कर व्रत किया जाता है। केवल स्नान के समय मुख की शुद्धि के लिये तथा आचमन के लिये जल का प्रयोग किया जाता है।
हे वत्स भीम! तुम इस एकादशी का व्रत करो। यह एकादशी वर्ष भर की एकादशियों का पुण्यफल देने वाली एकादशी है। अर्थात, यदि तुम इस एकादशी का व्रत नियमपूर्वक पूर्ण करते हो तो तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों को व्रत करने की आवश्यकता नही है।
केवल इस एक व्रत से तुम वर्ष भर की एकादशियों के व्रत के पुण्याधिकरि बनोगे। इसलिये हे भीम, तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो।
इस प्रकार महर्षि वेदव्यास जी ने भीम को निर्जला एकादशी का महात्मय समझाया तथा भीम ने इस व्रत का निष्ठापूर्वक पालन किया। तभी से इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पान्डव एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत विधि
- व्रती जन सुबह सवेरे गंगाजल स्नान के जल में डाल कर स्नान करें। यदि सम्भव हो तो किसी नदी पर जा कर स्नान करें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को भी गंगाजल से स्नान करवायें।
- श्रद्धा भक्ति के साथ भगवान विष्णु को सभी पूजा की सामग्री फूल, फल, दूर्वा, तुलसी दल आदि अर्पित करें।
- पूजा में गाय के घी का दीपक जलाए।
- एकादशी के दिन संयमित जीवन चर्या रखें। तामसिक भोजन घर में कोई भी ग्रहण न करे।
- निर्जला एकादशी का यह सबसे मुख्य नियम अवश्य ध्यान रखें, कि एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण नही किया जाता है।
- यह व्रत भीषण गर्मी के समय में आता है। इसलिये इस दिन गर्मी से राहत देने वाली वस्तुओं का दान करना बड़ा ही पुण्य कर्म माना जाता है।
- इस दिन जल से भरा घड़ा, ग्रीष्म ऋतु के फल, जूते, छतरी जैसी वस्तुएं किसी सुपात्र को दान करें।
वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
- चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
- चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
- वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
- वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
- ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
- ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
- आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
- आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
- श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
- श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
- भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
- आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
- आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
- कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
- कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
- मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
- मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
- पौष कृष्ण सफला एकादशी
- पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
- माघ शुक्ल जया एकादशी
- फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
- फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
- अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
- अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी
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