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जानिए सबसे पहले रक्षा बंधन किसने मनाया

रक्षा बंधन भाई बहन के अनुपम स्नेह का पवित्र पर्व है।  यह प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। 

यह हिन्दुओ के मुख्य पर्वों में से एक है और पूरे भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्री लंका और  अन्य देशों  में रहने वाले हिन्दुओ द्वारा मनाया जाता है। 



rakshabandhan




 

इस दिन बहने भाई के पास और भाई बहन के पास रक्षाबंधन के लिये लाख बाधाएं पार कर के भी पहुंचने के लिये तत्पर रहते है।  

अगर  कभी ऐसा होता भी है,  कि  भाई बहन राखी के दिन एक दूसरे के पास न पहुँच पायें, तो बहने डाक के द्वारा राखी अपने भाई तक अवश्य पहुँचा देती है, और भाई उस राखी को अपनी कलाई में बांध कर अपनी बहनों को याद कर लेते है।  

इस दिन सूत, कलावा,  रेशम, तथा सोने, चांदी की एक से एक मनोहर राखियों से बाज़ार अटे पड़े रहते है।  हलवाइयों की दुकाने भी एक दो दिन पहले से ही तरह तरह की स्वादिष्ट मिठाईयों से  सज जाती है। 

इस दिन स्कूलो, कॉलेजों और सरकारी कार्यालयों की छुट्टी रहती है।  इसलिये  सभी लोग खासकर बच्चे त्यौहार का पूरा आनंद ले पाते है।  

इस पर्व की शुरूआत कहां से हुई,  इसके पीछे कुछ  पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है।  

रक्षाबंधन की पौराणिक कथाएं

रक्षा बन्धन से कई पौराणिक कथाएं जुडी हुई है।  जिनका संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है। 

माता लक्ष्मी और राजा बलि की कथा

वामन पुराण में इस कथा का उल्लेख मिलता है।  त्रेता युग की बात है, राजा बलि दानवो का राजा था। वह 99 अश्वमेध यज्ञ पूर्ण कर चुका था तथा सौवाँ यज्ञ पूर्ण होने पर वह इतना शक्तिशाली हो सकता था कि इन्द्र के सिंहासन पर आरूढ़ होने से उसे कोई नही रोक सकता था। 

इसी चिंता के कारण सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना की कि राजा बलि को सौवाँ यज्ञ पूर्ण करने से रोकिये।    तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया।  

वह एक नाटे कद के ब्राह्मण बनकर राजा  बलि के पास पहुँचे।  वामन अवतार रूपी विष्णु ने कहा 'हे राजन बिना दान के यज्ञ का लाभ नही, इसलिये घर आये वामन को दान करें।'  

राजा बलि ने कहा, 'हे वामन देवता आप जो चाहे सो मांग ले। तब वामन अवतार ने राजा बलि से तीन पग धरती का दान मांगा।  

बलि ने सहर्ष उन्हें दान का वचन दे दिया और कहा कि आप कहीं से भी तीन पग भूमि नाप लें।  फिर भगवान विष्णु ने अपना विशाल रूप बनाया और एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग नाप डाला और बलि से पूछा कि  तीसरा पग कहाँ रखूँ।

बलि समझ गए की यह स्वयं हरि है, उन्होने कहा कि तीसरा पग मेरे सिर पर रखिये।  

फिर भगवान ने तीसरा पग बलि के सिर पर रखा तथा बलि से प्रसन्न हो कर उन्हें पाताल का राज्य सौंप दिया और वरदान मांगने को कहा।  

बलि ने श्री हरि से कहा कि मेरे महल के सभी द्वारों पर आप ही द्वारपाल के रूप में विराजमान रहें।  विष्णु जी को बात माननी पड़ी और वह दिन रात बलि के महल का ध्यान रखने लगे।  

क्षीर सागर में विष्णु जी को न देखकर लक्ष्मी जी और सभी देवताओं को चिंता होने लगी।  तब लक्ष्मी जी ने एक गरीब महिला का रूप धारण कर के बलि के हाथ में एक सूत्र बांध कर उनसे सहायता की प्रार्थना की।  

बलि ने लक्ष्मी जी को अपनी बहन स्वीकार किया और मनचाहा वरदान देने का वचन दिया।  तब लक्ष्मी जी ने विष्णु जी को स्वतन्त्र करने का वरदान मांगा और बलि ने विष्णु जी को  स्वतन्त्र कर दिया।  

प्रथम बार रक्षा सूत्र माता लक्ष्मी ने ही राजा बलि को बांधा था।

इन्द्र और इंद्राणी की कथा

भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवासुर संग्राम के समय देवता पराजित हो गए और असुरो का आतंक सभी लोको में फैलने लगा।

तब देवगुरु बृहस्पति जी ने इन्द्राणी से कहा कि  मन्त्रों से सिद्ध रक्षा सूत्र इन्द्र के हाथ में बांधे।  इन्द्राणी ने एक सूत्र मन्त्र सिद्ध करके इन्द्र की दाहिनी कलाई में बांधा।  साथ ही इन्द्राणी ने सूत्र बांधते हुए कहा, 

"येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल: 
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल: माचल:।"  

इस श्लोक का अर्थ है कि , " जिस सूत्र से दानवराज महाबली राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र को बांध कर  मैं तुम्हें रक्षा के लिये प्रतिबद्ध कर रही हूं।  चलायमान न हो चलायमान न हो।   

रक्षा सूत्र बांधने के बाद इन्द्र ने फिर से अपनी सेना को लेकर असुरों पर आक्रमण किया और विजयी होकर लौटे।  तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा।  

श्री कृष्ण और द्रौपदी की कथा 

महाभारत काल  में  भी रक्षाबंधन की एक कथा का उल्लेख मिलता है।  जब कृष्ण भगवान ने शिशुपाल का वध करने के लिये चक्र चलाया था तब उस चक्र से उनकी अंगुली में थोडी सी चोट आ गई।  

तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी के पल्लू का एक टुकड़ा फाड़ कर कृष्ण की अंगुली में बांध दिया था।  

कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह उस के एक-एक धागे का मूल्य चुकाएंगे।  और कृष्ण ने समय आने पर सचमुच अपना वचन निभाया।  

जब कौरवो ने द्रौपदी का चीर हरण कर के उसे अपमानित करने का प्रयास किया तो  श्री कृष्ण की कृपा से उसका चीर अर्थात साड़ी अनंत हो गई।  

द्रौपदी ने भी कृष्ण की अंगुली में अपने पल्लू का टुकड़ा  श्रावण मास की पूर्णिमा को ही बाँधा था। मान्यता है कि  तभी से यह पर्व मुख्य रूप से भाई बहन का पर्व माना जाने लगा। 

महाभारत की कथा

महाभारत में रक्षाबंधन का एक और उल्लेख मिलता है।  महाभारत के युद्ध के शुरु होने से पहले श्री कृष्ण  ने युधिष्ठिर को परामर्श दिया कि  वह अपने सभी सैनिको के हाथ में मन्त्र सिद्ध रक्षा सूत्र बांधे जो कि युद्ध में उनकी रक्षा करेगा।  

तब श्री कृष्ण की आज्ञनुसार युधिष्ठिर ने सभी सैनिको के हाथ में रक्षा सूत्र बांधा था। 

जैन धर्म में रक्षा बंधन

जैन धर्म में भी  रक्षा बन्धन के सम्बंध में एक पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है।  इस कथा के अनुसार मुनि विष्णु कुमार ने इस दिन  700 मुनियों के प्राणों की रक्षा की थी।   

इसलिये जैन धर्म के अनुयायी इस दिन विष्णु कुमार मुनि की कथा और पूजन करते है तथा  इस दिन वे हाथ में सूत का धागा बांधते है।

रक्षा बंधन कैसे मनाते है

चलिये अब हम जानते है कि  रक्षाबंधन कैसे मनाते है।  रक्षा बन्धन औ भाई दूज, दोनो को मनाने की विधि लगभग एक जैसी ही होती है।  


इस दिन बहने और भाई सुबह स्नानादि से निवृत्त हो कर  रक्षा बन्धन मनाते है।  

सर्वप्रथम अपने इष्ट देव को राखी बाँधी जाती है।  

अगर घर में लड्डू गोपाल स्थापित हों,  तो पहले उन्ही को राखी बांधें।  

रक्षा बन्धन के लिये भाई  पूर्व दिशा की ओर मुख कर के और रुमाल से सिर ढक कर लकड़ी की चौकी पर  बैठे।  

फिर बहन भी दुपट्टे आदि से सिर ढक लें तथा भाई को रोली और चावल से तिलक करे।  

उसके बाद भाई की दाहिनी कलाई में राखी बांधते हुए तीन गाँठ लगायें, और हर गाँठ के साथ तीन बार वही मन्त्र बोले जो इन्द्राणी ने इन्द्र की कलाई में राखी बांधते हुए बोला था।

यह रक्षा सूत्र होता है। जो भाईयों की रक्षा के लिये बांधा जाता है।  फिर भाई भी बहन को उसकी रक्षा का वचन देते है।   

राखी बांधने तक भाई बहन को उपवास रखना चाहिये।  राखी बांधने के बाद बहन भाई को कुछ मिष्ठान खिलाती है और उसके बाद ही वह स्वयं खाती है।   

भाई इस दिन अपनी बहनों को उपहार स्वरूप वस्त्र, आभूषण या रूपये आदि देते है। 

अगर भाई  विवाहित हो तो भाभी को भी राखी बांधनी चाहिये।  भाभी के बायें हाथ में राखी बांधें। 

वैसे तो इस दिन घरों में बहुत से पकवान बनाये जाते है पर उत्तर भारत में विशेषकर घेवर और मीठी मट्ठियां बनाई जाती है, तथा दक्षिण भारत में नारियल की बरफ़ी बहुत प्रसिद्ध है। जैन धर्म में इस दिन खीर का विशेष मह्त्व है।  

विभिन्न प्रदेशों में रक्षाबंधन 

अब हम जानेंगे कि हमारे देश के विभिन्न प्रदेशों में रक्षा बंधन कैसे मनाया जाता है।   
  • उत्तर प्रदेश  में इसे श्रावणी पूर्णिमा और सलूनो भी कहा जाता है तथा इस दिन लोग ब्राह्मणों से रक्षा सूत्र बंधवाते  है और उन्हें दक्षिणा देते है। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर चावल के आटे से राधे  कृष्ण और सीता राम लिख कर द्वार पर राखी बाँधी जाती है, उसके बाद बहने भाई को राखी बाँधती है।  
  • महाराष्ट्र और गोआ में इसे नारियल पूर्णिमा कहा जाता है।  इस दिन वहाँ पर समुद्र में नारियल चढ़ाने की प्रथा है। इस दिन ब्राह्मण समुद्र में स्नान कर के वरुण देव जो कि जल के देवता है उनकी पूजा अर्चना करते है और समुद्र में नारियल प्रवाहित कर देते है।  
  • बिहार और मध्य प्रदेश में इसे कजरी पूर्णिमा कहा जाता है।  यहाँ पर यह त्यौहार नई फसल की खुशी से भी जुड़ा हुआ है।  गुजरात में इसे पवित्रोपन्ना कहते है तथा यहाँ इस त्यौहार का आरम्भ शिव पूजा से किया जाता है। तथा सबसे पहले शिव लिंग पर कच्चा सूत बांधते है।
  • दक्षिण भारत में इसे अवनि अवित्तम  कहा जाता है।  यहाँ  भी ब्राह्मण  समुद्र या नदी में स्नान कर के नया जनेऊ धारण करते है।
  • पश्चिम बंगाल  में इसे झूलन पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है।  यहाँ राधा कृष्ण को झूला झुलाने की प्रथा है। यहाँ एकादशी से पूर्णिमा तक राधा कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।  
  • राजस्थान में इस दिन हवन करके राखी को कच्चे दूध में भिगो कर भगवान को अर्पित करते है।  यहाँ  राम राखी और चूड़ा राखी बांधी जाती है।  चूड़ा राखी महिलाओं के लिये होती है, यह भाभियों की चूडियों में बान्धी जाती है। 
  • उड़ीसा में इसे गम्हा पूर्णिमा कहते है और इस दिन गाय बैलो को सजाया जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है।
  • कुमायूं में इसे जनो पुन्यु या जनो पूर्णिमा कहते है। यहाँ भी इस दिन ब्राह्मण नया जनेऊ धारण करते है। 
  • मथुरा, वृंदावन में यह हरियाली तीज से लेकर रक्षाबंधन तक वातावरण उत्सवमयी रहता है।  यहाँ हरियाली तीज से रक्षा बन्धन तक  बाल कृष्ण  को झूला झुलाया जाता है।  
  • नेपाल में इसे जनेऊ पूर्णिमा कहते है और इस दिन घर के बड़े छोटो को राखी बांधते है। 
सभी प्रांतों में विभिन्न रीति रिवाजो के बावजूद  यह त्यौहार मुख्य रूप से सभी स्थानो पर भाई बहनो का ही त्यौहार है।

रक्षा बंधन का मह्त्व 

यह पर्व बहुत व्यापक अर्थ लिये हुए है और केवल भाई बहन के रिश्ते तक ही सीमित नही है।   इसकी शुरुआत तभी से मानी जाती है जब इन्द्राणी ने अपने पति इन्द्र की कलाई में रक्षा सूत्र बांधा था।  

पौराणिक काल में  रक्षा सूत्र पुरूषों के हाथ में कोई भी महिला बांध सकती थी चाहें वह माँ, बहन,  बेटी, पत्नी कोई भी हो।  
पहले युद्ध पर जाते हुए पुरुषों की कलाई पर महिलाओं द्वारा रक्षा सूत्र बांधा जाता था। 

इसके अलावा शिष्य जब अपनी शिक्षा पूरी कर लेते थे तो गुरु उनके हाथ में सूत्र बांध कर वचन लेते थे कि  वह अपनी शिक्षा का सदुपयोग करेंगे।  

शिष्य भी अपने गुरुओं को यथासंभव दक्षिणा प्रदान किया करते थे।  ब्राह्मण भी अपने यजमानो के हाथ में सूत्र बांधते थे तथा यजमान उन्हें दक्षिणा देते थे।  

कालांतर में यह पर्व केवल भाई बहन के रिश्ते का पर्व बन गया है पर फिर भी इस पर्व ने अपनी व्यापकता खोई  नही है।  आज भी रक्षाबंधन के दिन भाईयों के अलावा पिता, चाचा, ताऊ और भाईयों के पुत्रों को भी राखी  बाँधी जाती है।  

ब्राह्मणो से रक्षा सूत्र बंधवा कर आशीर्वाद लेने की परम्परा भी अभी तक जीवित है।  

प्रतिवर्ष देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा अन्य सम्मानित पदो पर आसीन नेताओँं को देश की बहनें और बेटियाँ राखी  बाँधती है। 

देश के सम्मानित कर्णधार भी महिलाओं को रक्षा बन्धन और भाई दूज पर रेल और बस की मुफ्त यात्रा का उपहार देते है, तथा इसके अलावा भी महिलाओं के जीवन को सुगम बनाने के लिये प्रतिवर्ष कोई न कोई नई योजना लागू होती रहती है। 

बहुत सारी बहनें इस दिन देश के सैनिकों को राखी बाँधती है।  क्योंकि वह अपने परिवारों से दूर देश की सीमाओं पर, पूरे देश की रक्षा के लिये सदैव तत्पर खड़े रहते है।  

बहुत से लोग पेड़ो को भी राखी बांधते है क्योंकि पेड़ हमारे जीवन के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।  वह हमारे जीवन की रक्षा करते है।  इस तरह से देखा जाए तो यह पर्व आज भी अपनी  व्यापकता को बनाए हुए है।





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