सावन का महत्व
श्रावण माह हिन्दू वर्ष का पाँचवा माह है। इसे आम भाषा में सावन कहते है। यह माह वर्षा ऋतु के प्रारंभ होने की सूचना देता है इसलिये इस माह में पूरी प्रकृति धवल हरियाली से हरी-भरी हो जाती है।
वर्षा ऋतु के सौंदर्य के लिये तो यह माह प्रसिद्ध है ही, लेकिन साथ ही यह माह भगवान शिव की पूजा का विशेष माह भी है।
वैसे तो महादेव की पूजा करने के लिये किसी विशेष दिन की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नही है वह तो कभी भी की जा सकती है, लेकिन सावन को भगवान शिव का प्रिय माह माना जाता है।
इसलिये शिव जी को प्रसन्न करने के लिये इस माह में शिव जी की विशेष पूजा की जाती है। शिव पुराण में इस माह का महात्मय वर्णित है। यह माह भगवान शंकर का प्रिय माह क्यों है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है।
कहा जाता है कि जब माता सती ने अपना शरीर त्याग किया था उसके बाद उन्होने हिमालय राज के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में उनका नाम पार्वती पड़ा।
उन्होने युवा होने पर भगवान शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त करने के लिये कठिन तप किया। इस जन्म में सबसे कठिन तप उन्होने श्रावण माह में किया था तथा इसी माह में भगवान शिव ने पार्वती जी को दर्शन दिये थे तथा पुन: पत्नी रूप में ज्न्हें स्वीकार किया था।
इसीलिये यह माह भगवान शिव को अति प्रिय है तथा इस कारण से इस माह में लोग विवाह की इच्छा से भी भगवान शिव की पूजा करते है। माना जाता है कि इस माह में भगवान शिव की पूजा तथा व्रत करने से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है।
इस माह से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा भी है।
नीलकंठ की कथा
जब देवों तथा असुरों ने सागर मंथन किया था तब मंथन करते-करते सागर में से भयंकर विष भी निकला था जो समस्त संसार को अपनी विषैली ज्वाला से समाप्त करने की शक्ति रखता था।
विष के निकलते ही चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई थी। सभी अपने प्राणॉ की रक्षा के लिये इधर-उधर भागने लगे। उस समय भगवान शिव ने वह सारा विष पी कर संसार को उसके दुष्प्रभाव से बचाया।
वह कालकूट विष पीने के कारण उनका कंठ नीला पड़ गया था। तभी से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। विषपान के बाद भोले नाथ मूर्छित हो गए थे।
उनको मूर्छा से बाहर लाने के लिये सभी देवता जल लेकर उन पर छिड़कने लगे तथा उन्हें जल पिलाने लगे। थोड़ी देर में भगवान शिव पुन: स्वस्थ्य हो गए।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यह घटना श्रावण मास में हुई थी इसलिये तब से श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाया जाने लगा।
सावन के सोमवार व्रत
सावन के पूरे माह नित्य भगवान शिव को जल अर्पित करना तथा व्रत, पूजन करना बहुत शुभ माना जाता है। लेकिन यदि प्रतिदिन संभव न हो तो केवल सावन के सभी सोमवारों का व्रत करके भी भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है।
अधिकतर सावन के सोमवार के व्रत लोग विवाह की इच्छा से ही करते है, वैसे किसी भी इच्छा से व्रत किये जा सकते है। यदि साधारण प्रति सोमवार के व्रत भी प्रारंभ करने हों तो सावन के प्रथम सोमवार से ही प्रारंभ करने चाहिये।
सावन के सोमवार के व्रत करने की विधि भी सोमवार के व्रत जैसी ही होती है तथा सोमवार की व्रत कथा का ही पाठ किया जाता है।
काँवड़ यात्रा
सावन के महीने में शिव भक्त काँवड़ यात्रा भी करते है। इस यात्रा के लिये एक लकड़ी के साथ रस्सी से दो टोकरी बांधी होती है। इसी को काँवड़ कहते है।
काँवड़ यात्रा करने वाले व्यक्ति को काँवड़िया कहा जाता है। काँवड़िया अपने काँधे पर काँवड़ लटका कर हरिद्वार,गोमुख या गंगोत्री जाते है तथा टोकरियों में गंगाजल भर कर लाते है।
काँवड़िये पूरा रास्ता पैदल ही तय करते है वो भी नंगे पैर। वापिस आने पर अपने घर के पास किसी भी शिव मन्दिर में वह जल भगवान शिव को अर्पित करते है तथा काँवड़ भी उसी मन्दिर में छोड़ दी जाती है।
पूरी यात्रा के दौरान तथा बाद में भी काँवड़ को धरती पर नही रखा जाता।
सावन के पहले दिन से काँवड़ यात्राएं शुरु हो जाती है तथा सावन की शिवरात्रि के दिन गंगाजल भगवान शिव को अर्पित किया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव ने विषपान किया था तथा वह मूर्छित हो गए थे तब सभी देवता कलश में जल ले-ले कर शिव जी को पिलाने के लिये लाये तथा शिव जी को मूर्छा से बाहर लाये। तभी से काँवड़ की शुरुआत मानी जाती है।
सावन माह के नियम
शास्त्रों में सावन के माह में कुछ नियम बताए गए है, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये इन नियमों का पालन करना चाहियें। यह नियम सभी के लिये है, चाहे आप व्रत रख रहे हों या नही।
शिवजी को प्रसन्न करने के लिये सावन में प्रतिदिन शिवलिंग पर जल अर्पित करना अति शुभ होगा। यदि आप व्रत नही भी कर रहे है तो भी जल अर्पित कर ही सकते है।
सावन में जीव हत्या न हो इस बात का विशेष ध्यान रखने का निर्देश हमारे शास्त्रों में दिया गया है।
ऐसा नियम बनाए जाने का कारण यह है कि सावन वर्षा ऋतु का महीना है। इस समय वर्षा की अधिकता से धरती में रहने वाले जीव तथा बिलों में रहने वाले जीवों को बाहर निकलना पड़ता है क्योंकि उनके रहने के स्थानों में जल भर जाता है।
वर्षा ऋतु में साँप, बिच्छू तथा अन्य कीड़े मकोड़े बहुत नज़र आते है। जो कि हमारी थोड़ी सी लापरवाही से मर सकते है। इसलिये इस महीने में इस बात का खास ध्यान रखने का निर्देश दिया गया है।
साथ ही यह पौराणिक मान्यता भी है कि यह सभी जीव भगवान शिव के प्रिय है। इसलिये इन सभी जीवों को हानि पहुँचाने से बचें।
सावन के माह में तामसिक भोजन का त्याग करें। इस माह में दूध, हरी पत्तेदार सब्जियां, बैंगन, मूली, गोभी, कढ़ी, शहद आदि भी निषेध माने गए है।
जो भी वस्तुएं भगवान शिव को अर्पित की जाती है वह सभी ग्रहण करना निषेध माना गया है।
इसका मुख्य कारण यह है कि इस मौसम में अधिकतर फलों सब्ज़ियों में कीड़े हो जाते है, इसलिये इन्हें न खाने का नियम बनाया गया है।
दूध और अधिक वसायुक्त भोजन भी निषेध है, क्योंकि चतुर्मास के समय नमीयुक्त वातावरण होता है जिसमें किटाणु अधिक पनपते है। इस समय में पाचन तंत्र का ध्यान रखते हुए हल्का सुपाच्य भोजन करना ही उचित है।
सावन के कुछ मुख्य पर्व
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