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दीवाली कैसे बना दुनिया का सबसे प्रसिद्ध पर्व

दीवाली भारत का सर्व प्रसिद्ध पर्व है।    यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है।  यह एक पंचदिवसिए पर्व है।  इसमें पांच पर्व सम्मिलित होते है। 



diwali










धन त्रयोदशी इसे सामान्यत: धन तेरस कहते है।  धन त्रयोदशी आयुर्वेद के जनक धनवन्तरि की जयंती का उत्सव है।

नरक चतुर्दशी इस दिन को सामान्यत: छोटी दिवाली कहते है।  नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था इसलिये इसे नरक चतुर्दशी कहते है। 

दीपावली अर्थात मुख्य दीप पर्व जिसे दिवाली भी कहते है।  दीपावली का मुख्य कारण है कि इस दिन भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काट कर अयोध्या वापिस आये थे। 

गोवर्धन पूजा यह  गोवर्धन पर्वत से सम्बंधित पर्व है।  गोवर्धन का पर्व श्री कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने के दिन से शुरु हुआ था।

भाई दूज इसके विभिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न  नामों से जाना जाता है।  भाई दूज भाई बहन के रिश्ते का पर्व है।  इस दिन को यम द्वितीया भी कहते है।

दीवाली कौन मनाते है?

यह हिन्दुओं का मुख्यतम धार्मिक पर्व है, इसके अलावा यह सिख, बौद्ध और जैन धर्म का भी महत्वपूर्ण पर्व है। इसलिये इसे सर्वाधिक धूमधाम से मनाया जाता है।  

इन सभी धर्मों के इतिहास से  यह पर्व कहीं न कहीं जुड़ा हुआ है। विभिन्न धर्मों से जुड़ाव के कारण यह पर्व विश्व प्रसिद्ध है।  

यह भारत, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, मलेशिया, इन्डोनेशिया तथा विश्व के अधिकाधिक क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक मात्र पर्व है।

बौद्ध धर्म में दीवाली का मह्त्व

बौद्ध धर्म में यह पर्व महात्मा बुद्ध से जुड़ा हुआ है।  महात्मा बुद्ध का असली नाम सिद्धार्थ था। वह कपिलवस्तु के राजा शुद्दोधन के पुत्र थे।  उनका विवाह यशोधरा से हुआ था तथा उनका एक पुत्र भी था।  

एक बार वह अपने महल से वन विहार करने के लिये निकले।  रास्ते में उन्हें एक बीमार, एक बूढ़ा और फिर एक मृतक की शवयात्रा देखने को मिली।  

यह सब देख कर उनके मन में संसार के प्रति वैराग्य उत्पन्न हो गया और एक रात वह सब कुछ छोड़ कर सत्य की खोज में चले गए।  

वह कई वर्षों तक तप करते रहे तथा उन्होने सत्य के प्रकाश को अपने भीतर अनुभव किया।  उन्होने बौद्ध धर्म की स्थापना की। 
वह जगह-जगह घूमते थे और लोगो को ज्ञान का उपदेश देते थे। इसी तरह 17 वर्षों के बाद वह एक दिन कपिलवस्तु आये।  

कहते है कि उस दिन कार्तिक अमावस्या थी। राजकुमार को वापिस आया देखकर पूरे नगर में हर्षोल्लास छा गया और सबने दीप जला कर उनका स्वागत किया तथा तभी से बौद्ध धर्म के लोग इस दिन दीपावली मनाने लगे।

जैन धर्म में दीवाली का मह्त्व

जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार जैन धर्म के संस्थापक स्वामी महावीर जी ने इसी दिन अपना देह त्याग किया था। उन्होने बिहार की पावापुरि  नगरी में निर्वाण प्राप्त किया था। 

जैन धर्म में भी यह पर्व  दीप जलाकर मनाया जाता है।  इस दिन जैन मन्दिरों में निर्वाण के लड्डू चढाये जाते है।

सिख धर्म में दीवाली का मह्त्व

सिख धर्म में इस पर्व को बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है।  गुरु हर गोविंद जी तथा 52 अन्य हिन्दू राजाओ को मुगलो ने ग्वालियर में कैद कर रखा था।  

सन 1699 में दीवाली के दिन गुरुजी को तथा सभी राजाओं को कारागार से मुक्त किया गया। जब गुरु जी अमृतसर पहुँचे तो सभी ने उनका खूब स्वागत किया और बड़ी धूमधाम से दीवाली मनाई।

हिन्दू धर्म में दीवाली का मह्त्व

दीपावली हिन्दुओं का प्राचीन पर्व है।  हिन्दूओं की पौराणिक कथाओं के अनुसार यह पर्व भगवान राम से जुड़ा हुआ है। अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थी।  

कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा।  कौशल्या के पुत्र राम थे, कैकयी के पुत्र भरत थे और सुमित्रा के दो पुत्र थे, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। 

राम सबसे बड़े थे इसलिये लोक रीति के अनुसार उनका राजा बनना तय था।  दूसरी बात, वह राजा बनने के लिये पूर्ण रूप से योग्यतम पात्र थे। 


परंतु कैकयी अपने पुत्र भरत को राजा बनाना चाहती थी।  अतीत में एक बार कैकयी ने राजा दशरथ की जान बचाई थी।  तब दशरथ ने कैकयी को दो वरदान देने का वचन दिया था। 
 
कैकयी ने कहा कि वह फिर कभी मांग लेगी।  जब कैकयी के मन में भरत को राजा बनाने की इच्छा उत्पन्न हुई तो उसने दशरथ से वह दोनो वरदान पूरे करने की बात कही। 

पहले वरदान में उसने राम के लिये 14 वर्ष का वनवास मांगा और दूसरे वरदान में भरत के लिये राजगद्दी।  

रघुवंशी कभी अपने वचन से फिरते नही थे।  इसलिये दशरथ को दोनो वरदान देने पड़े।  राम के साथ उनकी पत्नी सीता और लक्ष्मण भी वनवास के लिये गए। 

वनवास के दौरान रावण छल से सीता का हरण कर के ले गया।श्री राम ने वानर सेना की सहायता से रावण को युद्ध में पराजित किया और उसका वध किया।  

उसके बाद कार्तिक अमावस्या के दिन 14 वर्ष का समय पूरा होने के बाद वह अयोध्या पहुँचे।  उनकी प्रतीक्षा में रत अयोध्या वासियों ने घी के दीप जला कर उनका स्वागत किया।  

दीप जलाने का कारण यह था कि भगवान राम शाम के समय आने वाले थे और अमावस्या के कारण उस दिन गहन अंधकार रहना था।  

इसलिये सभी ने पूरी अयोध्या को दीपो से सजा दिया ताकि श्री राम को अँधेरे के कारण कठिनाई न हो। 

दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को गंगा जी के तट पर भक्तों का बड़ा भारी मेला लगता है।  क्योंकि ऐसी मान्यता है कि देवगण कार्तिक पूर्णिमा के दिन दिवाली मनाते है।

दीवाली कैसे मनाते है?

दीपावली की तैयारियाँ सभी घरों में कई दिन पहले ही होने लगती है।  

दीपावली से पहले ही लोग अपने घरों, दुकानो और प्रतिष्ठानो की अच्छी तरह साफ-सफाई कर लेते है तथा रंगाई-पुताई भी करते है।  

दीपावली पर लोग घरों और दुकानो आदि को झालरों, कन्दीलों तथा बिजली की लड़ियों से सजाते है। तथा इस दिन दीपो से घर को सजाना आज भी हमारी परम्परा है। 

दीपावली पर बाज़ार सजावट के समांनो, मिठाईयों और पटाखों से भरे होते है।  

बच्चों को पटाखे चलाना बहुत पसंद होता है, लेकिन पटाखे चलाना पर्यावरण के लिये हानिकारक होता है इसलिये  पटाखे नही चलाने  चाहिये। 

दीवाली पर लक्ष्मी पूजन क्यों  किया जाता है?

कुछ लोगो के मन में यह प्रश्न उठता है कि दीपावली भगवान राम से जुड़ा हुआ पर्व है।  फिर लक्ष्मी पूजन क्यों किया जाता है। 

लक्ष्मी पूजन का सम्बंध घर की सुख समृद्धि से है।  वैसे भी भगवान राम विष्णु जी के अवतार है और सीता जी लक्ष्मी जी का अवतार है।  

इस दिन वह दोनो अपने घर वापिस आये।  इसलिये विष्णु और लक्ष्मी की पूजा होनी चाहिये।  

गणेश जी तो प्रथम पूज्य देवता है हर पूजा में सर्वप्रथम उनकी ही पूजा होती है। दूसरी बात वह लक्ष्मी जी के दत्तक पुत्र भी है। इसलिये उनकी पूजा लक्ष्मी जी के साथ होती है।  

सरस्वती जी की पूजा भी साथ में करने का विधान है।  क्योँकि लक्ष्मी जी धन की देवी है और धन तभी उपयोगी है जब मनुष्य में बुद्धि  भी हो।  

गणेश जी की कृपा से सब कुछ शुभ  होगा मंगलकारी होगा ऐसा माना जाता है।  पूजा के समय लक्ष्मी जी के बाई ओर गणेश जी की स्थापना की जाती है क्योँकि पुत्र का स्थान बाई ओर होता है।  

लक्ष्मी जी के दाई ओर विष्णु जी का चित्र भी रखना चाहिये।  क्योंकि वह पति का स्थान है। 

दीपावली अमावस्या की काली रात होती है और यह दिन विशेष रूप से माँ काली की पूजा का दिन होता है।  इसलिये माँ काली की भी पूजा करें। 

कुबेर देवता धन के रक्षक है और सभी को धन वितरित करने का कार्य कुबेर ही करते है।  इसलिये धन समृद्धि के लिये लक्ष्मी माता के साथ-साथ कुबेर जी की पूजा भी की जाती है। 

वैसे सभी के घर में इस दिन पूजा के समय भले ही मुख्य रूप से लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों को रखते है पर बाकी के देवी  देवताओं की भी पूजा की जाती है और सभी को भोग आदि भी प्रदान किया जाता है।  

शायद धन की अति इच्छा ने दीपावली की पूजा को लक्ष्मी पूजा तक सीमित कर दिया है।

अमावस्या का मह्त्व

इस दिन अमावस्या होती है और अमावस्या पितरों की पूजा का दिन होता है।  इसलिये इस दिन सुबह स्नान कर के सबसे पहले खीर और पूरी से  पितरो का तर्पण अवश्य करें। 

दीवाली पूजन कैसे करें?

  • दीपावली की शाम को जमीन पर लकडी की एक चौकी रखें।  चौकी पर लाल कपड़ा बिछायें।  
  • फिर उस कपडे पर चावल से अष्टदल कमल बनाए।  
  • फिर उस पर लक्ष्मी, गणेश, विष्णु, सरस्वती, काली, कुबेर के चित्रों को स्थापित करें।  
  • चावल से एक अष्टदल कमल जमीन पर बनाएं। और उस पर जल से भरा कलश स्थापित करें।  
  • कलश पर आम के पत्ते लगाये और उस पर एक नारियल स्थापित करें।  
  • कलश और नारियल पर रोली से स्वास्तिक बनाएं और कलावा बांधे।  
  • चौकी के आगे 5 छोटी मिट्टी की मटकियों में पांच तरह के अनाज भर के रखें।  
  • एक थाली में खील, बताशे, खिलौने तथा पाँच फल, पाँच मेवे, मिष्ठान आदि भोग की सामग्री रखें।  
  • फिर सभी देवी-देवताओं को रोली और अक्षत का तिलक करें।  उन्हें पुष्पमाला अर्पित करें।  
  • पाँच पान के पत्ते रखें उन पर सुपारी, लोंग, हरि इलायची रखें।
  • एक मिट्टी का बड़ा दिया और 10 या 20 छोटे मिट्टी के  दिये उनमें सरसो का तेल और बाती लगा कर एक थाली में रख ले। 
  • पूजा 11 या 21 दियों से करें।  
  • 5 दियों में घी भर के बाती लगा लें।  इन पांचो दियों को चौकी के पास पंक्ति में रख कर जला दें।  ये यहीं स्थापित रहेंगे।  बाकी के दियों को भी जला लें। 
  • फिर सबसे पहले  गणेश जी की स्तुति और आरती करें फिर लक्ष्मी जी तथा सरस्वती जी की तथा विष्णु जी की भी स्तुति तथा आरती करें।  
  • विशेष लाभ के लिये लक्ष्मी स्रोत का पाठ भी कर सकते है।  आरती दियों की थाली से करें। 
  • पाँच अनाज की मटकियों की भी आरती करें।  तथा माता से घर की समृद्धि का आशीर्वाद मांगे।   
  • फिर सभी भोग सामग्री का देवी देवताओं को भोग लगायें।  
  • इस दिन का मुख्य प्रसाद खील का होता है इसलिये सभी दियों में भी एक-दो खीलें अर्पित कर के दियो को  भोग लगाया जाता है।  
  • पूजा के बाद सभी दियों से घर को सजायें। घर के हर अँधेरे कोने में एक दिया अवश्य रखें।  
  • इस दिन घर के किसी भी कोने में अन्धकार न रहने दें। 
  • पूजा के उपरांत सभी को प्रसाद दें।   
  • बड़े दिये को सारी रात जलाया जाता है इसलिये तेल कम होने पर और तेल डाल दें।  इसे सौरती का दिया कहते है। 

दीवाली की कुछ अन्य धारणायें

  • पहले बड़े बुजुर्ग दीवाली की रात को सौरती के दिये पर कटोरी रख कर छोड़ देते थे।  सुबह तक उसमें कालिमा एकत्र हो जाती है।  
  • इसमें गाए का देसी घी मिला कर घर का शुद्ध काजल तैयार हो जाता है जो कि आँखों के लिये बहुत लाभकारी होता है।  आजकल घर का काजल लोग पसंद नही करते इसलिये बनाते भी नही है। 
  • दीपावली की रात को पहले घर के द्वार रात भर खुले रखे जाते थे तथा रात भर प्रकाश रखा जाता था।  
  • क्योंकि ऐसी धारणा है कि माँ लक्ष्मी दीवाली की रात को विचरण करती है और जिस घर में उन्हें प्रकाश और खुले द्वार दिखाई दें वह वही आती है।  
  • पर यह धारणा उस समय की है जब लोग अपने घरों में ताले भी नही लगाते थे।   परन्तु आज के समय में रात को मुख्य द्वार खुला रखना सुरक्षा की दृष्टि से हानिकारक हो सकता है इसलिये रात को द्वार बन्द  कर लिये जाते है। 
  • ऐसी भी धारणा है कि लक्ष्मी वही निवास करती है जहाँ साफ-सफाई हो।  इसलिये लोग दीवाली पर घर का कोना-कोना अच्छी तरह साफ करते है।

दीवाली पर पटाखे

इस बात को अच्छे से समझ लीजिये की कोई भी ऐसी वस्तु जो किसी भी जीव, जन्तु, पेड़-पौधो, हवा, पानी अर्थात पूरे पर्यावरण के लिये हानिकारक हो सकती है, वह सनातन  धर्म के किसी भी  रीति-रिवाज़ से नही जुड़ी हुई।  

पटाखें हमारी संस्कृति का हिस्सा नही है।  हमारे सभी रीति रिवाज़ पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बनाए गए है।  इसलिये पटाखें चला कर धन और पर्यावरण को हानि न पहुँचाये।  

आप ने देखा होगा कि पटाखों के कारण कोई भी दीपावली ऐसी नही होती जिसके अगले दिन के अखबार दुर्घटनाओं की खबरों से भरे न हो।  

हर साल दीपावली पर पटाखो के कारण कई दुर्घटनाएं घटती है।  इसलिये पटाखों का त्याग करें, ताकि दीपावली शुभ हो। 

दीवाली की अन्य विशेष बातें

  • दीपावली के दिन ही विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत शुरु किया था इसलिये विक्रमी संवत के अनुसार यह नव वर्ष की शुरुआत भी है।
  • सिन्धी और मारवाड़ी लोग विशेषकर इसी दिन को नववर्ष का प्रथम दिन मानते है और इस दिन नए बही-खातें शुरु करते है।
  • क्योँकि यह त्यौहार मनाने वालो की संख्या बहुत अधिक है और  इसलिये इस त्यौहार पर बाजारों में चहल-पहल काफी बढ़ जाती है।  
  • इस त्यौहार पर लोग लगभग हर वस्तु नई  खरीदते है।  इस तरह यह पर्व सभी की अच्छी आमदनी का अवसर भी होता है।  और सभी दीवाली की खुशियां मना पाते है। 
  • दीपावली पर लोग अपने मित्रों और परिजनों के घर जाते है और उन्हें मिठाई और उपहार आदि देते है।  इस प्रकार यह पर्व रिश्तों में और मिठास भर देता है।
  • इस दिन की एक खास बात।  इस पर्व पर हर कार्यालय, सरकारी हो  या निजी, हर कारखाना,  वर्क शॉप या दुकान सभी जगह के मुख्य अपने कर्मचारियों को मिठाई और उपहार अवश्य देते है तथा कुछ जगह बोनस भी दिया जाता है।
  • जिससे कर्मचारियों की  दीवाली की खुशी और बढ़ जाती है।  इस प्रकार यह पर्व  खुशियाँ बांटने का सबसे बड़ा अवसर है।





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