Skip to main content

कामदा एकादशी की कथा और व्रत विधि

kamada ekadashi


कामदा एकादशी का महत्व

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते है।  इस दिन व्रत रखने वाले जन सभी पापों से मुक्त हो जाते है।

जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत रखे और द्वादशी को ब्राह्मणो को भोजन करा कर फिर व्रत का पारण करे उसे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। 

यह व्रत रख कर यदि कोई व्यक्ति अपने दुष्कर्मो का प्रायश्चित करे तो उसका प्रायश्चित भगवान विष्णु स्वीकार करते है तथा उसे पाप से मुक्त करते है। 

कामदा एकादशी व्रत विधि

  • इस दिन सुबह सबसे पहले स्नान आदि नित्यकर्म से निवृत्त हो लें।
  • फिर पूजा के स्थान को साफ स्वच्छ करके  गंगाजल छिड़क दें।
  • एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाये तथा भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
  • फिर हल्दी या चन्दन का तिलक अर्पित करें।
  • पीले पुष्प अर्पित करें। 
  • धूप तथा दीपक जलाएं तथा आरती करें।
  • भगवान को फलों का भोग लगायें।
  • एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी अवश्य अर्पित करें।


कामदा एकादशी की कथा

धर्मराज युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से कहा कि हे प्रभु कृपा कर के मुझे चैत्र शुक्ल एकादशी की महिमा बताए।  

भगवान कृष्ण ने कहा कि यही प्रश्न राजा दिलीप ने ऋषि वशिष्ठ से किया था तथा उन्होने जो कथा कही थी वह मैं तुम्हे सुनाता हूँ। 

बहुत समय पहले प्राचीन काल में पुण्डरीक नाम का एक राजा था।  वह भोगिपुर नामक राज्य पर शासन करता था।  वह महान ऐश्वर्यवान राजा था।  

उसके राज्य में भौतिक सुखों की कोई कमी नही थी तथा अपने आस-पास के अन्य राजाओं से अधिक धन सम्पदा से युक्त था।  भोगिपुर नगर में अनेकों नाग, गंधर्व, किन्नर तथा अप्सरायें भी सुखपूर्वक रहते थे।  

उसी नगर में एक ललित नामक गन्धर्व भी रहता था।  उसकी पत्नी का नाम ललिता था।  वह दोनो एक सुंदर, वैभव युक्त भवन में निवास करते थे।  

वह दोनो पति-पत्नी एक दूसरे से अत्यंत प्रेम करते थे तथा कभी एक दूसरे से दूर नही रहते थे।  यदि कभी उन्हें एक दूसरे से दूर रहना पड़ जाए तो वह दोनो वियोग से व्याकुल हो उठते थे।  

ललित गन्धर्व एक कुशल गायक था तथा अपनी गायन कला से राजा के दरबार की शोभा बढाया करता था।  एक दिन की बात है, ललित राज दरबार में राजा के समक्ष अपना एक गान प्रस्तुत कर रहा था।  

तभी उसे अपनी पत्नी का स्मरण हो आया और उसके गायन की लय भंग हो गई।  राज दरबार में कर्कट नामक नाग भी उपस्थित था।  

उसने इस बात को राजा से बढ़ा-चढ़ा कर कह दिया।  जिससे राजा को लगे कि ललित ने राज दरबार का अपमान किया है।  

राजा  ने क्रोधित होकर कहा , तू राजदरबार में अपने कर्तव्य कार्य के बीच अपनी स्त्री का स्मरण करके अपने कर्तव्य से विमुख हुआ है।  

तूने राज दरबार की मर्यादा भंग की है।  मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू माँस भक्षण करने वाला राक्षस बन कर भटकेगा।  राजा के श्राप से ललित एक भयानक राक्षस योनि को प्राप्त हो गया।  

उसकी मुखाकृति अत्यंत विकृत और भयंकर हो गई।  उसके नेत्र सूर्य चंद्र की भांति विशाल और ज्वलंत हो गए।  उसके मुख से अग्नि की लपटें निकलने लगी।  

नाक किसी पर्वत की कन्दरा के समान  लगने लगी तथा गर्दन विशाल पर्वत जैसी हो गई।  उसकी भुजाएं अति विशाल और लम्बी  हो गई तथा सिर के बाल वृक्षों को भांति प्रतीत होने लगे।

उसका शरीर आठ योजन धरती घेरने लगा।  अब वह राक्षस योनि प्राप्त करके दुखपूर्वक इधर-उधर भटकने लगा।  उसकी पत्नी ललिता को जब इस घटना का पता लगा तो वह बहुत दुखी हुई।  

वह राक्षस जंगलों वनों में जहाँ-जहाँ भटकता रहता, ललिता भी विलाप करती हुई रूदन करती हुई उसके पीछे-पीछे भटकती रहती।  वह अपने पति को श्राप से मुक्त करने के उपाय ढूंढने का प्रयास करती।  

एक बार वह राक्षस भटकता हुआ विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गया। ललिता भी उसके पीछे-पीछे वहीं पहुँच गई।  वहां पर श्रंगी ऋषि का आश्रम था।  

ललिता उनके आश्रम में गई तथा ऋषि के सामने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगी।  श्रंगी ऋषि ने कहा हे सुभगे, तुम कौन हो और तुम्हारा यहां आने का क्या प्रयोजन है?  

ललिता ने ऋषि को अपनी आप बीती उन्हें बताई।  वह बोली, हे ऋषिवर! मेरा नाम ललिता है।  मेरे पति ललित नामक गन्धर्व है, जिन्हें राजा पुण्डरीक ने राक्षस योनि भुगतने का श्राप दे दिया।  तब से मेरे पति जंगलो, वनों में भटकते रहते है। 

मुझसे उनकी यह स्थिति देखी नही जाती।  कृप्या उनको राक्षस योनि से मुक्त करने का कोई उपाय बताएं।  इस प्रकार ललिता ऋषि श्रंगी से सहायता के लिये विनती करने लगी। 

श्रंगी ऋषि बोले, हे गन्धर्व कन्या! कुछ दिनो पश्चात चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसे कामदा एकादशी कहते है।  इस दिन व्रत रखने वालो की सभी आकांक्षायें पूर्ण होती है। 

यदि तू इस एकादशी को व्रत रखे, तथा अपने व्रत का पुण्य फल अपने पति को प्रदान कर दे, तो वह अवश्य ही श्राप से मुक्त हो जायेगा तथा राक्षस योनि से मुक्त हो कर अपने स्वरूप को प्राप्त होगा।  

ऋषि के कथनानुसार ललिता ने भक्ति भाव से विधि-विधान पूर्वक कामदा एकादशी का व्रत किया।  

द्वादशी के दिन ब्राह्मण जनो को साक्षी बना कर उसने संकल्प लेते हुए तथा ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि हे प्रभु, मेरे व्रत का सारा पुण्य मेरे पति को मिल जाए और वह श्राप मुक्त हो जाए। 

उसकी निश्छल प्रार्थना को भगवान विष्णु ने तुरंत स्वीकार कर लिया और ललित गन्धर्व अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त हो गया।  

फिर दोनो पति पत्नी ने अपना शेष जीवन आनंद तथा विहार करते हुए व्यतीत किया और आयु पूर्ण होने पर  स्वर्गलोक से उनके लिये विमान आया तथा वह दोनो विमान द्वारा स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गए।  

यह कथा सुनाकर वशिष्ठ ऋषि बोले कि हे राजन, जो भी यह व्रत श्रद्धा तथा भक्ति पूर्वक रखता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।  तथा पाप योनियों से मुक्त हो कर स्वर्ग लोक को प्राप्त होता है।




वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
  1. चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  2. चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  3. वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
  4. वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  5. ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
  6. ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  7. आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  8. आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
  9. श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  10. श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  11. भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  12. भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
  13. आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  14. आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
  15. कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
  16. कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
  17. मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  18. मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
  19. पौष कृष्ण सफला एकादशी
  20. पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  21. माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
  22. माघ शुक्ल जया एकादशी
  23. फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  24. फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी 
  25. अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
  26. अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी






Comments