प्रति माह कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को सन्कष्टि चतुर्थी कहते है। तथा शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते है।
चतुर्थी के दिन गणेश पूजा का विशेष मह्त्व होता है। परंतु माघ माह की सन्कष्टि चतुर्थी वर्ष की सबसे मह्त्वपूर्ण सन्कष्टि चतुर्थी है।
इस दिन व्रत और पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। वर्ष की अन्य सन्कष्टि चतुर्थी का व्रत न भी रखें तो माघी सन्कष्टि चतुर्थी का व्रत ही सभी चतुर्थियों का फल देने वाली होती है।
सन्कष्टि चतुर्थी का व्रत मातायें अपनी संतानों के लिये रखती है। सन्कष्टि चतुर्थी को आम भाषा में सकट चौथ कहते है।
सकट चौथ की कथा
कार्तिक्य का जन्म तारकासुर के वध के लिये हुआ था। उसके जन्म के लिये ही देवताओं ने भगवान शिव को पार्वती से विवाह के लिये राज़ी किया था।
क्योंकि केवल शिव पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता था। कार्तिक्य ने तारकासुर का वध करके बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया था। इस घटना के बाद कार्तिक्य को अपनी योग्यता पर घमंड हो गया था।
बाद में गणेश जी का जन्म हुआ। गणेश जी बहुत बुद्धिमान थे और उनके तर्कों को कोई काट नही पाता था। परंतु कार्तिक्य गणेश को छोटा होने के कारण अपने से अधिक योग्य नही मानते थे।
इसीलिये भगवान शिव ने एक लीला की। एक बार सभी देवता विवाद करने लगते है, कि कौन सबसे अधिक योग्य है। सभी अपना विवाद सुलझाने भगवान शिव के पास जाते है।
भगवान शिव सभी से कहते है कि जो भी अपनी योग्यता सिद्ध करना चाहते है, वह सभी ब्रह्मांड की एक पूरी परिक्रमा लगा कर फिर यही पर आये। जो भी सर्व प्रथम यहाँ पहुँच जायेगा, वही सबसे योग्य माना जायेगा।
कार्तिक्य ने कहा, कि वह भी प्रतियोगिता में भाग लेगा और अपनी योग्यता सिद्ध करेगा। वह अपने वाहन मोर पर सवार हो गए।
इन्द्र उड़ने वाले एरावत हाथी पर सवार हो गए और अन्य सभी देवता भी अपने-अपने वाहन पर सवार हो कर परिक्रमा के लिये चल पड़े।
फिर भगवान शिव ने गणेश जी से कहा कि पुत्र तुम भी परिक्रमा के लिये जाओ क्या तुम अपनी योग्यता सिद्ध नही करना चाहते।
गणेश जी ने कहा कि मैं तो उन सभी से छोटा हूँ क्या मेरा उनके साथ प्रतियोगिता करना उचित होगा।
शिव भगवान ने कहा, पुत्र गणेश, आयु से कभी कोई छोटा या बड़ा नही होता। योग्यता से व्यक्ति छोटा या बडा होता है। मैं तुम्हें प्रतियोगिता में भाग लेने का आदेश देता हूँ।
उस समय शिव जी और पार्वती जी एक साथ बैठे हुए थे। गणेश जी ने कुछ विचार किया और फिर उन्होने भगवान शिव और माता पार्वती के चारो ओर परिक्रमा लगानी शुरु कर दी।
उन्होने सात परिक्रमा लगाई और फिर वह रुक गए और बोले, हे माता जी और पिता जी, आप ही तो आदि देव और आदि शक्ति है।
आप स्वयं ही ब्रह्मांड है और मैं तो आपका पुत्र हूँ। एक संतान के लिये तो उसके माता पिता ही पूरा ब्रह्मांड है।
इसलिये मैने आप दोनो की परिक्रमा लगा कर आपकी आज्ञा का पालन कर दिया है। कुछ देर बाद एक-एक करके सभी देवता गण परिक्रमा लगा कर आ गए।
कार्तिक्य भी परिक्रमा लगा कर आ गए। सब ने गणेश को वहाँ देख कर अचम्भा किया। शिव भगवान ने उन्हें पूरा वृतांत सुनाया।
यह सोच कर सभी को अपनी भूल का अहसास हुआ कि महादेव और महाशक्ति को छोड़ कर हम भौतिक ब्रह्मांड की परिक्रमा लगाने चले गए।
सभी इस बात से सहमत हुए की सबसे अधिक बुद्धिमान गणेश जी है और बुद्धि ही योग्यता का सर्व प्रथम मापदंड होती है। इस दृष्टि से देखते हुए गणेश जी को देवताओं में सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दिया गया।
सभी देवताओं ने उन पर पुष्प-वर्षा कर के उनकी विजय का सम्मान किया और उन्हें प्रथम पूज्य देवता का सम्मान मिला।
यह कथा माघी कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की है। तभी से इस दिन भगवान गणेश की पूजा का विधान शुरु हुआ।
भगवान गणेश सभी संकट दूर करने वाले देव कहलाते है। इसलिये इस चतुर्थी को सन्कष्टि चतुर्थी कहा जाने लगा।
सकट चौथ पूजन विधि
सकट चौथ के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर निर्जल व्रत का संकल्प लें।
पूजा के लिये जमीन पर एक स्थान साफ-स्वच्छ कर लें।
फिर वहां लकड़ी की चौकी रख कर पीला कपड़ा बिछा कर गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें। साथ में लक्ष्मी जी की मूर्ति भी अवश्य रखें।
साथ में एक जल का लोटा रखें। धूप दीप आदि से गणेश जी की आरती करें।
इस दिन की कथा सन्ध्या काल में की जाती है।
पूरा दिन भक्ति और श्रद्धा से व्रत का पालन करें।
संध्याकाल में कथा पढ़ें तथा गणेश जी को शकरकंदी तथा अन्य किसी भी मौसमी फल का भोग लगायें।
कुछ लोग इस दिन केवल फलाहार ही करते है इसलिये गणेश जी को भी फलों का ही भोग लगाते है।
जो जल का लोटा पूजा में रखा जाता है उसी जल से शाम को चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
कुछ लोग सन्ध्या काल में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद अन्न ग्रहण कर लेते है। जो व्यक्ति अन्न ग्रहण करते है वह गणेश जी को भी अन्न का भोग लगा सकते है।
Comments
Post a Comment