भाई दूज भाई बहन के अटूट प्रेम का पर्व है। यह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह दीवाली के पंच दिवसिए महापर्व का अंतिम दिन है।
इस दिन को भ्रातृ द्वितीया और यम द्वितीया भी कहते है। यह पूरे भारत, नेपाल और सभी हिन्दू बहुल क्षेत्रों में मनाया जाता है।
इसे विभिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है, जिसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे। इस दिन यम पूजा का विशेष महत्व है।
भाई दूज की कथायें
भाई दूज के इतिहास में कुछ पौराणिक कथाओं का उल्लेख भी मिलता है।
यमराज और यमुना की कथा
मृत्यु के देवता यमराज और यमुना दोनो सूर्यदेव और देवी संज्ञा की सन्ताने है। इनका प्रारम्भिक नाम यम और यमी था।
एक बार बहुत समय से यमराज व्यस्त होने के कारण बहन यमुना से नही मिल पा रहे थे। यमुना ने यमराज को अपने घर आने का निमंत्रण दिया।
तब यमराज को लगा कि सचमुच बहुत समय से बहन से मिलना नही हुआ है, इसलिये उन्होने यमुना के घर जाने का निर्णय लिया।
जब वह यमुना के घर पहुँचे तो यमुना इतने अरसे बाद भाई को देखकर भाव-विभोर हो गई। यमुना ने भाई को तिलक किया और आरती उतारी, तथा यथा शक्ति भाई का स्वागत सत्कार किया।
यमुना ने अनेको व्यंजन बना कर उन्हे खिलाए। यमराज बहन के स्नेह और स्वादिष्ट भोजन से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होने यमुना को वरदान मांगने को कहा।
तब यमुना बोली कि आप हर वर्ष इस दिन मेरे घर अवश्य आना और साथ ही यह भी वर मांगा, कि जो भी भाई इस दिन अपनी बहन के घर जायेंगे, उन्हें आप दीर्घायु होने का आशीर्वाद दें।
यमराज बहन से मिलकर बहुत प्रसन्न थे इसलिये उन्होने कहा कि अब से जो भी भाई बहन इस दिन यमुना में स्नान करेंगे और जो भी भाई इस दिन बहन के घर भोजन करेंगे तथा बहन से तिलक करवायेंगे, उन्हे अकाल मृत्यु से अभय का वरदान देता हूँ।
तभी से इस दिन बहनों द्वारा भाई को तिलक करने का यह पर्व शुरु हुआ। इस दिन सभी पुरुषों को अपनी बहनों से तिलक अवश्य करवाना चाहिएं।
यदि कोई सगी बहन न हो तो चचेरी, ममेरी, या कोई भी रिश्ते की बहन या फिर मुहँबोली बहन से ही तिलक करवाना चाहिये।
यदि कोई भी बहन न हो तो यमुना में स्नान करके या किसी भी नदी में स्नान कर के यमुना और यमराज का ध्यान कर के उन्हें प्रणाम करें। गाय और नदी हमारे धर्म में बहुत पवित्र मानी गई है।
इसलिये इनका ध्यान करके और किसी भी कन्या से तिलक करवा के भोजन कर लेना चाहिये तथा यमराज का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिये।
इस दिन के बारे में श्री कृष्ण की भी कथा कही जाती है।
कृष्ण और नरकासुर की कथा
नरकासुर एक आततायी राक्षस था। उसे यह वरदान था कि वह किसी स्त्री के द्वारा ही मारा जा सकता है। इसलिये श्री कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से नरकासुर का वध किया था।
नरकासुर का वध कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ था अर्थात दिवाली से एक दिन पहले। तभी से दीपावली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी मनाई जाने लगी।
उसके बाद वह वापस आते हुए बहन सुभद्रा के घर पहुँचे।
वह जिस दिन सुभद्रा के घर पहुँचे थे उस दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि थी। सुभद्रा ने विजयी होकर आये अपने प्रिय भाई को तिलक कर के आरती उतारी। तभी से यह पर्व लोक प्रचलित हुआ।
चित्रगुप्त की कथा
इस दिन चित्रगुप्त जयंती भी मनाई जाती है। चित्रगुप्त धर्मराज के सहायक है, जो कि सभी प्राणियों के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी अच्छे-बुरे कर्मों का लेखा जोखा रखते है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज ने एक बार ब्रह्मा जी से अपने कार्य में सहायता हेतु एक सहयोगी की मांग की। तब ब्रह्मा जी ध्यान मग्न हो गए और 1000 वर्षों तक ध्यान मग्न रहे।
फिर उनके शरीर से एक देव की उत्पत्ति हुई। उस देव के हाथों में कलम, दवात, किताब और कमण्डल थे। इन्हीं का नाम चित्रगुप्त पड़ा।
इनकी उत्पत्ति कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को हुई। ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण इन्हें कायस्थ भी कहा गया।
कायस्थ समाज इन्हें अपना पूर्वज मानता है, इसलिये मुख्य रूप से कायस्थ समाज में चित्रगुप्त जयंती मनाई जाती है।
इस दिन यमराज जी और चित्रगुप्त जी के चित्र स्थापित कर के धूप, दीप, पुष्प, गन्ध, अक्षत, रोली, पान, सुपारी, फल, मिष्ठान आदि से इनकी पूजा करने का विधान है।
पूजा के स्थान पर ही अपनी किताबे कलम आदि रख कर उनकी भी पूजा करनी चाहिये। जो भी भक्त चित्रगुप्त की श्रद्धा भाव से पूजा करते है उन्हें यमराज की भी कृपा प्राप्त होती है।
भाई दूज कैसे मनाते है?
भाई दूज के दिन बहन और भाई को यमुना में स्नान करना चाहिये। उसके बाद भाई को बहन के साथ उसके घर जाना चाहिये।
फिर बहने भाई को लकडी की चौकी पर बिठाएं। फिर बहन अपना सिर दुपट्टे आदि से ढक ले और भाई रुमाल से सिर ढक ले।
फिर भाई दोनो हाथो की अंजलि बना लेते है, तथा बहने भाई के हाथ में चावल का घोल, सिन्दूर, शहद, चंदन और गाय के दूध का घी लगाती है।
फिर भाई की अंजलि में पान का पत्ता रखती है उसके ऊपर लोँग, सुपारी, जायफल और कुछ पीले फूल रखती है। फिर बहने भाई दूज का मंत्र बोलती है जो इस प्रकार है।
यमुना ने निमन्त्रण दिया यम को,
मै निमन्त्रण दे रही हूँ अपने भाई को,
जितनी बड़ी यमुना की धारा,
उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु,
इस मन्त्र को तीन बार बोलें। फिर बहने अपने भाई की अंजलि में जल डाल कर हाथ धुला दे। फिर बहनें स्वयं भाई के हाथों को कपडे से पोंछ दें।
फिर रोली और चावल से भाई के ललाट पर तिलक करें और कुछ चावल भाई के सिर पर छिड़के। उसके बाद भाई की आरती करें।
एक सूखे नारियल पर रोली से स्वास्तिक बनाये और उस पर कलावा बांधें, फिर भाई के हाथों में वह सूखा नारियल दें। भाई के दाहिने हाथ में कलावा बांधें।
फिर भाई को भोजन करायें और फिर स्वयं भोजन करें।
तिलक से पहले तक भाई बहन को उपवास रखना चाहिएं।
यदि भाई दूज के दिन भाई दूर हो, तो सूखे नारियल पर रोली से स्वास्तिक बना कर उसी को रोली चावल से तिलक भी कर देते है और कलावा बांध देते है। फिर जब भी भाई आये तब भाई को दे देते है।
यदि भाई विवाहित हो तो भाई के बाद भाभी को भी तिलक करना चाहिये। लेकिन भाभी को अलग से नारियल नही देते है।
जो नारियल बहन भाई को देती है उस नारियल को भाई तथा भाई की पत्नी और बच्चे ग्रहण कर सकते है लेकिन वह नारियल बहन को ग्रहण नही करना चाहिये।
इस दिन भाई अपनी बहनों को उपहार देते है। उपहार के रूप में वस्त्र, आभूषण आदि या कोई भी बहन के लिये आवश्यक वस्तु या रूपये भी दे सकते है।
इस दिन चावल बनाने का बहुत मह्त्व है। इसलिये बहनो को चावल का कोई व्यंजन ज़रूर बनाना चाहिये और भाई को खिलाना चाहिये। सबसे बेहतर है कि खीर बनाये।
क्योंकि त्यौहार के दिन चाहे बाहर से कितनी भी मिठाईयाँ लाई गई हो पर घर में कुछ मीठा अवश्य बनाना चाहिये।
हमारे देश में हर त्यौहार पर कुछ न कुछ मीठा बनाने की परम्परा है। इस दिन रात्रि को यमराज के नाम का दिया जला कर घर के बाहर रख जाता है।
बहने यमराज के नाम का सरसो के तेल का चौमुखा दिया जला कर अपने भाई के लिये दीर्घायु की कामना करती है तथा पूरे परिवार के लिये यमराज का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
जिन पर भी यमराज का आशीर्वाद बना रहता है, उन्हें अकाल मृत्यु का भय नही रहता।
विभिन्न प्रदेशों में भाई दूज
चलिये अब जानते है कि विभिन्न प्रांतों में भाई दूज कैसे मनाया जाता है।
महाराष्ट्र और गोआ
महाराष्ट्र और गोआ में इसे भाऊ बीज नाम से मनाया जाता है तथा वहाँ पर जिन स्त्रियों के भाई नही होते या भाई कहीं दूर गए होते है, वह स्त्रियां चन्द्रमा की ही भाई स्वरूप पूजा और आरती करती है और चंद्र देवता को अर्घ्य देती है।
जिनके भाई दूर है वे बहने चंद्र देव से भाई के लिये दीर्घायु होने की कामना करती है।
असम और बंगाल
असम और बंगाल में इस पर्व को भाई फोन्टा कहते है। वहाँ की बोली में फोन्टा का अर्थ तिलक है। वहाँ पर बहने अपने भाई को चंदन, दही और काजल मिश्रित कर के तिलक करती है।
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में भाई दूज के दिन बहने भाई को रोली और चावल से तिलक करती है तथा सूखा नारियल और बताशे भेंट करती है।
बिहार
बिहार में भाई दूज मनाने का तरीका बहुत अनोखा है। यहाँ बहने पहले भाई को डांटती है फिर अपनी जीभ में कांटा चुभाती है और फिर माफी मांगती है। फिर भाई को तिलक करती है तथा मिठाई खिलाती है।
आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना
आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे भगिनी हस्ता कहा जाता है तथा दक्षिण भारत के अन्य भागों में यम द्वितीया और भ्रातृ द्वितीया कहा जाता है।
पंजाब
पंजाब में भाई दूज को टीका कहा जाता है इसके अलावा पूरे उत्तर भारत में भाई दूज ही कहा जाता है।
नेपाल
नेपाल में यह पर्व भाई तिहार और भाई टीका के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर बहने भाई को सात रंग का टीका लगाती है तथा मिष्ठान और एक सूत्र भेंट करती है।
यहाँ पर भाई भी बहन को टीका करते है और उन्हें उपहार देते है।
भाई दूज का मह्त्व
इस दिन भाई बहनो को यमुना में स्नान अवश्य करना चाहिएं। अगर कोई और नदी पास हो तो उसमें भी स्नान कर सकते है। वैसे आजकल यह परम्परा बहुत कम हो गई है।
आज कल लोग समय के अभाव के कारण नदियों पर नही जाते। कितनी अजीब बात है कि पहले लोगो के पास नदियों तक जाने का समय होता था जब यातायात के साधन नही हुआ करते थे।
उस समय घोडा गाड़ी या बैलगाड़ी में यात्रा करने में कितने दिन लग जाया करते थे, और अब तो रेल, बस और लोगो के पास निजी वाहन भी होते है। फिर भी समय की कमी है।
क्योंकि शायद हम जिन चीज़ो के लिये अपना समय बचा कर रखना चाहते है, हमें लगता है वही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। आजकल लोग अपने रीति रिवाजो को 'बेकार की बाते' कह कर पुकारते है।
पर हमें अपनी परम्पराओं की इस प्रकार उपेक्षा नही करनी चाहिएं। परम्पराएं हमारी जड़े है, हमारी सच्चाई है। हमें इनका सम्मान करना चाहिये।
क्यों ज़रुरी है भाई दूज?
भाई दूज और रक्षा बन्धन ये दोनो पर्व प्राचीन काल में कईं कारणो से शुरु हुए।
लेकिन वर्तमान काल में यह दोनो पर्व भाई बहन के निश्छल और पवित्र प्रेम के पर्व है। भाई बहन का रिश्ता बडा अनोखा होता है।
भाई बहन एक दूसरे के सबसे अच्छे मित्र होते है। दूसरे मित्र तो कभी साथ देते है कभी नही पर भाई बहन हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े होते है।
यह ठीक है कि कभी-कभी विपरीत परिस्थितियों के कारण रिश्तों में खटास भी आ जाया करती है।
लेकिन रक्षाबन्धन और भाई दूज जैसे पर्व उन्हें फिर उनका बचपन का स्नेह याद दिला देते है और वह सारे मन-मुटावो को भुला कर एक दूसरे से मिलने के लिये दौड़ पड़ते है।
भाई दूज के पर्व में भाई का बहन के घर जाने का नियम है। इसका मुख्य कारण यह है कि विवाह के बाद अधिकतर घरों में स्त्रियों का उनके मायके जाना कम कर दिया जाता है।
अब तो मोबाइल का ज़माना है, पर पहले एक समय ऐसा भी था जब स्त्रियों को पता चलता था कि आस-पास का कोई व्यक्ति उसके गांव की ओर किसी काम से जा रहा है, तो वह उस व्यक्ति से ही अनुरोध कर के अपने मायके का हाल चाल पता कर के बताने को कहती थी।
कम से कम भाई दूज और रक्षाबन्धन जैसे पर्वों के कारण स्त्रियां अपने माता-पिता और भाई-बहनो से मिल पाती थी। इस तरह यह पर्व रिश्तों को टूटने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे और अब भी निभाते है।
हमारे समाज में बहुत से घरों में स्त्रियों को दबा कर रखा जाता था और अब भी बहुत से घर ऐसे मिलेंगे। ऐसे घरों में न तो बहुओं को बार-बार मायके जाने देते है और बहू के मायके वालो का भी अधिक आना पसंद नही करते है।
अगर यह त्यौहार न होते तो स्त्रियों का मायके से नाता ही टूट जाता। रक्षा बन्धन और भाई दूज जैसे पर्वों के बहाने कम से कम एक महिला को अपने परिवार से और एक परिवार को अपनी बेटी से मिलने का अवसर तो मिल जाता है।
ये प्यारे पर्व भाई बहन के रिश्ते के पौधे को पानी की तरह सींचते है और भाई बहन अपना बचपन एक दिन के लिये फिर से जी लेते है।
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