माता लक्ष्मी तीन महादेवियों में से एक है, यह भगवान विष्णु की शक्ति कहलाती है। इन्हीं की कृपा से सन्सार के मनुष्यों को जीवन के सभी सुख प्राप्त होते है।
माता लक्ष्मी के आठ रूप है जिन्हें अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है। यह आठो रूप मनुष्य को विभिन्न प्रकार के सुख प्रदान करते है, लक्ष्मी जी के इन्हीं आठ रूपों में से एक रूप है, धन लक्ष्मी।
धन लक्ष्मी को वैभव लक्ष्मी भी कहते है। माता वैभव लक्ष्मी धन-सम्पत्ति का सुख प्रदान करती है, जीवन में वैभव प्रदान करती है। व्यवसाय तथा नौकरी जैसे कार्यो में सफलता के लिये इनकी उपासना तथा व्रत करने का बहुत प्रचलन है।
माता वैभव लक्ष्मी का व्रत तथा पूजन शुक्रवार के दिन किया जाता है। माना जाता है कि यदि विधि-विधान पूर्वक वैभव लक्ष्मी व्रत को सम्पन्न किया जाए, तो माता अवश्य ही व्रत रखने वाले व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण करती है।
लेकिन यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस व्रत को पूर्ण विधि विधान से करना बहुत महत्वपूर्ण है।
इस लेख में माता वैभव लक्ष्मी व्रत की पौराणिक कथा दी जा रही है, इसके साथ ही व्रत की तथा उद्यापन की सम्पूर्ण विधि भी दी जा रही है।वैभव लक्ष्मी व्रत कथा
एक बहुत सुंदर नगर था, वहाँ बहुत से लोग रहते थे। उस नगर में बहुत से सुंदर भवन थे, नगर में सदैव चहल-पहल बनी रहती थी। वहाँ के सभी लोग बहुत प्रतिष्ठित तथा सज्जन स्वभाव के थे।सभी लोग परोपकारी प्रवृत्ति के थे। एक -दूसरे की सहायता करने में प्रसन्नता अनुभव करते थे। अतिथियों का स्वागत सत्कार किया करते थे। साधु-संतों का सम्मान किया करते थे।
परंतु कुछ समय बाद धीरे-धीरे वहाँ के वातावरण में परिवर्तन आने लगा, लोगो के मन में अधिक से अधिक धन संग्रह करने की इच्छा जागृत होने लगी तथा अधिक धन की चाह में लोग बेईमानी, तथा ठगी करने लगे, यहाँ तक कि चोरी तथा डाके भी डालने लगे।
पाप से कमाये हुए धन के कारण लोगो के घरों से सुख-शान्ति का लोप हो गया। लोग अपने मन को क्षणिक सुख देने के लिये बुरे व्यसनों के आदि हो गए। इस प्रकार सभी लोग स्वयं ही अपने जीवन में दुखों के बीज बोने लगे।
ऐसा लगता था कि पूरा नगर स्वेच्छा से पतन की खाई में गिरने जा रहा है। परंतु अभी भी उस नगर में कुछेक सज्जन मनुष्य बाकी थे। ऐसे ही कुछ मनुष्यों में से एक थी सावित्री।
सावित्री बहुत सुशील तथा पतिव्रता स्त्री थी। वह बहुत गुणवती स्त्री थी। धर्म-कर्म में रुचि लेती थी, द्वार पर आये भिक्षुको को कभी खाली नही लौटाती थी। उसका पति भी बहुत परिश्रमी तथा सत्यनिष्ठ था।
वह मन लगा कर अपना कार्य करता था तथा अपने घर की उन्नति के लिये अथक प्रयास करता था, अपने अर्जित धन में से कुछ भाग परोपकार के कार्यों में व्यय करता था, सभी से अच्छा व्यवहार करता था।
उनके घर में किसी वस्तु का कोई अभाव नही था। सावित्री के पास अनेकों सुंदर-सुंदर वस्त्र तथा आभूषण थे। वह अपने पति के साथ बहुत सुख से जीवन यापन कर रही थी।
परंतु कुछ समय बाद सावित्री के पति की मित्रता कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोगो के साथ हो गई। उनकी संगति के प्रभाव से सावित्री के पति में भी दुर्गुण उत्पन्न होने लगे।
वह व्यसनों में पड़ गया, मदिरा का सेवन करने लगा। अब वह अपने कार्य पर भी अधिक ध्यान नही देता था, बल्कि अधिकतर समय अपने दुर्जन मित्रों के साथ व्यतीत करता था।
उसकी कुसंगति के कारण धीरे-धीरे घर का सारा धन समाप्त होता गया। सावित्री के आभूषण भी बिक गए और उनकी स्थिति भिखरियों के समान हो गई।
धीरे-धीरे उसका पति अपने व्यसनो की पूर्ति के लिये घर की सभी वस्तुएं बेचने लगा। सावित्री उसे मना करती तो वह उसके साथ झगड़ा करता, अपशब्द कहता और उस पर हाथ उठाता था।
सावित्री बहुत दुखी और अस्वस्थ्य रहने लगी। उसका पति उसकी ओर बिल्कुल ध्यान नही देता था। उसे औषधि भी नही ला कर देता था। इस कारण सावित्री का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता जा रहा था।
वह सारा दिन अपने दुर्भाग्य को कोसती रहती और ईश्वर से पूछती थी कि उसे कौन से जन्म के कर्मों का फल मिल रहा है।
एक दिन एक वृद्ध स्त्री उसके द्वार पर आ खड़ी हुई और उसे पुकारने लगी, सावित्री! ओ सावित्री! सावित्री ने सोचा न जाने कौन है, मेरे घर में तो अतिथी के सत्कार के लिये भी कुछ नही है, यह सोचते हुए उसने द्वार खोल कर देखा कि साधारण से वस्त्रों में एक वृद्धा खड़ी है।
उस वृद्धा के मुख पर अलौकिक तेज था। उसे देख कर सावित्री को असीम शान्ति का अनुभव हुआ। वृद्धा उसे देख कर बोली, कैसी हो सावित्री? आजकल लक्ष्मी जी के मन्दिर में नही आती। क्या स्वास्थ्य ठीक नही है?
सावित्री वृद्धा को पहचानी तो नही पर फिर भी उसने वृद्धा को आदर के साथ भीतर बुलाया और उनके बैठने के लिये एक फटा वस्त्र बिछा दिया। सावित्री बोली, बैठिये माता जी, परंतु आपके सत्कार के लिये मेरे घर में कुछ भी नही है।
वृद्धा बोली, कैसे बाते करती हो बेटी, यह भौतिक सुख तो आते-जाते रहते है, जब सुख के दिन नही रहे, तो दुख के भी नही रहेंगे, ईश्वर पर विश्वास रख। वृद्धा से बातें करके सावित्री का मन हल्का हो गया।
वृद्धा बोली, सावित्री तुम्हारे सारी धन-सम्पत्ति कैसे चली गई। तू मुझे सब कुछ बता, हो सकता है तेरे दुखों का मैं ही कोई उपाय बता पाऊं। सावित्री के आँसू भर आये।
वह बोली, माताजी! मेरे पति न जाने कैसे दुराचारी मित्रों की संगति में पड़ गए है, वह मद्यपान भी करने लगे है, उनके व्यसनों के कारण हमारी सारी धन-सम्पत्ति समाप्त हो गई है और आज हमारे घर में अन्न का एक दाना भी नही है।
व्यवसाय ठप्प हो चुका है, इसलिये कोई ऋण भी नही देता है। अपनी सारी व्यथा कहते-कहते सावित्री फूट-फूट कर रोने लगी।
वृद्धा उसको ढाँढस बँधाती हुई बोली, चुप हो जा बेटी और कल से लक्ष्मी जी के मन्दिर जाना फिर से प्रारंभ कर, भले ही तेरे पास लक्ष्मी जी को अर्पित करने के लिये कुछ भी नही है, परंतु तू उनके चरण छू कर तथा हाथ जोड़ कर वन्दना तो कर ही सकती है।
इसलिये कल से नित्य एक बार मन्दिर अवश्य जाना और मैं तुझे एक मंत्र बताती हूँ, मंत्र है, 'श्री लक्ष्मी नमो नम:', इसका दिन भर में जब भी समय मिले जाप करती रहना, फिर देखना लक्ष्मी माता कैसे तुम्हारे सारे रोग-दुख दूर कर देंगी।
अगली बार जब तू मिलेगी तो मैं तुझे महालक्ष्मी के व्रत की विधि बताऊँगी। यह सब कह कर वृद्धा ने सावित्री से विदा ली। सावित्री ने अब पहले की भाँति नित्य लक्ष्मी जी के मन्दिर जाना प्रारंभ कर दिया तथा वह दिन भर मन ही मन लक्ष्मी जी के मंत्र का जाप करने लगी।
सोते-उठते, खाते-पीते, घर के काम करते हुए हर समय माँ लक्ष्मी का मंत्र ही उसके मुख पर रहता। एक सप्ताह बीता था कि उसके पति को अपने व्यवसाय की चिंता सताने लगी और वह फिर से अपने कार्य पर ध्यान देने लगा।
घर की आय फिर से बढ़ने लगी। रसोई में अन्न, घी, दूध सब सामग्री फिर से आने लगी। स्वादिष्ट भोजन फिर से बनने लगा। सावित्री का स्वास्थ्य भी सुधरने लगा। एक दिन सावित्री का पति बोला।
सावित्री, अब हमारे सुख के दिन फिर से लौट आये। अब घर में किसी वस्तु की कमी नही है। अब मैं तुमसे झगड़ा भी नही करता हूँ। मन बड़ा प्रसन्न रहता है। लगता है जैसे कोई जादू हो गया हो।
तब सावित्री बोली, हाँ, यह सब जादू माता लक्ष्मी का है, एक दिन एक माताजी हमारे घर आई थी। उन्हीं के कहने पर मैं पहले की भाँति नित्य लक्ष्मी जी के मन्दिर जाने लगी और उनका मंत्र जाप करने लगी।
उन्हीं की कृपा से हमारे दिन फिरे है। उन बूढ़ी माताजी ने कहा था कि पहले इतना करो, अगली बार मिलोगी, तो लक्ष्मी जी के व्रत की विधि बताऊँगी, उससे तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
सावित्री के पति ने कहा, सावित्री, तुम्हारे मंत्र जाप के कारण ही मेरी बुद्धि फिर से ठीक हो गई है। अब तुम उन माता जी की खोज करो और उनसे लक्ष्मी माता के व्रत-उपवास की विधि भी जान लो।
तभी उनके द्वार पर खट-खट की आवाज़ हुई। सावित्री ने द्वार खोला, वही वृद्धा फिर से आई थी। सावित्री उससे बाते करने लगी। उसके पति ने द्वार की ओर देखा तो उसे वह वृद्धा लाल वस्त्र पहने, मुकुट धारण किये मुस्कुराती हुई दिखाई दी।
सावित्री को वह वृद्धा पहले की भाँति साधारण रूप में ही दिखाई दे रही थी। सावित्री वृद्धा का हाथ पकड़ कर आग्रह पूर्वक घर के भीतर ले आई।
सावित्री ने उन्हें चौकी पर बैठाया, स्वादिष्ट व्यंजनो से उनका सत्कार किया। वृद्धा बोली, सावित्री, अब तो तू बहुत प्रसन्न लग रही है, लगता है तेरे पति ने बुरी संगति छोड़ दी है। मैने तुझे जो मंत्र बताया था उसका जाप करती है या छोड़ दिया।
सावित्री बोली, माताजी, उस मंत्र को मैं कैसे छोड़ सकती हूँ। उसी मंत्र के प्रभाव से मेरे पति व्यसन छोड़ कर फिर से काम में मन लगाने लगे है। अब तो हमारे घर में बहुत सुख-शान्ति है।
वृद्धा बोली, बेटी! लक्ष्मी माँ के मंत्र में बड़ी शक्ति है, और इनकी पूजा तथा व्रत करने वालो को तो महान सुख की प्राप्ति होती है।
फिर सावित्री बोली, माताजी आपने कहा था कि पहले कुछ दिन मंत्र जाप करके देखूँ, फिर अगली बार मुझे माता लक्ष्मी के व्रत की विधि बताओगी। इस मंत्र से सचमुच मेरे जीवन में कितना सुधार आया है। माता लक्ष्मी की कृपा से अब तो दोनो समय पेट भर कर भोजन मिलता है।
वृद्धा बोली, यह तो कुछ भी नही है बेटी, तेरे फिर से वो दिन आयेंगे जब तू निर्धनो को भोजन खिलाया करती थी।
सावित्री बोली, माताजी! मेरी बड़ी इच्छा हो रही है, लक्ष्मी माता के व्रत करने की अब आप कृपा करके मुझे लक्ष्मी जी के व्रत का सारा विधि-विधान बता दो।
वृद्धा बोली, ठीक है बेटी, अब मैं तुझे माता वैभव लक्ष्मी के व्रत की विधि बताती हूँ। कुछ लोग सोचते है कि सोने के आभूषणो की पूजा कर लो और बस हो गया वैभव लक्ष्मी का व्रत, पर ऐसा नही है। इस व्रत के सभी नियमो का पालन करना बहुत आवश्यक है, अब तू ध्यानपूर्वक इस्के नियम सुन।
माता वैभव लक्ष्मी का व्रत शुक्रवार को किया जाता है। जिस शुक्रवार को भी तू व्रत प्रारंभ करें तो निश्चित संख्या में व्रत रखने का संकल्प लेना। 7,11,21,31,51 या 101 व्रत का संकल्प लेना।
सारा दिन माता लक्ष्मी के मंत्र का जाप करती रहना। व्रत वाले दिन किसी की निंदा नही करना। संध्या काल के समय माता की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करना। साथ में श्री यंत्र भी स्थापित करना।
एक छोटी सी चावल की ढेरी लगाना और उस पर कलश रखना। एक पात्र रख कर उस पात्र में कोई सोने का आभूषण रख लेना, सोने का न हो तो चाँदी का आभूषण रख लेना, यदि सोने चाँदी की कोई वस्तु न हो नगद रुपया रख लेना।
फिर धूप, दीप, चन्दन, रोली, कुमकुम, चावल, फूल, फल आदि से माता लक्ष्मी की पूजा करना। साथ ही श्री यंत्र और जो आभूषण या रूपये रखे है उनकी भी पूजा करना।
उसके बाद श्री लक्ष्मी स्तवन का पाठ करना, कथा का पाठ करना तथा माता लक्ष्मी की आरती करना। माता को शक्कर या बताशों का भोग लगाना तथा गेहूँ के आटे का कसार बना कर भोग लगाना।
माता से प्रार्थना करना कि हे माता, मैं तुम्हारी अज्ञानी भक्त हूँ। आपकी पूजा में जो भी त्रुटि हो गई हो उसके लिये मुझे क्षमा करें और मेरी पूजा स्वीकार करें।
पूजा के बाद जिस आभूषण को पूजा में रखा था उसको सम्मान सहित तिजोरी में रख देना। जल को तुलसी में चढ़ा देना तथा चावल पक्षियों को डाल देना।
जिस दिन उद्यापन करें, उस दिन खीर और नैवेद्य बनाना। माता लक्ष्मी को नारियल अर्पित करना। फिर सात या ग्यारह कन्यायों को बुला कर जिमाना तथा सबको एक-एक वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की पुस्तक दे कर विदा करना।
फिर सावित्री वृद्धा को द्वार तक छोड़ कर आई तथा हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। तत्क्षण ही वृद्धा अन्तर्ध्यान हो गई। सावित्री यह देख कर चकित रह गई।
वह जान गई कि स्वयं माता लक्ष्मी ही उसके कष्ट दूर करने आई थी। सावित्री ने अगले शुक्रवार से ही माता वैभव लक्ष्मी के व्रत प्रारंभ कर दिये। इन व्रतों से उसके घर में फिर पहले जैसे ठाठ-बाट हो गए।
सोने चाँदी के ढेर लग गए। फिर उसने विधि पूर्वक लक्ष्मी माता के व्रत का उद्यापन किया। पड़ोस से कन्यायों को बुला कर जिमाया तथा वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की पुस्तक भेंट में दी।
जिन-जिन घरों में वह पुस्तक पहुँची, उन्होने भी वैभव लक्ष्मी के व्रत प्रारंभ कर दिये। इस प्रकार सावित्री को देखकर धीरे-धीरे पूरा नगर माता वैभव लक्ष्मी के व्रत करने लगा।
माता लक्ष्मी की कृपा से उस नगर के सभी लोगो के दुर्गुण नष्ट हो गए तथा वह पहले की भाँति परिश्रम करने लगे तथा उस नगर में सभी लोग फिर से पहले की भाँति सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।
जो भी यह व्रत करते है माता लक्ष्मी उनके सभी कष्ट हरती है तथा सुख-वैभव की वर्षा करती है।
जय माँ वैभव लक्ष्मी
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोह्लादिनी।
या रत्नाकर मंथनात्प्रगन्टिता विष्णोस्वया गेहिनी।
श्री लक्ष्मी स्तवन श्लोक
रक्ताम्बुज वासिनि विलसिनी चण्डांशु तेजस्विनी।या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोह्लादिनी।
या रत्नाकर मंथनात्प्रगन्टिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।
अर्थ :- जो रक्त वर्ण अर्थात लाल रंग के कमल में निवास करती है। जिनकी कांति अतुलनीय है। जिनका तेज असह्य है। जिनके समस्त वर्ण लाल है तथा वस्त्र भी लाल है।
जो भगवान विष्णु की अर्धांगिनी है। जो सबके मन को प्रफुल्लित करती है। जो सागर मंथन में सागर से प्रकट हुई थी। जो विष्णु प्रिया है, जो कमल पर विराजित है तथा अतिशय पूजनीय, हे माता लक्ष्मी आप मेरी रक्षा करें।
वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम
यह व्रत किसी भी शुक्रवार से प्रारंभ कर सकते है, परंतु यदि शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से प्रारंभ किया जाए तो अति उत्तम होगा।पहले व्रत के दिन माता लक्ष्मी का ध्यान करके यह संकल्प लें कि आप कितने व्रत रखेंगे। यह व्रत 7, 11, 21, 31, 51 या 101 की संख्या में रखे जाते है।
माता लक्ष्मी से अपनी मनोकामना कहते हुए एक निश्चित संख्यां में व्रत का संकल्प लें। यदि उतने व्रत पूरे होने पर मनोकामना पूर्ण नही होती है तो व्रत की संख्या बढ़ा दें।
यदि विवाहित लोग जोड़े में दोनो पति-पत्नी एक साथ व्रत करें तो बहुत अच्छा है।
यदि कोई स्त्री व्रत के दिन रजस्वला हो तो उस शुक्रवार को छोड़ दें तथा अगले शुक्रवार को व्रत करें। छोड़े हुए शुक्रवार की गिनती न करें।
व्रत अपनी इच्छा होने पर ही प्रारंभ करें, किसी के कहने पर बिना इच्छा के न करें।
माता लक्ष्मी को स्वच्छता पसंद है। माता लक्ष्मी उसी घर में आना पसंद करती है जहाँ स्वच्छता हो। इसीलिये व्रत प्रारंभ करें तो घर की साफ-सफाई का भी ध्यान रखें।
व्रत प्रारंभ करने से पूर्व ईर्ष्या, द्वेष, परनिंदा, असत्य भाषण, लोभ, छल, कपट जैसे दुर्गुणों का त्याग कर दें।
वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि
प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। माँ को लाल रंग प्रिय है, इसलिये हो सके तो लाल वस्त्र धारण करें।आसन पर बैठ कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें।
प्रात: काल में सामान्य रूप से धूप तथा दीपक प्रज्ज्वलित करके पूजा कर लें। माता लक्ष्मी के व्रत में उनकी विशेष पूजा संध्या काल में की जाती है।
पूरा दिन सात्विक भाव के साथ उपवास रखें तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें।
संध्याकाल में माँ लक्ष्मी की पूजा की तैयारी करें।
पूजा के स्थान पर एक लकड़ी का पाट शुद्ध करके रखें तथा उस पर साफ लाल रंग का वस्त्र बिछायें।
अब माता लक्ष्मी का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।
यदि आपके पास लक्ष्मी जी की प्रतिमा है, तो उन्हें गंगाजल से स्नान करायें और अगर चित्र है तो केवल गंगाजल का छींटा मार दें।
माता की प्रतिमा को लाल चुनरी पहनाएं।
चौकी पर ही ताँबे या पीतल के श्री यंत्र की स्थापना भी करें।
श्री यंत्र माता लक्ष्मी का यंत्र होता है, इसकी पूजा करने से माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
श्री यंत्र को कच्चे दूध तथा जल से स्नान करायें, उसके बाद पूजा के स्थान पर रखें।
श्री यंत्र को एक छोटे लाल कपड़े के आसन पर स्थापित करें, पूजा के बाद उसी लाल कपड़े से श्री यंत्र को ढक दें।
जब भी श्री यंत्र की पूजा करें तभी उस पर से कपड़ा हटाना चाहियें, बाकी समय उसको ढक कर ही रखना चाहियें।
चौकी पर कलश रखने के स्थान चावल की एक ढेरी लगाये, ध्यान रहे कि पूजा के लिये साबुत चावलों का ही प्रयोग करें।
एक कलश जल से भर कर चावल की ढेरी पर रख लें।
पूजा के स्थान पर एक बर्तन में सोने या चाँदी का आभूषण या सिक्का रख लें या फिर एक रूपये का सिक्का रख लें।
आभूषण या रुपये का सिक्का जो भी पूजा के स्थान पर रखें उसे पहले गंगाजल से धोकर शुद्ध कर लें।
अब धूप तथा घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें।
माता लक्ष्मी तथा श्री यंत्र को कुमकुम या रोली का तिलक लगायें तथा अक्षत लगायें।
कलश को तथा जो आभूषण या सिक्का आपने रखा है, उन्हें भी रोली तथा अक्षत से तिलक करें।
माता लक्ष्मी को लाल पुष्प अर्पित करें।
फल, बताशे तथा आटे का कसार पूजा के स्थान के पास ही रख लें।
माता के सामने हाथ जोड़कर श्रद्धापूर्वक लक्ष्मी स्तवन श्लोक का पाठ करें।
उसके बाद व्रत की कथा का पाठ करें।
कथा के बाद माता लक्ष्मी की चालीसा का पाठ करें तथा आरती करें।
इसके पश्चात माता को फल, बताशो तथा कसार का भोग लगाये।
माता के चरण छूकर तथा नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद मांगें।
पूजा के उपरांत कलश के जल को तुलसी के पौधे में चढ़ा देना चाहियें।
कलश के नीचे जो चावल की ढेरी बनाई थी, उन चावलों को किसी ऐसे स्थान पर डालें जहाँ पक्षी उन्हें खा लें।
आभूषण या सिक्के को एक लाल कपड़े में लपेट कर घर की तिजोरी में रख दें। अगले शुक्रवार को पुन: उसे गंगाजल से धोकर ही पूजा में रखें।
जिस आभूषण या सिक्के को प्रथम दिन की पूजा में प्रयोग किया था हर बार उसी को पूजा में रखें।
श्री यंत्र के लिये जो अलग लाल वस्त्र बिछाया था, उसी लाल वस्त्र से श्री यंत्र को ढक दें।
सभी परिवारजनों में प्रसाद वितरित करें तथा स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।
प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत सात्विक भोजन ग्रहण करें।
वैभव लक्ष्मी व्रत की उद्यापन विधि
जिस दिन माँ लक्ष्मी के व्रत का उद्यापन करें, उस दिन भी पूरा दिन उपवास रखें।इस दिन सात या ग्यारह कन्याओं को संध्याकाल के भोजन के लिये आमंत्रित करें।
उद्यापन के लिये खीर तथा पूरी बनाए। इसके अलावा यदि कोई व्यंजन जैसे सब्ज़ी आदि बनाना चाहें, तो ध्यान रहे कि उसमें लहसून या प्याज़ का प्रयोग न हो।
संध्याकाल में हर शुक्रवार की तरह पूजन करें। पूजन में नारियल को भी कलश पर स्थापित करें।
पूजा के उपरांत नारियल फोड़े तथा माता लक्ष्मी को नारियल का भोग लगाये।
हर शुक्रवार की तरह बताशे तथा कसार का भोग भी लगायें।
पूजा के उपरांत कन्याओं को भोजन कराना प्रारंभ करें।
पहले कन्यायों को नारियल, बताशे, तथा कसार का प्रसाद दें।
उसके उपरांत भोजन परोसें।
भोजन के उपरांत उनके हाथ धुलवायें तथा उसके बाद उन्हें दक्षिणा दें तथा वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की एक-एक पुस्तक भेंट में दें।
इसके बाद उन सभी कन्याओं के चरण छू कर उन्हें विदा करें।
हर शुक्रवार की तरह ही जल को तुलसी में चढ़ाएं तथा चावल पक्षियों को खिला दें।
श्री यंत्र को पूजा के स्थान पर स्थापित रखें। नित्य पूजा करते समय श्री यंत्र की भी पूजा करें।
जिस आभूषण या सिक्के को सभी व्रतों में पूजा के लिये प्रयोग किया गया हो, उसे तिजोरी या अल्मारी जिसमें आप धन रखते हो उसी धन के पास रख दें तथा उस में से फिर न निकालें। इसे धन कोष में रखने से माता लक्ष्मी की कृपा से धन कभी कम नही होगा।
जब भी दीपावली आये तब रात्रि को उस आभूषण या सिक्के को निकाल कर पूजा के स्थान पर रखें। दीपावली के दिन श्री लक्ष्मी तथा श्री गणेश जी के साथ उसकी भी पूजा करें।
वैसे यह आपकी इच्छा पर निर्भर करता है, लेकिन अगर आप दीपावली के दिन ऐसा करेंगे तो माता लक्ष्मी अवश्य ही प्रसन्न होंंगी।
वैभव लक्ष्मी व्रत का मह्त्व
माता वैभव लक्ष्मी के व्रत के नियमो को तो आप ऊपर पढ़ ही चुके है। जैसा कि अंतिम नियम में मैने बताया कि इस वृत मे छल, कपट, द्वेष, ईर्ष्या जैसे दुर्गुणों का त्याग करना चाहिये, लेकिन इसका यह अर्थ नही है कि आप केवल शुक्रवार के दिन ही दुर्गुणों से परहेज करें।जैसा कि मैने ऊपर दिये गए नियमों में लिखा है, कि माँ लक्ष्मी को स्वच्छता पसंद है। इसलिये घर की सफाई के साथ आपको मन की सफाई भी करनी ही पड़ेगी।
सत्य तो यह है कि यह सभी दुर्गुण त्यागने का नियम सभी व्रतों की पुस्तकों में बताया जाता है, लेकिन लोग बड़ी समझदारी से केवल व्रत के दिन ही स्वयं पर थोड़ा नियन्त्रण रखते है तथा बाकी दिन अपने स्वभाव के अनुसार ही रहते है।
इन दुर्गुणों को त्यागने का नियम इसीलिये बताया जाता है क्योंकि सच्चे मन से व्रत करने पर ही फल की प्राप्ति होती है। लोग अपने दुर्गुणों को त्याग नही पाते और सोचते है कि उन्हें व्रत तथा पूजा से कोई लाभ नही मिला।
लक्ष्मी माता के आठ रूप विद्या, संतान, साहस, बल, बुद्धि, धन आदि प्रदान करते है। परंतु अधिकतर माता लक्ष्मी की पूजा सभी लोग केवल धन के लिये ही मुख्य रूप से करते है।
वैसे इसमें कोई बुराई नही है कि आप धन के लिये पूजा करते है। इसमें कोई बुराई नही है कि आप माता से प्रार्थना करते है कि आपका व्यवसाय प्रगति करे, या आपको नौकरी मिल जाए।
जो भी काम आप करते है या शुरु करना चाहते है, उसकी सफलता के लिये माँ लक्ष्मी के व्रत तथा उपासना करना अति उत्तम है। क्योंकि जीवन निर्वाह के लिये धन बहुत आवश्यक है।
परंतु बस पूजा तथा व्रत से पहले एक बार स्वयं से अच्छी तरह पूछ कर यह निश्चित कर लें, कि आप धन प्राप्ति के लिये जो मार्ग अपनाते है या जो अपनाना चाहते है वह पूरी तरह मेहनत तथा ईमानदारी का है या नही।
क्योंकि जो व्यक्ति छल, कपट तथा बेईमानी से पैसा कमाते है, माता लक्ष्मी की कृपा उनको प्राप्त नही हो सकती। मेहनत से कमाए हुए धन में ही माँ लक्ष्मी निवास करती है तथा वह धन मनुष्य के पास रुकता है।
पाप द्वारा कमाया धन मनुष्य के पास कभी भी अधिक समय तक टिकता नही है।
माता वैभव लक्ष्मी के उद्यापन में व्रत कथा की पुस्तक बाँटना भी बड़ा पुण्य माना जाता है। जिन-जिन घरों में वह पुस्तक जायेगी, उन्हें भी माता लक्ष्मी का व्रत करने की प्रेरणा मिलेगी तथा इस प्रकार उनके भी कष्ट दूर होंगे।
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