विजया एकादशी का महत्व
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते है। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का व्रत मनुष्य को जीवन के सभी क्षेत्रों में विजयी बनाता है।
जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना मार्ग बनाने की चेतना तथा बल, बुद्धि देता है। विषम से विषम परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने में यह व्रत मनुष्य को शक्ति देता है।
विजया एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से कहा, हे नन्दनन्दन! पवित्र माघ मास की जया एकादशी की अद्भुत कथा सुना कर आपने अपनी कृपा की हम पर वर्षा की।
अब कृप्या फाल्गुन की कृष्ण एकादशी की महिमा क्या है, क्या कथा है, क्या विधि है, यह भी विस्तारपूर्वक कहिये।
भगवान कृष्ण बोले, हे राजन! यही प्रश्न एक बार नारद जी ने प्रजापिता ब्रह्मा से किया था। तब ब्रह्मा जी ने जो नारद से कहा था, वही मैं तुमसे कहता हूँ।
एक बार नारद जी ने ब्रह्मा जी से कहा, हे तात! माघ मास की कृष्ण एकादशी का क्या महात्मय है तथा इसके व्रत की क्या विधि है?
ब्रह्मा जी बोले, हे पुत्र! इस एकादशी को विजया एकादशी कहते है। यह एकादशी मनुष्य के सभी पापों का शमन करती है तथा उसे विजय श्री प्रदान करती है।
त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने राम रूप में अवतार लिया था। तब प्रभु लीला के वशीभूत राम, लक्ष्मण और सीता को वनवास काटना पड़ा।
वनवास के समय रावण छल से सीता का अपहरण करके ले गया। देवी सीता को ढूंढते हुए राम और लक्ष्मण वन-वन भटकने लगे।
रावण को आकाशमार्ग में जटायु ने रोकने का प्रयास किया, परंतु वह रावण द्वारा मारा गया। मृत्यु से पूर्व उसने राम और लक्ष्मण को बता दिया कि रावण सीता जी को लेकर दक्षिण की ओर गया है।
राम और लक्ष्मण दक्षिण की ओर चलते गए। उन्हें मार्ग में सुग्रीव, हनुमान तथा अन्य वानर मिले। राम ने सुग्रीव के अधर्मी भाई बाली का वध करके उसे किष्किन्धा का राजा बनाया।
सुग्रीव की वानर सैना ने रावण से युद्ध में राम की सहायता का वचन दिया। हनुमान जी आकाशमार्ग से लंका पहुँच कर सीता का कुशलक्षेम जानकर आये तथा उसका समाचार श्री राम को दिया।
राम के साथ वानर सेना सागर पार करके लंका पर चढ़ाई करने के लिये उद्धृत थी। परंतु सागर को पार करके पूरी सेना लंका कैसे पहुँचे, अब यह समस्या आ खड़ी हुई थी।
भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा, कि इस अथाह सागर को हम कैसे पार करेंगे। तब लक्ष्मण जी ने उन्हें परामर्श दिया कि यहाँ से आधा योजन दूर कुमारी द्वीप पर वकदालभ्य ऋषि रहते है।
हमें उनसे अपनी समस्या का निवारण पूछना चाहिये। अत: वह दोनो वकदालभ्य ऋषि के आश्रम पहुँचे तथा उन्हें प्रणाम किया।
वक्दालभ्य ऋषि त्रिकालदर्शी थे, वह समझ गए कि यह स्वयं भगवान विष्णु के अवतार है, जो मानव रूप में लीला रच रहे है।
उन्होने राम और लक्ष्मण का स्वागत किया तथा उनसे आने का प्रयोजन पूछा। श्री राम ने उन्हें अपनी समस्या बताई।
तब वक्दालभ्य ऋषि ने कहा, हे राम! हे लक्ष्मण! आप अपनी पूरी सेना सहित विजया एकादशी का व्रत कीजिये। इस व्रत के प्रभाव से आप सागर पर भी विजय प्राप्त करेंगे तथा रावण पर भी।
हे राम! दशमी के दिन एक वेदिका बनाना तथा उस पर एक स्वर्ण, रजत, ताम्र अथवा मृतिका का एक कलश जल से भर कर स्थापित करना। कलश पर पाँच पल्लव रखना।
कलश के नीचे सप्त अन्न रखना तथा कलश के ऊपर जौ रखना। उस पर भगवान विष्णु की स्वर्ण अथवा मृतिका की प्रतिमा स्थापित करना।
फिर अपनी सेना सहित भगवान का षोडशोपचार द्वारा पूजन करना। पूरे दिन तथा रात्रि सेना सहित पूजा स्थान पर बैठ कर श्री हरि का ध्यान करना।
द्वादशी के दिन प्रात: वह कलश तथा सभी अन्न ब्राह्मण को दान कर देना। इस प्रकार तुम्हारा व्रत पूर्ण हो जायेगा। हे राम! यह विजया एकादशी का व्रत तुम्हें अवश्य विजयी करेगा।
हे युधिष्ठिर! इस प्रकार ऋषि वक्दालभ्य के कथनानुसार व्रत करने पर विष्णु अवतार राम ने सागर पर सेतु बाँधा तथा लंका पर विजय प्राप्त की।
इस व्रत के प्रभाव से तुम भी श्री हरि से सदैव विजय श्री का आशीर्वाद प्राप्त करोगे।
विजया एकादशी व्रत विधि
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त मे उठ जाए तथा घर को तथा शरीर को स्वच्छ करके व्रत का संकल्प लें।
- पूजा के स्थान पर चौक पूर लें। उसके ऊपर सात प्रकार के अनाज रखें।
- फिर उस पर एक जल से भरा मिट्टी या तांबा, पीतल आदि लोहे को छोड़ कर किसी भी धातु का कलश स्थापित कर लें।
- कलश के मुख पर पाँच पत्ते लगायें।
- उस पर ढक्कन रख दें। ढक्कन के ऊपर जौ रखें तथा जौ पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
- फिर धूप, दीप, कपूर, हल्दी, तुलसी, फल, फूल आदि के साथ भगवान का पूजन करें।
- व्रत का पूरा दिन भगवान के स्मरण में व्यतीत करें।
- अगले दिन द्वादशी ब्राह्मणो को भोजन करायें तथा पूजा का कलश तथा अनाज ब्राह्मणों को दान कर दें।
- तत्पश्चात व्रत का पारण करें।
वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
- चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
- चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
- वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
- वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
- ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
- ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
- आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
- आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
- श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
- श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
- भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
- आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
- आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
- कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
- कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
- मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
- मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
- पौष कृष्ण सफला एकादशी
- पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
- माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
- माघ शुक्ल जया एकादशी
- फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
- फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
- अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
- अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी
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