कामिका एकादशी का महत्व
श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहते है। यह एकादशी मनुष्य की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करती है।
यह एकादशी श्रावण मास में पड़ती है तथा श्रावण मास भगवान शिव का प्रिय माह माना जाता है। इसलिये इस एकादशी को व्रत रखने से भगवान विष्णु तथा शिव दोनो की ही महान कृपा की प्राप्ति होती है।
गंगा, गोदावरी, नैमिषारण्य, पुष्कर, आदि तीर्थ स्थानों पर स्नान करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है वह पुण्य केवल कामिका एकादशी के व्रत से प्राप्त होता है। यह व्रत मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति तथा मोक्ष प्रदान करता है।
कामिका एकादशी की कथा
धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर जो कथा भगवान कृष्ण ने उन्हें सुनाई थी, वह इस प्रकार है।
युधिष्ठिर बोले, हे प्रभु! देव शयनि एकादशी का माहात्मय जानने के पश्चात अब मेरी इच्छा है कि श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की भी कथा आप अपने मुख कमल से वर्णित कीजिये।
कृष्ण बोले, हे राजन! एक बार नारद जी ने भी ब्रह्मा जी से यही प्रश्न पूछा था। नारद जी बोले, हे पिता श्री! कृप्या मुझे श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा और महिमा बताईए।
ब्रह्मा जी बोले, हे पुत्र! तुमने बहुत उत्तम प्रश्न पूछा है। तुम्हारे माध्यम से यह कथा जन-जन तक पहुंचेगी और इसके श्रवण से प्राणी मात्र का कल्याण होगा।
श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहते है। यह एकादशी वाजपेय यज्ञ के समान फलदायक मानी जाती है। इस दिन श्री हरि विष्णु के चतुर्भुज रूप की उपासना की जाती है।
हे नारद, यह व्रत महा फलदायक है। जो पुण्य गंगा तथा अन्य महानदियों में स्नान से प्राप्त होता है, तथा उपजाऊ भूमि दान करने तथा गौदान करने से प्राप्त होता है, वह पुण्य इस व्रत से प्राप्त होता है।
सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण में पवित्र नदियों में स्नान का जो फल होता है, तथा काशी, पुष्कर जैसे तीर्थों के दर्शन करने का जो फल होता है वह इस व्रत से प्राप्त होता है।
भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। इसलिये इस दिन तुलसी को सींचने तथा तुलसी की पूजा करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा की प्राप्ति होती है।
भगवान विष्णु को स्वर्ण, रजत तथा रत्नों से भी प्रिय तुलसी दल है। इसलिये इस दिन तुलसी की पूजा अवश्य करनी चाहिये।
इस एकादशी की रात्रि को दीप दान करने तथा जागरण करने वाले जनों को महान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस रात्रि को घी का दीपक जला कर देव स्थलो में रखने वालो के मृतक पूर्वजों की आत्माओं को शान्ति प्राप्त होती है।
रात्रि में भगवान विष्णु का कीर्तन तथा ध्यान स्मरण करें। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी देव गण पूजित हो जाते है।
इस व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भ्रूण हत्या जैसे महा पापों का भी नाश होता है तथा व्रती जनों का उद्धार होता है। मैं तुम्हें इसकी कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।
प्राचीन समय में एक गाँव में एक क्षत्रिय रहता था। एक दिन उस क्षत्रिय का एक ब्राह्मण के साथ किसी कारणवश वाद-विवाद हो गया तथा उनका झगड़ा मार-पीट तक पहुँच गया।
क्षत्रिय शारीरिक रूप से अत्यधिक बली था। ब्राह्मण उसके वार झेल न सका और उनके इस द्वंद में ब्राह्मण की मृत्यु हो गई।
क्षत्रिय ने जब देखा कि ब्राह्मण की मृत्यु हो गई है तो वह बहुत पश्चाताप करने लगा कि उसने क्रोधवश अपने बल का आवश्यकता से अधिक प्रयोग किया।
वह ब्राह्मण की अंतिम क्रिया में सम्मिलित होना चाहता था, परंतु अन्य ब्राह्मणों ने उसे रोक दिया। वह बोले कि तुम ब्रह्म-हत्या के दोषी हो।
तुम इस अंतिम क्रिया के भागीदार नही बन सकते। ब्राह्मण तुम्हारे घर भोजन नही कर सकते। पहले तुम्हे इस पाप से मुक्त होना होगा।
क्षत्रिय ने हाथ जोड़ कर ब्राह्मणों से निवेदन किया कि वे ही ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति का कोई उपाय बताएं।
तब ब्राह्मण बोले कि श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को श्रद्धा और भक्ति सहित सम्पूर्ण विधि विधान पूर्वक व्रत करो तथा भगवान विष्णु का पूजन तथा मनन करो। इस एकादशी को कामिका एकादशी कहते है।
द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन तथा दक्षिणा प्रदान करो तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्त हो सकते हो।
क्षत्रिय ने ब्राह्मणों की आज्ञा का पालन किया। उसने ब्राह्मणों द्वारा बताई गई विधि से कामिका एकादशी का व्रत और पूजन किया।
इस व्रत के प्रभाव से वह ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्त हो गया तथा अंत काल में विष्णु लोक को प्राप्त हुआ।
कामिका एकादशी व्रत विधि
- इस दिन पूजा के स्थान को साफ करके गंगा जल छिड़क कर शुद्ध कर ले।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को भी गंगा जल से स्नान करायें।
- यदि गंगा जल अधिक न हो तो थोडे शुद्ध जल में दो-चार बूंद गंगाजल मिला ले।
- इस प्रकार वह पूरा जल गंगा जल में परिवर्तित हो जायेगा। फिर इसे भगवान की प्रतिमा को स्नान करने में प्रयोग करें।
- भगवान विष्णु की पूजा में पंचामृत तथा तुलसी दल अवश्य अर्पित करें।
- दूध, दही, शहद, गंगाजल तथा तुलसी से पंचामृत बनाएं।
- भगवान को रोली, हल्दी या चन्दन का तिलक अर्पित करें।
- धूप, गन्ध, कपूर, पुष्प आदि से पूजा-अर्चना करें।
- भगवान को विभिन्न फलों का भोग या फलो से बने व्यंजनो का भोग लगायें।
- एकादशी व्रत में अन्न ग्रहण न करें तथा भगवान को भी अन्न का भोग न लगाये।
- इस दिन तुलसी को सींचना तथा तुलसी का पूजन करना चाहिये।
- तुलसी के समीप धूप तथा घी का दीपक जलाएं तथा पुष्प, अक्षत, तिलक आदि अर्पित कर के जल अर्पित करें।
वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
- चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
- चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
- वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
- वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
- ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
- ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
- आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
- आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
- श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
- श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
- भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
- आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
- आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
- कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
- कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
- मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
- मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
- पौष कृष्ण सफला एकादशी
- पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
- माघ शुक्ल जया एकादशी
- फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
- फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
- अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
- अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी
Comments
Post a Comment