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पापांकुशा एकादशी की कथा और व्रत विधि

papankusha ekadashi


पापांकुशा एकादशी का महत्व

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते है।  इस दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है।  

यह एकादशी मनुष्य के सभी पापों को नष्ट कर के विष्णु लोक का अधिकारी बनाती है।  इस व्रत के प्रभाव से महापातक भी नर्क गामी नही होते है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

पद्म पुराण में भगवान कृष्ण ने इस एकादशी की महिमा का वर्णन किया है।  भगवान कहते है कि इस व्रत को करने से मनुष्य की अग्रिम दस पीड़ियों का उद्धार हो जाता है। 

जीवन पर्यन्त शुभ कर्म करने वाला तथा पापांकुशा एकादशी का पालन करने वाला मनुष्य सुख-सौभाग्य तथा सभी सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है।  

यदि जीवन भर पाप कर्म करके भी किसी व्यक्ति को अपने अंतिम समय में अपने पापों का भान हो जाए तथा वह पापमय जीवन त्याग कर पापांकुशा एकादशी का व्रत करे तो जीवन पर्यन्त किये गए पापों से मुक्त हो कर  मृत्युपरांत परम गति को प्राप्त होता है। 

भगवान कृष्ण कहते है कि जो मनुष्य बिना कोई पुण्य कर्म किये ही जीवन व्यतीत कर देता है उसका मनुष्य जन्म व्यर्थ है।  इसलिये मनुष्य को अपनी सामर्थ्य अनुसार पुण्य कर्म तथा दान करना चाहिये।

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा, हे करुनानिधान!  आपने आश्विन कृष्ण एकादशी का महात्मय समझाया, अब आप कृप्या आश्विन शुक्ल एकादशी का महात्मय भी समझायें।  

श्री कृष्ण ने कहा कि हे युधिष्ठिर! इन्दिरा एकादशी के बाद अब मैं तुम्हें पापांकुशा एकादशी के सम्बंध में बताऊंगा, यह एकादशी आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आती है।  

इस एकादशी के व्रत से जीवन भर किये गए पापों का नाश होता है।  इसकी कथा सुनाता हूँ, ध्यान पूर्वक सुनो।

प्राचीन काल में विन्ध्य पर्वत पर एक बहेलिया रहता था।  उसका नाम क्रोधन था।  वह जीवों की हत्या कर के अपना भरण पोषण करता था।  

जीव हत्या कर कर के वह इतना क्रूर हो चुका था कि उसे यह साधारण बात लगती थी।  उसके अंदर करुणा समाप्त हो चुकी थी।  

वह बहुत ही निर्दयता से पशुओं की तरह अपने शिकार को मार डालता था।  तामसिक आहार ग्रहण करते रहने के कारण उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी तथा वह मद्यपान तथा लूट-मार जैसे कुकर्मो में लिप्त रहता।  

इसी तरह उसका जीवन बीतता गया।  जब उसका अन्तिम समय निकट आया तो यमदूत बहेलिए के पास आये और बोले कि तुम्हारा जीवन काल समाप्त हो चुका है, हम तुम्हे लेने आने वाले है।  

यह सुनकर बहेलिया भय से त्रस्त हो गया।  उसे अपने सारे जीवन भर किये पाप याद आने लगे।  वह सोचने लगा कि उसे अवश्य ही मृत्यु के उपरांत नर्क की यातनायें सहनी पड़ेंगी।   

वह भयभीत अवस्था में महर्षि अन्गिरा के आश्रम में पहुँचा तथा उनके चरणो में गिर पड़ा।  महर्षि अन्गिरा ने उस पर अपनी दया दृष्टि डाली तथा पूछा कि, हे वत्स! तुम्हें क्या दुख है?  

बहेलिया हाथ जोड़ कर बोला, हे ऋषिवर!  मैं महान पापी बहेलिया हूँ।  जीवन भर पशुओं को एक वस्तु से अधिक कुछ न समझा।  कभी उनकी पीड़ा पर मुझे दया नही आई।  

मैने धन कमाने के लिये निर्दयतापूर्वक उनका उपयोग किया। अब मेरा अन्तिम समय आ पहुँचा है।  यमदूत मुझसे कह कर गए है कि वह कल मुझे अपने साथ ले जायेंगे।  

मैं नर्क का अधिकारी हूँ।  क्या कोई ऐसा उपाय नही है जिससे मुझे नर्क की अग्नि में न जलना पड़े।  महर्षि अन्गिरा ने गम्भीरता पूर्वक उसकी विनती सुनी।  

वह बोले, वत्स! तुमने निरीह पशुओं का शिकार कर के अवश्य ही अक्षम्य अपराध किये है, परंतु यदि जीवन के इस अन्तिम क्षण में तुम अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते हो तो मैं तुम्हे एक व्रत बताता हूँ।  

यह पापांकुशा  एकादशी का व्रत है,  जो जीवन पर्यन्त किये गए पापों को धो डालता है।  फिर महर्षि अन्गिरा ने बहेलिए को पापांकुशा एकादशी के व्रत की विधि बताई।  

बहेलिए ने ऋषि के कथनानुसार व्रत का पालन किया। तथा सभी पापकर्म त्याग दिये। 

इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए तथा यमदूत उसे  यमलोक ले जाने नही आये।  अन्तिम समय में वह बहेलिया विष्णु लोक को प्राप्त हुआ।


पापांकुशा  एकादशी व्रत विधि

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। 
  • फिर पूरे दिन शुद्धता से व्रत रखने का संकल्प लें।
  • इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ रूप की पूजा करें।
  • भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करायें।
  • फिर उन्हें पीले वस्त्र तथा आभूषण पहनाएं।
  • पूजा के स्थान पर एक लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर उस विष्णु जी तथा लक्ष्मी जी की प्रतिमा को विराजित करें।
  • धूप, दीप, कपूर आदि से प्रभु विष्णु की आरती करें। 
  • भगवान को घी, दूध, दही, शक्कर, फल, फूल, तुलसी दल आदि समर्पित करें।
  • व्रत के दिन मन, कर्म तथा वचन से पवित्रता का पालन करें।
  • एकादशी की रात्रि में जागरण करें तथा भगवान का कीर्तन करें।
  • व्रत के दिन निराहार रहें तथा सात्विक भाव से व्रत रखें।
  • द्वादशी के दिन ब्राह्मणो को भोजन तथा दान-दक्षिणा देकर व्रत को सम्पूर्ण करें।
  • इस दिन अन्न, जल, भूमि, गाय तथा स्वर्ण दान करने का विशेष मह्त्व है।




वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
  1. चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  2. चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  3. वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
  4. वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  5. ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
  6. ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  7. आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  8. आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
  9. श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  10. श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  11. भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  12. भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
  13. आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  14. आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
  15. कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
  16. कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
  17. मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  18. मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
  19. पौष कृष्ण सफला एकादशी
  20. पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  21. माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
  22. माघ शुक्ल जया एकादशी
  23. फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  24. फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी 
  25. अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
  26. अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी





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