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रविवार व्रत की कथा और व्रत विधि

रविवार व्रत का महत्व

रविवार का व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित होता है।  रवि का अर्थ सूर्य है।  तथा हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार आकाश में स्थित नौ ग्रहों में से सूर्य भी एक है।  

परंतु सूर्य को सबसे विशेष माना जाता है, केवल सूर्य ही एक ऐसे देवता कहलाते है, जिन्हें प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है। सूर्य ही पृथ्वी पर जीवन का आधार है।  सूर्य की ऊर्जा से ही पेड़-पौधो, जीव-जन्तुओं तथा मनुष्यों को जीवन मिलता है।


ravivar vrat






जहाँ सूर्य की किरणे नही पहुँचती, वहाँ कीड़े-मकोड़े पनपते है।  सीलन पैदा होती है, जिसके कारण किटाणु जन्म लेते है तथा बीमारियाँ पैदा होती है।  

सूर्य की गर्मी हर वस्तु को किटाणु मुक्त करने की शक्ति रखती है।   इसके साथ ही सूर्य का प्रकाश विटामिन डी का एकमात्र स्रोत है।  विटामिन डी हड्डियों की मज़बूती के लिये बहुत ज़रूरी होता है।  विटामिन ,डी की कमी से हड्डियों के रोग उत्पन्न हो जाते है। 

सूर्योदय के समय नारंगी रंग के सूर्य के सामने थोड़ी देर बैठने से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है। ऐसा भी माना जाता है कि सूर्य की किरणे नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है।  

इसीलिये वास्तु के अनुसार घर को इस प्रकार से बनाया जाना चाहियें, जिससे घर में भरपूर सूर्य का प्रकाश आ सके।

इन सब कारणो से सूर्य को आरोग्य का देवता माना जाता है। इसलिये रोगो से मुक्ति के लिये सूर्यदेव की पूजा तथा रविवार का व्रत किया जाता है।  

आरोग्य के साथ ही सूर्यदेव के व्रत से मनुष्य को सुख-सौभाग्य , धन, यश तथा कीर्ति का भी वरदान प्राप्त होता है।  सूर्य ग्रह के कुंडली में प्रभावशाली होने पर मनुष्य के लिये सफलता तथा उन्नति के मार्ग खुलते है।  

इसलिये कैरीयर में आने वाली रुकावटों को हटाने के लिये भी रविवार के व्रत किये जाते है।  ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्य पिता का तथा चन्द्रमा माता का प्रतीक होता है।  

इसलिये ज्योतिष विज्ञान कहता है, कि जिन्हें अपनी कुंडली में सूर्य और चन्द्रमा को सकारात्मक तथा प्रभावशाली करना हो, उन्हें अपने माता तथा पिता का आदर करना चाहिये और उनकी आज्ञा माननी चाहियें।  

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार यह  सबसे सटीक उपाय है।  व्रत तथा पूजा के स्थान उसके बाद आता है।  

आइए जाने, क्या है, रविवार व्रत की पौराणिक कथा।

रविवार व्रत कथा

एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी।   वह नियमपूर्वक रविवार के व्रत रखती थी।  रविवार के दिन वह सुबह-सुबह उठकर घर-आंगन को गाय के गोबर से लीप-पोत कर बुहार देती थी।  

फिर स्नान कर के बड़े उत्साह के साथ सूर्यदेव की पूजा की तैयारी करती थी तथा बहुत भक्ति-भाव से व्रत का पालन करती थी।  व्रत की कथा पढ़ती थी, सारा दिन अन्न ग्रहण नही करती थी।  

संध्या के समय ही व्रत खोल कर भोजन करती थी।  सूर्यदेव की कृपा से बुढ़िया के घर में किसी वस्तु की कमी नही थी।  वृद्ध होने पर भी परिश्रम करने में वह थकती नही थी।  

वह सदा प्रसन्न मन से अपने कार्यों में लगी रहती थी।  उसकी प्रसन्नता तथा उसके जीवन में धन-धान्य का सुख देख कर उसकी एक पड़ोसन उससे ईर्ष्या करने लगी।  

उस पड़ोसन के पास एक गाय थी।  जिसे वह बाहर आंगन में बाँधती थी।  बुढ़िया उसी की गाय के गोबर से अपने घर को लीपती थी।  पड़ोसन ने उसके पूजा कार्य में समस्या खड़ी करने के लिये अपनी गाय को घर के भीतर बाँध लिया।  

बुढ़िया ने रविवार के दिन बाहर गोबर ढूंढा, लेकिन उसे गोबर नही मिला।  गोबर न मिलने के कारण वह अपने घर को लीप-पोत कर साफ नही कर सकी।  

बिना लिपाई तथा बुहारी के वह भोजन नही बनाती थी, इसलिये उस दिन उसने भोजन भी नही बनाया तथा सूर्यदेव को भोग भी नही लगाया। रविवार का पूरा दिन ऐसे ही बीत गया।  

बुढ़िया बिना कुछ खाए ही सो गई।  रात को स्वप्न में उसे सूर्यदेव ने दर्शन दिये।  सूर्यदेव ने बुढ़िया से पूछा कि आज तुमने मुझे भोग क्यों नही लगाया।  

बुढ़िया ने पड़ोसन के बारे में सूर्यदेव को बताया, हे सूर्यदेव! मेरी पड़ोसन ने अपनी गाय को घर के भीतर बाँध लिया और मुझे कहीं भी गाय का गोबर नही मिल सका।  बिना गोबर के मैं घर को लीप-पोत कर स्वच्छ नही कर सकी, इस कारण मैने भोजन नही बनाया।   

बुढ़िया की समस्या जानकर सूर्यदेव बोले, माता, तुमने कभी भी घर को लीपे बिना मेरे भोग का भोजन नही बनाया, मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिये तुम्हारी समस्या का समाधान करने के लिये मैं तुम्हें एक गाय देता हूँ, जो कामधेनु की भाँति तुम्हारे जीवन के सभी कष्ट हर लेगी।  
यह कह कर सूर्यदेव अन्तर्ध्यान हो गए।  अगले दिन प्रात: बुढ़िया जब सो कर उठी तो उसे बाहर से गाय के रंभाने की आवाज़ आई।  वह आँख मलते हुए घर का द्वार खोल कर बाहर देखती है, तो आश्चर्य से भर उठती है।  

उसके आँगन में एक दूध सी उजली सुंदर गाय खड़ी थी।  साथ में उसका नन्हा बछड़ा खड़ा था।  वह समझ गई कि यह गाय सूर्यदेव की ही देन है।  बुढ़िया ने गाय और बछड़े को खूब दुलार किया।  

वह  दौड़ी-दौड़ी गई तथा गाय और बछड़े के लिये चारा लेकर आई।  बुढ़िया के आँगन में सुंदर, स्वस्थ्य तथा दुधारू गाय देखकर पड़ोसन की उसके प्रति ईर्ष्या और बढ़ गई।  

अगले दिन भोर होते ही गाय ने  सोने का गोबर किया। पड़ोसन ने यह दृश्य देख लिया।  वह सोने का गोबर देख कर चकित रह गई।  उसने तुरंत जाकर सोने का गोबर उठा लिया और उसके स्थान पर अपनी गाय का साधारण गोबर रख दिया।  

अब पड़ोसन हर समय गाय पर नज़र रखती थी।  जैसे ही गाय गोबर करती थी वह जल्दी से वहाँ से गोबर उठा लाती थी।  कई दिन बीत गए और बुढ़िया को अभी तक पता ही नही था कि उसकी गाय सोने का गोबर करती है।  

सूर्यदेव ने जब देखा कि बुढ़िया की पड़ोसन उसके साथ धूर्तता कर रही है तो सूर्यदेव क्रोधित हो उठे।  सूर्यदेव ने बहुत तेज़ आँधी चलाई।  तेज़ आँधी आती  देख कर बुढ़िया ने गाय तथा बछड़े को घर के भीतर बाँध लिया।  

गाय तथा बछड़ा रात भर घर के ही भीतर बंधे रहे।  अगले दिन प्रात: गाय ने फिर सोने का गोबर किया। बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा तो वह आश्चर्यचकित भी हुई और प्रसन्न भी हुई।  

वह समझ गई कि सूर्यदेव ने उसे चमत्कारी गाय प्रदान की है।  अब बुढ़िया रोज़ रात को गाय को घर के भीतर ही रखने लगी।  पड़ोसन ने जब देखा कि बुढ़िया अपनी गाय को भीतर बाँधने लगी है, तो वह यह देख कर और अधिक जलने लगती है।  

वह तुरंत जा कर राजा को उस बुढ़िया और उसकी गाय के बारे में बताती है।  वह राजा से कहती है, महाराज बहुत दिनो से वह बुढ़िया उस गाय का सोने का गोबर इकट्ठा कर रही है।  

अब तक तो वह इतना सोना इकट्ठा कर चुकी होगी जितना वह अपनी बची-खुची आयु में खर्च भी न कर पायेगी।  भला उसके पास उस चमत्कारी गाय का क्या काम।  वह गाय तो आपके पास होनी चाहियें।  

आप राजा है, आपको राज्य के सारे कार्य देखने होते है।  प्रजा की सुख-सुविधाओं के लिये अनेको कार्य करने होते है, जिनके लिये धन की आवश्यकता होती है।  यदि वह गाय आप अपने संरक्षण में रखेंगे तो वह गाय सुरक्षित रहेगी और राज्य के काम आयेगी।  

वहाँ बुढ़िया के कच्चे घर के बाहर से तो कभी भी कोई  चोर गाय को ले जा सकता है।   जब राजा ने सोने का गोबर करने वाली गाय की बात सुनी तो उसके मन में भी लालच उत्पन्न हो गया।  

राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को भेजकर बुढ़िया के घर से गाय तथा बछड़ा मँगवा लिये।  बुढ़िया ने सैनिको को रोकने का प्रयास किया, परंतु सैनिको ने उसकी एक न सुनी।  

बुढ़िया गौ माता के जाने का दुख सहन नही कर सकती थी।  इतने दिनों में गाय और उसका बछड़ा उसके बहुत प्रिय हो चुके थे।  बुढ़िया उन्हें अपने घर का सदस्य मानती थी।  

वह विलाप करने लगी, उसने अन्न-जल का त्याग कर के अखंड व्रत धारण किया तथा यह प्रण ले लिया कि जब तक उसकी गाय उसे नही मिल जायेगी वह अन्न-जल ग्रहण नही करेगी। 

दूसरी ओर राजा गाय पा कर बहुत प्रसन्न था।  वह सोच रहा था कि इस गाय की कृपा से शीघ्र ही वह सबसे सम्पन्न तथा धनी राजा बन जायेगा। 
उसने गाय को सहेज कर महल में बंधवा दिया।  

पर कुछ समय बाद उसे सूचना मिली कि वह गाय साधारण गोबर कर रही है।  राजा ने जाकर देखा तो गाय ने गोबर कर-कर के पूरे महल को भर रखा था।  राजा यह देख कर सोच में पड़ गया। 

रात्रि में राजा को स्वप्न में सूर्यदेव ने दर्शन दिये।  सूर्यदेव ने कहा, हे राजन! वह गाय उस बुढ़िया को मैने वरदान स्वरूप दी है।  तूने उसका अधिकार छीन कर बहुत बड़ी भूल की है। 

तूने लालच में पड़ कर एक असहाय बुढ़िया के साथ अन्याय किया है।    उसकी गाय उसे लौटा दे, अन्यथा तेरा राज्य नष्ट हो जायेगा।  प्रात: काल में जब राजा की नींद खुली तो वह समझ गया कि उससे बड़ी भूल हो गई है, उसने तुरंत बुढ़िया को महल में बुलवाया।  

राजा ने बुढ़िया से कहा, माई! मुझसे अज्ञानवश भूल हो गई, किन्तु सूर्यदेव ने मुझे चेता  कर मेरी भूल सुधार दी।  मैं तुमसे क्षमा माँगता हूँ माई।  

फिर राजा ने बुढ़िया की गाय और बछड़ा वापिस दे दिये, साथ ही बहुत से भेंट, उपहार आदि देकर बुढ़िया को सम्मान के साथ उसके घर छुड़वाया।  
राजा को यह भी पता चल गया था कि बुढ़िया की पड़ौसन ने कई दिनो तक गाय का सोने का गोबर चुराया था।  इसलिये राजा उसे दण्ड देकर अपना कर्तव्य पूरा करता है।  

इसके बाद राजा भी रविवार के व्रत रखने लगा तथा उसने अपने राज्य में घोषणा करवा दी, कि राज्य में सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत रखेंगे तथा सूर्यदेव की पूजा करेंगे।  

प्रजा ने अपने राजा की आज्ञा का पालन किया तथा सभी प्रजाजन रविवार का व्रत रखने लगे।  व्रतों के प्रभाव से उस राज्य में सभी लोग निरोगी तथा धन-सम्पन्न हो गए तथा उनके जीवन से कष्टों का अंत हो गया।

रविवार व्रत विधि

रविवार के दिन सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं।

घर की साफ-सफाई कर के स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत्त हो जाएं।

इस दिन लाल वस्त्र धारण करें।

पूजा के स्थान पर सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित करें।

धूप तथा दीपक प्रज्ज्वलित कर के सूर्यदेव की पूजा करें।

सूर्यदेव को फूल तथा फल अर्पित करें।

रविवार व्रत की कथा का पाठ करें तथा सूर्यदेव की आरती करें।

पूजन के पश्चात सूर्यदेव को जल में गुड़, अक्षत तथा लाल फूल डाल कर अर्घ्य अर्पित करें। 

रविवार व्रत में एक समय सूर्यास्त से पहले भोजन कर लें।

यदि किसी कारण वश कोई व्यक्ति भोजन न कर पाए और सूर्यास्त हो जाए तो व्रती व्यक्ति अगले दिन सूर्योदय के बाद ही भोजन करे।

भोजन में गेहूँ की रोटी, गेहूँ का दलिया, दूध, घी, चीनी, गुड़, फल आदि ले सकते है।

रविवार के व्रत में पान खाना निषेध है, इसके अतिरिक्त नमक, मिर्च, तथा मसालेदार भोजन भी न करें।

रविवार व्रत का उद्यापन

रविवार का व्रत एक वर्ष या पाँच वर्ष तक किया जाता है, उसके बाद इस व्रत का उद्यापन कर दिया जाता है।

उद्यापन के दिन लाल वस्त्र पहने।

उद्यापन के दिन भी सूर्यदेव की पूजा करें तथा उन्हें अर्घ्य अर्पित करें।

इस दिन ब्राह्मणो को मीठा भोजन करायें।

दक्षिणा में धन तथा लाल वस्त्र प्रदान करें।













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