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देवशयनि एकादशी की कथा और व्रत विधि

devshayani ekadashi


देवशयनि एकादशी का महत्व

आषाड़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनि एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी  कहते है।  इस एकादशी से चतुर्मास का प्रारंभ होता है।  

पौराणिक संदर्भों के अनुसार चतुर्मास के समय श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते है।  इसलिये चतुर्मास के काल में कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ नही किया जाता।  

इस काल में सोलह संस्कार नही किये जाते।  इनके अलावा गृह प्रवेश, विवाह, यज्ञ आदि भी नही किये जाते। 

देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते है तथा इसी दिन से चतुर्मास समाप्त होता है। 

देवशयनि एकादशी की पौराणिक कथा

देव शयनि एकादशी से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा इस प्रकार है।   

भगवान विष्णु  वामन अवतार लेकर  दैत्यराज बलि के यज्ञ स्थल पर पहुँचे तथा उसकी दानशीलता की परीक्षा लेने के लिये उससे दान मांगने लगे।

जब बलि ने दान का वचन दिया तो वामन रूपी विष्णु ने बलि से तीन पग धरती मांग ली।  फिर उन्होने एक पग में पृथ्वी तथा दूसरे पग में स्वर्ग नाप डाला।

उन्होने बलि से पूछा तीसरा पग कहाँ रखूँ।  तो बलि ने अपना शीश आगे कर दिया।  भगवान ने उसके सिर पर पग रखा तो वह पाताल लोक में पहुँच गया।  

भगवान ने प्रसन्न होकर बलि को पाताल का राजा बना दिया तथा उसे वरदान मांगने को कहा।  बलि ने वरदान स्वरूप विष्णु जी को पाताल का प्रहरी बना दिया।  

फिर माता लक्ष्मी ने बलि को भाई बना कर उससे वचन लेकर विष्णु जी को उसकी दासता से मुक्त करवाया।  पर बलि ने भगवान से प्रार्थना की कि इस काल में वह सदा पाताल के प्रहरी बनेंगे।  

भगवान ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।  इसलिये यह मान्यता है कि चतुर्मास के काल के समय भगवान क्षीर सागर छोड़ कर पाताल का पहरा देने चले जाते है। 

उनके अनुपस्थित होने के कारण चतुर्मास के काल में उन्हें योगनिद्रा में माना जाता है। 

देवशयनि एकादशी की व्रत कथा

युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से कहा, हे भगवन!  आप ने आषाड़ कृष्ण पक्ष की एकादशी का महात्मय हमें बताया।  अब आप आषाड़ के शुक्ल पक्ष की एकादशी का ज्ञान भी विस्तारपूर्वक हमें दीजिये।  

श्री कृष्ण बोले, हे युधिष्ठिर! एक बार नारद जी ने भी ब्रह्मा जी से यह प्रश्न किया था। तब ब्रह्मा जी ने जो कथा नारद जी को सुनाई थी, वही मैं तुम्हे सुनाता हूँ।  

प्राचीन काल की बात है, जब सतयुग का समय चल रहा था।  तब मन्धाता नामक एक प्रतापी राजा का शासन था।  वह अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। 

एक बार उनके राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नही हुई।  भयंकर अकाल से राज्य की प्रजा में त्राहि-त्राहि हो उठी।  सभी प्रजा जन राजा से प्रार्थना करने लगे कि इस अकाल से मुक्ति दिलाने का कोई उपाय ढूंढे। 

भोजन की कमी के कारण जीवन इतना कष्टकर हो गया था कि राज्य में धार्मिक कर्म काण्ड भी अब कोई नही करता था। राजा अपनी प्रजा की स्थिति देखकर बहुत दुखी थे।  

राजा ने सोचा कि महल में बैठे रहने से कोई उपाय नही मिलेगा।  इसलिये वह अपने सैनिको के साथ इधर-उधर विचरण करने लगे। एक दिन वह जंगल में भ्रमण करते हुए अन्गिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचे।  

उन्होने ऋषि को प्रणाम किया।  अन्गिरा ऋषि ने राजा से जंगल में विचरण करने का कारण पूछा।  

राजा ने अन्गिरा ऋषि से कहा, हे ऋषिवर!  मेरी प्रजा तीन वर्ष से अकाल का कष्ट भोग रही है।  कृप्या मुझे बताए कि मैं कैसे अपनी प्रजा के कष्ट दूर करुँ। 

अन्गिरा ऋषि ने राजा से कहा, हे राजन! आषाड़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत सर्व मनोकामनाएं सिद्ध करने वाला व्रत है।  अत: तुम इस व्रत को संकल्प सहित विधि-विधान पूर्वक करो।  
तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।  

राजा ने ऋषि को धन्यवाद किया तथा अपने राज्य लौट कर सम्पूर्ण विधि-विधान सहित श्रद्धा तथा भक्ति से आषाड़ शुक्ल पक्ष की एकादशी के व्रत का पालन किया तथा भक्ति-भाव से विष्णु जी की पूजा-अर्चना की।  

व्रत के प्रभाव से राज्य में घनघोर वर्षा हुई तथा प्रजा को अकाल से मुक्ति मिल गई।  

देव शयनि एकादशी व्रत विधि

  • घर की साफ सफाई कर के पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव  करें। 
  • पूजा के स्थान पर भगवान  विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
  • भगवान को वस्त्र तथा श्रंगार से सुसज्जित करें।
  • सभी पूजा सामग्रियों जैसे धूप, दीपक, फूल, फल, पंचामृत आदि के साथ भगवान का पूजन करें।
  • पूजन तथा कथा के उपरांत सन्ध्या काल में भगवान की प्रतिमा को शयन कराया जाता है।
  • भगवान के शयन के लिये बिस्तर तकिया चादर आदि की व्यवस्था की जाती है।
  • भगवान की प्रतिमा को बिस्तर पर लिटा कर उन्हें चादर से ढक देते है।
  • तत्पश्चात फलाहार कर लेते है।
  • अगले दिन द्वादशी की सुबह ब्राह्मणो को भोजन करा कर तथा दान दक्षिणा दे कर व्रत का पारण करें तथा अन्न ग्रहण करें। 
  • चतुर्मास के काल तक भगवान योगनिद्रा में रहते है, इसलिये उन्हें चतुर्मास के काल में जगाया नही जाता। 





वर्ष की सभी एकादशी की कथाएं
  1. चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  2. चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  3. वैशाख कृष्ण वरुथिनि एकादशी
  4. वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  5. ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
  6. ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  7. आषाड़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  8. आषाड़ शुक्ल देवशयनि एकादशी
  9. श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  10. श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  11. भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  12. भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
  13. आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  14. आश्विन शुक्ल पापाकुंशा एकादशी
  15. कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
  16. कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी
  17. मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  18. मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
  19. पौष कृष्ण सफला एकादशी
  20. पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  21. माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
  22. माघ शुक्ल जया एकादशी
  23. फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  24. फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी 
  25. अधिक मास कृष्ण परमा एकादशी
  26. अधिक मास शुक्ल पद्मिनी एकादशी




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