मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में संचरण का पर्व है। वर्ष के 12 माह होते है। तथा राशियाँ भी 12 होती है। प्रतिमाह जिस समय सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में संचरण करते है उस समय को संक्रांति कहते है।
इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। इसीलिये यह उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव प्रति वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है।
इस उत्सव को पंजाब में लोहडी के नाम से 13 जनवरी को मनाया जाता है। तथा दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से 15 जनवरी को मनाया जाता है।
वर्ष की 12 संक्रांतियों में से मकर संक्रांति को सबसे विशेष माना जाता है। इसे विशेष क्यों माना जाता है इसका धार्मिक कारण भी है और वैज्ञानिक कारण भी है।
मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का महत्व
इस दिन संगम पर मेला लगता है और लोग दूर-दूर से संगम में स्नान करने जाते है। इस दिन गंगा स्नान बहुत पुण्य दायक माना गया है।
जो लोग गंगा स्नान के लिये नही जा पाते वह घर पर ही स्नान के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिला कर स्नान कर लेते है।
इस दिन लोग बहुत दान-पुण्य करते है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है।
इस दिन खिचड़ी में प्रयोग होने वाली सामग्री जैसे कि दाल, चावल, घी, नमक का दान किया जाता है और तिलों का भी दान किया जाता है।
इस दिन घरों में भी खिचड़ी बनाई जाती है तथा तिलों के व्यंजन बनाए जाते है।
मकर संक्रांति का धार्मिक कारण
मकर राशि शनि की राशि है। तथा शनि सूर्य के पुत्र कहलाते है। इसलिये इस पर्व पर इस बात का उत्सव मनाया जाता है कि सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि के घर जा रहे है।
भीष्म ने भी अपने प्राण त्याग इसी दिन किये थे। गंगा पुत्र देवव्रत जिनका नाम उनकी भीषण प्रतिज्ञा के कारण भीष्म पड़ गया था, कहा जाता है, उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था।
वह अपनी मृत्यु का समय निश्चित कर सकते थे। उन्होने भी अपनी मृत्यु के लिये यही दिन चुना था।
इसका एक कारण यह था कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य के दक्षिणायन होने पर जो लोग मृत्यु को प्राप्त होते है वह पुनर्जन्म को प्राप्त होते है, तथा सूर्य के उत्तरायण होने पर जो लोग मृत्यु को प्राप्त होते है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण
वर्ष में 6 माह तक सूर्य दक्षिणायन होता है और 6 माह तक उत्तरायण। दक्षिणायन के समय सूर्य उत्तर-पूर्व से उदय होकर दक्षिण-पश्चिम दिशा में अस्त होता है तथा उत्तरायण के समय सूर्य दक्षिण-पूर्व से उदय हो कर उत्तर-पश्चिम में अस्त होता है।
मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायण सूर्य की किरणे पृथ्वी के लिये अधिक लाभदायक बताई जाती है। इस दिन से दिन बढ़ना भी शुरु हो जाते है।
सर्दी का प्रस्थान होने लगता है। उत्तरायण 6 माह का वह समय है जब पृथ्वी को सूर्य का भरपूर प्रकाश मिलता है और सभी पेड़ पौधो और जीवो को सूर्य का प्रकाश ही जीवन देता है।
यही कारण है कि सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी मनाई जाती है। जब सूर्य दक्षिणायन होता है तब वह समय होता है जिसे शीतकाल कहते है। और सर्द सूखी हवा में पेड़ों के सारे पत्ते सूख कर झड़ जाते है।
इसीलिये सूर्य के उत्तरायण होने का उत्सव मनाया जाता है। क्योंकि सूर्य के उत्तरायण होने के बाद बसंत ऋतु आती है और कुछ ही समय बाद पेड़-पौधे फिर से नए फूल पत्तों से भर जाते है।
मकर संक्रांति पर खिचड़ी का मह्त्व
माना जाता है कि खिचड़ी खाने से खिचड़ी में प्रयोग होने वाले चावल चंद्र ग्रह को तथा उरद की दाल शनि को हमारी कुंडली में सकारात्मक बनाती है तथा दान का भी यही प्रभाव पड़ता है।
ज्योतिष के अनुसार इस दिन कच्ची दाल और चावल दान करने से चन्द्रमा और शनि का कुंडली पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
खिचड़ी खाने का वैज्ञानिक आधार यह है, कि खिचड़ी एक सुपाच्य आहार है। इस दिन से मौसम में परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है। इसलिये पूरे माघ माह में खिचड़ी खाना शरीर के लिये बहुत लाभदायक है।
इसे और अधिक पौष्टिक तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिये इसमें घी भी डाला जाता है।
मकर संक्रांति पर तिल का मह्त्व
कहा जाता है कि सूर्य देव जब शनि के घर आये थे तो शनि देव ने सूर्य की उपासना तिलो से की थी। इसलिये इस दिन सूर्य और शनि दोनो की पूजा तिलो से की जाती है।
इस दिन सूर्य को जल देने के लिये जल में थोड़े से तिल डालते है तथा शनि को प्रसन्न करने के लिये काले तिलों का दान किया जाता है।
तिल प्रयोग करने का एक वैज्ञानिक आधार यह है कि तिल बहुत शक्ति वर्धक और साथ ही गर्म प्रवृति के होते है। मकर संक्रांति के समय सर्दी का ही मौसम होता है। सर्दी के मौसम में हमारे शरीर को तिलों का पूरा लाभ मिलता है।
यह हमारे शरीर को सर्दी से बचाने में भी सहायता करते है तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ाते है। तिलों के सेवन से सर्दी, खाँसी, जुकाम में तुरंत लाभ मिलता है।
इसीलिये सर्दी में पड़ने वाले कई त्यौहारों में तिलो का ही प्रसाद बनाया जाता है। जैसे कि मकर संक्रांति, सकट चौथ और षटतिला एकादशी। ताकि इन त्यौहारों के बहाने हम सर्दियों में तिलो का सेवन करते रहें और स्वस्थ्य रहें।
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