पद्मिनी एकादशी का महत्व
आधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते है। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास या मलमास भी कहते है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रति तीन वर्ष में एकबार अधिक मास आता है। प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी होती है। परंतु जिस वर्ष में अधिक मास आता है, उस वर्ष में दो एकादशी और बढ़ जाती है। परमा एकादशी तथा पद्मिनी एकादशी।
परमा एकादशी अधिक मास के कृष्ण पक्ष में आती है तथा पद्मिनी एकादशी शुक्ल पक्ष में।
शास्त्रों के अनुसार पुरुषोत्तम मास की यह दोनो एकादशी सर्वाधिक पुण्य प्रदान करने वाली तथा मनुष्य की सभी इच्छायें पूरी करने वाली मानी जाती है।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से कहा, हे बृजभूषण! हे मुरारी! आप ने मल मास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी की महिमा का वर्णन किया।
अब आप कृप्या मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का भी महात्मय सुनायें। इस एकादशी का क्या नाम है तथा क्या विशेषता है?
भगवान कृष्ण बोले, हे प्रिय युधिष्ठिर! मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते है। मलमास की एकादशी 36 माह में एक बार आती है।
इस माह की पद्मिनी एकादशी का व्रत महान पुण्यदायी तथा यश व कीर्ति देने वाला व्रत है। यह व्रत सभी तप, यज्ञ, तथा तीर्थ भ्रमण से अधिक पुण्यफल देने वाली है।
इस एकादशी से एक दिन पूर्व दशमी से ही एकादशी व्रत के नियमों का पालन करना चाहियें। इस दिन मसूर, चना, शाक, चावल ग्रहण न करें। दशमी को एक समय ही भोजन करें।
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी पर स्नान करना चाहियें। तदोपरांत देव स्थल पर एक वेदी बना कर मृतिका, तांम्र अथवा सुवर्ण का कलश स्थापित करें।
उस पर भगवान नारायण की प्रतिमा स्थापित करें। षोडशोपचार द्वारा श्री विष्णु का पूजन करें। रात्रि जागरण करें तथा विष्णु मंत्र के जाप अथवा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने में रात्रि का समय व्यतीत करें।
द्वादशी के दिन पूजा का कलश ब्राह्मण को दान करके व्रत के विधि-विधान का निर्वाह करें।
हे राजन अब मैं तुम्हें इसकी कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।
प्राचीन काल में महिष्मति नामक राज्य में कृत वीर्य नामक राजा का शासन था। उनकी कोई संतान नही थी।
राजा ने संतान प्राप्ति के लिये अनेको यत्न किये, किन्तु उन्हें संतान का सुख प्राप्त नही हुआ। राजा को सदैव यह चिंता रहती थी कि उनके बाद उनके राज्य का उत्तरदायित्व कौन उठायेगा।
राजा ने संतान प्राप्ति के लिये तप करने का निर्णय लिया। वह अपनी पत्नी पद्मिनी के साथ गन्धमादन पर्वत की चोटी पर जा कर तप करने लगे।
वह अनेको वर्षों तक तप करते रहे, परंतु उन्हें संतान की प्राप्ति नही हुई। राजा निराशा के अन्धकार में डूबते जा रहे थे। परंतु रानी पद्मिनी ने आशा नही छोड़ी।
उन्होने सती अनुसूया से परामर्श लेने का निर्णय लिया। वह देवी अनुसूया के पास गई तथा उनसे सहायता के लिये विनती की।
देवी अनुसूया ने कहा, हे पुत्री! मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है। अत: तुम इस व्रत को करो। देवी अनुसूया ने रानी पद्मिनी को व्रत का विधि-विधान बता दिया।
पद्मिनी ने पूर्ण विधि-विधान से तथा पूर्ण भक्ति-भाव से व्रत का पालन किया। पद्मिनी के व्रत से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए तथा उसे पुत्र की प्राप्ति हुई।
राजा कृतवीर्य तथा रानी पद्मिनी के इस पुत्र का नाम कार्तवीर्य रखा गया। कार्तवीर्य एक तेजस्वी तथा चक्रवर्ती राजा बने तथा उनकी कीर्ति संसार के कोने-कोने में फैली।
हे राजन, मेरे द्वारा कही यह पद्मिनी एकादशी की कथा तुमने श्रवण की। जो भी मनुष्य इस अतुल्य पद्मिनी एकादशी की कथा का पठन-पाठन तथा श्रवण करते है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, तथा जो भी इस एकादशी के व्रत का पालन विधिपूर्वक करते है वह विष्णु लोक को प्राप्त होते है।
पद्मिनी एकादशी व्रत विधि
- इस एकादशी से एक दिन पूर्व दशमी के दिन एक समय भोजन करें।
- दशमी के दिन से ही चना, मसूर दाल, शहद, चावल का त्याग करें।
- कांसे के बर्तन में भोजन न करें।
- एकादशी के दिन भली प्रकार से दंत धवन करें तथा संभव हो तो किसी नदी पर जा कर स्नान करें अथवा घर में ही स्नान के जल में थोड़ा सा गंगा जल डाल कर स्नान करें।
- इस दिन पूजा के स्थान पर चौक पूर लें।
- फिर उस पर एक जल से भरा मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें।
- कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- फिर धूप, दीपक, कपूर, हल्दी, चन्दन, तुलसी दल, पंचामृत, नैवेद्य आदि से भगवान की पूजा करें।
- यह व्रत निर्जल रखा जाता है, परंतु जिनके लिये यह संभव न हो वह संध्या काल में जल और फल ग्रहण कर लें।
- एकादशी व्रत में रात्रि जागरण का विशेष मह्त्व है। रात्रि का समय विष्णु पुराण, विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु जी के मंत्र जाप करते हुए बिताएं।
- भगवान विष्णु का जाप मंत्र है- ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय।
- द्वादशी के दिन प्रात: विष्णु जी की पूजा करें तथा ब्राह्मणो को भोजन करायें।
- फिर पूजा का कलश किसी ब्राह्मण को दान कर दें।
- तत्पश्चात स्वयं भोजन करके अपना व्रत सम्पूर्ण करें।
वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
- चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
- चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
- वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
- वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
- ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
- ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
- आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
- आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
- श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
- श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
- भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
- आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
- आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
- कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
- कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
- मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
- मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
- पौष कृष्ण सफला एकादशी
- पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
- माघ शुक्ल जया एकादशी
- फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
- फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
- अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
- अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी
Comments
Post a Comment