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भगवान शिव के 19 मुख्य अवतार

भगवान शिव के अनेको अवतार है।  जिनमें से 19 मुख्य अवतारों का संक्षिप्त विवरण यहाँ दिया गया है।




shiv avtar






1. वीरभद्र

जब माता सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ के कुंड में कूद कर  आत्मदाह कर लिया था।  तब चारो ओर हाहाकार मच गया।  

भगवान शिव को यह घटना पता चली तो क्रोध के वेग में आकर उन्होने अपने बालो की एक जटा उखाड़ कर पर्वत पर पटक कर मारी। उसी जटा से वीरभद्र की उत्पत्ति हुई।  

वीरभद्र ने दक्ष के राज्य में चारो ओर विनाश करना आरम्भ कर दिया।  उसके यज्ञ को नष्ट कर दिया और उसकी सैना को भी समाप्त कर दिया।  

फिर दक्ष का सिर काट कर वीरभद्र अवतार शान्त हुआ।  दक्ष ने अपनी भूल के लिये भगवान शिव से क्षमा माँगी।  फिर भगवान शिव ने उसके धड़ पर बकरे की गर्दन जोड़ कर उसे जीवित कर दिया और उसे अपने गणों में सम्मिलित कर लिया।

2. पिप्प्लाद

पिप्प्लाद ऋषि दधीचि के पुत्र थे।   ऋषि दधीचि की अस्थियों से बने वज्र से ही वृत्तासुर की मृत्यु हो सकती थी।   इसलिये ऋषि दधीचि ने वृत्तासुर के अंत के लिये अपने प्राणों का त्याग किया था। 

उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी सुवर्चा भी अपने प्राण त्याग करना चाहती थी परन्तु देवताओं ने उससे कहा कि उसके गर्भ में जो बालक पल रहा है वह भगवान शिव का रूप है। 

कुछ समय बाद  सुवर्चा ने एक पीपल के नीचे एक बालक को जन्म दिया।  पीपल के नीचे उत्पन्न होने के कारण उस बालक का नाम पिप्प्लाद पड़ा।  

उसे जन्म देकर सुवर्चा ने प्राण त्याग कर दिये।  पिप्प्लाद ने एक बार देवताओं से पूछा कि उसके उत्पन्न होते ही उसे माता पिता का वियोग क्यों सहना पड़ा।  

देवताओं ने कहा कि उस के ऊपर शनि की वक्रि दृष्टि थी। यह सुनकर पिप्प्लाद ने अपना ब्रह्मदंड उठाया और शनि को पूरे ब्रह्मांड में ढूंढने निकल पड़े।  

जैसे ही उन्हें शनि दिखाई दिये, उन्होने शनि के पैरो पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया।  जिससे शनि लंगड़े हो गए।  फिर शनि देव ने पिप्प्लाद से क्षमा माँगी।  

पिप्प्लाद ने शनि से वचन लिया कि वह कभी भी अपनी कुदृष्टि 16 वर्ष से छोटे बालको पर नही डालेंगे।  शनि ने उन्हें वचन दिया। 

जिन्हें भी शनि ग्रह की समस्या होती है, पिप्प्लाद अवतार की पूजा करने से उनकी समस्या दूर होती है।

3. नंदी

नंदी शिलाद ऋषि के पुत्र थे।  शिलाद ऋषि को उनकी कठिन तपस्या के फल स्वरूप भगवान शिव ने उन्हें नंदी के रूप में एक पुत्र प्रदान किया।  

पर एक बार शिलाद ऋषि को यह ज्ञात हुआ कि उनका पुत्र अल्पायु है तो वह बहुत दुखी हुए।  जब नंदी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होने अपने पिता को चिंतामुक्त होने का उपदेश दिया और फिर वह भगवान शिव की तपस्या करने चले गए।  

भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और उनसे वरदान मांगने को कहा।  नंदी ने कहा की मैं अपने शेष जीवन में आपकी सेवा करना चाहता हूँ।  

भगवान शिव ने उन्हें अपने गणो में सम्मिलित कर लिया।  और वह बैल रूप में शिव के वाहन बन गए।

4. भैरव

भैरव को शिव पुराण में भगवान शिव का पूर्ण अवतार  बताया गया है। यह शिव का तामसिक रूप है। एक बार  शिव की लीला से एक प्रकाश पुंज उत्पन्न हो गया जो कि एक भयंकर पुरुष में परिवर्तित हो गया।  

उसे देखकर ब्रह्मा जी ने अहंकार वश शिव से कहा, कि तुम मेरी शरण में आ जाओ।  शिव ने  उस भयंकर पुरुष से कहा कि आप महाशक्ति शाली काल भैरव है।  काल भी आप के सम्मुख तुच्छ है। 

यह सुनकर भैरव ने ब्रह्मा जी का पाँचवा सिर अपने नाखून से काट दिया।

उसके बाद भगवान शिव की आज्ञा से भैरव ब्रह्म हत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिये ब्रह्मा जी के सिर को हाथ में लेकर  सभी तीर्थों को गए।  

परंतु वह ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त नही हो पा रहे थे। अंत में वह काशी आये। काशी आकर वह इस पाप से मुक्त हो पाए।  फिर वह काशी में ही निवास करने लगे।

5. अश्वत्थामा

अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे।  द्रोणाचार्य ने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर के उन्हें प्रसन्न किया था।  तथा वरदान में उन्होने शिव को  पुत्र के रूप में मांगा था।  इसलिये भगवान शिव ने द्रोणाचार्य के पुत्र के रूप में अवतार लिया।  

अश्वत्थामा को शिव का अन्शावतार माना जाता है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार अश्वत्थामा चिरंजीवी है।  तथा ब्रह्मांड की आयु पूरी होने तक पृथ्वी पर ही सशरीर रहेंगे। 

6. शरभावतार

शिव पुराण के अनुसार शरभ अवतार एक आठ पैर वाला हिरन है जिसका आधा शरीर पक्षी का है।  वह सहस्त्र बाहु है।  उनके पंजे सिंह के है तथा शीश पर जटायें और चन्द्रमा विद्यमान है।  

कहा जाता है कि  जब भगवान विष्णु ने नर्सिंंह अवतार लिया था तब हिरण्यकश्यप को मारने के पश्चात उनका क्रोध शान्त नही हो रहा था।  

तब शिव भगवान  शरभ अवतार धारण कर के नृसिँह अवतार के पास जाते है और उन्हें शान्त करने के लिये उनकी स्तुति करते है, परंतु वह शान्त नही होते है, तब शरभ अवतार नृसिँह को अपनी पूंछ में लपेट कर आकाश में ले जाते है।  

फिर नृसिँह अवतार का क्रोध शान्त हो जाता है।  तथा वह भी शरभ अवतार की स्तुति करते है।

7. गृहपति

पौराणिक कथाओं के अनुसार धरमपुर नामक एक नगर था।  वहाँ एक विश्वानर नामक ऋषि रहते थे।  उनकी पत्नी का नाम शुचिष्मति था।  उनकी कोई संतान नही थी।   

विश्वानर ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से काशी में भगवान शिव के वीरेश लिंग की उपासना प्रारंभ कर दी।  दीर्घकाल तक उनकी अटूट श्रद्धा को देखकर भगवान शिव ने एक दिन शिवलिंग से बालक रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिये।  

विश्वानर ने बालक को पहचान लिया।  उन्होने बालक रूपी शिव की पूजा की।  शिव भगवान ने उन्हें वरदान मांगने को कहा तो विश्वानर ने शिव जी को पुत्र रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा।  

भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया।  कुछ समय बाद उन्हें एक विलक्षण पुत्र की प्राप्ति हुई।   विश्वानर के पुत्र को ब्रह्मा जी ने गृह पति नाम दिया।

8. दुर्वासा

दुर्वासा ऋषि  महर्षि अत्रि तथा देवी अनुसुइया के पुत्र थे।  उन्होने त्रिदेवों की तपस्या करके उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा था।  

इसीलिये त्रिदेवों ने उनके पुत्र के रूप में उत्पन्न होने की भविष्यवाणी की थी।   महर्षि अत्रि तथा माता अनुसुइया के तीन पुत्र हुए।  दत्तात्रेय, दुर्वासा तथा चन्द्रमा।  

कुछ मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय ही त्रिदेवों के अवतार है।  तथा कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय भगवान विष्णु के अन्शावतार थे, दुर्वासा भगवान शिव के अन्शावतार थे तथा चन्द्रमा भगवान विष्णु के अन्शावतार थे। 

9. हनुमान

हनुमान जी माता अन्जनी तथा  वानर राज केसरी के पुत्र थे।  एक बार एक जंगली हाथी हिंसक हो गया तथा उससे बहुत सारे ऋषियों के प्राण बचाने हेतु वानर राज केसरी को उसका वध करना पड़ा।  

ऋषियों ने प्रसन्न हो कर वानर राज से मन्वान्छित वर मांगने को कहा।  वानर राज ने एक रुद्र के समान तेजस्वी तथा वायु के समान तीव्र पुत्र का वरदान मांगा।  ऋषियों ने वरदान दे दिया।  

इस प्रकार भगवान शिव ने श्री राम के सानिध्य और सहायता हेतु लीला रच कर हनुमान के रूप में अवतार लिया।  हनुमान जी को शिव का ग्यारहवां रुद्र अवतार कहा जाता है।


10. वृषभ अवतार

शिव पुराण की एक कथा के अनुसार सागर मंथन के पश्चात सभी देवता अमृतपान करके अमर हो गए थे।  उन्होने असुरों पर आक्रमण कर दिया। तब सभी असुर पाताल में जा छुपे।  

जब देवता उन्हें ढूंढ नही पाए तो भगवान विष्णु वहाँ पहुँचे तथा सभी असुरों का वध कर दिया।  असुरों ने वहां बहुत सी अप्सराओं को बंधक बना कर रखा हुआ था।  
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विष्णु जी ने उन्हें स्वतंत्र कर दिया।  परंतु अप्सराओं ने पति रूप में विष्णु जी का वरण कर लिया तथा पाताल में रुकने के लिये आग्रह करने लगीं।  विष्णु जी कुछ समय वहां रुक गए।  

उन अप्सराओं से विष्णु जी के पुत्र उत्पन्न हुए जो कि आसुरी शक्तियों वाले थे।  उन असुरों ने तीनो लोको में आतंक मचाना शुरु कर दिया।  फिर भगवान शिव ने वृषभ का रूप बनाकर  उन असुरों का अंत किया।

11. यतिनाथ अवतार

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार अर्बुदाचल पर्वत के पास एक आहुक नामक भील और उसकी पत्नी आहुका नामक भीलनी रहते थे।  वह दोनो शिव के परम भक्त थे।  

एक बार भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिये एक योगी का रूप बनाया और उनकी झोंपड़ी के द्वार पर आ खड़े हुए, तथा कहने लगे कि कृप्या मुझे आज रात के लिये अपने झोंपड़े में शरण दे दो।  मैं सुबह होते ही चला जाऊंगा।  

उनकी झोंपड़ी बहुत छोटी थी उसमें तीन लोगो का रहना सम्भव नही था। इसलिये भील ने उन यतिनाथ से कहा कि वह झोंपड़ी में विश्राम करें तथा वह स्वयं अपने धनुष बाण लेकर झोंपड़ी के बाहर पहरा देने लगा।  

भोर होने पर भीलनी ने झोंपड़ी से बाहर आकर देखा कि भील का मृत शव वहां पड़ा है।  उसे रात को जंगली पशुओं ने मार डाला था।  वह बहुत दुखी हुई परंतु उसने इस घटना के लिये यतिनाथ को आरोपित नही किया।  

उसने यतिनाथ से कहा कि कृप्या मेरे पति की चिता तैयार करने में मेरी सहायता करें।  फिर वह अपने पति के साथ उसकी चिता में सती होने के लिये बैठ जाती है।  

भगवान शिव उसे दर्शन देते है तथा उन दोनो को अगले जन्म में सुखी जीवन का वरदान देते है।  यही दोनो नल दमयंती के रूप में पुनर्जन्म लेकर फिर से एक दूसरे को प्राप्त करते है।

12. कृष्णदर्शन अवतार

इस अवतार की पौराणिक कथा के अनुसार राजा श्राद्ध देव के पुत्र नभग अपनी शिक्षा पूरी करने के लिये गुरुकुल में रह रहे थे।  जब वह वापिस आये तो उन्होने देखा कि उनके भाईयों ने सारी सम्पत्ति आपस में बाँट ली है और नभग के लिये कुछ भी नही छोड़ा है।  नभग ने अपने पिता से यह बात कही।  

श्राद्ध देव ने नभग से कहा कि एक स्थान पर ब्राह्मण यज्ञ कर रहे है।  तुम उनके यज्ञ को पूरा कराने में सहायता करों।  वह सूक्त के उच्चारण ठीक से नही कर पा रहे है।  

यज्ञ के उपरांत वह यज्ञ से बचा हुआ शेष धन तुम्हें दे जाएंगे इस प्रकार तुम्हारी आजीविका का प्रबंध हो जायेगा। नभग ने वहाँ जाकर ब्राह्मणो का यज्ञ विधि विधान से सम्पूर्ण करवा दिया।  

ब्राह्मणो ने यज्ञ का बचा हुआ सारा धन नभग को दे दिया और वह स्वर्ग चले गए।  तभी भगवान शिव कृष्ण दर्शन अवतार में नभग के पास आये।  इस रूप में वह कृष्ण वर्ण के तथा कृष्ण नेत्रों के थे।  

उन्होने कहा कि यह धन मेरा है।  नभग ने कहा कि ब्राह्मण तो मुझे देकर गए है इसलिये यह धन मेरा है।  परंतु कृष्ण दर्शन नही माने।  फिर नभग अपने पिता को बुला कर लाये और निर्णय करने को कहा।  

श्राद्ध देव भगवान शिव को तुरंत पहचान गए और नभग से बोले कि वह सही कह रहे है।  यज्ञ से बचा धन उन्ही का है।  यह स्वयं शिव है।  यह सुनकर नभग ने कृष्ण दर्शन अवतार से क्षमा माँगी तथा सारा धन उनको अर्पित कर दिया।  

भगवान शिव ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें वह धन लौटा दिया।  तथा उन्हें  मोक्ष का वरदान दिया।

13. अवधूत अवतार

अवधूत अवतार की कथा के अनुसार एक बार देवराज इन्द्र के मन में देवो का राजा होने का अहंकार उत्पन्न हो गया।  उनके अहंकार को नष्ट करने के लिये भगवान ने अवधूत अर्थात एक योगी वैरागी जैसा रूप धारण किया।  

एक बार इन्द्र, शिव जी से मिलने कैलाश पर्वत पर जा रहे थे।   भगवान शिव अवधूत रूप में इन्द्र के मार्ग में खड़े हो गए।  इन्द्र ने उन्हें मार्ग छोड़ने को कहा, परंतु उन्होने मार्ग नही छोड़ा।  

इन्द्र को उनपर क्रोध आ गया।  वह अपने वज्र से उन पर प्रहार करने को तत्पर हो गए।  पर जैसे ही उन्होने वज्र उठाया, अवधूत ने श्राप देकर उनका हाथ वहीं जड़ कर दिया।  

तब बृहस्पति देव ने भगवान शिव को पहचान लिया तथा उनकी स्तुति की।  इन्द्र ने अपने अपराध के लिये भगवान शिव से क्षमा याचना की।  भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा उन्हें श्रापमुक्त कर दिया।

14. भिक्षुवर्य अवतार

एक समय विदर्भ नामक राज्य में  राजा सत्यरथ का शासन था।  वह एक युद्ध के दौरान शत्रुओं द्वारा मारा गया।  उसकी गर्भवती पत्नी किसी प्रकार अपनी जान बचाकर जंगलों में छुपकर रहने लगी।  वही पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया।  

एक दिन वह तालाब पर जल पीने गई और वहां वह दुर्भाग्य से एक घड़ियाल का आहार बन गई।  वह बालक अनाथ हो गया।  तब भगवान शिव ने एक भिक्षुक का रूप बनाया तथा एक भिक्षुणी को वह बालक सौंप दिया।  उन्होने  उसे बताया कि वह बालक राजकुमार है। इसलिये वह उसका पालन करे।  एक दिन इसी बालक को उस राज्य का राजा बनना है।  

भिक्षुणी ने अपना कर्तव्य समझ कर उसका पालन पोषण किया।  तथा भगवान शिव की कृपा से वह बालक बड़ा हो कर वीरता पूर्वक अपना खोया हुआ राज्य शत्रुओं से पुन: प्राप्त करता है। 

15. सुरेश्वर अवतार

यह एक उपमन्यु नामक बालक की कथा है, जिसे दूध पीना बहुत पसंद था और वह सदैव दूध की इच्छा किया करता था उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी।  

वह अपनी माता के साथ अपने मामा के घर रहता था।  माँ ने एक दिन गरीबी और अपनी विवशता से दुखी होकर उससे कहा कि जो भी माँगना है भगवान शिव से मांग, वह तेरी सब इच्छा पूरी कर सकते है। 

बालक यह सुनकर जंगल में जाकर भगवान शिव का तप करने बैठ गया।  भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी परीक्षा लेने के लिये सुरेश्वर अवतार में उसके समीप आते है।  

वह बालक के सामने शिव की निन्दा करने लगते है।  बालक यह सुनकर क्रोधित हो जाता है और उन पर हाथ उठाने के लिये तैयार हो जाता है।  

तभी भगवान शिव अपने साक्षात रूप में उसे दर्शन देते है।  तथा उस की दूध पीने की बाल हठ  को पूरा करने के लिये उसे एक क्षीर सागर बना कर प्रदान करते है। 

16. किरात अवतार

जब पाण्डव 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वास भोग रहे थे, तब अर्जुन ने कौरवों पर विजय प्राप्त करने के लिये हिमालय पर इन्द्रकील नामक स्थान पर शिव भगवान से पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के लिये तपस्या करनी शुरु कर दी।  

उस स्थान पर एक मूकासुर नामक राक्षस ने आतंक मचा रखा था।  एक बार वह राक्षस  जंगली सूअर का रूप धारण करके अर्जुन  पर आक्रमण करता है।  

अर्जुन उस पर अपना तीर छोड़ देता है।  परंतु वह देखता है कि उसी सूअर को एक और तीर लगा हुआ है।  तभी एक जंगली किरात वहाँ आता है। वह कहता है कि उस सूअर को उसने मारा है।  

अर्जुन उसे सूअर को मारने का श्रेय लेते देखते है तो क्रोधित होकर उससे युद्ध करने लगते है।  पर वह अंत तक भी जीत नही पाते।  

फिर वह शिवलिंग की पूजा करते है और फूलमाला चढ़ाते है।  फिर दुबारा युद्ध के लिये खड़े होते है, पर वह देखते है कि जो माला उन्होने शिवलिंग पर चढाई थी वह उस किरात के गले में पड़ी है।  

अर्जुन तुरंत अपने प्रभु शिव को पहचान जाते है और उनसे क्षमा मांगते है।  शिव भगवान अर्जुन को प्रसन्न होकर अपना पाशुपतास्त्र दे देते है।

17. ब्रह्मचारी अवतार

दक्ष पुत्री माता सती ने आत्म दाह करने के पश्चात हिमाचल की पुत्री पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया था।  

इस जन्म में भी वह शिव भक्ति में लीन रहती थी तथा कौमार्य अवस्था में वह शिव भगवान को पति रूप में प्राप्त करने के लिये उनकी घोर तपस्या में लीन हो गई।  

पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्होने तीन हज़ार वर्ष तक शिव की तपस्या की थी।  भगवान शिव ब्रह्मचारी रूप धारण कर के उनके सम्मुख आते है, और शिव को बुरा-भला कहने लगते है।  

पार्वती उस ब्रह्मचारी पर कुपित हो जाती है।  और उसे वहां से चले जाने को कहती है।  भगवान शिव उनकी अनन्य भक्ति से प्रसन्न हो जाते है और उन्हें अपने साक्षात रूप में दर्शन देते है, तथा पत्नी रूप में उनको स्वीकार करते है।

18. सुनटनर्तक अवतार

भगवान शिव से पार्वती जी आग्रह करती है कि वह उनके माता पिता से उनका हाथ मांगे, तथा रीति पूर्वक विवाह कर के माता पिता के घर से ससम्मान विदा करायें।  

भोले शंकर एक नट का रूप बना कर डमरू बजाते हुए हिमाचल और उनकी पत्नी मैनका के पास पहुँचते है तथा नृत्य करने लगते है।  

हिमाचल राज  उनसे पूछते है कि उन्हें भिक्षा में क्या चाहियें।  शिव जी उनसे पार्वती को मांग लेते है।  वह क्रोधित हो उठते है, तथा इस रिश्ते के लिये मना कर देते है।  

परंतु बाद में जब उन्हें ज्ञात होता है कि वह परम शिव थे, तो वह विवाह के लिये शीघ्र ही तैयार हो जाते है।

19. यक्ष अवतार

सागर मंथन के समय  भगवान शिव ने विष को अपने कण्ठ में समाहित करके पृथ्वी को उस महा तीक्ष्ण विष के अग्नि से बचाया था।  

सागर मंथन के अंत में अमृत प्राप्त हुआ था।  फिर सभी देवता अमृतपान करके बहुत प्रसन्न थे। उन्होने दैत्यों को भी जीत लिया था।  अब उनमें अहंकार उत्पन्न हो गया था।  

उस समय भगवान शिव एक यक्ष का रूप धारण करके देवताओं के सम्मुख आते है, तथा उनके सामने एक तिनका रख देते है।  

यक्ष उन्हें चुनौती देते है कि किसी भी प्रकार से इस तिनके को नष्ट कर के दिखाएं।  सभी देवता उस तिनके को तोड़ने, काटने, जलाने, डुबोने का प्रयास करते है।  परंतु असफल हो जाते है।  

तभी एक आकाशवाणी होती है कि यह यक्ष रूप में महादेव है।  देवताओं को अपनी भूल पर पश्चाताप होता है।  वह अहंकार को त्याग कर भगवान शिव के यक्ष रूप की पूजा-आराधना करते है।





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