अपरा एकादशी का महत्व
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहते है। इसे अचला एकादशी भी कहते है। यह एकादशी अपार धन तथा यश देने वाली मानी जाती है।
भगवान कृष्ण ने पद्म पुराण में इसका माहात्मय युधिष्ठिर से कहा था। भगवान कृष्ण के कहने पर पांडवो ने भी युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिये यह व्रत किया था।
अपरा एकादशी महापातक का भी उद्धार करने वाली कही जाती है। इसका व्रत करने वालो को सभी पापो से मुक्ति मिलती है।
दूसरो की निन्दा करने वाले, झूठ बोलने वाले, शास्त्र की झूठी शिक्षा देने वाले, गुरु की निन्दा करने वाले तथा ब्रह्म हत्या करने वाले पापी भी अपरा एकादशी के व्रत से निष्पाप हो जाते है।
कार्तिक पूर्णिमा और मकर संक्रांति पर गंगा स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, कुम्भ स्नान पर गंगा और गोदावरी में स्नान करने का जो पुण्य प्राप्त होता है, काशी में शिव की पूजा उपासना और व्रत का जो फल होता है, स्वर्ण दान तथा गौदान का जो पुण्य प्राप्त होता है वही पुण्य फल पुराणों के अनुसार अपरा एकादशी के व्रत रखने से प्राप्त होता है।
यह एकादशी मनुष्य को सभी प्रकार की धन, सम्पदा, यश और कीर्ति प्रदान करने वाली मानी जाती है।
अपरा एकादशी की कथा
पद्म पुराण के अनुसार इसकी कथा इस प्रकार है -
युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से प्रश्न किया। हे कृष्ण! ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम क्या है और क्या माहात्मय है कृपा कर के बतायें।
तब भगवान कृष्ण ने अपरा एकादशी की महिमा बताते हुए कहा कि इस एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहते है तथा यह सभी पापों से मुक्त करने वाली एकादशी है।
इसकी कथा इस प्रकार है। प्राचीन समय की बात है। महीध्वज नामक एक पुण्यात्मा राजा था। वह सदा प्रजा के कल्याण कार्यों में व्यस्त रहता।
प्रजा उसका बहुत सम्मान करती थी। उसका एक छोटा भाई था, जिसका नाम वज्रध्वज था। वह एक दुराचारी, अन्यायी और अधर्म आचरण करने वाला व्यक्ति था।
वज्रध्वज अपने भाई महिध्वज के प्रति मन में दैष भाव रखता था तथा उसकी प्रतिष्ठा से बहुत ईर्ष्या करता था।
एक दिन उसने अपनी इसी ईर्ष्या और द्वैष के कारण अपने बड़े भाई महिध्वज को निर्दयता पूर्वक मार डाला तथा उसका मृत शरीर एक जंगली पीपल की नीचे मिट्टी में गड्ढा खोद कर दबा दिया।
इस प्रकार अकाल मृत्यु को प्राप्त होने से राजा महिध्वज एक प्रेतात्मा बन गया और उसी जंगली पीपल पर निवास करने लगा।
वह अशरीरी प्रेतात्मा उस पीपल के आस-पास के क्षेत्र में उत्पात मचाने लगी। जो लोग भी वहाँ से गुजरते थे उन्हें वह प्रेतात्मा तंग किया करती थी।
एक दिन धौम्य ऋषि उस पीपल के पास से गुजरे। उन्होने अपनी दिव्य दृष्टि से उस प्रेतात्मा को देख लिया। वह अपने तपोबल से तुरंत उसके अतीत का सम्पूर्ण वृत्तांत जान गए।
उन्होने यह सब कुछ जान लिया कि अतीत में वह एक परोपकारी राजा था। परन्तु अकाल मृत्यु के कारण वह प्रेत योनि को भोग रहा है।
उसके अतीत के बारे में जानकर ऋषि धौम्य उस प्रेतात्मा पर बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होने उसका उद्धार करने का निर्णय लिया।
ऋषि ने उस प्रेतात्मा को उस पीपल के पेड़ से नीचे उतारा तथा उसको परलोक विद्या का उपदेश दिया। धौम्य ऋषि ने प्रेतात्मा की मुक्ति के लिये स्वयं अपरा एकादशी का व्रत किया।
अपरा एकादशी का व्रत रखने से ऋषि को जो पुण्य फल प्राप्त हुआ वह उन्होने उस प्रेतात्मा को अर्पित कर दिया।
अपरा एकादशी के पुण्यफल के प्राप्त होने से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गया तथा ऋषि को धन्यवाद देकर स्वर्गलोक को चला गया।
अपरा एकादशी व्रत विधि
- इस दिन भगवान विष्णु के त्रिविक्रम रूप की पूजा की जाती है। त्रिविक्रम भगवान विष्णु के वामन अवतार का ही एक अन्य नाम है।
- एकादशी का व्रत रखने वाले जन व्रत से एक दिन पहले दशमी को सूर्यास्त के पश्चात भोजन न करें।
- एकादशी की सुबह मन वचन कर्म से पवित्रता पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करें।
- धूप, दीप, कपूर, चन्दन, तुलसी, पान, सुपारी, लौंग, नारियल आदि से श्रद्धा पूर्वक पूजन करें।
- भगवान को फल और मेवो का भोग लगायें।
- एकादशी को भगवान को अन्न का भोग न लगायें और स्वयं भी अन्न ग्रहण न करें।
- पूरा दिन निराहार रहें तथा भगवान विष्णु का ध्यान तथा मंत्र जाप आदि करें।
- भगवान विष्णु का जाप मंत्र- ऊँ भगवते वासुदेवाय नम:।
- इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिये विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें।
- संध्या काल में एकादशी की कथा का श्रवण करने के बाद केवल फलाहार करें।
- अगले दिन द्वादशी को ही ब्राह्मणो को भोजन करा के व्रत का पारण करें तथा भोजन ग्रहण करें।
- जो लोग एकादशी का व्रत नही भी रखते है उन्हें भी इस दिन सात्विक भोजन ही करना चाहिये। क्योंकि यह भगवान विष्णु की प्रिय तिथि मानी जाती है।
- सभी एकादशियों में चावल का भोजन करना निषेध माना जाता है। इस लिये जो व्यक्ति व्रत न रखते हो उन्हें भी इस दिन चावल ग्रहण नही करने चाहिये।
वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
- चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
- चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
- वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
- वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
- ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
- ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
- आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
- आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
- श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
- श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
- भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
- आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
- आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
- कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
- कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
- मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
- मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
- पौष कृष्ण सफला एकादशी
- पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
- माघ शुक्ल जया एकादशी
- फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
- फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
- अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
- अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी
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