हनुमान जयंती क्यों मनाते है?
हनुमान जयंती का पर्व प्रतिवर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी दिन हनुमान जी का अवतरण हुआ था। हनुमान जी को भगवान शिव का ग्यारहवां रुद्र अवतार माना जाता है।
हनुमान जी वानरराज केसरी और देवी अन्जनी के पुत्र के रूप में अवतरित हुए थे। इसलिये इन्हें केसरी नंदन और अन्जनी पुत्र भी कहा जाता है।
माता अन्जनी ने संतान प्राप्ति के लिये केवल वायु पान करके 12 वर्ष तक वायु देव की तपस्या की थी। इसलिये वायु देव ने उन्हें वायु जैसे तीव्र गति के पुत्र का वरदान दिया था।
इसी कारण हनुमान जी को वायु पुत्र, पवन पुत्र और मारुति नंदन भी कहते है। मारुति का अर्थ भी वायु होता है। उनके हनुमान नाम का भी एक कारण था।
बाल्यकाल में एक बार भोर के समय उन्होने आकाश में नारंगी रंग का सूर्य देखा तो उन्होने उसे लाल रंग का फल समझ लिया और उसे खाने के लिये आकाश की ओर उड़ चले।
उन्होने सूर्य को मुख में रख लिया तथा चारो ओर अन्धकार छा गया। इन्द्र ने यह देखा तो बालक को सूर्य को मुहँ से निकालने को कहा।
लेकिन उन्होने नही निकाला। तब इन्द्र ने बालक पर अपने वज्र से प्रहार किया। वज्र उनके हनु अर्थात ठोडी पर लगा। इस प्रहार से उन्होने सूर्य को छोड़ दिया और धरती पर गिर गए।
उनकी इस दशा को देखकर वायुदेव ने कुपित होकर अपनी गति रोक दी। ब्रह्मा जी ने इन्द्र को बताया कि यह बालक कोई राक्षस नही बल्कि स्वयं रुद्र का अवतार है।
इन्द्र को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। ब्रह्मा जी के समझाने पर वायु देव ने फिर से अपनी गति शुरु कर दी।
वज्र के प्रहार से बालक की ठोडी टेड़ी हो गई थी। इसलिये उनका नाम हनुमान पड़ा।
बालक को इन्द्र ने वरदान दिया कि इन्हें मेरे वज्र से कभी कोई हानि नही होगी। इनका शरीर वज्र के समान कठोर होगा। वज्र जैसे अंग होने के कारण इनका नाम बजरंग बलि भी पड़ा। बजरंग अर्थात वज्र+अंग। वज्र अंग का अपभ्रंश बजरंग है।
हनुमान जी को भगवान शिव का ग्यारहवां रुद्र अवतार माना जाता है। त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार लिया तो भगवान शिव ने भी लीला रच कर उनकी सेवा के लिये हनुमान जी का अवतार धारण किया।
हनुमान जयंती कैसे मनाते है?
इस दिन सभी मन्दिरों में कीर्तन होते है, तथा रामायण, रामचरित मानस या राम चरित मानस के सुंदर काण्ड का पाठ किया जाता है।
हनुमान जी को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा उपाय राम नाम का गुणगान ही है। हनुमान भक्त इस दिन व्रत भी रखते है। इस दिन सुबह-सुबह मन्दिरों में पूजा हेतु श्रद्धालु भारी संख्या में पहुँचने लगते है।
इस दिन हनुमान जी को जनेऊ अर्पित किया जाता है तथा चोला चढ़ाया जाता है। चमेली के तेल या गाय के घी में सिन्दूर मिला कर उसका लेप मूर्ति पर किया जाता है, जिसे चोला चढ़ाना कहते है।
हनुमान जी को केवल पुरुषों द्वारा चोला चढ़ाया जाता है तथा जनेऊ भी पुरुषों द्वारा ही पहनाया जाता है। क्योंकि वह बाल ब्रह्मचारी थे, इसलिये महिलायें उनकी मूर्ति को स्पर्श नही करती है।
लेकिन महिलाएं धूप-दीप आदि जला कर आरती पूजन कर सकती है।
इस दिन सभी मन्दिरों में भण्डारों की व्यवस्था की जाती है, तथा शाम तक भजन-कीर्तन चलता रहता है।
हनुमान जी को चोला क्यों चढ़ाते है?
हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाने के पीछे एक कहानी का उल्लेख मिलता है।
कहा जाता है कि एक बार हनुमान जी ने माता सीता को अपनी मांग में सिन्दूर लगाते देखा तो वह कौतूहल वश माता सीता से प्रश्न करते है कि हे माता आप नित्य अपनी मांग में सिन्दूर क्यों लगाती हो।
उनके इस प्रश्न के उत्तर में माता सीता ने मुस्कुराकर उत्तर दिया। पुत्र हनुमान, तुमने तो देखा ही है, कि मैं सदैव श्री राम के समीप रहती हूँ।
वनवास में भी मैं पूरे अधिकार के साथ उनके साथ गई थी, और अब भी उनके पास ही विराजती हूँ। इस सिन्दूर ने मुझे उनके साथ सात जन्मो के लिये बांध दिया है।
वह किसी भी लोक में मुझसे पीछा छुड़ा कर नही जा सकते। इस सिन्दूर के कारण मुझे सदा-सदा के लिये उनके सानिध्य में रहने का अधिकार प्राप्त हो गया है।
हनुमान जी ने जब यह सुना तो वह सोचने लगे कि, सिन्दूर की एक पतली सी लकीर जब माता सीता को श्री राम के साथ सात जन्मों के लिये जोड़ सकती है तो क्यों न मैं पूरे शरीर में सिन्दूर मल लूं।
फिर तो भगवान राम मुझे अनंत काल तक स्वयं से अलग नही कर पायेंगे। यही सोच कर उन्होने अपने पूरे शरीर में सिन्दूर लगा लिया।
भगवान राम को जब यह पता चला तो वह भावुक हो उठे और बोले, प्रिय हनुमान तुम तो सदा ही मेरे हृदय में निवास करते हो। तुम्हें यह करने की आवश्यकता नही थी।
जब तक मेरा अस्तित्व है, मेरे हृदय में तुम्हारा अस्तित्व कभी समाप्त नही हो सकता।
इसीलिये आज भी हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता है।
हनुमान जी का चरित्र
रामायण कथा में राम के अलावा यदि कोई सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व था तो वह हनुमान जी का ही था। वह महावीर, महापराक्रमी कहलाते है।
वह अकेले ही रावण को मारकर सीता जी को वापिस लाने में सक्षम थे। परन्तु राम-रावण का युद्ध एक धर्मयुद्ध था। यह राम की लड़ाई थी, और उन्हें ही इसे जीतना था।
कहा जाता है कि सर्वप्रथम रामायण भी हनुमान जी ने ही एक शिला पर अपने नखो से लिखी थी। बाद में वाल्मिकी जी ने रामायण लिखी। परंतु जब वाल्मिकी जी ने हनुमान जी की रामायण पढ़ी तो उनके अंदर हीन भावना आ गई।
वह हनुमान जी से कहने लगे कि हे प्रभु, आप की रामायण के समक्ष मेरी रामायण बहुत ही तुच्छ दिखाई दे रही है। और जो आपकी लिखी रामायण पढ़ लेगा उसे तो मेरी लिखी रामायण व्यर्थ लगेगी।
उनकी चिंता को देखकर हनुमान जी ने अपनी लिखी हुई रामायण की शिला सागर में प्रवाहित कर दिया।
कलयुग में भी श्री राम के महान भक्त तुलसी दास को उन्होने दर्शन दिये थे। तुलसी दास ने हनुमान जी की प्रेरणा से हनुमान चालीसा, संकट मोचन हनुमानाष्टक, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक की रचना की थी।
इसीलिये जो भी इन सभी का पाठ करता है, हनुमान जी उस व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से मुक्त कर देते है।
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