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नाग पंचमी :जानिए इस दिन की पौराणिक कथा

नाग पंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है।  नागों को हिन्दू संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।  

महादेव ने नागों को अपने कंठ में माला की तरह धारण किया है तथा अपने हृदय के पास स्थान दिया है।  नाग विशेष रूप से भगवान शिव के गण तथा भक्त कहे जाते है।

इसके साथ ही भगवान विष्णु भी शेषनाग की शैया पर ही विराजमान रहते है।  इसलिये नागो की पूजा का विशेष मह्त्व माना जाता है।  


naag panchami



पौराणिक कथाओं के अनुसार नागों के पिता कश्यप ऋषि तथा उनकी माता कद्रु है।  सभी नाग कद्रु की ही संतान माने जाते है।  
भविष्योत्तर पुराण के अनुसार आठ मुख्य नाग बताए गए है।  इनके नाम है, वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक तथा धनंजय।  इसलिये नाग पंचमी पर भी आठ नागों का पूजन करना चाहियें।

नाग पंचमी के दिन नागो की पूजा करना, तथा इस दिन नागों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये सपेरों को कुछ धन देकर उनके बँधक नागों को जंगल में छुड़वाना बहुत अच्छा माना जाता है। 

ज्योतिष के अनुसार ऐसा करने से  जिनकी  कुंडली में कालसर्प दोष हो, उन्हे इस दोष से मुक्ति मिलती है।




नाग पंचमी की पौराणिक कथाएं

नाग पंचमी के प्रारंभ होने के इतिहास में दो कथाओं का उल्लेख मिलता है।  एक कथा कालिया नाग से जुडी है तथा दूसरी कथा तक्षक नाग से।

कालिया नाग की कथा

यह भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की घटना है।  एक बार यमुना में एक हजार फनों वाला विशाल और भयंकर कालिया नाग आ कर रहने लगा।  

कालिया नाग पहले रमण द्वीप में निवास करता था।  पर गरुण के डर से वह उस स्थान को छोड़ कर अपनी पत्नियों सहित यमुना में आकर रहने लगा।  उसके कारण यमुना का पानी धीरे-धीरे विषैला होने लगा था।

वह  यमुना में नहाने के लिये आने वाले मनुष्यों और पशुओं को निगल जाता था।  एक बार कृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना के किनारे खेल रहे थे।  

तभी कृष्ण द्वारा फेंकी हुई गेंद यमुना में गिर गई।  कृष्ण यमुना की ओर गेंद लेने के लिये दौड़े।  वह पानी के अंदर चले गए।  कालिया नाग ने उन्हें  देख कर तुरंत उन पर आक्रमण कर दिया।  

यह सब कृष्ण की लीला थी।  कृष्ण ने उसके फनों पर कूद-कूद कर नृत्य करना शुरु कर दिया।  उनके चरणों की चोट से वह बुरी तरह घायल हो गया। 

उसके फनों पर भगवान कृष्ण के चरण चिन्ह छप गए।   फिर उस नाग की पत्नियों ने भगवान कृष्ण से उसे क्षमा कर देने के लिये कहा।  कालिया नाग ने भी कृष्ण  से क्षमा मांगी।  

कृष्ण ने उसे यमुना छोड़ कर वापिस अपने पुराने निवास स्थान पर जाने का आदेश दिया। वह बोला कि वहां पर गरुण राज मुझे छोड़ेगा नही।  

कृष्ण ने कहा कि तुम्हारे फनों पर मेरे चरण चिन्हों को देख कर गरुण तुम्हें कुछ नही कहेगा, तुम निश्चिंत हो कर जाओ।  वह अपनी पत्नियों सहित यमुना छोड़ कर चला गया।  माना जाता है कि तभी से नाग पंचमी का पर्व मनाया जाने लगा।

तक्षक और जन्मेजय की कथा

जनमेजय एक कुरु वंशी था।  वह अर्जुन का पर पौत्र था।  अर्जुन के पुत्र का नाम अभिमन्यु था।  अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र का नाम परीक्षित था।  जनमेजय परीक्षित का पुत्र था।  

परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के डसने से हुई थी।  जनमेजय को जब यह बात पता चली तो उसने सभी नागों का विनाश करने का निश्चय कर लिया।  

उसने  भयंकर सर्प यज्ञ प्रारम्भ किया।  जिसमें मंत्रों  की शक्ति से वशीभूत हो कर सर्प स्वयं आ कर अग्नि कुंड में गिर कर स्वाहा होने लगे।

तक्षक अपनी मृत्यु को निकट देखकर इन्द्र की शरण में गया।  इन्द्र ने उसे अपने वस्त्र में छुपा लिया।  परंतु यज्ञ में हो रहे मंत्र जाप की शक्ति तक्षक सहित इन्द्र को भी अग्निकुंड की ओर खींचने लगी। 

वासुकि ने ब्रह्मा जी को यह बात बताई।  ब्रह्मा जी ने कहा कि इस यज्ञ में केवल दुरात्मा सर्पों का विनाश होगा।  निष्पाप सर्पों की रक्षा अस्तिक ऋषि करेंगे।  

अस्तिक ऋषि एक बालक थे।  उन्होने यज्ञ स्थल पर पहुँच कर  यज्ञ की तथा वहाँ उपस्थित ऋषि मुनियों की स्तुति की,  जनमेजय उन्हें देख कर प्रसन्न होकर बोला कि आपकी जो भी इच्छा हो, मांग लीजिये।  

अस्तिक ऋषि ने यज्ञ रोकने की प्रार्थना की।  जनमेजय वचन दे चुका था, इसलिये उसे यज्ञ रोकना पड़ा।  अस्तिक जरुत्करु ऋषि के पुत्र थे तथा उनकी माता वासुकि की बहन थी।  

इस तरह वह  भी नागवंश से सम्बंध रखते थे।  इसीलिये उन्होने  नागों को बचाने का प्रयास किया। इस घटना के बाद ही नाग पंचमी मनाई जाने लगी।

इनके अलावा नाग पंचमी की एक व्रत कथा भी है।  जो लोग इस दिन व्रत रखते है।  वह नीचे दी गई  कथा का पाठ करते है। 

नाग पंचमी व्रत कथा

एक साहूकार के सात पुत्र थे।  वह सब विवाहित थे।  एक बार साहुकार की सातों बहुएँ किसी पूजा हेतु जंगल से मिट्टी लाने गई।  बड़ी बहु ने जहाँ खोदा वहां सांप निकल आया।  

बड़ी बहू अपनी रक्षा के लिये उस पर प्रहार करने ही वाली थी, पर सबसे छोटी बहू ने उसे रोक दिया।  सांप एक किनारे जा कर बैठ गया।  

वह सब मिट्टी लेकर चलने को हुई तो छोटी बहू जाते-जाते उस सांप से बोली,  तुम यहीं बैठो, हम अभी आते है।  उसने यह सोचकर बोला कि कुछ भोजन ला कर सांप को दे देगी।  

पर फिर वह और काम-काज में व्यस्त हो गई और भूल गई।  अगले दिन उसे याद आया तो वह जंगल में जाकर देखती है कि सांप अभी तक बैठा है कि नही।  

वह सांप वहीं बैठा मिला।  बहू बोली भैया, माफ करना, मैं कह कर भूल गई।  सांप ने कहा कि तूने मुझे भैया कहा है, इसलिये मैं तुझे माफ करता हूँ, आज से तू मेरी बहन है।  

वह एक इच्छाधारी नाग था।  बहु का कोई भाई नही था।  वह नाग मनुष्य रूप लेकर उसके ससुराल पहुँचा और बोल कि मैं अपनी बहन को लेने आया हूँ।  मैं उसका चचेरा भाई हूँ।  अब तक परदेस में रहता था।  अभी वापिस आया हूँ।  

उसकी बात पर विश्वास करके सबने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। सर्प बहू को अपने घर ले गया तथा नाग माता से मिलवाया।  कुछ दिन रह कर फिर सर्प बहू को बहुत सारे बहुमूल्य उपहारों के साथ ससुराल छोड़ आया। 

उपहारों को देख कर अन्य बहुएँ कहने लगी कि तुम्हारा भाई इतना धनी है तो सब वस्तुएं सोने की मँगवा लो।  

सांप ने यह बात जानी तो सभी वस्तुएं सोने की लाकर बहन को भेंट कर दी, साथ ही एक बहुमूल्य मणि जड़ित हार भी भेंट किया।  उस हार की प्रसिद्धि पूरे नगर में फैल गई।  

जब वहां की रानी को पता चला तो उसने साहुकार को मजबूर किया कि अपनी छोटी बहू का हार हमे दे दो।  साहुकार को विवश होकर हार रानी को देना पड़ा।  

बहू को न चाहते हुए अपना हार देना पड़ा। उसने अपने सर्प भाई से सहायता मांगी।    रानी ने जब वह हार पहना तो वह हार सर्प में बदल गया।  

राजा ने साहुकार और उसकी बहू को अपनी राजसभा में बुलवाया।  बहू ने राजा और रानी को बताया कि यह एक चमत्कारी हार है।  यह मेरे गले में ही हार की तरह रहता है।  अन्य कोई पहने तो सर्प बन जाता है।  

बहू ने हार अपने गले में पहन कर दिखाया। इस बार  हार वैसा ही रहा।  राजा ने यह देखकर बहू को हार वापिस कर दिया, साथ ही बहुत सारा धन भी उपहार में दिया।  

अब तो उसके सुख-सौभाग्य से अन्य बहुएँ जलने लगती है, और उसके पति को उसके विरुद्ध कर देती है।   छोटी बहू का पति उससे पूछने लगा कि बता वह कौन है जो तुझे इतना धन दे रहा है।  

छोटी बहू अपने सर्प भाई को याद करने लगी।  सर्प तुरन्त वहां पहुँच गया और अपनी असलियत उसने सभी को बता दी और बोला जो भी मेरी बहन के साथ दुर्व्यवहार करेगा उसे मैं जीवित नही छोडूंगा।  

पति ने जब जाना कि वह एक सर्प है, तो उसने अपनी पत्नी और सर्प से क्षमा मांगी और सर्प का आदर सत्कार किया।  सभी परिवार वाले बहू का सम्मान करने लगे।  तभी से नाग पंचमी के दिन सभी स्त्रियां नागों को भाई रूप में पूजती है। 

नाग पंचमी पूजा विधि

इस दिन नाग पूजन करने के विधान में अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्नता पाई जाती है।  किंतु सभी स्थानो पर इस दिन प्रथम पूजन भगवान शिव का ही होता है।  क्योंकि नाग उनके ही गण कहलाते है। 

कुछ लोग इस दिन पूजा के लिये घर  में दीवार के साथ का एक स्थान साफ कर के गोबर से लीप लेते है।

फिर उस स्थान पर चौक पूर लेते है।  फिर उस पर पाट रख कर गोबर या मिट्टी से शिव तथा नाग देवता की सांकेतिक प्रतिमा बना कर बिठा देते है।

कुछ लोग शिव जी तथा नागो की आकृति दीवार पर गोबर से या गेरू से बनाते है। 

कुछ लोग मुख्य द्वार के दोनो और नागों की आकृति बना कर पूजा करते है। 

चाहे जिस तरह से भी नागो की आकृति बनाई जाए, लेकिन आठ नाग आकृति अवश्य बनानी चाहियें। क्योंकि भविष्योत्तर पुराण में आठ नागों का उल्लेख किया गया है।

इस दिन भोग के लिये खीर बनाए।

सबसे पहले भगवान शिव को दुग्धाभिषेक करें। 

फिर नागों की प्रतिमाओं को दुग्ध स्नान करायें।

धूप दीप पुष्प आदि से भगवान शिव की तथा उनके नागों की पूजा करें।

नागों को सुगंध अति प्रिय होती है इसलिये इन्हें चन्दन भी अर्पित किया जाता है।

नाग पंचमी की व्रत कथा पढ़े।

फिर भगवान शिव तथा नाग गणों को खीर का भोग लगाएं।

इस दिन अधिकतर लोग शिव मन्दिर जा कर पहले भगवान शिव की पूजा करते है, फिर घर आकर नागों की पूजा शुरु करते है। 

परंतु यदि मन्दिर जाना सम्भव न हो तो घर पर ही शिव पूजन कर सकते है।

जो लोग गाँवों या जंगलो के आस-पास रहते है।  वह सांपों की बाम्बियों की पूजा करते है तथा किसी पात्र में मीठा दूध या खीर सांप की बाम्बियों के पास रख देते है।  इस तरह प्रकृति से जुड़े लोग आज भी असली नागों की ही पूजा करते है।

कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है, तथा सन्ध्याकाल में भोजन ग्रहण करते है।  इस दिन खुदाई करना निषेध माना जाता है।





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