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दशहरा : क्यों करते है रावण का पूजन और दहन

दशहरा  हिन्दुओ का एक मुख्य पर्व है।  यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को  मनाया जाता है। यह शारदिये नवरात्र की समाप्ति के बाद की दशमी तिथि को मनाया जाता है।  

इसे विजय दशमी भी कहते है। यह पूरे भारत तथा  अन्य देशो में भी  हिन्दू बहुसंख्यक क्षेत्रों में मनाया जाता है।



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दशहरा क्यों मनाया जाता है?

इस दिन भगवान  राम ने रावण का वध किया था।  रावण  को दशानन भी कहते है।  इसलिये इस दिन को दशहरा कहा जाता है।  

इस दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की इसलिये इस दिन को विजय दशमी भी कहते है।  


इसी  दिन दुर्गा माता ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।  इसलिये यह दिन दुर्गा पूजा के रूप में भी मनाया जाता है।

विशेष कर उड़ीसा, असम और बंगाल में इस दिन दुर्गा माँ की विशेष पूजा होती है और दुर्गा माँ की मूर्ति जल में विसर्जित की जाती है।

नई फसल की खुशी का पर्व

इस समय खरीफ की फसल कटने के लिये तैयार होती है। किसान फसल बेच कर धन कमाते है इसलिये यह समय किसानो के लिये भी  उत्सव का समय होता है। 

रावण  वध की कथा

अयोध्या के राजा दशरथ को वचन बन्धन के कारण अपने पुत्र राम को वनवास भेजना पड़ा था।  राम के साथ उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण भी गए थे।  

वनवास के समय लंका पति रावण की बहन सुर्पणखा वन में विचरण कर रही थी जहाँ श्री राम ठहरे हुए थे।  सूर्पणखा राम को देख कर मोहित हो गई। 

वह उनके सामने विवाह प्रस्ताव रख देती है।  राम उसे मना कर देते है। इस पर वह क्रुद्ध होकर सीता को मारने झपटती है।  

लक्ष्मण यह देखते  है, तो वह एक कटार फैंक कर सूर्पणखा को मारते है,  जिससे उसकी नाक कट जाती है।  वह लंका जाकर रावण को अपने अपमान का बदला लेने के लिये उकसाती है।  

रावण उसकी बात मानकर खर-दूषण को सेना सहित भेजता है परंतु वह दोनो राम लक्ष्मण के साथ युद्ध में मारे जाते है।  

फिर रावण छल नीति अपनाता है।  वह छल से सीता का हरण कर लेता है।  जटायु नामक एक गिद्ध राम का भक्त था वह रावण को रोकने का प्रयास करता है पर रावण उसे बुरी तरह घायल कर देता है।  

जब राम और लक्ष्मण सीता को ढूंढ रहे होते है तो उन्हें घायल जटायु मिल जाता है।  वही राम को बताता है कि रावण सीता जी का हरण कर के दक्षिण की ओर गया है।  उन्हें सूचित करने के बाद जटायु की मृत्यु हो जाती है।

फिर राम और लक्ष्मण दक्षिण की ओर बढ़ते जाते है।  उन्हें मार्ग में हनुमान और सुग्रीव मिलते है।  सुग्रीव वानर राज थे तथा हनुमान वानरों के सेना अध्यक्ष थे।  सभी वानर राम की सहायता के लिये तैयार हो जाते है।

राम वानरों द्वारा रावण को सन्देश भी भेजते है कि वह सीता को लौटा दे और युद्ध को रोक ले।  लेकिन रावण अपनी शक्तियों के अभिमान से चूर था।  

वह नही माना और आखिरकार राम के हाथो मारा गया। रावण एक बहुत ज्ञानी और महाशक्तिशाली व्यक्ति था। फिर भी एक दिन उसका अधर्म और अभिमान उसे ले डूबा।  

इसीलिये इस दिन रावण का पुतला जलाने की प्रथा शुरु हुई जिससे  सभी लोगो को धर्म के मार्ग पर  चलने की तथा अभिमान से दूर रहने की शिक्षा मिले।

महिषासुर वध की कथा

रम्भासुर नामक राक्षस ने एक महिष अर्थात भैंस से विवाह किया था। उसी भैंस से उसे एक पुत्र हुआ।  वह अपनी इच्छानुसार कभी भी भैंस या मानव में परिवर्तित हो सकता था। 

इसलिये उसका नाम महिषासुर रखा गया।  उसने कठिन तप कर के ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और अमरता का वरदान मांगा।  

ब्रह्मा जी ने कहा कि अमरता का वरदान किसी को नही दिया जा सकता। तो फिर उसने  वरदान मांगा  कि उसे कोई भी सुर, असुर, नर, पशु, गन्धर्व, नाग, किन्नर मार न सके। 

ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा और साथ ही कहा कि कोई स्त्री तुम्हें मार सकती है तो वह राक्षस अभिमान से हँसने लगा।  अब वह राक्षस बहुत उत्पाती हो गया।  

उसने देवताओं को पराजित करके इन्द्रलोक पर भी कब्जा कर लिया था।  तब सभी देवताओं ने अपनी शक्ति को एकत्र कर के दुर्गा माँ को अवतरित किया।  

सभी देवताओं ने दुर्गा माता को अपने अस्त्र-शस्त्र दिये।  दुर्गा माँ ने नौ दिनो तक महिषासुर से युद्ध किया और दशमी के दिन उसका वध कर दिया। 

नारी की शक्ति की उपेक्षा और अपने दुष्ट कर्मो के कारण महिषासुर का अंत हुआ।

दशहरे की मान्यतायें

दशहरे के दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है तथा इस दिन को विजय प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ माना जाता है। प्राचीन काल में क्षत्रिय शत्रुओं पर आक्रमण करने के लिये दशहरे का दिन ही चुनते थे।

इस दिन को अबूझ मुहूर्त कहा जाता है।  अर्थात किसी भी नए काम को शुरु करने के लिये इस दिन को शुभ मुहूर्त माना जाता है।

इस दिन शमी वृक्ष की भी पूजा की जाती है, क्योंकि भगवान राम ने रावण से युद्ध से पूर्व शमी वृक्ष को नमन करके शमी वृक्ष का आशीर्वाद प्राप्त किया था।  

शमी वृक्ष पर शनि का वास माना जाता है।  शनि की कृपा प्राप्ति के लिये शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। 

इस दिन रावण की भी पूजा की जाती है। क्योंकि रावण महाज्ञानी था। जब वह मृत्यु के निकट था तब श्री राम ने लक्ष्मण को रावण के पास अन्तिम ज्ञान प्राप्त करने के लिये भेजा।  

लक्ष्मण रावण के सिर के पास खड़े हो गए।  रावण मौन रहा।  तब राम ने उन्हें रावण के चरणों के पास खड़े होने के लिये कहा।  

इसका कारण यह था कि किसी से  ज्ञान प्राप्त करने के लिये उसके चरणो के पास खड़े होकर उसे आदर देना चाहिये।  

फिर लक्ष्मण रावण के चरणों के पास खड़े होकर बोले कि मृत्यु से पहले हमें भी अपने अमूल्य ज्ञान का कुछ अंश प्रदान करें।  

फिर रावण ने लक्ष्मण को  ज्ञान प्रदान किया।  उसके ज्ञान के कारण अंत समय में राम और लक्ष्मण ने भी उसे आदर दिया था।

इसलिये दशहरे के  दिन सुबह रावण के ज्ञान के कारण उसकी पूजा की जाती है और सन्ध्या काल में उसके अवगुणों के कारण उसका दहन किया जाता है।

दशहरे का पूजन कैसे करें

दशहरे के दिन सुबह गोबर के दस पिण्ड बना कर उन सभी पर दही और जौ चढ़ाते है।  

यह दस पिण्ड रावण के दस सिर के प्रतीक माने जाते है।

इस दिन क्षत्रिय अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करते है।  

अस्त्रो-शस्त्रों को गंगाजल छिडक कर लाल कपड़ा बिछा कर उस पर रखते है।

हल्दी या रोली से अस्त्र-शस्त्रों पर तिलक करते है तथा पुष्प अर्पित करते है। 

इस दिन कोई नया कार्य शुरु करने वाले हों तो शमी वृक्ष की पूजा अवश्य करनी चाहिये।  

इस दिन शमी वृक्ष के पास जा कर उसकी भी धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करें और शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त करें।  

शमी वृक्ष की कथा

शमी वृक्ष को शनिदेव का वृक्ष कहा जाता है।  माना जाता है कि शमी की  पूजा से शनि की कृपा प्राप्त होती है।  दशहरे को इसका पूजन करने का भी यही कारण है।  

कहते है कि  रावण ने नवग्रहों को अपना बँधक बना रखा था। तथा शनि को उसने अपने पैरों के पास बँधक बनाकर रखा हुआ था। 

कहते है शनि की वक्री दृष्टि जिस पर भी पडती है उसको कोई भी नही बचा सकता।  इसलिये  रावण ने शनि को अपने पैरों के पास  रखा हुआ था।  

जब हनुमान जी ने लंका दहन किया था तभी उन्होने शनि देव को भी स्वतंत्र करवा दिया था।  उसके बाद जहाँ राम की सेना ठहरी हुई थी वही पास के एक शमी के वृक्ष पर शनि देव ने अपना स्थान बना लिया।  

जब राम लंका पर चढाई करने को चले थे, तब उन्होने शमी के वृक्ष को प्रणाम किया था।  वास्तव में उन्होने उस पेड़ पर विराजमान  शनि देव को प्रणाम किया था।  

अब शनि देव स्वतन्त्र थे और उनकी वक्री दृष्टी रावण पर पड़ चुकी थी।  इसलिये रावण का नाश होना निश्चित था।  इस घटना के कारण ही दशहरे को शमी वृक्ष की पूजा करना शुभ फलदायी माना जाता है। 

दशहरा कैसे मनाते है?

पूरे भारत में दशहरे का आयोजन बहुत जोर शोर से होता है।  नवरात्रि के प्रथम दिन से ही देवी माँ का पूजन भी प्रारंभ हो जाता है और रात्रि को जगह-जगह रामलीला का आयोजन भी होता है।  

रामलीला में भगवान राम के जीवन को नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। नवमी के दिन तक युद्ध से पहले की पूरी रामकथा की लीला दिखाई जाती है।   

जो भी राम लीलायें आयोजित होती है,  उन सभी की ओर से दशहरे के दिन बडे-बड़े मैदानों में रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के बड़े-बड़े  पुतले लगाये जाते है।  

फिर उस रामलीला के पात्र  राम रावण युद्ध को नाटिका रूप में प्रस्तुत करते  है।  फिर राम का पात्र निभाने वाले पुरुष के द्वारा अग्नि बाण चला कर रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतलो का दहन किया जाता है।   

पुतलो में पटाखे भी लगा दिये जाते है, ताकि लोग त्यौहार का भरपूर आनंद लें सकें।  इस दिन जहां-जहां भी रावण के पुतले जलाए जाते है, वहां मेलो का भी आयोजन होता है।  

मेलो में  बच्चो के लिये झूले लगाये जाते है और तरह तरह के खिलौने और खाने-पीने की सामग्री   भी मिलती है।  इस लिये यह पर्व बच्चों को बहुत पसंद होता है।  

रावण के दहन के बाद  राम और भरत के मिलाप का दृश्य भी नाटिका रूप में दर्शाया जाता है।  

रावण के पूर्ण दहन के बाद पुतले में प्रयोग की गई लकड़ियां जो जल चुकी होती है, उनका एक-एक  टुकड़ा लोग अपने घर ले जाते है।  

इन लकड़ियों को रावण की अस्थियां माना जाता है। और इन लकड़ियों को घर में रखना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि रावण की अस्थि घर में रखने से घर के सदस्यों में  विद्वता का गुण आयेगा। 

दुर्गा पूजा

वैसे तो नवरात्रि के नौ दिनो तक पूरे देश में देवी माँ की आराधना की जाती है।  पर दशमी के दिन  बंगाल उड़ीसा और असम में दुर्गा पूजा का विशेष समारोह होता है।   


पहले नवरात्र के दिन माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है।  घरों में छोटी मूर्ति स्थापित की जाती है और मन्दिरों में बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ स्थापित की जाती है।  नौ दिनो तक उनकी पूजा अर्चना की जाती है।  

विजय दशमी के दिन देवी माँ की मूर्ति जलूस और ढोल नंगाड़ो के साथ बड़ी धूम-धाम से ले जाई जाती है और जो भी नदी पास बहती हो उसमें प्रवाहित कर दी जाती है।

कहाँ रावण को नही जलाते?

कुछ स्थान ऐसे भी है जहाँ रावण को जलाया नही जाता बल्कि उसकी पूजा की जाती है। 

उत्तर प्रदेश के बिसरख नामक गांव में रावण-दहन नही किया जाता।  माना जाता है कि यह रावण का ननसाल है और  रावण का जन्म भी यही हुआ था।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में  बैजनाथ नामक स्थान पर रावण ने भगवान शिव की तपस्या कर के उन्हें  प्रसन्न किया था और शिव जी ने उसे दर्शन दिये थे।  

इसलिये यहाँ रावण एक शिव भक्त के रूप में आदर से देखा जाता है जिसकी तपस्या के फलस्वरूप भगवान शिव ने यहाँ प्रकट होकर इस भूमि को धन्य कर दिया।

राजस्थान के जोधपुर में रावण के वंशज रहते है।  वह भी रावण का दहन नही करते, बल्कि वह इस दिन रावण के लिये दुखी होते है और रावण का श्राद्ध तर्पण आदि करते है। 

मध्य प्रदेश में रावण की पत्नी मन्दोदरी का मायका था। अर्थात यह रावण की ससुराल है।   इसलिये यहाँ भी रावण दहन नही किया जाता। 

महाराष्ट्र के गण चिरौली में  एक विशेष वर्ग के लोग भी रावण दहन नही करते।  वह भी रावण को अपना पूर्वज मानते है।

कर्नाटक में भी रावण दहन नही किया जाता बल्कि एक शिव भक्त के रूप में रावण को पूजा जाता है।

दक्षिण भारत  में भी विजय दशमी का दिन रावण को जला कर नही मनाया जाता। बल्कि वहाँ तीनो महादेवियों  महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। 

दशहरे से क्या शिक्षा मिलती है?

दशहरा असत्य पर सत्य की, अधर्म पर धर्म की विजय का उत्सव है।  

दशहरे का दिन हमे  हमेशा यह स्मरण कराता रहेगा कि किसी व्यक्ति के पास चाहें कितने भी गुण और विद्यायें हों पर अगर वह अधर्म के मार्ग पर चलता है तो उसके सारे गुण और विद्या व्यर्थ है। 

अधर्म पर चलने  वाले का पतन निश्चित है।  सभी जानते है कि रावण महाप्रतापी सर्व शक्तिमान था।  उसने नवग्रहो को और यमराज तक को बंधक बना रखा था।  

अगर विभीषण उसकी मृत्यु का रहस्य श्री राम को न बताता तो उसको मारना असम्भव था।  पर भगवान ने  न केवल उसके कुकर्मो का दंड ही उसे दिया बल्कि उसके अभिमान को भी चकनाचूर किया।  

उन्होने साधारण वनवासी के रूप में साधारण से वानरो की सेना लेकर उस पर चढाई कर दी और रावण ने उन्हें कमजोर समझ कर हल्के में ले लिया।  

इस घटना से यह शिक्षा मिलती है की अधर्म पर चलने वाला  अधिक शक्तिशाली होकर भी धर्म पर चलने वाले से नही जीत सकता। 

रावण भगवान शिव का परम भक्त था और उसने शिव जी की तपस्या करके बहुत सी शक्तियां प्राप्त की थी।  इसलिये उसे अपनी जीत का पूरा भरोसा था।  

लेकिन परस्त्री हरण करके उसने जो पाप किया था उसके कारण भगवान शिव ने भी उसकी सहायता नही की।  

यह एक सीख है कि भले ही  हम ईश्वर की खूब पूजा करते हो, लेकिन यदि हम पापमयी जीवन जीते है, तो ईश्वर भी हमारी पूजा स्वीकार नही करेगा।  

इसलिये   पहले हमें अपने कर्मो को सुधारने की आवश्यकता है। ईश्वर हमारा साथ तभी देगा जब हम सत्य के  मार्ग पर चलेंगे।





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