बृहस्पतिवार व्रत का महत्व
बृस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु तथा बृहस्पति ग्रह की पूजा का दिवस है। बृहस्पति ग्रह को गुरु ग्रह भी कहते है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार वह देवताओं तथा ग्रहों के गुरु माने जाते है।
बृहस्पति ग्रह के नाम पर ही इस दिन को बृहस्पतिवार या गुरुवार कहते है। इस दिन अपनी कुंडली में बृहस्पति ग्रह को प्रभावशाली बनाने के लिये विष्णु जी की तथा बृहस्पति ग्रह की पूजा की जाती है।
वैसे तो बृहस्पति ग्रह व्यक्ति की कुंडली में विद्या का निर्धारण करता है। जिसका बृहस्पति गृह अच्छी स्थिति में होता है, वह निर्बाध रूप से विद्यार्जन कर पाता है।
लेकिन बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा तथा व्रत करने से मनुष्य की सभी इच्छायें पूर्ण होती है।
बृहस्पतिवार के व्रत की दो प्रचलित कथाएं है, दोनो कथाएं यहां दी जा रही है।
बृहस्पतिवार व्रत की पहली कथा
बहुत प्राचीन समय में एक नगर में एक सदाचारी राजा का शासन था। वह राजा बहुत परोपकारी तथा दयालु था, सदा प्रजा के कल्याण-कार्यो में व्यस्त रहता था।
उनके द्वार पर जो भी कुछ माँगने आता था, वह कभी खाली नही जाता था। रानी को राजा का दानी स्वभाव नही भाता था, वह सदैव राजा को दान करने से रोकती थी, परंतु राजा उसकी बातों पर ध्यान नही देता था।
एक दिन राजा आखेट के लिये वन में गया हुआ था। पीछे से राजमहल के द्वार पर बृहस्पति देव एक महात्मा के रूप में भिक्षा माँगने आ गए। वह भिक्षा के लिये रानी को पुकारने लगे।
रानी महल से बाहर आई और भिक्षुक को देख कर मुहँ बना कर भिक्षा देने से मना कर दिया और बोली, हे साधु बाबा, यहां तो प्रतिदिन भिक्षुक आते रहते है, मुझे यह नित्य का दान-दक्षिणा का कार्य बिल्कुल अच्छा नही लगता।
मेरे पति सदा दान करने में ही लगे रहते है। इससे तो अच्छा होता कि हमारे पास धन ही नही होता।
साधु ने कहा, यह तुम क्या कह रही हो देवी, यदि तुम्हारे पास अधिक धन है, तो उसे परोपकारों के कार्यों में लगाओ, धर्मशालाएं बनवाओ, प्याऊ बनवाओ, निर्धन कुंवारी कन्याओं के विवाह करवाओ, ऐसे पुण्य कार्यों से तुम्हें संसार में यश तथा कीर्ति प्राप्त होगी।
परंतु रानी बोली, नही साधु महाराज मैं तो इस धन से बहुत दुखी हूँ, मैं अपना समय दान और परोपकार में व्यर्थ नही करना चाहती, कृप्या मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे यह सारा धन नष्ट हो जाए।
साधु रूपी बृहस्पति देव बोले, ठीक है पुत्री, जैसा मैं कहता हूँ, वैसा ही करना। बृहस्पतिवार के दिन घर को गोबर से लीपना, कपड़े धोना, सिर धो कर स्नान करना, अपने राजा से कहना कि हजामत बनवाये। यह सब तीन बृहस्पतिवार तक करने से तुम्हारा धन नष्ट हो जायेगा।
रानी ने साधु के कहने के अनुसार तीन बृहस्पतिवार तक किया। तीसरे बृहस्पतिवार बीतते ही राजा की सारी धन-सम्पत्ति नष्ट हो गई। यहां तक कि उनके भोजन के लिये भी तरसने के दिन आ गए।
राजा ने धन कमाने का विचार किया। उसने रानी से कहा कि मैं परदेस जा कर धन अर्जन के लिये कोई कार्य ढूंढ लेता हूँ। अपने नगर में तो सब जानते है यहाँ छोटा कार्य कैसे करूंगा।
यह कहकर राजा दूर किसी दूसरे नगर चला गया। वहाँ जाकर राजा निर्वाह के लिये लकड़हारे का कार्य करने लगा। रानी तथा उसकी दासी बहुत दुख में समय व्यतीत कर रही थी।
एक बार उन्हें सात दिन बिना भोजन के रहना पड़ा, तब रानी ने अपनी दासी से कहा कि पास के राज्य में मेरी बहन रहती है जो कि बहुत धनी है, तुम उसके घर जा कर हमारी स्थितिके बारे में बताना, वह अवश्य हमारी सहायता करेगी।
दासी रानी की बहन के घर चली गई। उस दिन बृहस्पतिवार था। रानी की बहन बृहस्पतिवार के व्रत रखती थी। जिस समय दासी वहाँ पहुँची, रानी की बहन बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी।
दासी ने रानी की व्यथा के बारे में उसकी बहन को बताया और उससे सहायता माँगी, किन्तु रानी की बहन कुछ न बोली। यह देखकर दासी को अपमान अनुभव हुआ तथा वह वापस आ गई और रानी से बोली, हे रानी! तुम्हारी बहन बहुत घमंडी है, उसने तो मेरी बात का उत्तर ही नही दिया।
रानी यह सुनकर बहुत दुखी हुई। उधर रानी की बहन ने बृहस्पतिवार की कथा सुनकर तथा पूजा समाप्त कर के सोचा कि बहन के घर हो आऊं न जाने उसकी दासी क्यों आई थी।
वह तुरंत रानी के घर पहुँची और बोली, बहन मुझे क्षमा करना, जब तुम्हारी दासी मेरे पास आई थी तब मैं बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी। इस कथा के बीच में न बोलते है, ना ही उठते है, इसलिये मैने दासी की बात का उत्तर नही दिया था। पूजा समाप्त करते ही तुरंत तुम्हारे पास चली आई हूँ, बताओ मेरे योग्य क्या कार्य है।
रानी बोली, बहन मेरे घर में अन्न का एक दाना भी नही है सात दिन से हमने कुछ खाया नही है यह कह कर रानी ने रोते हुए अपनी बहन को धन नष्ट होने की सारी कथा सुना दी।
रानी की बहन बोली, बहन! बृहस्पति देव बड़े दयालु है, एक बार भण्डार गृह में जाकर जांच लो, हो सकता है कुछ अनाज मिल जाए। रानी को बहन की बात अजीब लगी पर उसकी बात रखने के लिये दासी को अनाज ढूंढने के लिये कहा।
दासी घर में अनाज ढूंढने लगी तो उसे एक अनाज से भरा कलश मिल गया। रानी यह देख कर चकित रह गई, फिर बहन से बोली, बहन! जब भी हमें भोजन नही मिलता तो हम उपवास तो रखते ही है, तो क्यों न हम बृहस्पतिवार के व्रत रख लें, तुम मुझे इस व्रत की विधि बताओ।
रानी की बहन ने कहा, बहन! इस दिन केले के पेड़ की तथा विष्णु जी की पूजा करते है तथा गुड़, चने की दाल और मुनक्का आदि का भोग लगाते है और इस दिन पीला और मीठा भोजन करना। व्रत की विधि बता कर रानी की बहन चली गई।
कुछ दिनो बाद बृहस्पतिवार का दिन आया। रानी और दासी ने व्रत का संकल्प लिया। रानी और दासी घुड़साल से गुड़ और चने की दाल ले आये।
उन दोनो ने केले के पेड़ की तथा विष्णु जी की पूजा की। गुड़ तथा चने का भोग लगाया। संध्या के समय वह दोनो सोचने लगी कि व्रत खोलने के लिये पीला भोजन कहां से लाये। वह दोनो भूखी बैठी रही।
बृहस्पति देव उनके व्रत से प्रसन्न हो गए तथा वह साधारण रूप बना कर दासी को दो थाली में पीला भोजन दे कर चले गए। रानी और दासी ने भोजन किया।
अब वह दोनो हर बृहस्पतिवार का व्रत रखने लगी। कुछ ही समय में उनके पास फिर से धन-वैभव आ गया। परंतु धन-सम्पदा के आते ही रानी फिर से आलस्य करने लगी।
दासी ने रानी को समझाया, हे रानी! पहले भी तुम्हे धन से समस्या थी, इसलिये सारा धन नष्ट हो गया। अब जब बृहस्पति देव की कृपा से फिर से धन आ गया है तो तुम उसको मह्त्व नही दे रही हो।
अब आलस्य छोड़ो तथा धन का सदुपयोग करने के कार्यों में समय लगाओ। निर्धनो की सहायता करो, परोपकार के कार्यों में धन लगाओ। रानी ने दासी की बात का अनुसरण किया। वह परोपकारो के कार्यों पर धन व्यय करने लगी। उसके दान-पुण्य के कारण सभी ओर उसकी कीर्ति फैलने लगी।
दूसरी ओर राजा एक लकड़हारे का जीवन व्यतीत करते-करते दुखी हो गया था। एक दिन वह बहुत दुखी होकर एक पेड़ के नीचे बैठा था।
तभी बृहस्पति देव एक साधु के रूप में राजा के पास आये तथा बोले, हे लकड़हारे, तू इस प्रकार दुख मग्न होकर यहां क्यों बैठा है? राजा ने साधु को देखा तो अपनी सारी आप बीती साधु को सुना दी।
साधु रूप धारी बृहस्पतिदेव बोले, हे लकड़हारे! तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था जिसके कारण तुम्हारे जीवन में यह दुख आये।
अब तुम बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखो, दो पैसे के चने और मुनक्का का प्रसाद बनाना तथा जल में शक्कर मिला कर अमृत बनाना, कथा सुनकर विष्णु जी को भोग लगा कर प्रसाद तथा अमृत लोगो में बाँट देना।
राजा बोला, हे साधु महाराज! लकड़ियां बेच कर मैं इतना धन नही कमा पाता कि पूजा का प्रबंध कर सकूँ, इतने समय से अपने परिवार के लिये भी कुछ धन नही जोड़ पाया।
साधु बोले, हे लकड़हारे! बृहस्पतिवार के दिन लकड़ियां लेकर नगर की ओर चले जाना। उस दिन तुम्हें दुगना धन प्राप्त होगा, जिससे तुम पूजा का कार्य कर पाओगे।
कुछ दिन बाद बृहस्पतिवार का दिन आया, राजा उस दिन भी लकड़ियां काट कर नगर में बेचने गया। उस दिन उसकी लकड़ियां दुगने दामों में बिकी। राजा को महात्मा की बात स्मरण हो आई। वह प्रसन्न मन से बृहस्पतिवार के व्रत की सामग्री लाया तथा व्रत किया।
उस दिन से उसका मन बहुत प्रसन्न रहने लगा किन्तु अगले बृहस्पतिवार को वह व्रत करना भूल गया। उस दिन उस राज्य के राजा ने सभी प्रजाजनो को आदेश दिया कि आज कोई भोजन न बनाए सभी प्रजाजन राजा की ओर से भोजन के लिये निमंत्रित है।
सभी लोग भोजन कर आये। लकड़हारा कुछ देर से पहुँचा। उसे देख कर राजा उसे महल के भीतर ले गया तथा भोजन कराने लगा। तभी रानी वहां आई, उसने खूँटी पर अपना हार लटका रखा था, वह देखती है कि अब वह हार खूँटी पर नही है।
उसे संदेह होता है, कि लकडहारे ने उसका हार चुरा लिया है, वह राजा से कहकर उसे कारागार में डलवा देती है। कारागार में लकड़हारा बहुत दुखी होता है।
तभी उसे वह साधु याद आता है, जिसने उसे बृहस्पतिवार के व्रत करने को कहा था। तभी बृहस्पति देव पुन: साधु रूप में आकर उससे कहते है, कि यह सब तेरे व्रत भंग करने के कारण हुआ है। बृहस्पति देव तुझसे रुष्ट हो गए है।
लकड़हारा कहता है, हे साधु महाराज मैं क्या करुँ। साधु रूपी बृहस्पति देव कहते है, कि अगले बृहस्पतिवार को तुझे कारागार के द्वार पर चार पैसे पड़े मिलेंगे। उन पैसो से व्रत की सामग्री मंगा कर बृहस्पतिवार का व्रत पूर्ण करना, यह कह कर साधु अन्तर्ध्यान हो गए।
अगले बृहस्पतिवार को लकडहारे को चार पैसे पड़े मिले, उन पैसो से व्रत की सामग्री मंगा कर उसने व्रत किया तथा कथा सुनी।
रात्रि को स्वप्न में नगर के राजा से बृहस्पति देव कहते है कि जिस लकड़हारे को तूने कारागार में बन्द कर रखा है उसे छोड़ दे, रानी का हार उसी खूँटी पर लटक रहा है। यदि तूने उसे नही छोड़ा तो तेरा राज्य नष्ट हो जायेगा।
स्वप्न देख कर राजा की नींद खुल गई, उसने तुरंत जा कर खूँटी को देखा तो वहां रानी का हार लटका हुआ था। वह लकडहारे को बुलवाता है तथा उससे क्षमा मांग कर तथा उसे धन, वस्त्र, भेंट-उपहार आदि देकर विदा करता है।
अब वह यह नगर छोड़ कर अपने नगर की ओर चल पड़ता है, जहाँ का वह राजा था। जब वह अपने नगर पहुंचता है, तो वहां बहुत से कुएं, तालाब, प्याऊ, धर्मशालाएं आदि देखता है।
वह किसी से पूछता है कि यह सब किसने बनवाये है, तो उसे पता चलता है कि वहाँ की रानी तथा उसकी दासी ने यह सब निर्माण कार्य कराये है। राजा को यह सुनकर क्रोध आता है।
वह राजमहल की ओर चल पड़ता है। उधर रानी को सूचना मिलती है कि राजा आ रहे है, तो वह दासी को द्वार पर खड़ा होने को कह देती है। जब राजा वहाँ पहुँचता है, तो दासी राजा को महल में रानी के पास ले आती है।
राजा क्रोध में रानी से पूछता है, कि तुम्हारे पास इतना धन कहाँ से आया। रानी उसे सारी बात बताती है तथा कहती है, कि बृहस्पति देव की कृपा से यह सब धन-धान्य फिर से हमें प्राप्त हो गया।
यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ तथा उसने निर्णय ले लिया कि वह नित्य तीन बार बृहस्पतिवार की कथा किया करेगा तथा नित्य व्रत का पालन करेगा।
एक दिन राजा का मन अपनी बहन से मिलने को हुआ,तो वह अपने घोड़े पर सवार हो कर बहन के घर की ओर चल दिया। उस समय वहां से एक शव-यात्रा निकल रही थी। राजा ने शव ले जाते हुए लोगो से कथा सुनने का आग्रह किया।
वह लोग बोले, तुम कैसे व्यक्ति हो, हमारे परिजन की मृत्यु हो गई है और तुम कथा सुनाने की बात कर रहे हो। फिर उनमें से कुछ लोग बोले, चलो हम तुम्हारी कथा सुनेंगे।
राजा ने चने की दाल और गुड़ निकाला तथा कथा कहने लगा। जब कथा आधी हुई तो शव हिलने लगा। जब कथा पूर्ण हुई तो वह मृत व्यक्ति जीवित हो उठा तथा राम नाम जपने लगा।
फिर राजा आगे चला, उसने एक किसान को खेत जोतते देखा। राजा किसान से बोला, कि मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लो। किसान बोला, जितनी देर में मैं तेरी कथा सुनूंगा उतनी देर में मेरा कितना खेत जुत जायेगा। यह कहकर उसने कथा सुनने से मना कर दिया।
राजा वहां से जैसे ही आगे बढ़ा, किसान के बैल गिर गए और किसान के पेट में भयंकर पीड़ा होने लगा। तभी किसान की माँ उसके लिये भोजन लेकर आई। उसने अपने पुत्र तथा बैलो की दशा देखी तो पूछा, यह सब कैसे हुआ।
किसान ने माँ बताया कि उसने एक घुड़सवार की कथा सुनने से मना कर दिया था उसके बाद ही ऐसा हुआ। किसान की माँ तुरंत उस ओर दौड़ी जिधर राजा गया था।
वह राजा को रोकती है तथा कहती है कि हमारे खेत पर चलो और अपनी कथा कहो, मैं तुम्हारी कथा सुनूंगी। राजा उसके साथ खेत पर आ गया तथा कथा कहने लगा।
कथा पूर्ण होते ही किसान और उसके बैल पुन: स्वस्थ्य हो गए। फिर राजा अपनी बहन के घर पहुँचा। बहन तथा उसके परिवार ने राजा का खूब स्वागत-सत्कार किया।
अगले दिन भोर होने पर राजा ने देखा कि सभी लोग भोजन कर रहे है। राजा ने अपनी बहन से कहा कि क्या यहां कोई ऐसा है, जिसने अभी भोजन न किया हो, तथा जिसे मैं बृहस्पतिवार की कथा सुना सकूँ।
बहन बोली, भैया इस नगर में तो सभी प्रात: ही भोजन कर लेते है, फिर भी मैं अड़ोस-पड़ोस में देख कर आती हूँ। राजा की बहन ने बहुत ढूंढा कि उसे कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए, जिसने भोजन न किया हो, तो उसे एक निर्धन कुम्हार का घर मिला, जिनका पुत्र अस्वस्थ था और उसने भोजन नही किया था।
पूछने पर पता चला कि तीन दिन से उनके घर में भोजन नही बना था। कुम्हार और उसका परिवार कथा सुनने के लिये तैयार हो गया। राजा उनके घर आ कर कथा सुनाने लगा।
कथा सुनते ही कुम्हार का पुत्र स्वस्थ्य हो गया। सभी लोग राजा की प्रशंसा करने लगे। कुछ दिनो बाद राजा ने बहन से कहा, बहन अब हमें अपने राज्य जाना चाहिये, तुम भी कुछ दिन के लिये घर चलो।
बहन ने अपनी सास से कहा कि वह भी भाई के साथ कुछ दिन के लिये मायके जाना चाहती है। उसकी सास बोली कि तुम चली जाओ, किन्तु बालकों को लेकर मत जाना, क्योंकि तेरे भाई के कोई संतान नही है।
बहन ने राजा से कहा, भैया मैं तो चलूँगी, पर कोई बालक नही जायेगा। राजा बोला जब बालक नही जाएंगे तो तुम भी जाकर क्या करोगी, यह कह कर दुखी मन से राजा अपने राज्य वापिस आ गया।
राजा ने दुखी मन से रानी को सब बात कही। रानी बोली, बृहस्पति देव सभी इच्छा पूरी करते है, वह हमें संतान भी अवश्य देंगे। दोनो ने संतान के लिये बृहस्पति देव से प्रार्थना की।
उसी रात्रि को बृहस्पति देव राजा को स्वप्न में दर्शन देकर बोले, हे राजन! तेरी इच्छा पूर्ण होने वाली है, तेरी पत्नी संतान को जन्म देने वाली है। समय आने पर रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया।
राजा ने रानी से कहा कि जब मेरी बहन आये तो तुम उसे कुछ मत कहना। रानी ने उस समय तो हाँ कह दिया पर जब राजा की बहन अपने भांजे को देखने आई तो रानी ने व्यंग्य करते हुए कहा, कि घोड़ा चढ़ी तो आई नही, गधा चढ़ी आई।
ननद बोली, भाभी यदि मैं ऐसा नही कहती तो तुम्हें संतान कैसे प्राप्त होती। मेरी बात सुनकर ही तुमने बृहस्पति देव से संतान माँगी। बृहस्पति देव तो मनुष्य की जो भी इच्छा हो उसे पूर्ण करते है। जो भी बृहस्पति देव की कथा कहता है तथा श्रवण करता है उन सभी की इच्छायें बृहस्पति देव पूर्ण करते है।
बृहस्पतिवार व्रत की दूसरी कथा
एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था, उसकी पत्नी बहुत
मलीन रहती थी। वह न स्नान करती थी न ही पूजा-पाठ करती थी। ब्राह्मण के कोई संतान भी नही थी।
ब्राह्मण विष्णु भगवान से सदा एक संतान की कामना किया करता था। भगवान ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा उसकी पत्नी ने कन्या रत्न को जन्म दिया।
वह कन्या बहुत सुशील तथा विष्णु भक्त थी। वह बाल्यकाल से ही बृहस्पतिवार के व्रत रखने लगी। वह प्रात: पाठशाला जाती थी तो अपनी मुट्ठी में जौ भर के ले जाती थी।
वह घर से पाठशाला के मार्ग में जौ को बिखेरती हुई जाती थी। जब वह पाठशाला से वापिस आती तो वह जौ स्वर्ण में परिवर्तित हो चुकी होती थी। फिर वह कन्या स्वर्ण की जौ को बीन कर घर ले आती थी।
एक दिन वह कन्या स्वर्ण की जौ को सूप में डाल कर छान-बीन कर साफ कर रही थी। ब्राह्मण ने यह दृश्य देखा तो चकित रह गया। ब्राह्मण ने कहा, पुत्री सोने की जौ को साफ करने के लिये तो सूप भी सोने का ही होना चाहियें।
यह सुनकर वह कन्या बृहस्पतिवार के दिन पूजन तथा कथा करके बृहस्पति देव से स्वर्ण के सूप की इच्छा व्यक्त करती है। बृहस्पति देव उसकी प्रार्थना स्वीकार कर लेते है।
उस दिन जब वह पाठशाला से वापिस आ रही होती है तो स्वर्ण की जौ बीनते-बीनते उसे स्वर्ण का सूप भी मिल जाता है। उस कन्या के सौभाग्य से ब्राह्मण की निर्धनता दूर हो जाती है।
परंतु ब्राह्मण की पत्नी के स्वभाव मे कोई परिवर्तन नही आया। धीरे-धीरे वह कन्या युवती बन गई थी। एक दिन उस राज्य के राजकुमार ने भ्रमण करते हुए उस कन्या को स्वर्ण के सूप में स्वर्ण की जौ साफ करते हुए देख लिया।
उसके रूप तथा कृत्य को देख कर उसका मन मोहित हो उठा। वह राजमहल वापिस आने पर उदास हो गया। उसने अन्न-जल का त्याग कर दिया। राजा को जब यह बात पता लगी तो राजा तुरंत उसके पास आया और उसके उदास होने का कारण पूछने लगा।
राजकुमार ने उस कन्या से विवाह करने की इच्छा प्रकट की जो स्वर्ण के सूप में स्वर्ण की जौ साफ करती है। राजा ने अपने पुत्र को उसकी इच्छा पूर्ण करने का वचन दिया।
राजा ने अपने पुत्र से कहा कि मुझे उस कन्या के घर बताओ। राजकुमार ने उसके घर का पता बता दिया। राजा ने तुरंत मंत्री के द्वारा ब्राह्मण के घर विवाह का प्रस्ताव भेजा।
ब्राह्मण इस विवाह के लिये सहर्ष तैयार हो गया। ब्राह्मण की कन्या का राजकुमार के साथ विवाह हो गया तथा वह अपने घर से विदा हो गई। उसके जाते ही ब्राह्मण के घर से लक्ष्मी भी चली गई।
ब्राह्मण के घर में फिर से दरिद्रता का वास हो गया। उसके घर में अन्न के दाने-दाने की कमी पड़ने लगी। एक दिन ब्राह्मण अपनी पुत्री से मिलने उसके ससुराल गया तथा उसे अपनी व्यथा सुनाई।
पुत्री ने कुछ धन सहायता हेतु अपने पिता को दे दिया। ब्राह्मण धन ले कर चला गया। उस धन से कुछ समय तो उसका समय निर्वाह हो गया परंतु फिर कुछ समय बाद उसे निर्धनता ने घेर लिया।
ब्राह्मण फिर अपनी पुत्री के पास गया। पुत्री बोली, पिताजी आप माँ को कुछ समय के लिये मेरे पास छोड़ दो, मैं उन्हें निर्धनता दूर करने का उपाय समझा दूंगी। ब्राह्मण ने अपनी स्त्री को अपनी पुत्री के घर छोड़ दिया।
पुत्री ने अपनी माँ से कहा, माँ, कल प्रात: उठकर स्नान कर लेना और उसके बाद विष्णु भगवान की पूजा करना। उसकी माँ ने उसकी बात पर बिल्कुल भी ध्यान नही दिया।
अगले दिन प्रात: उठ कर वह अपनी पुत्री के बच्चों का बचा भोजन करने लगी। यह देखकर उसकी पुत्री को उस पर बहुत क्रोध आया। रात को उसने अपनी माँ को एक खाली कक्ष में बन्द कर दिया।
अगले दिन प्रात: उसे कक्ष से बाहर निकाल कर स्नान कराया तथा विष्णु भगवान की पूजा करवाई। पूजा करने से ब्राह्मणी की बुद्धि ठीक हो गई। फिर वह हर बृहस्पतिवार को व्रत करने लगी।
उसके व्रत रखने से बृहस्पति देव प्रसन्न हो गए तथा ब्राह्मण तथा ब्राह्मणी का घर धन-धान्य से भर गया। उन्हें जीवन में सुख-सौभाग्य, धन, वैभव, पुत्र सभी कुछ प्राप्त हुआ तथा मृत्युपरांत स्वर्ग लोक को प्राप्त हुए
बृहस्पतिवार व्रत विधि
बृहस्पतिवार के व्रत कम से कम 7, 11 या 16 रखे जाते है।
बृहस्पतिवार के दिन पीले वस्त्र धारण करें।
बृहस्पतिवार के व्रत में केले के पेड़ की पूजा का विशेष मह्त्व है।
इस दिन केले के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु का चित्र या प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है।
एक लोटे में जल भर कर उसमें हल्दी मिला लें।
व्रत से एक दिन पहले रात को चने की दाल भिगो दें।
पूजा की थाली में गुड़, भीगी चने की दाल, मुनक्का तथा केले रख लें।
इस पूजा का मुख्य प्रसाद गुड़ तथा चने की दाल ही होता है।
भगवान को धूप तथा दीपक अर्पित करें। उसके पश्चात पीले फूल अर्पित करें, हल्दी का तिलक अर्पित करें।
फिर केले के पेड़ के पास बैठ कर ही कथा का पाठ करें। कथा के समय थोड़ा सा गुड़ और चने की दाल हाथ में रख लें।
कथा के पश्चात भगवान विष्णु को गुड़ तथा भीगी चने की दाल का भोग लगायें।
हल्दी वाला जल केले के पेड़ की जड़ में चढ़ा दें।
पूरा दिन उपवास रखें तथा संध्याकाल में गुड़ तथा भीगी चने की दाल खा कर व्रत खोलें।
व्रत खोलने के पश्चात पीला तथा मीठा भोजन ग्रहण करें, इस व्रत में नमक न खाएं।
बृहस्पतिवार व्रत की उद्यापन विधि
बृहस्पतिवार के जितने भी व्रत करने का आपने संकल्प लिया हो उतने व्रत पूरे करने के बाद उद्यापन कर देना चाहियें।
उद्यापन के दिन भी व्रत की तरह ही विष्णु भगवान तथा केले के पेड़ की पूजा करें।
उद्यापन के दिन पीले वस्त्र धारण करें।
इस दिन ब्राह्मणो को पीला भोजन करायें तथा पीला वस्त्र, पीले फल जैसे केला, पपीता तथा दक्षिणा आदि प्रदान करें।
सवा किलो या सवा पाँच किलो बेसन के लड्डू प्रसाद स्वरूप वितरित कर दें।
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