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गुरु पूर्णिमा पर जानिए जीवन में गुरु का मह्त्व

गुरु का स्थान हमारी संस्कृति में ईश्वर से भी ऊंचा बताया गया है। क्योंकि गुरु ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाता है।   इसलिये गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समतुल्य रखा गया है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:,
गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नम:।।

गुरु पूर्णिमा  गुरु को सम्मान देने का एक विशेष दिन है।  गुरु पूर्णिमा प्रतिवर्ष आषाड़ी पूर्णिमा को मनाई जाती है।  यह दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म दिवस है।  

महर्षि वेद व्यास को जगत गुरु माना जाता है।  इसलिये इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहते है।  इस दिन महर्षि वेद व्यास की पूजा की जाती है तथा अपने गुरु की पूजा करने का भी  प्रचलन है।  

जिनके कोई गुरु न हो वह केवल वेद व्यास जी की ही पूजा कर लेते है।





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वेद व्यास कौन थे?

वेद व्यास का प्रारम्भिक नाम कृष्ण द्वैपायन था।  वह पराशर ऋषि के पुत्र थे। वह महान धर्मज्ञ, ब्रह्मज्ञानी तथा त्रिकाल दर्शी थे।  

वह  यह जानते थे कि कलयुग में मानव की बुद्धि और स्मरण शक्ति  सतयुग के प्राणियों जैसी विस्तृत नही बल्कि बहुत सीमित होगी।  

इसलिये वेद्ज्ञान को पढ़ना, समझना और पढ़े हुए को याद रखना कलयुग के मनुष्यों के  लिये बहुत कठिन कार्य होगा।  

इसलिये उन्होने वेद को चार भागो में विभक्त कर दिया।  ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्व वेद।  

वेदों के विभाजन के कारण उनका नाम वेद व्यास पड़  गया तथा उन्हें कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास कहा जाने लगा।  बाद में वह केवल वेद व्यास नाम से प्रसिद्ध हुए।  

महाभारत की रचना भी उन्होने ही की थी। श्रीमद्भागवत गीता भी महाभारत की कथा में ही सम्मिलित है।  परंतु यह स्वयं भगवान कृष्ण के मुख की वाणी है।  इसलिये इसे एक अलग ग्रंथ का रूप दिया गया।  

उन्होने सरल भाषा में  18 पुराणो की रचना की, ताकि  साधारण जन मानस भी धर्म ज्ञान प्राप्त कर सके।  इसीलिये उन्हें जगत गुरु माना जाता है।

गुरु पूर्णिमा का मह्त्व

गुरु पूर्णिमा को हिन्दू, बौद्ध तथा जैन धर्म के अनुयायी बहुत ही श्रद्धा भाव से मनाते है।

हिन्दू धर्म में गुरू पूर्णिमा

हिन्दू धर्म में यह दिन महर्षि वेद व्यास के  जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

वेद व्यास के  सभी शिष्यों में से पांच विद्वान शिष्यों ने सर्व प्रथम गुर वेद व्यास जी के जन्म दिवस पर उनकी पूजा प्रारंभ की थी।  

उनके नाम है - पैल, जैमिन, वैशम्पायन, सुमन्तु मुनि तथा रोम हर्षण।  तभी से प्रतिवर्ष इस दिन गुरु  पूजा  करने का विधान शुरु हुआ। 

बौद्ध धर्म में गुरू पूर्णिमा

बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ने आषाड़ी पूर्णिमा के दिन ही वाराणसी के सारनाथ में अपने प्रथम पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिये थे।  

उनके प्रथम पांच शिष्यों के नाम थे कौन्डिण्य, अस्सान्गी, महानामा, वप्पा तथा भादिया।   इसलिये बौद्ध धर्मावलंबियों के लिये भी यह दिन विशेष है।  वह इसे बौद्ध संघ दिवस के रूप में मनाते है।

जैन धर्म में गुरू पूर्णिमा

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी इसी दिन को अपने प्रथम शिष्य गौतम गणधर को उपदेश देने के लिये चुना था।  इसलिये यह दिन जैन धर्मावलंबियों के लिये भी उत्सव का दिवस होता है।

गुरु का मह्त्व

गुरु का हमारे जीवन में बहुत मह्त्व होता है।  गुरु का अर्थ केवल आध्यात्मिक मार्ग दिखाने वाले गुरु से नही है।  गुरु का  अर्थ है ज्ञाता या शिक्षक।  

जो भी किसी विशेष कार्य का अच्छा ज्ञाता हो उसे उस कार्य का पंडित या ज्ञाता कहा जाता है।  तथा जब वह अपने ज्ञान को दूसरों को बांटता है तो वह गुरु कहलाता है।   

एक बालक की प्रथम गुरु उसकी माता होती है तथा दूसरे गुरु उसके पिता होते है तथा तीसरे गुरु उसे शिक्षित करने वाले गुरु होते है। 

प्राचीन काल में बच्चे गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करते थे।   वहां उन्हें  अन्य विषयों के साथ ही अध्यात्म की शिक्षा भी दी जाती थी, योग की शिक्षा भी दी जाती थी तथा उन्हें पूरी तरह एक कुशल जीवन जीने के योग्य बनाया जाता था।  

अर्थात वही गुरु बालक का चरित्र निर्माण भी करते थे तथा वही गुरु जीवन भर उनके मार्ग दर्शक भी  बने रहते थे।  इसलिये  हमारे शास्त्रों में गुरु को सदैव पूजनीय बताया गया है।  

आजकल के समय में परिस्थितियाँ काफी बदल गई है।  आज की शिक्षा पद्धति में बच्चो को जो शिक्षा दी जाती है, वह केवल उन्हें धनार्जन करने में सहायता कर सकती है।  

पर धन के अलावा जीवन में कुछ और भी आवश्यक बातें होती है जैसे कि  रिश्ते, मानवता, नैतिकता, करुणा, दया, संतुष्टि आदि जो कि इस शिक्षा पद्धति में गौढ़ हो गई है।  

इसीलिये आजकल के मनुष्यों के जीवन में एक ऐसा समय भी आता है जब भौतिकता के पीछे भागते-भागते मनुष्य थक जाता है, और फिर उसके अंदर आध्यात्म की प्यास जाग्रत हो उठती है।  

वह स्वयं को कमजोर महसूस करने लगता है और फिर उसे एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता महसूस  होती है।  

कई बार निर्णय क्षमता की कमी के कारण कुछ लोग दूसरों की बात मान कर किसी को भी गुरु मान लेते है।  इस तरह किसी को भी गुरु मान कर लोग कई बार ठगे भी जाते है।  

दोष हमारी आधुनिक शिक्षा पद्धति में है जो मनुष्य को सम्पूर्ण मानव नही बनाती।  फिर भी सबसे उचित है कि अपने गुरु का स्थान सर्वप्रथम अपने माता-पिता को दें।  

उनसे अधिक अच्छा मार्ग दर्शन संसार में कोई और नही कर सकता।  जब आप स्कूल में या कॉलेज में पड़ते हो तो अपने अध्यापक को सम्मान दें। 
 
फिर भी जीवन में यदि कभी आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता महसूस हो तो अपनी आँखें और दिमाग को खुला रख कर ही यह निर्णय लें।  

आप किसी धार्मिक पुस्तक को भी अपना गुरु मान सकते है या अपने इष्ट को भी गुरु मान सकते है।

यह सत्य है कि यदि  सच्चा गुरु मिल जाए, तो जीवन धन्य हो जाता है।  यह भी आवश्यक है कि  शिष्य के मन में भी गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा हो तभी उनका कल्याण सम्भव है। 

गुरु पूर्णिमा कैसे मनाते है?

इस दिन सुबह अपने इष्ट की पूजा करें। तथा वेद व्यास जी की पूजा करें। यदि आपके कोई गुरु है तो उनकी तस्वीर रख कर उनकी भी पूजा करें।  

यदि आप किसी धर्म ग्रंथ को गुरु मानते है तो उसे पूजा स्थल पर रखकर उसकी पूजा करें।

यदि आप अपने गुरु के पास जा सकते है तो उनके पास जा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें, तथा उन्हें कुछ उपहार भेंट करें। 

साधारणतः यह पर्व आजकल लोगो को याद भी नही रहता।  इसकी परम्परा केवल देश के गिने-चुने गुरुकुलों में तथा साधु संतों के मठों तक ही सीमित रह  गई है।   

इसके अलावा धर्म गुरुओं के आश्रमों में भी इस दिन उनके शिष्य यह परम्परा निभाते है।  

अध्यापक दिवस को इस पर्व का आधुनिक रूप कहा जा सकता है।  स्कूलो और कॉलेजो में गुरु पर्व के दिन न सही पर अध्यापक दिवस के दिन शिष्य अपने गुरुओं को सम्मान और उपहार देते है।  

भले ही आधुनिक काल में गुरु और शिष्यों के रिश्तों में काफी बदलाव आ चुके है,  पर फिर भी एक बात आज भी उतनी ही सत्य है जितनी पहले थी।  

जीवन में प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने के लिये यह आवश्यक है कि जिस व्यक्ति की मेहनत से आप को शिक्षित होने का लाभ मिला है, और आप प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ पा रहे है,  उसके प्रति अपनी कृतज्ञता को कभी न छोड़ें।  





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