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राम नवमी : जानिए क्यों लिया श्री राम ने अवतार

राम नवमी श्री राम के  जन्मदिवस का पर्व है।  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का अवतरण चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को  कर्क लग्न और पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था। श्री राम को भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है।  



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राम ने अवतार क्यों लिया?

भगवान ने जब भी अवतार लिया है तो उसके एक नही अनेको कारण होते थे।  

भगवान ने कृष्ण अवतार में यह बात स्वयं कही है कि जब जब धरती पर पाप बढ़ते है तब तब मैं पापियों का नाश करने और भक्तों का उद्धार करने के लिये आता हूँ और आता रहूंगा। 

पर इसके अलावा भी हमारे  पौराणिक ग्रंथों में भगवान के हर अवतार से जुड़े हुए कुछ मुख्य  कारणो का उल्लेख किया गया है।  राम के अवतार के मुख्य कारणो का  विवरण नीचे दिया जा रहा है।

जय विजय के उद्धार के लिये

एक बार सन्कादिक ऋषि सनक, सनंदन, सनातन और  सनत् कुमार भगवान विष्णु के दर्शनार्थ वैकुण्ठ धाम पधारे। वहाँ  भगवान की सेवा में रत दो द्वार पाल थे जय और विजय।  

उन दोनो ने सनत् कुमारों को द्वार पर ही रोक दिया।  क्योँकि उस समय भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे। सनत् कुमारों के बारम्बार समझाने पर भी वह टस से मस नही हुए। 

जय और विजय के अंदर विष्णु जी के सेवक होने का घमंड आ गया था। इस पर सनत् कुमार क्रोधित हो उठे और उन्होने जय और विजय को दैत्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।  

फिर वह दोनो ऋषियों से क्षमा याचना करने लगे।  तभी भगवान विष्णु स्वयं बाहर आ गए और सारी घटना जानकर बहुत दुखी हुए।  

उन्होने ऋषियों से कहा कि उन दोनो ने जो भी किया वह मेरे प्रति अपनी अपार निष्ठा के कारण किया।  उन्हें क्षमा कर दीजिये।  

सनत् कुमारों को उन दोनो पर दया आ गई।  पर श्राप वापिस नही हो सकता था।  सनत् कुमारों ने कहा कि भगवन आप चाहेंगे  तो सब कुछ सम्भव है।  

यदि आप इनको मुक्ति प्रदान करेंगे तो यह दोनो वापिस आपके लोक में आ जायेंगे।  

उसके बाद जय और विजय का जन्म हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में हुआ और वह दोनो  भगवान विष्णु के वराह अवतार और नरसिंह अवतार द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुए।  

फिर वही दोनो रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्में और उनको मोक्ष प्रदान करने के लिये भगवान ने राम अवतार लिया।

वृंदा के श्राप के कारण 

पौराणिक कथाओं में जलंधर नामक राक्षस का उल्लेख मिलता है।  जिसकी उत्पत्ति सागर से हुई थी।  उसकी पत्नी वृंदा  महान पतिव्रता स्त्री थी।  

उसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर अमर हो गया था। इसलिये वह बहुत निर्भीक हो गया था।  उसने सभी देवताओं को पराजित कर दिया था तथा वह महादेव से भी युद्ध करता है पर महादेव भी उसे पराजित नही कर पाते।  

तब सभी देव गण भगवान विष्णु के पास जा कर प्रार्थना करते है कि किसी प्रकार वृन्दा का पतिव्रत धर्म भंग किया जाए तभी वह राक्षस मर सकता है। 

फिर भगवान विष्णु जलंधर का रूप धर के वृंदा के पास जाते है तथा उसे आलिंगन करते है।  वृन्दा उन्हें जलंधर समझ कर एक पत्नी की भावना के साथ उन्हें स्पर्श कर लेती है। 

इससे उसका पतिव्रत धर्म भंग हो जाता है। परंतु स्पर्श करते ही वह पहचान लेती है कि वह कोई और है।  फिर विष्णु जी अपने साक्षात रूप में उसे दर्शन देते है।  वृंदा यह देखकर बहुत दुखी होती है और क्रोधित भी होती है।  

वृंदा उन्हें  श्राप देती है कि उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ेगा।  भगवान उसे समझाते है कि उसके दुष्ट पति का अंत बहुत आवश्यक हो गया है इसलिये उन्हें यह लीला  करनी पड़ी।  
वृंदा भगवान से क्षमा मांगती है।  भगवान उन्हें  वरदान देते है कि वह युगो युगो तक मनुष्यों द्वारा पूजी जाती रहेगी।  वृंदा पतिव्रत धर्म भंग होने के दुख के कारण आत्म दाह कर लेती है।  
जहाँ वह आत्म दाह करती है, वहाँ से तुलसी के पौधे की उत्पत्ति हुई थी।  इसलिये तुलसी को वृन्दा भी कहते है तथा तुलसी सर्वत्र पूजनीय है।  वृंदा के श्राप के कारण भी राम का अवतार  होना आवश्यक था।

नारद के श्राप के कारण 

नारद जी ने एक बार तप किया और कामदेव भी उनका तप भंग नही कर पाये और उनसे क्षमा माँग कर चले गए।  नारद के मन में इस बात का अभिमान आ गया और उन्होने कामदेव पर विजय की बात विष्णु जी को बताई।  

विष्णु जी ने उनका घमंड दूर करने के लिये एक लीला रची।  नारद जी ने आकाश मार्ग से जाते हुए नीचे बहुत सुंदर नगरी देखी, वह नीचे उतर आये। 

वह  वहां के राजा के सुंदर महल में चले गए।  उन्हें पता चला कि  राजा की सुंदर कन्या का स्वयंवर होने वाला है।  

नारद जी कन्या को देख कर मोहित हो गए और तुरंत विष्णु जी के पास जा कर कहते है कि मुझे अपने जैसा सबके मन को हरने वाला हरि जैसा रूप दे दो।  

विष्णु जी ने तथास्तु कहकर उन्हें बन्दर का चेहरा दे दिया क्योंकि हरि का एक अर्थ बन्दर भी होता है। नारद जी स्वयंवर में शामिल हो गए, वहाँ सब उनका मज़ाक उड़ाने लगे। 

उन्होने पानी में अपनी सूरत देखी तो वह बहुत क्रोधित हुए।  तभी वहाँ विष्णु जी पहुँच गए और राजकुमारी ने विष्णु जी के गले में वरमाला डाल दी। 

वास्तव में वह राजकुमारी लक्ष्मी जी ही थी। नारद जी ने क्रोध में आकर विष्णु जी को श्राप दिया कि एक दिन स्त्री के वियोग में विलाप करते हुए विचरण करोगे तथा तुम्हें वानरों की ही सहायता की आवश्यकता पड़ेगी। 

तभी वह महल और सभी लोग अन्तर्ध्यान हो गए और वहाँ केवल विष्णु और लक्ष्मी थे।  

जब नारद जी ने देखा कि वह राजकुमारी माता लक्ष्मी है, तो उनको इस बात का भान हुआ कि  यह लीला प्रभु ने उनका घमंड दूर करने के लिये की थी और उन्होने प्रभु से क्षमा मांगी।

मनु और शतरूपा को दिये  वरदान के कारण

मनु और शत रूपा को प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री माना जाता है।  इन दोनो ने भगवान की तपस्या कर के उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा था।  

इन्ही दोनो ने कालांतर में दशरथ और कौशल्या के रूप में जन्म लिया।  और भगवान ने इन्हे अपना माता पिता बनने का सौभाग्य प्रदान किया। 

राम के जन्म की कथा

अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थी, कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा।  परन्तु उनके कोई पुत्र नही था जो उनका राज-काज संभाल सके।  

गुरु वशिष्ठ के परामर्श पर उन्होने श्रंगी ऋषि के द्वारा  पुत्र कामयेष्ठी  यज्ञ करवाया।  यज्ञ की पूर्णाहुति होते ही स्वयं अग्नि देव एक खीर का पात्र लेकर प्रकट हुए।  

उन्होने यह खीर राजा दशरथ को दे दी।  ऋषि वशिष्ठ के कहने पर राजा दशरथ ने वह खीर अपनी तीनो रानियों को खिला दी।  कुछ समय  के बाद तीनो रानियों ने पुत्रों को जन्म दिया।  

कौशल्या ने राम को, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।  राम जन्म से ही नील वर्ण थे और उनके  पैरों में कमल के चिन्ह बने हुए थे। 

इन लक्षणो को देख कर गुरु वशिष्ठ ने तभी कह दिया कि यह कोई अवतार है।  आयु के साथ धीरे-धीरे उनकी विलक्षण प्रतिभा से सभी को यह समझ में आ गया कि यह कोई साधारण व्यक्ति नही है। 

भगवान राम की लीलायें 

राम के अवतार में  भगवान ने भाँति-भाँति की लीलायें की थी।  भगवान की लीलाओं को कुछ शब्दों में व्यक्त करना किसी मानव के वश की बात नही है।  

क्योंकि उनकी लीला को कोई कभी पूरी तरह जान ही नही सकता।  यहां तो बस उन लीलाओं का कुछ अंश शब्दों में लिखने का  प्रयास किया गया है।  

राक्षसों का वध

राम की वास्तविकता को वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ऋषि पहचान चुके थे।  इसलिये विश्वामित्र ने कुछ दुष्ट राक्षसों को मारने के लिये राम की सहायता मांगी जिनमें ताड़का प्रमुख थी।

वह राक्षस ऋषि मुनियों के प्राणों के शत्रु बने हुए थे।  राम ने ताड़का और अन्य राक्षसों को मृत्यु के घाट पहुँचाया।  

शिव धनुष पर प्रत्यंचा

वहाँ से विश्वामित्र उन्हें मिथिला ले गए जहां राजा जनक की पुत्री सीता का स्वयंवर हो रहा था।  स्वयंवर का विजेता वही हो सकता था जो शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढा पाता।  

कोई भी वीर उस धनुष को हिला तक नही पा रहा था और श्री राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर सीता जी से विवाह किया।
सीता जी को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। 

सुपुत्र होने का परिचय दिया

कैकयी ने भरत को राजगद्दी दिलाने के लालच में दशरथ से दो वचन ले लिये एक राम को 14 वर्ष का वनवास और दुसरा भरत के लिये राजगद्दी।  

दशरथ ने कैकयी को दो वरदान देने का वचन बहुत पहले दिया था।  इसलिये उन्हें मानना पड़ा।  पिता की आज्ञा मिलते ही राम सहर्ष वनवास के लिये चल दिये तथा सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ चल पड़े।

एक पत्नी व्रत धारण किया

श्री राम ने आजीवन एक पत्नी व्रत धारण किया।  इस प्रकार उन्होने  मानव जाति  को संयमित जीवन चर्या का तथा नारी के सम्मान का पाठ पढ़ाया।

सच्ची मित्रता का परिचय दिया

वनवास के समय में रावण छल से सीता का हरण कर के ले गया।  सीता को ढूंढते समय उनकी भेंट हनुमान और सुग्रीव से हुई।  

सुग्रीव के दुष्ट भाई बाली ने उसकी पत्नी का हरण कर लिया था। सुग्रीव ने राम से मित्रता कर ली और उनसे सहायता मांगी बदले में उनकी सहायता का वचन दिया।  

राम ने बाली का वध कर के सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा घोषित किया।  सुग्रीव ने भी अपनी वानर सेना श्री राम की सेवा में लगा दी।

निषादराज को मित्र बनाया 

वनवास के समय श्री राम ने निषाद राज गुह को अपना मित्र बनाया जो कि निषादों के राजा थे। निषाद जंगलों में रहते थे। उनके अलग तरह के रहन-सहन के कारण अन्य लोग उनसे दूरी बना कर रखते थे।  

राम ने उनसे मित्रता कर के सभी मनुष्यों को समानता की दृष्टि से देखने की शिक्षा दी।  निषाद राज ने राम, सीता और लक्ष्मण को गंगा पार करवाने में सहायता की थी।

शबरी के झूठे बेर खाये

जब राम और लक्ष्मण सीता  को ढूंढते हुए वन-वन भटक रहे थे तब वह वन-वन भटकते एक दिन शबरी की झोंपड़ी में पहुँचे।  वास्तव में शबरी भगवान की बड़ी भक्त थी और रोज़ उनकी बाट  जोहती थी।  

उन्हें दर्शन देने के लिये भगवान को उनकी झोंपड़ी में जाना ही था। शबरी  एक भीलनी थी जिसके हाथ का  छुआ भोजन ऋषि मुनि ग्रहण नही करते थे। 

जब राम उसकी कुटिया में पधारे तो उसके पास उन्हें खिलाने के लिये कुछ भी नही था।  उसकी कुटिया के पास एक बेरों की झाड़ थी।  उसने झाड़ से कुछ बेर तोड़ लिये।  

फिर उस भोली ने सोचा कि अगर बेर खट्टे निकले तो श्री राम के मुहँ का स्वाद खराब हो जायेगा।  इसलिये उसने सभी बेरों को चख-चख कर मीठे  बेर अलग कर लिये और खट्टे बेर फैंक दिये।  

फिर उन झूठे बेरों को ही राम के सत्कार में रख दिया।  भगवान राम ने और लक्ष्मण ने  शबरी के झूठे बेर बिना कुछ कहे बड़े आनंद के साथ खाये।  

भगवान राम ने इस प्रकार सभी मनुष्यों के प्रति प्रेम और समानता का भाव रखने की शिक्षा दी।

युद्ध को टालने के प्रयास किये

राम ने रावण को अवसर दिया कि अगर वह सीता को लौटा दे तो युद्ध टल सकता है, परंतु रावण को अपनी शक्ति का अभिमान था। इसलिये वह नही माना और आखिर युद्ध हुआ।

सागर पर सेतु बांध बनाया 

लंका तक पहुँचने के लिये राम ने वानरों की सहायता से सागर पर सेतु बांधा जो कि आजतक लोगो को आश्चर्य चकित करता है। 

कहते है कि वानरों ने सभी पत्थरों पर राम का नाम लिखकर उन्हें  पानी में छोड़ा तो राम नाम लिखे हुए सभी पत्थर पानी पर तैरने लगे।  इस प्रकार सागर पर सेतु तैयार किया गया।

विभीषण को लंका का राजा  बनाया

रावण की मृत्यु के बाद श्री राम ने उसके भाई विभीषण को लंका का राज्य सौंप दिया जबकि वह स्वयं वहाँ के राजा बन सकते थे। 

क्योँकि पहले जब कोई राजा युद्ध में विजयी होता था तो वह हारे हुए राजा के राज्य पर कब्जा कर लेता था। परंतु राम ने रावण के ही परिवार के योग्य सदस्य को राज्य सौंपा।  

वैसे भी रावण के सभी भाई बन्धु और पुत्रादि युद्ध में मारे जा चुके थे।  रावण ने अपने अहंकार की संतुष्टि के लिये उन सभी को बलिदान कर दिया था।

राम नवमी कैसे मनाते है? 

राम नवमी पूरे भारत, नेपाल तथा सभी हिन्दू बहुल क्षेत्रों में मनाई जाती है। इसी दिन चैत्र के नवरात्र भी समाप्त होते है। 
इस दिन रामनवमी की पूजा के लिये भगवान राम का चित्र लकड़ी की चौकी पर रखें।  
फिर उन्हें  रोली चंदन से तिलक करें फूल माला पहनाएं तथा फूल चढ़ाएं।
धूप और दीप से आरती करें तथा फल और मिष्ठान आदि का भोग लगायें।  
कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है।   
मन्दिरों में इस दिन पूरे समय भजन कीर्तन चलता रहता है।  
इस दिन राम की नगरी अयोध्या की शोभा देखने योग्य होती है।  इस पर्व को अयोध्या वासी दीपावली के दिन की ही तरह उत्साह पूर्वक  मनाते है तथा इस दिन  वहाँ बहने वाली सरयू नदी में स्नान कर के श्रद्धालु धन्य हो जाते है। 


इस दिन घरों में रामायण का या रामचरितमानस का पाठ करना बहुत शुभ होता है। बहुत से लोग नवरात्र के नौ दिनो तक रामायण का अखंड पाठ करवाते है। 

रामायण के रूप में हमें श्री राम के पूरे जीवन की लीलाओं का लिखित वर्णन मिलता है।  जिसे यदि हम अंश भर भी अपने जीवन में उतार पायें तो हमारा मानव जन्म सार्थक हो सकता है।





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