षटतिला एकादशी का महत्व
माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम षटतिला एकादशी है। इस एकादशी का व्रत मनुष्य के समस्त पाप नष्ट करके मोक्ष प्रदान करने वाला है।
इस व्रत में तिलों का विशेष मह्त्व है। इस दिन छह प्रकार से तिलों का प्रयोग किया जाता है, तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन, तिल का हवन, तिल का दान।
इसलिये इस एकादशी का नाम षटतिला एकादशी है। इस दिन तिलों का सेवन करने के साथ ही तिलों का दान करने का भी विशेष मह्त्व है।
शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य इस एकादशी के दिन तिल दान करता है, वह हज़ारों वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है।
षटतिला एकादशी व्रत कथा
एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्तय ऋषि से पूछा, हे मुनिवर! संसार में सभी मनुष्य अनेको प्रकार के पाप कर्म करते है, जिनके कारण वह अपने लिये नर्क के द्वार स्वयं खोल लेते है।
परंतु फिर भी सबको नर्क प्राप्त नही होता। क्या वह लोग कोई उपाय करते है? क्या ऐसा कोई उपाय है जिससे पापी मनुष्य भी अपना उद्धार कर सके तथा सद्गति को प्राप्त कर सके?
पुलस्तय ऋषि बोले, हे ऋषि श्रेष्ठ! पवित्र माघ मास में जो मनुष्य अपने पापों का प्रायश्चित करके पवित्र नदियों में स्नान करते है, दान करते है, हवन करते है, उनको सद्गति प्राप्त होती है।
माघ की षटतिला एकादशी को व्रत करें। इस दिन तिल के जल से स्नान करें, तिल का उबटन प्रयोग करें, तिलो से हवन करें, तिलों से तर्पण कर्म करें, तिलों का भोजन ग्रहण करें तथा तिलो का दान करें।
इस व्रत की जो कथा है वह भी मैं तुम्हें सुनाता हूँ, एक बार नारद जी ने विष्णु भगवान से षटतिला एकादशी का मह्त्व पूछा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें जो कथा सुनाई थी वही मैं तुम्हें सुनाता हूँ।
एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदा ईश्वर के व्रत, पूजन आदि कर्मकाण्डों में व्यस्त रहती थी। सदैव ईश्वर का ध्यान, स्मरण करती रहती थी।
एक बार वह एक माह तक उपवास करती रही जिसके कारण उसका शरीर बहुत दुर्बल हो गया। परंतु उसने कभी कुछ दान नही किया था।
जीवन भर मेरी भक्ति के कारण उसको स्वर्ग प्राप्त होना तो निश्चित था, परंतु कभी भी दान न करने के कारण वह स्वर्ग के सुख भोग नही सकती थी।
अत: उसके उद्धार के लिये मैं स्वयं ही एक याचक का रूप धर के उससे भिक्षा माँगने चला गया। परंतु उसने मुझे भिक्षा में एक मिट्टी का पिण्ड दे दिया।
कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। उसका सूक्ष्म शरीर स्वर्ग को प्राप्त हुआ। स्वर्ग में उसे रहने के लिये एक सुंदर महल प्राप्त हुआ, परंतु वह महल पूर्णत: शून्य था।
उसमें अन्न, धन तथा कोई भी आवश्यकता की वस्तु नही थी। वह ब्राह्मणी मुझसे कहने लगी प्रभु मैने तो जीवन भर आपकी भक्ति की है। फिर मुझे यह खाली महल क्यों मिला है।
मैने उससे कहा, तुम महल में जाओ तथा द्वार बन्द कर लो। जब देव कन्यायें तुमसे भेंट करने आये तो उनसे षटतिला एकादशी के व्रत की विधि पूछना। जब वह विधि बता दें तभी द्वार खोलना।
उसने ऐसा ही किया। देव कन्यायें उसके द्वार पर आई और उसे बुलाने लगी। वह बोली पहले मुझे षटतिला एकादशी के व्रत की विधि बताओ।
तब एक देव कन्या उसे विधि बता देती है। फिर ब्राह्मणी द्वार खोल देती है। उसके पश्चात वह विधि-विधानपूर्वक षटतिला एकादशी का व्रत करती है।
व्रत के प्रभाव से उसका महल सभी सुख-वैभव की सामग्रियों से सम्पन्न हो जाता है।
हे नारद! जो मनुष्य षटतिला एकादशी का व्रत करता है तथा इस दिन अन्न, धन तथा तिलों का दान करता है, वह इस लोक में भी धन-धान्य से युक्त होता है तथा स्वर्गलोक में भी सभी सुख भोगता है।
षटतिला एकादशी व्रत विधि
- इस व्रत की पूजा में तिलों का विशेष मह्त्च है।
- इस दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं तथा स्नान के समय तिलों का उबटन प्रयोग करें तथा स्नान के जल में भी तिल डाल कर स्नान करें।
- इस दिन सूर्य भगवान को भी तिलयुक्त जल का अर्घ्य दें।
- इस दिन भगवान विष्णु की षोडशोपचार द्वारा पूजा करें।
- धूप, कपूर तथा गाय के घी के दीपक से भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी जी की आरती करें।
- भगवान को तुलसी-दल, पुष्प, मौसम के फल, तथा तिल अर्पित करें।
- इस दिन हवन करें तथा भगवान विष्णु के मंत्र 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय' का 108 बार जाप करें तिलों की 108 आहुति दें।
- पूरे दिन ईश्वर के ध्यान स्मरण में समय व्यतीत करें।
- रात्रि में जागरण तथा कीर्तन करें।
- द्वादशी के दिन प्रात: भगवान विष्णु की पूजा करें तथा इस दिन तिल के व्यंजन तथा खिचड़ी बना कर भगवान को भोग लगायें।
- ब्राह्मणो को भोजन करायें। भोजन में तिल के व्यंजन अवश्य सम्मिलित करें।
- फिर ब्राह्मणो को दक्षिणा में अन्न, धन तथा तिल दान करें।
- इस दिन कोई मिट्टी का पात्र जैसे घड़े आदि का भी दान करें।
- उसके पश्चात व्रत खोलें तथा स्वयं भी तिलयुक्त भोजन करें।
वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
- चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
- चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
- वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
- वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
- ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
- ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
- आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
- आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
- श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
- श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
- भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
- आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
- आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
- कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
- कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
- मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
- मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
- पौष कृष्ण सफला एकादशी
- पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
- माघ शुक्ल जया एकादशी
- फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
- फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
- अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
- अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी
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