दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। विश्वकर्मा को संसार की सभी वस्तुओं का रचयिता माना जाता है। हमारा जीवन विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के बिना बहुत कष्ट दायक होता है।
विश्वकर्मा अर्थात विश्व के रचनाकार। उन्हें शिल्प और वास्तु के देवता भी कहा जाता है। वह वस्तुओं का निर्माण करने की कला के देवता है।
दुनिया में सभी लोग किसी न किसी वस्तु का प्रयोग करके ही अपना कार्य करते है। इस लिये वस्तुओं का निर्माण करने वाले तथा वस्तुओं का उपयोग करने वाले, सभी लोग विश्वकर्मा जयंती के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है।
विश्वकर्मा के सम्मान में 17 सितम्बर को कन्या संक्रांति के दिन श्रम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। लेकिन यह विश्वकर्मा का जयंती दिवस नही है। विश्वकर्मा पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही करनी चाहिएं।
इसी दिन संध्याकाल में गोवर्धन पूजा भी की जाती है।
विश्वकर्मा कौन थे?
पौराणिक कथाओं के अनुसार विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के वंशज है। ब्रह्मा जी के पुत्रों में से धर्म नामक एक पुत्र थे। धर्म का विवाह वस्तु नामक स्त्री से हुआ।
उनके वास्तु नामक एक पुत्र हुए। वास्तुदेव का विवाह अन्गिरसी नामक स्त्री से हुआ। वास्तुदेव और उनकी पत्नी अन्गिरसी से विश्वकर्मा की उत्पत्ति हुई थी।
विश्वकर्मा पुराण के अनुसार भगवान विश्वकर्मा के पाँच स्वरूपों का वर्णन मिलता है।
विराट विश्वकर्मा - इन्हें सृष्टि का रचयिता माना जाता है
धर्मवंशी विश्वकर्मा - यह ब्रह्मा पुत्र धर्म के वंशज है
अन्गिरावंशी विश्वकर्मा - महर्षि अन्गिरा की पुत्री तथा बृहस्पति की बहन भुवना और महर्षि प्रभास की संतान
सुधन्वा विश्वकर्मा - महर्षि अथवि के पुत्र
भृगुवंशी विश्वकर्मा - शुक्राचार्य के पौत्र
पौराणिक कथाओं में उनके विभिन्न रूपों का वर्णन मिलता है। अनेको कथाओं में उनके द्विभुज, चतुर्भूज, दश भुज तथा एक मुखी, चतुर्मुखी तथा पंचमुखी होने का वर्णन मिलता है।
वह देवताओं के शिल्पकार और वास्तुकार है। उन्हें शिल्प कला का देवता माना जाता है। उन्होने ही देवताओं के अद्भुत नगरों यम लोक, इन्द्रलोक, कुबेर लोक, वरुण लोक, गन्धर्व लोक, स्वर्गलोक, शिव लोक आदि का निर्माण किया था।
रावण की अद्भुत सोने की लंका और पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। कृष्ण की अद्भुत जलासीन द्वारिका नगरी का निर्माण और पांडवों के आश्चर्यजनक इन्द्रप्रस्थ का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।
भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का चक्र, यमराज की गदा, इन्द्र का वज्र तथा सभी देवताओं के अस्त्र शस्त्र भी उन्ही के द्वारा निर्मित है।
जगन्नाथ पुरि में स्थापित भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ भी विश्वकर्मा द्वारा निर्मित है।
विश्वकर्मा जयंती कैसे मनाये?
इस दिन हर प्रकार के यंत्रों और उपकरणो की पूजा की जाती है। सभी लोग अपने कार्य में किसी न किसी प्रकार के यंत्र या उपकरण का प्रयोग अवश्य करते है।
हम जिन भी यंत्रों और उपकरणो का प्रयोग रोज़ करते है, आज के दिन हम उन सभी की पूजा करते है और आज के दिन उन यंत्रो से कार्य नही लेते। इस प्रकार हम उन यंत्रों को सम्मान देते है जिनसे हम रोज़ अपने कार्य पूरे करते है।
यह पर्व हमें अपने उपकरणो का और अपने कार्य का सम्मान करना सिखाता है, चाहे हमारा काम छोटा हो या बड़ा हमें अपने कार्य का सम्मान करना चाहिए।
मजदूर इस दिन कुदाल और खुरपी की पूजा करते है, किसान हल की, दुकानदार तराजू की पूजा करते है, चालक अपनी गाड़ियों की पूजा करते है चाहे वह रिक्शा चालक हो या बस चालक।
इसके अलावा लोग अपने निजी वाहनो की भी पूजा करते है। तकनीकी क्षेत्र के लोग भी अपने कार्य से जुड़े हुए यंत्रों और मशीनो की पूजा करते है।
विश्वकर्मा पूजा विधि
विश्वकर्मा पूजा सुबह के समय होती है।
सुबह घर को स्वच्छ करके तथा स्नानादि से निवृत्त होकर
पूजा प्रारंभ करें।
पूजा में पति और पत्नी दोनो को बैठना चाहिएं।
एक लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाये। उस पर भगवान विश्वकर्मा जी का चित्र स्थापित करें।
फिर जिस यंत्र या उपकरण का आप प्रयोग करते है, उसे भी भली प्रकार स्वच्छ कर लें, और चित्र के पास रख दें।
चौकी के सामने अक्षत से एक अष्ट दल कमल बनाएं।
उस पर एक जल से भरा कलश रखें। कलश तांबे, पीतल, कांसे या मिट्टी का ही रखे।
कलश में एक सिक्का तथा एक सुपारी डालें।
पति अपनी पत्नी को कलावा बांधे तथा घर के अन्य सदस्यों को भी बांधे। फिर पत्नी द्वारा अपने हाथ में कलावा बन्धवाये।
हाथों में अक्षत लेकर पहले भगवान विष्णु का ध्यान करें फिर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें।
उसके बाद अक्षत को चारो ओर छिडक दें।
फिर भगवान विश्वकर्मा को हल्दी का तिलक लगायें।
कलश पर हल्दी से स्वास्तिक बनाएं।
भगवान विश्वकर्मा सफेद या पीले पुष्प अर्पित करें ।
उनके चित्र के सम्मुख धूप और दीप प्रज्ज्वलित करें।
भगवान विश्वकर्मा के मन्त्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
भगवान विश्वकर्मा का मन्त्र निम्नलिखित है:-
ऊँ आधार शक्तपे नम: ऊँ कूमयि नम: ऊँ अनंतं नम: पृथिव्यै नम:।
फिर भगवान विश्वकर्मा को फल, मेवा, मिष्ठान आदि का भोग लगायें, तथा उनसे अपने कार्य में कुशल होने का आशीर्वाद मांगे।
इसके बाद अपने यंत्रों और उपकरणो की भी सम्मान पूर्वक तिलक, धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करें।
इस दिन घर में हवन का आयोजन करना अति उत्तम होता है।
मान्यता है कि इस दिन यंत्रो की पूजा करने से वह लम्बे समय तक सुचारु रूप से चलते रहेंगे, तथा हमारे कार्य में हमारा साथ निभाते रहेंगे।
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