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कार्तिक पूर्णिमा : गंगा स्नान के लिये यह दिन है विशेष

कार्तिक मास की पूर्णिमा को वर्ष की सबसे विशेष पूर्णिमा माना जाता है।  कार्तिक  मास को  सबसे पवित्र मास माना जाता है।  
इस पूरे माह में व्रत, उपवास, दान, यज्ञ, हवन आदि का बहुत महत्व होता है।  कार्तिक मास की पूर्णिमा केवल हिन्दू धर्म में ही नही बल्कि सिख धर्म तथा जैन धर्म में भी महत्व रखती है।




kartik purnima





हिन्दू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का मह्त्व

कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बहुत मह्त्व माना जाता है।  इसे त्रिपुरी पूर्णिमा, गंगा स्नान और देव दीपावली भी कहते है।  इस दिन गंगा स्नान करने का बहुत महात्म्य माना गया है।  

कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के लिये रात को ही गंगा जी के तट पर आने वालो का मेला लग जाता है।  दूर-दूर से योगी, ऋषि, मुनि आदि भी इस पूर्णिमा पर गंगा स्नान करने पहुँचते है।  इसे वर्ष का सबसे बड़ा स्नान कहा जाता है। 

सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का मह्त्व

इस दिन गुरु नानक जी का जन्म दिवस भी होता है।  गुरु नानक जी सिख धर्म के प्रवर्तक तथा प्रथम गुरु भी थे।  इसलिये यह दिन सिख धर्म के अनुयायियों के लिये भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन को गुरुपर्व भी कहते है।   

सिख समुदाय के लोग इस दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाते है।  इस दिन सुबह-सुबह प्रभात फेरी निकाली जाती है, तथा सुबह से ही गुरुद्वारों में शबद कीर्तन शुरु हो जाता है।  

सभी लोग गुरु वाणी का पाठ करते है तथा गुर नानक जी के उपदेशों  तथा आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते है।

जैन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का मह्त्व

जैन धर्म में भी कार्तिक पूर्णिमा का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है।  कार्तिक पूर्णिमा पर चतुर्मास समाप्त जो जाता है।  इसके बाद जैन धर्म के सन्त विहार प्रारंभ कर देते है।  

जैन धर्म के लोग इस दिन दूर-दूर से पालिताना तालुका की शत्रुंजय पहाड़ियों के दर्शन करने आते है।  यह जैन धर्म का तीर्थ स्थल है। 

कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन जैन धर्म के प्रसिद्ध सन्त श्रीमदविजय हेमचन्द्राचार्य भगवंत जी की जयंती भी होती है।

कार्तिक पूर्णिमा क्यों मनाते है?

पुराणो में इस दिन से जुड़ी कुछ कथाओं का उल्लेख मिलता है।  जिसमें से एक है त्रिपुरासुर की कथा।

त्रिपुरासुर की कथा

भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था।  तारकासुर के तीन पुत्र थे, तारकाक्ष, कमलाक्ष तथा विद्युन्माली।  इन्ही तीनो को त्रिपुरासुर कहा जाता था। 

उन तीनो ने अपने पिता के वध का प्रतिशोध लेने का निश्चय किया।  तीनों ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या प्रारंभ कर दी।  ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा।  तीनो अमरता का वरदान मांगने लगे।  

ब्रह्मा जी ने अमरता का वरदान देने में असमर्थता व्यक्त की तथा कोई और वरदान मांगने को कहा।   उन तीनो ने आपस में विचार-विमर्श किया।  

फिर वह बोले कि आप हम तीनो के लिये तीन अद्भुत पुरियों का निर्माण कीजिये जिन्हे भेदना असम्भव हो।  ब्रह्मा जी ने कहा कि असम्भव तो कुछ भी नही है तुम स्वयं ही उन पुरियों के नष्ट होने के कारण का चुनाव करो।  

फिर उन तीनो ने कहा, कि अभिजीत मुहूर्त में यदि तीनो पुरियाँ एक पंक्ति में आ जाए, तब असम्भव रथ और असम्भव बाण द्वारा ही उन पुरियों को नष्ट किया जा सके।  

ब्रह्मा जी ने वरदान दे दिया।  विश्वकर्मा ने उन तीनो के कहे अनुसार तारकाक्ष के लिये स्वर्ण पुरि, कमलाक्ष के लिये रजत पुरि तथा विद्युन्माली के लिये लौह पुरि का निर्माण कर दिया। 
 
तीनो राक्षस अब और अधिक आतंकी हो गए।  उन्होने देवताओं को भी पराजित कर के देवलोक पर अधिकार कर लिया।  सभी देवता भगवान शिव के पास सहायता मांगने गए।  

फिर भगवान शिव ने पृथ्वी से असम्भव रथ बनाया उसमें सूर्य और चन्द्र के पहिये लगाये।  मेरु पर्वत धनुष, वासुकि धनुष की डोर तथा विष्णु बाण बन गए।  

शिव जी के रथ पर चढ़ते ही रथ हिलने लगा।  तब विष्णु जी वृषभ का रूप ले कर रथ से जुड़ कर उसे संभाल लेते है।  फिर भगवान शिव अपनी संकल्प शक्ति से तीनो पुरि को एक पंक्ति में ले आते है और बाण छोड़ देते है।  

बाण रूपी विष्णु के द्वारा तीनो पुरि राक्षसों सहित भस्म हो जाती है।  तभी से भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाने लगा।  त्रिपुरासुर के अंत की खुशी में देवताओं ने दीपावली मनाई।  

तभी से इस दिन को देव दीपावली कहा जाने लगा।  इस दिन भगवान शिव की नगरी काशी में धूमधाम से देव दीपावली मनाई जाती है। 

विष्णु जी की पूजा का पर्व

वैष्णव सम्प्रदाय में यह पर्व विष्णु जी से जुड़ा हुआ माना जाता है।  भगवान विष्णु चतुर्मास में योग निद्रा में होते है।   देव शयनि एकादशी से लेकर देव उठनी एकादशी तक चतुर्मास होता है। दीपावली भी इसी समय के अन्तर्गत आती है।  

इसलिये दीपावली पर अधिकतर लोग लक्ष्मी जी के साथ विष्णु जी की पूजा नही करते तथा कुछ लोग विष्णु जी की पूजा करते भी है।  

ईश्वर तो सदैव ही हमारी पूजा स्वीकार करते है।  भले ही कुछ मान्यताओं के अनुसार वह उस समय योगनिद्रा में माने जाते है।  
खैर, मान्यताओं के अनुसार दीपावली  के बाद देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से  जागृत होते है।  इसलिये  कार्तिक पूर्णिमा पर देवता भगवान विष्णु का पूजन करते है तथा वह इस दिन दीपावली मनाते है।  

क्योंकि लक्ष्मी जी की पूजा भगवान विष्णु की पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है, इसलिये कार्तिक पूर्णिमा को भगवान विष्णु सहित लक्ष्मी जी की पूजा कर के ही दीपावली का पर्व सम्पूर्ण होता है।

कृष्ण और राधा पूजन

मान्यता है कि इसी दिन गोलोक में भगवान कृष्ण ने राधा जी की पूजा की थी। तथा सभी देवताओं ने राधा जी कृष्ण जी की पूजा की थी।  इसलिये कार्तिक मास में  भगवान कृष्ण और राधा जी की पूजा का बहुत महात्म्य माना जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान

महाभारत की कथा के अनुसार जब युद्ध समाप्त हो गया था।  उसके बाद कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से गंगा जी में दीपदान करवाया था।  यह दीपदान युद्ध में मारे गए परिजनों की आत्मा की मुक्ति के लिये था।  

तभी से माना जाता है कि इस दिन मृतको के नाम से दीपदान करने से उनकी आत्मा को मुक्ति मिल जायेगी।   

प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर जितने भी लोग एक वर्ष में मृत्यु को प्राप्त हुए होते है, उनके परिजन  गंगा स्नान करते है और उनके नाम के दीप जला कर गंगा में प्रवाहित करते है।

कार्तिक मास की कथा

एक गाँव में एक निर्धन बूढ़ी महिला रहती थी। वह नियमपूर्वक कार्तिक के पूरे महीने पूजा तथा व्रत करती थी।  भगवान कृष्ण की उस पर बड़ी कृपा थी।  

जब वह व्रत खोलती थी तो भगवान कृष्ण की कृपा से उसे एक खिचड़ी से भरा कटोरा रखा मिलता था, जो भगवान स्वयं रख के जाते थे।  

उसे खाकर वह अपना व्रत खोलती थी।  उस बुढ़िया के पड़ोस में एक ईर्ष्यालु स्वभाव की महिला रहती थी।  वह सोचती कि इस बुढ़िया के तो आगे-पीछे कोई नही है।  फिर भी इसे खाने की कमी क्यों नही पड़ती।  

एक दिन बूढ़ी महिला सुबह गंगा स्नान के लिये गई।  उसके पीछे से भगवान कृष्ण खिचड़ी से भरा कटोरा रख के चले गए।  
कुछ देर में पड़ोस वाली महिला आई और बुढ़िया के वापिस आने से पहले ही उसने वह खिचड़ी कटोरे सहित बाहर फैंक दी। कुछ ही देर में बुढ़िया वापिस आई।  उस दिन उसे खिचड़ी भरा कटोरा नही मिला।  

उसने शान्त मन से कथा और पूजन किया पर उस दिन वह भूखी ही रह गई। फिर वह अक्सर बड़बड़ाने लगी कि कहां गई मेरी खिचड़ी कहां गया मेरा कटोरा। 

पड़ोसन ने जिस स्थान पर खिचड़ी फैन्की थी वहां पर एक पौधा उग आया।  कुछ समय बाद उस पौधे पर दो फूल खिल उठे।  

एक दिन उस राज्य का राजा उधर से भ्रमण के लिये निकला।  उसने वह सुंदर फूल देखे तो अपनी रानी के लिये तोड़ लिये।  उसने रानी को वह फूल दे दिये।  

रानी ने उन सुगंधित फूलो की सुगंध ली। उसके कुछ समय पश्चात रानी के गर्भ ठहर गया और उसने दो सुंदर पुत्रो को जन्म दिया। वह दोनो बालक बड़े हो गए,  पर वह कुछ भी नही बोलते थे।  

एक बार वह दोनो जंगल में शिकार के लिये गये।  वहां वह बुढ़िया घूम रही थी।  वह पूर्व समय की बात याद करके कह रही थी, 'कहां गई मेरी खिचड़ी, कहां गया मेरा कटोरा'।  

उसकी बात सुनकर दोनो राजकुमार बोले, 'हम है तेरी खिचड़ी, हम है तेरा कटोरा'।  

अब तो जब भी दोनो राजकुमार जंगल में जाते उन्हें वह बुढ़िया मिलती थी। जब भी  बुढ़िया  खिचड़ी वाली बात बड़बड़ाती, वह दोनो राजकुमार वही जवाब देते।  राजकुमार बुढ़िया से बातें करते है, इस बात की खबर राजा तक पहुँच गई।  

राजा ने उस बुढ़िया को अपने राज दरबार में बुलवाया।  राजा ने पूछा, 'बूढ़ी माई मेरे बच्चे मुझसे भी बात नही करते, फिर वह तुमसे कैसे बात कर लेते है'।    

बुढ़िया ने राजा को बताया, हे महाराज मुझे नही पता, मै तो गरीब बुढ़िया हूँ।  मैं कार्तिक व्रत रखती थी तो मुझे रोज़ ईश्वर की कृपा से एक खिचड़ी भर कटोरा मिलता था, जिसे खाकर मैं अपना व्रत खोलती थी।  लेकिन एक दिन मुझे वह कटोरा नही मिला।  

मुझे यह रहस्य समझ में नही आया।  इसलिये कभी-कभी मैं बड़बड़ाती रहती थी, कहां गई मेरी खिचड़ी, कहां गया मेरा कटोरा।  आपके राजकुमारों ने मेरी बात का जवाब दिया।  

उन्होने मुझे पूरी घटना बताई कि मेरी पड़ोसन ने वह खिचड़ी का कटोरा फैंक दिया था।  जहाँ वह खिचड़ी फैन्की गई थी वहां एक फूलो का पौधा उगा जिस पर दो फूल उगे।  आप ने वह फूल तोड़ कर रानी को दिये।  

उसके बाद रानी गर्भवती हो गई और रानी ने दो पुत्रों को जन्म दिया।  हे राजा, इन दोनो ने मुझसे कहा कि ईश्वर ने हमें तुम्हारे लिये भेजा है।  

यह सारी घटना जानकर राजा ने सम्मान सहित बूढ़ी महिला को अपने महल में ही परिवार के सदस्य की भांति रख लिया।  

हे कार्तिक महाराज जैसे आपने उस बूढ़ी माई के दुख दूर किये वैसे सभी के करना।  

कार्तिक पूर्णिमा की पूजा कैसे करें?

कार्तिक पूर्णिमा की पूजा कार्तिक मास  के साथ ही प्रारम्भ हो जाती है। 

कार्तिक प्रतिपदा के दिन से रोज़ ब्रह्म मुहूर्त में अर्थात सूर्योदय से 1-2 घन्टे पहले उठ जाए।

कार्तिक के पूरे माह तारो की छाँव में, नदी, कुएं, या घर पर ही ताज़े जल से स्नान किया जाता है। 

फिर भगवान कृष्ण और राधा की पूजा की जाती है।

तुलसी की भी  पूजा की जाती है।   घी का दीपक जला कर तुलसी के पास रखें।  तुलसी को  तिलक अर्पित करें।  तुलसी के पास ही बैठ कर कार्तिक मास की कथा श्रवण करें।

कार्तिक मास की पूजा करने वाले जनों को धरती पर ही बिस्तर लगा कर सोना चाहियें। तथा पूरे मास सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहियें।

पूरे माह कार्तिक स्नान करने तथा कथा और पूजा करने से मनोवांछित इच्छा पूरी होती है। 





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