शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव के 64 ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे। परंतु केवल 12 ज्योतिर्लिंग ही दर्शनीय है। यह 12 ज्योतिर्लिंग भारत में स्थित है।
अन्य ज्योतिर्लिंगों का पता आजतक किसी को नही चला है। यहाँ भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगो का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
देवी माँ के 51 शक्तिपीठों के नाम
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है। इस क्षेत्र का प्राचीन नाम प्रभास पाटन है। यह मन्दिर वेरावल बन्दर गाह के पास अरब सागर के किनारे पर स्थित है।
इसके पास त्रिवेणी घाट है जो कि हिरण, कपिला तथा सरस्वती नदियों का संगम है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्रथम प्रकट ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इससे जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा भी है।
राजा दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्र देव से करवाया था। परंतु चंद्र देव सबसे अधिक प्रेम रोहिणी को ही करते थे। दक्ष ने इस बात पर क्रुद्ध होकर चंद्र देव को क्षय रोग का श्राप दे दिया।
दक्ष के श्राप के कारण चंद्र देव की कांति प्रतिदिन घटने लगी। फिर चंद्र देव ने भगवान शिव की उपासना शुरु की। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर चंद्र देव को आशीर्वाद दिया।
यद्यपि दक्ष का श्राप पूर्ण रूप से निष्फल नही हो सकता था। इसलिये भगवान शिव ने चन्द्रमा से कहा कि मास के 15 दिन तक तुम्हारी कान्ति क्षीण होगी और फिर अगले 15 दिन तक तुम्हारी कान्ति बढ़ेगी तथा हर पूर्णिमा को तुम पूर्ण कान्तिवान हो जाओगे।
चन्द्र देव को श्राप से मुक्त मिली, इसलिये उन्होने सोमनाथ नाम से ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। सोम चन्द्र का पर्यायवाची शब्द है। इसलिये इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ है। भगवान कृष्ण ने देह त्याग करने के लिये यही स्थान चुना था।
कहा जाता है कि यह सम्पूर्ण मन्दिर पहले स्वर्ण से बना हुआ था। इस कारण महमूद गजनवी तथा अन्य कईं मुगल आक्रमणकारियों ने इस मंदिर को कईं बार लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर डाला।
हिन्दू राजाओं द्वारा इसका बार-बार पुनर्निर्माण होता रहा। अन्तिम बार इसका पुनर्निर्माण स्वतंत्रता के बाद राजा दिग्विजय सिंह द्वारा करवाया गया था। जिसमें सरदार पटेल का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
यह आन्ध्र प्रदेश में श्री शैल नामक पर्वत पर स्थित है। इसके पास कृष्णा नदी बहती है। यह माता पार्वती तथा भगवान शिव दोनो का पूजा स्थल है।
मल्लिका माता पार्वती का नाम है तथा अर्जुन भगवान शिव का नाम है। इन दोनो के नाम का सम्मिलित रूप मल्लिकार्जुन है।
इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा भी है। भगवान गणेश और कार्तिक्य के बीच एक बार अपनी योग्यता प्रकट करने के लिये प्रतियोगिता हुई।
प्रतियोगिता के अनुसार उन्हें विश्व की परिक्रमा लगानी थी। जो भी यह परिक्रमा पहले पूरी कर लेता उसी को योग्यतम घोषित किया जाना था।
कार्तिक्य अपने वाहन मोर पर बैठ कर परिक्रमा लगाने चले गए। परंतु गणेश जी के लिये तो उनके माता पिता ही उनका पूरा संसार थे।
इसलिये उन्होने अपने माता पिता की ही परिक्रमा लगा ली। भगवान शिव और माता पार्वती गणेश जी की मातृ और पितृ भक्ति देख कर बहुत प्रसन्न थे।
जब कार्तिक्य वापिस आते है तो देखते है कि माता पिता ने गणेश को विजयी घोषित कर दिया है। इस बात से वह नाराज़ हो जाते है, तथा क्रौंच पर्वत पर रहने चले जाते है।
उन्हें मनाने के लिये भगवान शिव और माता पार्वती भी वहाँ पहुँच जाते है। कार्तिक्य को जब मालूम होता है, कि उनके माता पिता उन्हें लेने पहुँच चुके है, तो वह वहां से भी चले जाते है।
भगवान शिव और माता पार्वती क्रौंच पर्वत पर ही ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो जाते है। तथा यही ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन नाम से प्रसिद्ध हुआ।
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के पास क्षिप्रा नदी बहती है। इसके पास एक और जलकुण्ड भी है, जिसे कोटि तीर्थ कहते है।
बारहवीं शताब्दी में शम्सूद्दीन अल्तमश ने इस मंदिर को तोड़ डाला था तथा छोटे-छोटे कई मन्दिरों को पूरी तरह मिट्टी में मिला दिया था।
उसने मन्दिर के परिसर में स्थित कोटि तीर्थ जलकुंड में शिवलिंग को फिकवा दिया था। सत्रहवीं शताब्दी में मराठों के शासन काल में राणो जी सिंधिया ने इस मन्दिर की पुनर्स्थापना करवाई तथा उस शिवलिंग को जलकुंड से निकाल कर दुबारा स्थापित करवाया।
यह एकमात्र दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग है। दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है। इसलिये ऐसी मान्यता है, कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने वालो को सभी पापो से मुक्ति मिल जाती है।
उन्हें मृत्यु के उपरांत यमलोक में अपने पापो के दंड नही भुगतने पड़ते, बल्कि सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार संसार के कालचक्र का केंद्र उज्जैन है। इसलिये महाकाल यही उपस्थित रहकर काल को निर्देशित करते है।
भगवान शिव के महाकाल अवतार के साथ एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार अवंतिका नगरी में एक बार एक दूषण नामक राक्षस ने आतंक मचा रखा था।
उसी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। वह महान शिव भक्त था। उस ब्राह्मण ने जब लोगो को उसके अत्याचारों से प्रताड़ित होते देखा तो वह द्रवित हो उठा तथा उसने भगवान शिव की कठोर साधना प्रारंभ कर दी।
उसकी साधना से भगवान शिव प्रसन्न हो गए तथा वह धरती फ़ाड़ कर भयंकर महाकाल रूप में प्रकट हुए। भगवान शिव ने उस दुष्ट राक्षस का नाश करके वहाँ के मनुष्यों की रक्षा की।
उसके बाद सभी अवंतिका पुरि वासियों ने महाकाल से प्रार्थना की, कि अब हमें छोड़ कर न जाएं, सदा के लिये यहीं वास करें।
भगवान महाकाल ने उन सभी की भक्ति भरी विनती स्वीकार कर ली तथा सदा के लिये अवंतिका पुरि में निवास करने का वचन दिया। इन्हें उज्जैन का एकमात्र राजा माना जाता है।
4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर में खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी में मन्धाता द्वीप पर स्थित है। यह द्वीप ऊँ के आकार का है। इसलिये इस स्थान को ओंकारेश्वर कहते है।
यह एक प्राकृतिक रूप से बना हुआ ज्योतिर्लिंग है, जो कि जल से घिरा हुआ है। यहाँ दो ज्योतिर्लिंग है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग।
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन ओंकारेश्वर के बाद किये जाते है। ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्राचीन नाम अमरेश्वर ज्योतिर्लिंग है।
कहा जाता है कि इश्वाकु वंश के महान चक्रवर्ती सम्राट मंधाता ने नर्मदा के किनारे भगवान शिव की कठिन तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया था। तथा भगवान शिव ने इस स्थान पर प्रकट होकर मंधाता को दर्शन दिये थे।
5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह एक बहुत विशेष ज्योतिर्लिंग है। इसकी गणना 12 ज्योतिर्लिंगो में भी होती है, भारत के प्रसिद्ध चार धाम में भी होती है, तथा पंच केदार में भी होती है।
इसके पास मन्दाकिनी नदी बहती है। सर्दियों में इस मन्दिर के कपाट बन्द रहते है। यह अप्रैल से नवम्बर तक दर्शनों के लिये खुलता है।
इसके बारे में मान्यता है कि केदारनाथ पर्वत पर नर-नारायण ने भगवान शिव की तपस्या की थी। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिये। तथा उनकी प्रार्थना पर ज्योतिर्लिंग के रूप में यही स्थापित हो गए।
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
यह महाराष्ट्र के पुणे शहर में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है।इस मन्दिर में स्थापित शिवलिंग का आकार सामान्य शिवलिंग से बहुत अधिक मोटा है। इसलिये इस ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव भी कहते है। इसके निकट भीमा नदी बहती है।
इस ज्योतिर्लिंग से जुडी एक पौराणिक कथा भी है। कुम्भकर्ण की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी कर्कटी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम भीम पड़ा।
भीम को जब यह ज्ञात हुआ कि उसके पिता का वध अयोध्या नरेश श्री राम ने किया है, तो वह प्रतिशोध की आग में जल उठा। उसने घोर तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया तथा अजय होने का वरदान प्राप्त किया।
वरदान मिलने के बाद उसका आतंक पूरी पृथ्वी पर फैलने लगा। उसके आतंक से दुखी होकर सभी देव-गण भगवान शिव से प्रार्थना करते है, कि वह इस दुष्ट राक्षस से सबको मुक्ति दिलाएं।
देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव ने इस स्थान पर प्रकट होकर भीम से युद्ध किया तथा उसको भस्म कर दिया। उसके बाद भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में यहीं स्थापित हो गए।
7. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश की वाराणसी नगरी में स्थित है। वाराणसी का ही एक नाम काशी भी है। इसलिये इसे काशी विश्वनाथ भी कहते है। यह पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है।
काशी भगवान शिव की प्रिय नगरी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है तथा यह भी मान्यता है कि काशी में मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोग सीधे मोक्ष को प्राप्त होते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग माँ आदि शक्ति ने स्वयं स्थापित किया था तथा यहाँ भगवान शिव और आदि शक्ति दोनो निवास करते है।
इस मन्दिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। ग्यारहवीं शताब्दी में मुहम्मद गौरी ने इसे तुड़वाया। लेकिन हिन्दू राजाओं द्वारा इसका पुनर्निर्माण करवा दिया गया।
फिर महमूद शाह ने इसे तुड़वाया। पंद्रहवीं शताब्दी में राजा टोडरमल ने इसे फिर बनवा दिया। 1669 में औरंगजेब ने एक बार फिर इस मन्दिर को ध्वस्त कर के इस पर मस्जिद बनवा दी ताकि दुबारा कोई मन्दिर निर्माण न कर सके। जिसे ज्ञानव्यापी मस्जिद कहा जाता है।
बाद में इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर मस्जिद के साथ ही करवा दिया। मस्जिद के बाहर नंदी की मूर्ति आज भी स्थापित है। जिसे विध्वन्स कारियों ने तोड़ने की उपेक्षा कर दी थी।
उसका मुख ज्ञानव्यापी मस्जिद की ओर है। यह मूर्ति सदियों से इस घटना की सबसे बड़ी साक्षी बन कर वहाँ विराजमान है।
8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह महाराष्ट्र के नासिक में त्र्यंबक ग्राम में ब्रह्मगिरि नामक पर्वत पर स्थित है। इसके समीप गोदावरी नदी का उद्गम है। इसकी पौराणिक कथा के अनुसार इस स्थान पर गौतम ऋषि ने कठिन तपस्या कर के भगवान शिव को प्रसन्न किया था।
भगवान शिव ने इस स्थान पर उन्हें दर्शन दिये थे। गौतम ऋषि ने भगवान शिव से गंगा के प्रकट होने का वरदान मांगा। गंगा वही बहती है जहाँ शिव का निवास हो।
इसलिये भगवान शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हो गए। इस स्थान पर गंगा की धारा धरती से फूट पड़ी। यहाँ अवतरित गंगा को गोदावरी नाम से जाना गया।
इस मंदिर में तीन लिंग है जो कि ब्रह्मा विष्णु और महेश के प्रतीक है। केवल यही एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ त्रिदेव का निवास है।
9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
बिहार का जो क्षेत्र अब झारखण्ड के नाम से जाना जाता है। वहाँ के संथाल परगना में देवघर जिले में यह ज्योतिर्लिंग स्थित है।
इसे कामना लिंग भी कहते है क्योंकि यहाँ भक्तो की सभी कामनाएं पूरी होती है। श्रावण मास में काँवड़ लेकर आने वाले भक्तो की यहाँ भारी भीड़ रहती है।
देवघर में इस ज्योतिर्लिंग के समीप शिव गंगा घाट है जहाँ से जल लेकर भक्त गण शिवलिंग पर चढ़ाते है। देवघर में ही मयूराक्षी नदी भी बहती है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा तो सर्व प्रसिद्ध है। यह कथा इस प्रकार है।
एक बार लंका पति रावण ने हिमालय पर जाकर भगवान शिव की शिवलिंग स्थापित करके शिव जी की तपस्या शुरु की। पर शिव जी प्रकट नही हुए।
फिर उसने शिव जी को प्रसन्न करने के लिये शिवलिंग पर अपना एक-एक सिर काट कर चढ़ाना शुरु कर दिया।
जब वह अपने नौ सिर काट चुका था और दसवा काटने वाला था, तभी उस शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हो गए तथा उसके नौ सिर वापिस पहले जैसे कर दिये।
रावण ने वरदान मांगा, कि हे प्रभु, आप इस शिवलिंग में स्थापित हो जायें और मेरे साथ लंका चले। भगवान शिव उस शिवलिंग में स्थापित हो गए।
साथ ही उन्होने रावण को यह चेतावनी दी, कि अगर वह शिवलिंग को मार्ग में कहीं भी रख देगा तो वह वहीं स्थापित हो जायेंगे। रावण शिवलिंग लेकर लंका की ओर चल पड़ा।
मार्ग में उसे लघुशंका से निवृत्त होने की आवश्यकता अनुभव होने लगी। उसने एक व्यक्ति को शिवलिंग थमा दी और लघुशंका के लिये चला गया।
उस व्यक्ति को शिवलिंग भारी लगी और उसने शिवलिंग धरती पर रख दी। यह व्यक्ती बाबा बैजनाथ थे। इन्ही के नाम पर इस मन्दिर का नाम वैद्यनाथ पड़ा। रावण पुन: उस शिवलिंग को वहाँ से नही हिला पाया और वह वहीं स्थापित हो गई।
10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह गुजरात के द्वारिका में स्थित है। भगवान शिव के नागो से प्रेम के कारण उनको नागेश्वर भी कहा जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव की 125 फीट की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
यहाँ स्थित शिवलिंग चाँदी की पर्त से मंडित है। तथा इसके ऊपर चाँदी के नाग देवता स्थापित है। यह ज्योतिर्लिंग अरब सागर के किनारे स्थित है। इसके समीप गोमती नदी बहती है।
इससे जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा के अनुसार सुप्रिय नामक एक महान शिव भक्त था। उसे दारुक नामक राक्षस बन्दी बना लेता है। परन्तु सुप्रिय बँधक बन के भी भगवान शिव का ध्यान करता रहता है।
दारुक क्रुद्ध होकर उसको मारने का प्रयास करता है। तभी भगवान शिव प्रकट होते है तथा दारुक और उसके साथी राक्षसों का वध करके सुप्रिय तथा अन्य सभी निर्दोष लोगो को स्वतंत्र करवाते है। फिर भगवान शिव यहीं पर स्थित हो जाते है।
11. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
यह तमिलनाडू के रामनाथपुरम में स्थित है। यह हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ एक द्वीप है। पहले यह भूमि भारत भूमि के साथ जुड़ी हुई थी।
सागर की लहरों के प्रवाह के कारण अब यह एक छोटा द्वीप बन गया है। यह द्वीप शंख के आकार का है। यह वही स्थान है जहाँ भगवान राम ने एक शिवलिंग बना कर उसकी पूजा की थी।
सागर पार करके लंका पर चढाई करके श्री राम ने रावण को पराजित किया और उसका वध किया।
रावण एक ब्राह्मण था इसलिये श्री राम ने ब्राह्मण वध के पाप से मुक्त होने के लिये सागर तट पर ही शिव पूजा करने का निश्चय किया।
माता सीता ने रेत की शिवलिंग बनाई और फिर भगवान राम ने भगवान शिव की पूजा की थी। भगवान शिव प्रसन्न होकर उस शिवलिंग में स्थापित हो जाते है।
भगवान राम द्वारा पूजे जाने के कारण यह ज्योतिर्लिंग रामेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ। ग्यारहवीं शताब्दी में लंका के राजा पराक्रम बाहु द्वारा यहाँ मन्दिर का निर्माण कराया गया।
उसके बाद समय समय पर कई द्रविड़ राजाओं द्वारा मन्दिर का जीर्णोद्धार होता रहा है।
12. घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में दौलताबाद के पास स्थित है। इसे यहाँ घृष्णेष्वर ज्योतिर्लिंग कहते है। इसका निर्माण कार्य मालोजी राज भोंसले ने करवाया था तथा बाद में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
राजस्थान में भी घुश्मेश्वर महादेव का मन्दिर है। तथा वहाँ की मान्यताओं के अनुसार घुश्मेश्वर महादेव वहाँ प्रकट हुए थे।
महाराष्ट्र के मन्दिर के पास शिवालय नामक सरोवर है तथा राजस्थान के मन्दिर के पास शिवाड़ नामक सरोवर है। जिसका प्राचीन नाम शिवालय ही था।
ऐसे अन्य कई संकेत है, जिनके कारण राजस्थान के मन्दिर की भी उतनी ही मान्यता है जितनी महाराष्ट्र के मन्दिर की।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा भी है। एक सुधर्मा नामक ब्राह्मण था। उसकी सुदेहा नामक पत्नी थी। वह निसंतान थे।
सुदेहा जिद करके अपने पति का विवाह अपनी बहन घुश्मा से करवा देती है। ताकि उसके पति को संतान प्राप्त हो सके। घुश्मा का विवाह सुधर्मा से हो जाता है।
कुछ समय बाद घुश्मा एक पुत्र को जन्म देती है। घुश्मा बहुत बड़ी शिवभक्त थी। वह प्रतिदिन मिट्टी से 101 शिवलिंग बना कर पूजा करती थी। फिर पास के सरोवर में उन्हें प्रवाहित कर देती थी।
घुश्मा का पुत्र बड़ा हो गया और फिर उसका विवाह भी हो गया। अचानक सुदेहा का मन परिवर्तित होने लगा और वह घुश्मा के सुखों से ईर्ष्या करने लगी।
उसकी ईर्ष्या बलवती होती गई और एक दिन उसने अपने कुविचारों के वशीभूत होकर घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी और उसे पास के उसी सरोवर में बहा दिया जिसमें घुश्मा शिवलिंग प्रवाहित करती थी।
सुबह जब लड़का कही नही दिखा तो सभी रोने लगे। पर घुश्मा ने रोज़ की तरह 101 शिवलिंग बनाए और उनकी पूजा करके सरोवर में प्रवाहित करने चली गई।
शिवलिंग प्रवाहित करते ही उसका पुत्र भला चन्गा सरोवर से बाहर निकल आया। घुश्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने उसे दर्शन दिये और उसे सत्य घटना बताई तथा सुदेहा को उसके पाप कर्म का दंड देने के लिये अपना त्रिशूल उठा लिया।
पूरी घटना जानकर घुश्मा ने शिव शंकर से कहा कि हे महादेव, मुझे मेरा पुत्र मिल गया मुझे और कुछ नही चाहिये। मेरी बहन को क्षमा कर दो।
उसने भगवान शिव से वहीं निवास करने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करके सुदेहा को क्षमा कर दिया और वह घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।
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ReplyDeleteजी हाँ, मैं कुछ समय बाद बदलूंगी।
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