परमा एकादशी का महत्व
वर्ष के 12 मासों में 24 एकादशी होती है। परंतु जिस वर्ष में अधिक मास आता है, उसमें अधिक मास की दो एकादशी और बढ़ जाती है।
इसलिये अधिक मास के वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कमला, परमा या पुरुषोत्तमी एकादशी कहते है।
पद्म पुराण में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से वर्ष की सभी एकादशियों का वर्णन करने के उपरांत अधिक मास की दोनो एकादशियों का भी वर्णन किया है।
परमा एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा, हे जगदीश्वर! आपने मुझे वर्ष भर की एकादशियों का महात्मय सुना कर मेरा जीवन धन्य कर दिया।
अब आप कृप्या मल मास में आने वाली एकादशियों का भी ज्ञान मुझे दीजिये। क्या इन एकादशियों का विधि-विधान अन्य एकादशियों से भिन्न है? कृप्या मेरा संशय दूर कीजिये।
श्री वासुदेव कृष्ण बोले, हे राजाओं में श्रेष्ठ! मलमास में दो एकादशी आती है। कृष्ण पक्ष में कमला एकादशी तथा शुक्ल पक्ष में पद्मिनी एकादशी। अब मैं तुम्हें कमला एकादशी की कथा सुनाता हूँ।
एक समय की बात है। काम्पिल्य नाम का एक स्थान था। वहाँ सुमेधा नामक एक दरिद्र ब्राह्मण रहता था। सुमेधा तथा उसकी पत्नी बहुत ही शील स्वभाव के थे।
वे दोनो सदा धर्म कार्यो में व्यस्त रहा करते। दरिद्र होने पर भी घर आये अतिथी का वह ईश्वर का स्वरूप मान कर सत्कार करते थे।
धन के अभाव के कारण उनका दैनिक जीवन बहुत कठिनाइयों में व्यतीत हो रहा था।
प्रतिदिन अभावों भरा जीवन व्यतीत करते-करते एक दिन सुमेधा विचार करने लगा कि उसे अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिये इस छोटे नगर को छोड़ कर किसी दूसरे बड़े राज्य में जाकर कोई कार्य करना चाहिये, जहाँ उसे अधिक धन कमाने के अवसर मिलें।
सुमेधा ने अपनी पत्नी को अपने विचार से अवगत कराया। वह बोला कि हे प्रिय, धन के अभाव में जीवन निर्वाह कठिन होता जा रहा है। अत: मैने निश्चय किया है कि मैं धनार्जन के लिये अन्यत्र चला जाऊं।
उसकी पत्नी ने कहा, हे नाथ! मनुष्य के भाग्य में जो लिखा है, वह उसे प्राप्त होकर ही रहता है तथा जो मनुष्य के भाग्य में नही है, वह उसे कदापि प्राप्त नही हो सकता।
भले ही वह पृथ्वी के किसी भी कोने में चला जाए। जो हमारे भाग्य में होगा वह हमें यहां रहते हुए ही प्राप्त हो जायेगा। अत: धन की लालसा में अपनी जन्मभूमि को छोड़ कर जाना उचित नही है।
सुमेधा को पत्नी के तर्क उचित लगे तथा उसने कहीं और जाने का विचार त्याग दिया।
एक दिन कौन्डिल्य ऋषि उनके घर के मार्ग से जा रहे थे। उन्हें देख कर सुमेधा ने उन्हें अपने घर आमंत्रित किया। कौन्डिल्य ऋषि उसके घर आ गए।
सुमेधा तथा उसकी पत्नी ने यथासम्भव ऋषि का स्वागत-सत्कार किया। परंतु ऋषि कौन्डिल्य से उनकी दरिद्रता छुपी नही रही।
ऋषि ने कहा, हे वत्स! मैं तुम दोनो के सत्कार से अति प्रसन्न हूँ। परंतु तुम्हारे जीवन में दरिद्रता देखकर मैं चकित हूँ। तुम प्रभु के बड़े भक्त हो पर लगता है प्रभु से कभी धन की इच्छा तुमने व्यक्त नही की।
सुमेधा हाथ जोड़ कर बोला, हे ऋषिवर! क्या आप कोई उपाय बता सकते है जिससे हमारी दरिद्रता दूर हो सके।
कौन्डिल्य ऋषि बोले, हे वत्स! मलमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को तुम दोनो पति-पत्नी भगवान विष्णु की पूजा तथा व्रत रखो तथा भगवान से धन-धान्य का वरदान मांग लो।
यह व्रत मनुष्य को धन-सम्पत्ति से सम्पन्न करता है तथा मुक्ति प्रदान करता है। कुबेर देव ने भी एक बार यह व्रत विधि-विधान पूर्वक सम्पन्न किया था।
उनके व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान स्वरूप धनाध्यक्ष का पद दिया। अत: तुम दोनो भी यह व्रत करो।
कौन्डिल्य ऋषि ने उन्हें एकादशी व्रत की विधि बता दी।
फिर ऋषि बोले, यदि तुम्हें इस व्रत का अधिकाधिक लाभ चाहिये तो पंच रात्रि व्रत करो। पांच दिन तक निर्जल उपवास रखो तथा सन्ध्या समय फलाहार करो।
पाँच दिन तक नित्य ब्राह्मणो को भोजन कराओ। पाँच रात्रि तक जागरण करो। इस व्रत के पूर्ण होने पर ब्राह्मणो को दान दक्षिणा देने से पूर्व जन्म के सभी पाप कट जाते है।
इस प्रकार व्रत करने पर तुम्हें अवश्य ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होगी। ब्राह्मण तथा ब्राह्मणी ने ऋषि के कथनानुसार पंच रात्रि व्रत विधि-विधानपूर्वक पूर्ण किया।
व्रत पूर्ण होने पर ईश्वर की लीला से प्रेरित होकर एक राजकुमार वहां आया। उसने उन दोनो को रहने के लिये एक सुविधा-सम्पन्न घर तथा निर्वाह करने के लिये एक गाँव दान में दे दिया।
इस प्रकार सुमेधा और उसकी पत्नी की दरिद्रता समाप्त हो गई तथा वह जब तक जीवित रहे सुखपूर्वक रहे तथा मृत्यु के पश्चात वैकुण्ठ लोक को प्राप्त हुए।
परमा एकादशी व्रत विधि
- एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी जी का पूजन करें।
- पूरा दिन उपवास रखें तथा संध्या काल में फलाहार करें।
- द्वादशी को व्रत का पारण करें।
- इस एकादशी का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिये इस व्रत को पाँच दिन तक रखें।
- एकादशी से पाँच दिन तक नित्य निर्जल उपवास करें तथा संध्या काल में फल तथा जल ग्रहण करें।
- पाँच रात्रि जागरण करें।
- पाँचवे दिन ब्राह्मणों को भोजन तथा श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा प्रदान करके फिर व्रत खोलें।
वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
- चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
- चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
- वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
- वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
- ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
- ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
- आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
- आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
- श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
- श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
- भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
- आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
- आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
- कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
- कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
- मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
- मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
- पौष कृष्ण सफला एकादशी
- पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
- माघ शुक्ल जया एकादशी
- फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
- फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
- अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
- अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी
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