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देवउठनी एकादशी की कथा और व्रत विधि

devuthani ekadashi


देव उठनी एकादशी का महत्व 

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उत्थान एकादशी कहते है। इसे देव प्रबोधिनी या हरि प्रबोधिनी एकादशी भी कहते है।   

आम बोल चाल की भाषा में इसे देव उठनी एकादशी कहा जाता है।  देव शयनि एकादशी से योग निद्रा में ध्यानस्थ भगवान विष्णु देव उठनी एकादशी के दिन अपनी योग निद्रा से जागृत होते है।  

इसी के साथ चतुर्मास  का काल पूर्ण हो जाता है।  चतुर्मास के काल में शुभ कार्य नही किये जाते।  देव उठनी एकादशी से विवाह, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य फिर प्रारम्भ हो जाते है।  

इस दिन तुलसी विवाह का विशेष मह्त्व है।  भगवान शालिग्राम से तुलसी का विवाह किया जाता है।  तुलसी विवाह कराने से भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा घर में सुख-वैभव का आगमन होता है।

देव उठनी एकादशी की व्रत कथा

युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा, हे प्रभु! आप ने पवित्र कार्तिक मास की कृष्ण एकादशी का वर्णन किया।  अब आप कृप्या कार्तिक शुक्ल एकादशी का ज्ञान भी हमें विस्तारपूर्वक दीजिये। 

भगवान कृष्ण बोले, हे प्रिय युधिष्ठिर! यह एकादशी वर्ष की सभी एकादशियों में विशेष स्थान रखती है।  इस दिन मैं  चतुर्मास की योग निद्रा पूर्ण करता हूँ।  

इसलिये मनुष्य गण इसे देव उत्थान एकादशी कहते है।  अत: इस दिन से सभी सांसारिक मनुष्य गण शुभ कार्यों में प्रवृत्त हो जाते है।  

इस दिन तुलसी पूजन करने वाले भक्तों को सदैव मेरी कृपा प्राप्त होती है।  मैं तुम्हें इस एकादशी की कथा सुनाता हूँ।  ध्यानपूर्वक सुनो।

एक राजा विष्णु जी का बड़ा भक्त था।  वह हर एकादशी का व्रत रखता था तथा अपनी पूरी प्रजा से भी व्रत करवाता था।  

एकादशी के दिन उसके राज्य में किसी को अन्न ग्रहण करने की आज्ञा नही थी।  एक दिन एक अन्य राज्य का व्यक्ति धन कमाने के प्रयोजन से भटकता हुआ उस राज्य में आया।  

उसने राजा से विनती की कि उसे अपने राज्य में कोई सेवा कार्य दे दें।  राजा ने दया कर के उसे अपने पास सेवक नियुक्त कर लिया।  

राजा ने उसे कहा कि तुम्हे प्रतिदिन भोजन मिलेगा, किन्तु एकादशी के दिन नही मिलेगा। उस व्यक्ति ने हाँ कह दिया।  

परंतु जब एकादशी आई और उसे फलाहार दिया गया तो वह राजा के सम्मुख अनुनय विनय करने लगा।  हे महाराज! कृप्या मुझे अन्न दे दीजिये।  इन फलों से मेरा पेट नही भरेगा।  

राजा ने उसे कहा कि मैने तुम्हे पहले ही कहा था कि एकादशी के दिन तुम्हे अन्न नही मिलेगा।  परंतु वह व्यक्ति राजा से अन्न के लिये विनती करता रहा।  

अंतत: राजा ने उसे अनाज दे दिया।  उस व्यक्ति ने राजा को धन्यवाद किया तथा अनाज लेकर नदी पर चला गया।  वहाँ उसने स्नान कर के भोजन बनाया।  

भोजन बना कर वह भगवान विष्णु को पुकारने लगा।  भगवान! भोजन तैयार है, आओ भोजन कर लो।  भगवान विष्णु आये तथा उसके साथ भोजन ग्रहण किया।  

पन्द्रह दिनो बाद फिर एकादशी आई।  उस व्यक्ति ने फिर राजा से अनाज मांगा तथा बोला, महाराज! इस बार पिछ्ली बार से दुगना अन्न देना,  पिछ्ली बार मैं पेट भर के खा नही पाया क्योंकि मेरे साथ भगवान भी खाते है। 

राजा ने कहा, यह क्या कह रहे हो? मैं भगवान की इतनी भक्ति करता हूँ।  मुझे तो वह दर्शन नही देते।  फिर तुम्हे कैसे दे सकते है? मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नही है।

वह व्यक्ति बोला, यदि आपको विश्वास नही है तो आप चल कर देख लीजिये।  राजा ने उसे दुगना अनाज दे दिया।  वह अनाज ले कर नदी की ओर चला गया।  

इस बार राजा भी उसके पीछे-पीछे गया।  राजा नदी की पास एक पेड़ के पीछे छिप कर बैठ गया।  वह व्यक्ति भोजन तैयार कर के भगवान को बुलाने लगा, परंतु इस बार भगवान नही आये।  

सूर्यास्त का समय हो गया, पर निरंतर बुलाते रहने पर भी जब भगवान नही आये तो वह व्यक्ति भगवान से रुष्ट होकर नदी में कूदने चल पड़ा।  

तभी भगवान प्रकट हो गए तथा उसे नदी में कूदने से रोक लिया।  फिर उस व्यक्ति ने भगवान के साथ भोजन किया।  उसके उपरांत भगवान सदा के लिये उसे अपने वैकुण्ठ धाम को ले गए।  

राजा  यह घटना देख कर चकित रह गया।  वह तो स्वयं को ही भगवान का सबसे बड़ा भक्त मानता था, परंतु अब वह समझ गया कि ईश्वर की प्राप्ति व्रत-उपवास से नही हो सकती।  

ईश्वर की प्राप्ति के लिये बालक जैसा पवित्र और निष्पाप हृदय होना आवश्यक है।


देव उठनी एकादशी व्रत विधि

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं।
  • नदी या कुएं पर जाकर ताज़े जल से स्नान करें।  यदि यह संभव न हो तो घर पर ही स्नान कर लें।
  • फिर भगवान का ध्यान कर के व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी जी की षोडशोपचार द्वारा पूजन करें। 
  • इस दिन तुलसी पूजन अवश्य करना चाहिये।  तुलसी के पास शालिग्राम को विराजित कर के धूप, दीप, पुष्प आदि से दोनो का पूजन करें।
  • बहुत से लोग इस दिन तुलसी तथा शालिग्राम का  विवाह करते है।  शास्त्रों में तुलसी विवाह अति पुण्य फल देने वाला माना गया है। 
  • पूरे दिन श्रद्धा पूर्वक व्रत करें।  इस दिन भगवान को जगाने के विशेष रूप से भजन कीर्तन किया जाता है।  रात्रि में भी  जागरण तथा कीर्तन करें।
  • द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर व्रत का पारण करें।




वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
  1. चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  2. चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  3. वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
  4. वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  5. ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
  6. ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  7. आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  8. आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
  9. श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  10. श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  11. भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  12. भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
  13. आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  14. आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
  15. कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
  16. कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
  17. मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  18. मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
  19. पौष कृष्ण सफला एकादशी
  20. पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  21. माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
  22. माघ शुक्ल जया एकादशी
  23. फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  24. फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी 
  25. अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
  26. अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी





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