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मंगलवार व्रत की कथा और व्रत विधि

मंगलवार व्रत का महत्व

मंगलवार यानी सप्ताह का दूसरा दिन।  यह दिन हनुमान जी की पूजा में एक विशेष मह्त्व रखता है।  इस दिन हनुमान जी की पूजा तथा व्रत करने से हनुमान जी को शीघ्र प्रसन्न किया जा सकता है। 

हम सभी जानते है कि हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्र अवतार है।  इसलिये इनकी पूजा करने से सभी ग्रहों की शान्ति होती है।  

कुंडली में यदि मंगल दोष हो या शरीर में कोई असाध्य रोग हो, शनि का कुप्रभाव हो या नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रविष्ठ हो रही हो, तो ऐसी परिस्थितियों में हनुमान जी की पूजा ही सबसे प्रभावशाली उपाय माना जाता है।  

वैसे आपने सुना होगा कि मंगलवार के व्रत केवल पुरुषों को ही करने चाहियें क्योंकि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी है।  वह स्त्रियों के हाथ से पूजा स्वीकार नही करेंगे।  

लेकिन यह भ्रांति लोगो के मन की कल्पना मात्र है।  वह ब्रह्मचारी है, परंतु हम जैसे तुच्छ मनुष्य उनके लिये तो पुत्र-पुत्रियों के समान है।  इसलिये ऐसी कोई बाधा हनुमान जी की पूजा में नही है।  

आप मंगलवार व्रत की कथा पढ़ेंगे, तो स्वयं यह जानेंगे कि हनुमान जी की दृष्टि में स्त्रियों तथा पुरुषों की पूजा में कोई भेद नही है।

आइए, इस लेख के द्वारा जाने कि मंगलवार की व्रत कथा क्या है तथा किस प्रकार मंगलवार के व्रत रखने चाहियें।


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मंगलवार व्रत कथा

प्राचीन काल में ऋषि नगर नामक एक स्थान था।  उस नगर में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। उनके कोई संतान नही थी।  इस कारण वह दोनो बहुत दुखी रहते थे।  

ब्राह्मण तथा उसकी पत्नी हनुमान जी के परम भक्त थे।  वह प्रति मंगलवार को व्रत रखते थे तथा हनुमान जी की मन लगा कर पूजा किया करते थे।  

व्रत के दिन संध्या समय में वह दोनो हनुमान जी को भोग लगा कर ही भोजन ग्रहण करते थे।    इस प्रकार कई  वर्ष बीत गए।  ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से कहा कि मैं घर छोड़ कर वन को जा रहा हूँ।  

वहां रह कर हनुमान जी का तप करूंगा।  हो सकता है कि मेरे तप से हनुमान जी प्रसन्न हो जाएं तथा हमें संतान दे दें।  यह कह कर वह वन की ओर चला गया।  

ब्राह्मणी अकेले ही समय व्यतीत करने लगी।  अभी भी वह नियमपूर्वक मंगलवार का व्रत रखती थी तथा हनुमान जी को भोग लगा कर ही व्रत खोलती थी।  

एक बार मंगलवार के दिन वह किसी कारणवश भोजन नही बना पाई तथा हनुमान जी को भोग भी नही लगा पाई।  इसलिये उसने स्वयं भी भोजन नही किया तथा वह भूखी ही सो गई।  

पहली बार ऐसा हुआ था जब मंगलवार के दिन वह हनुमान जी को भोग नही लगा पाई थी।  उन्हें भोग लगाये बिना उसने कभी भोजन ग्रहण नही किया था।  

परंतु मंगलवार का दिन निकल चुका था, इसलिये उसने निश्चय  किया कि अब वह अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाने के उपरांत ही भोजन करेगी। उसने छह दिन तक अन्न-जल ग्रहण नही किया।  

उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, किन्तु वह अपने निर्णय पर अडिग रही।  जब अगला मंगलवार आया तो उसने बड़ी सेवा-भाव से व्रत की तैयारी की तथा हनुमान जी की पूजा करने लगी।  

किन्तु छह दिन तक भूखे-प्यासे रहने के कारण वह स्वयं को सम्भाल न सकी तथा मूर्छित हो गई।  हनुमान जी उसकी भक्ति को देख कर प्रसन्न हो गए। 

ब्राह्मणी की मूर्छित अवस्था में ही स्वप्न में  हनुमान जी ने उसे दर्शन दिये तथा कहा, हे पुत्री!  मैं तेरी भक्ति तथा सेवा-भाव से प्रसन्न हूँ।  मैं तुझे वरदान स्वरूप पुत्र रत्न प्रदान करूंगा, अब उठ जाओ तथा भोजन कर लो।  

स्वप्न देख कर ब्राह्मणी की मूर्छा टूट गई।  वह बहुत प्रसन्न हुई।  प्रसन्न मन से उसने हनुमान जी को भोग लगाया तथा स्वयं भी भोजन ग्रहण किया।  हनुमान जी की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ।  

ब्राह्मणी को  मंगलवार के व्रतों के फलस्वरूप वह बालक मिला था, इसलिये उसने बालक का नाम मंगल रख दिया।  कुछ समय पश्चात ब्राह्मण घर वापिस आ गया।  

अब तक बालक कुछ बड़ा हो था।  बालक को घर के आंगन में खेलते देख कर ब्राह्मण चकित रह गया।  उसने अपनी पत्नी से प्रश्न किया कि यह बालक कौन है।  

ब्राह्मणी बोली, हे नाथ! हनुमान जी ने प्रसन्न होकर हमें यह पुत्र वरदान स्वरूप दिया है।  आपकी और मेरी भक्ति सफल हो गई है।  ब्राह्मण को अपनी पत्नी की बात पर विश्वास नही हुआ।  

उसने सोचा कि उसकी पत्नी चरित्रहीन है तथा उससे झूठ बोल रही है।  ब्राह्मण ने उस बालक को मार डालने का निर्णय कर लिया।

एक दिन वह स्नान के बहाने कुएं पर गया तथा बालक मंगल को भी साथ ले गया।  उसने बालक को कुएं में धकेल दिया और घर वापिस आ गया।  
ब्राह्मणी ने उससे पूछा, कि मंगल कहाँ है, तो वह बोला कि मंगल उसके साथ कुएं पर नही गया था।  यहीं कहीं बालको के साथ खेल रहा होगा।  पर तभी मंगल भी घर आ पहुँचता है।  

बालक को देखकर ब्राह्मण घबरा गया।  वह यह सोच-सोच कर चिंता में पड़ गया कि यह बालक कोई मायावी तो नही।  उसी रात ब्राह्मण को स्वप्न में हनुमान जी ने दर्शन दिये।  

हनुमान जी बोले, हे वत्स! तूने और तेरी पत्नी ने इतने वर्षों तक मेरी पूजा तथा व्रत किये।  तूने तो वन में जाकर मेरा तप भी किया। फिर अब जब मैने तुझे पुत्र दे दिया है, तो तू अपनी शीलवती पत्नी पर संदेह क्यों कर रहा है।  

यह पुत्र तुम्हारी भक्ति का फल है।  इस बालक पर मेरा आशीर्वाद है इसलिये तू उसे हानि नही पहुँचा सका।  यह स्वप्न देखते ही ब्राह्मण की आंख खुल गई।  

वह तुरंत अपनी भूल के लिये अपनी पत्नी से क्षमा मांगने लगा।  उसने अपने पुत्र को बड़े हर्ष के साथ गले से लगा लिया।   ब्राह्मण तथा ब्राह्मणी जीवन पर्यंन्त मंगलवार के व्रत रखते रहे तथा हनुमान जी की कृपा से उनका जीवन आनंदपूर्वक व्यतीत होता रहा। 

जो भी मनुष्य हनुमान जी का व्रत श्रद्धा-भाव से रखते है, हनुमान जी की कृपा से उनका जीवन सभी प्रकार के रोगो, कष्टो तथा दुखों से मुक्त रहता है।

मंगलवार व्रत विधि

मंगलवार का व्रत कम से कम 21 या 45 मंगलवार तक रखे जाते है। इसलिये जिस मंगलवार को भी व्रत प्रारंभ करें, उस दिन 21 या 45 व्रत का संकल्प लें। 

पूजा के स्थान पर लाल वस्त्र बिछा कर हनुमान जी के साथ श्री राम तथा सीता जी की प्रतिमा भी स्थापित करें।

लाल रंग हनुमान जी का प्रिय माना जाता है।  इसलिये इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करें। 

हनुमान जी को धूप, घी का दीपक, कपूर आदि अर्पित करें।

हनुमान जी को रोली तथा चावल से तिलक करें।

हनुमान जी  को  लाल फूल तथा फल का अर्पित करें।

एक रुई के फाहे में थोड़ा सा चमेली का तेल लगा कर हनुमान जी के सामने रख दें।

हनुमान जी की चालीसा तथा आरती का पाठ करें।

हनुमान जी के व्रत में साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखें।

इस व्रत में मन से दृढ़तापूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करें।

सन्ध्या काल में हनुमान जी की पूजा कर के बेसन के लड्डू या बेसन की बूंदी का भोग लगायें। 

इस दिन नमक न खाएं।  केवल मीठा भोजन ही ग्रहण करें। 

मंगलवार व्रत का उद्यापन

21 या 45 जितने व्रतों का अपने संकल्प लिया हो, उतने व्रत पूर्ण हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना चाहियें।

उद्यापन के दिन भी हनुमान जी तथा श्री राम सीता जी की विधिवत पूजा करें। 

उद्यापन के दिन पुरुष हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाएं। 

जो स्त्रियाँ व्रत रखें वह हनुमान जी को चोला न चढ़ाएं, केवल पूजन करें। 
क्योंकि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी है, इसलिये उनकी पूजा में ऐसा नियम बनाया गया है। 

उद्यापन के दिन घर में सुंदरकांड का पाठ कराना अति शुभ होगा।

उद्यापन के दिन ब्राह्मणो को भोजन करायें तथा दक्षिणा दे कर विदा करें।









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