शिव और शक्ति के सुपुत्र, प्रथम पूज्य देव श्री गणेश का अवतरण भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था।
इसलिये इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। सभी हिन्दू धर्मावलंबी गणेश चतुर्थी को भक्ति भाव से गणेश जी की पूजा-अर्चना करते है।
परंतु भारत के महाराष्ट्र में इस पर्व के दिन सर्वाधिक उत्साह देखा जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है और 9 दिनो तक उनकी पूजा की जाती है।
फिर चतुर्दशी के दिन गणेश जी की प्रतिमा का जल विसर्जन किया जाता है। जितने दिन भी गणेश जी की मूर्ति स्थापित रहती है, उतने दिन तक घर में सभी सदस्य सात्विकता का पालन करते है। तथा जो व्रत रखना चाहते है, वह व्रत भी रखते है।
गणेश चतुर्थी की कथा
यह कथा गणेश जी के जन्म की कथा है। शिव पुराण की कथाओं के अनुसार गणेश जी को माता पार्वती ने जन्म नही दिया था बल्कि यह एक चमत्कारिक घटना है।
एक बार पार्वती जी ने नंदी को कहा कि तुम द्वार पर बैठ जाओ। मैं स्नान कर रही हूँ और किसी को भीतर मत आने देना, नंदी बैठ गए। थोड़ी देर पश्चात भगवान शिव आये।
नंदी ने कहा कि भगवन, माता ने मुझे कहा है कि किसी को भीतर न आने दें।
इस पर शिव जी कहते है कि यह आदेश अन्य लोगो के लिये है पर मैं तो अंदर जा सकता हूँ। इस पर नंदी ने कुछ नही कहा। भगवान शिव अंदर चले गए।
माता पार्वती स्नानागार से जैसे ही बाहर आई, तो मुख्य द्वार खुला देख कर क्रोधित हुई, अभी उन्होने नंदी को द्वार खोलने की आज्ञा नही दी थी।
उन्होने देखा कि शिव जी अंदर आ चुके है। उन्होने नंदी को बुला कर डाँटा कि जब मैने तुम्हें कहा था कि किसी को भी भीतर आने मत देना तो तुमने मेरी आज्ञा क्यों नही मानी।
नंदी ने क्षमा माँगी। भगवान शिव बोले, उसे क्षमा कर दो पार्वती, वह मेरा सेवक है, मेरा गण है वह मुझे कैसे रोक सकता था।
पार्वती जी को इस बात पर बहुत अपमान महसूस हुआ की शिव जी के सेवको के लिये शिव जी की आज्ञा मेरी आज्ञा से अधिक महत्वपूर्ण है।
यह बात मन में आ जाने के बाद माता पार्वती ने निर्णय लिया कि वह स्वयं अपना एक गण बनायेंगी जो उनकी आज्ञा को सर्वोपरि माने।
यही बात मन में विचारते हुए एक दिन पार्वती जी अपने शरीर से उबटन को रगड़ कर एक जगह एकत्रित करती जा रही थी।
जब सारा उबटन उन्होने साफ कर लिया, फिर वह उस उबटन को हाथो में लेकर उसे एक पुतले का आकार देने लगी।
उन्होने एक सुंदर पुतला तैयार कर लिया और फिर उसे जीवन दान दे दिया। जीवित होते ही वह पुतला एक सुंदर बालक में परिवर्तित हो गया और बोला, माँ मेरे लिये क्या आज्ञा है।
पार्वती माता माँ शब्द सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। वह यह परखना चाहती थी कि यह बालक उनका आज्ञाकारी है या नही इसलिये वह कहती है कि पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो और किसी को अन्दर मत आने देना। मैं स्नान करने जाती हूँ।
बालक द्वार पर पहरा देने लगा। कुछ देर बाद नंदी तथा अन्य शिवगण आये। बालक ने उन्हें भीतर जाने से रोक दिया। उन्होने बालक को लाख तरह से समझाया लेकिन वह नही माना।
फिर उन सब को क्रोध आ गया उन्होने बालक पर प्रहार किया। बालक ने उन सभी को उठा-उठा कर दूर फैंक दिया। अब उन सब को लगा यह अवश्य ही कोई मायावी शक्ति है।
उन्होने पूरे बल से युद्ध शुरु कर दिया। पर फिर भी बालक का बाल बाँका न कर पाए। फिर शिव जी वहां आ पहुँचे। अपने गणो की दशा देखकर उन्हें बहुत क्रोध आया।
पर उन्होने अपना क्रोध वश में करके बालक को समझाने का प्रयास किया। बालक ने तब भी उनकी बात नही मानी।
आखिर शिव जी ने क्रोध में आकर अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
तभी पार्वती जी भवन से बाहर आई और अपने पुत्र को मृत देखकर बुरी तरह विलाप करने लगी। वह बोली अगर मेरा पुत्र जीवित नही हुआ तो मैं भी अपने प्राण त्याग दूंगी।
शिव जी को अपनी भूल का अहसास हुआ। उन्होने अपने गणो से कहा कि किसी ऐसे जीव का सिर लेकर आओ जिसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके सो रही हो।
गणों ने बहुत ढूंढा तो उन्हें एक हथिनी अपने बच्चे की ओर पीठ कर के सोती दिखी। गण उसके बच्चे का सिर ले आये।
फिर उस सिर को जोड़ कर शिव जी ने बालक को जीवित कर दिया। पार्वती जी अपने पुत्र को जीवित देखकर बहुत प्रसन्न हुई।
पार्वती पुत्र ने वाक युद्ध और बल युद्ध दोनो में ही सभी गणो को पराजित किया था। पार्वती पुत्र को सभी गणों से अधिक योग्य देख कर उनका नाम गणेश रख दिया गया और गणेश जी के जन्म दिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाने लगा।
गणेश जी है सर्वोत्तम प्रहरी
भगवान गणेश की जन्म कथा के कारण गणेश जी को सबसे उत्तम प्रहरी माना जाता है। इसी मान्यता के आधार पर गणेश जी की प्रतिमा को मुख्य द्वार के बाहरी ओर लगाने को बहुत शुभ माना जाता है।
वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार से ही घर में सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। अपने घर को नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के लिये मुख्य द्वार के पास पौधे रखना तथा घर के बाहर की ओर गणेश जी की प्रतिमा लगाना बहुत अच्छा माना जाता है। जब कोई व्यक्ति उस घर में प्रवेश करेगा तो प्रवेश से पहले भगवान गणेश पर उसकी दृष्टि पड़ेगी और अगर वह कलुषित मन से भी आ रहा है तो भगवान गणेश की दृष्टि पड़ते ही उसका मन निर्मल हो जायेगा। शत्रु भी आपके द्वार के भीतर आते-आते आपका मित्र हो जायेगा।
गणेश चतुर्थी पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के दिन सभी मन्दिरों में और बहुत से घरों में भी गणेश जी की प्रतिमा ला कर स्थापित की जाती है।
स्थापना के लिये गणेश जी की मूर्ति को बहुत धूमधाम से नाचते गाते हुए लोग अपने घर लेकर आते है।
गणेश जी की प्रतिमा को पूरे रास्ते ढक कर लाते है।
घर आने के बाद घर में कीर्तन करते हुए गणेश जी का स्वागत किया जाता है।
फिर स्थापना के स्थान पर एक चौकी रखें और उस पर पीला कपड़ा बिछायें।
फिर उस पर गणपति जी की प्रतिमा को स्थापित करें।
एक कलश जल से भर कर रखें। कलश में दूर्वा डालें।
कलश के मुहँ पर आम के पत्ते लगायें और उसके ऊपर नारियल रखें।
फिर गणेश जी को रोली चावल से तिलक अर्पित करें और नारियल और कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं।
गणेश जी की मूर्ति को जनेऊ पहनाएं।
गणेश जी को दूर्वा और पान सुपारी अर्पित करें, पीले पुष्प अर्पित करें, तथा धूप, दीप, कपूर से आरती करें।
मोदक गणेश जी को बहुत प्रिय होते है इसलिये उन्हें मोदक का भोग लगायें।
रोज़ सुबह शाम उनकी पूजा अर्चना करें, तथा घर में गणेश स्त्रोत, गणेश चालीसा, गणेश पुराण और गणेश जी के मन्त्र जाप आदि करें।
इस तरह घर के वातावरण में सात्विकता बनी रहेगी। घर में जो सदस्य व्रत रखें, वह सन्ध्या पूजन के बाद ही भोजन करे।
गणेश मूर्ति विसर्जन
कुछ लोग डेढ़ दिन, तीन दिन, पाँच दिन या सात दिन बाद भी मूर्ति विसर्जन करते है। बाकी चतुर्दशी के दिन सभी विसर्जन कर देते है।
विसर्जन के लिये एक लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर स्वास्तिक बनाएं और गणेश जी की मूर्ति को उठा कर चौकी पर रख लें।
गणेश जी को सुपारी और दूर्वा चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाएं, मोदक चढ़ाएं और उनकी पूजा करें।
फिर एक पीले कपड़े में उनको चढ़ाई हुई सारी वस्तुएं और कुछ पैसे रख कर पोटली बनाएं और उसे एक छोटी सी लकड़ी की टहनी से बांध दें और उनके पास रख दें।
यह उनकी यात्रा की पोटली तैयार हो गई।
फिर उन्हें अगले वर्ष फिर आने के लिये आमंत्रित करें।
उसके बाद धूमधाम से कीर्तन करते हुए मूर्ति को उनकी पोटली सहित लेकर चले और गणेश जी की प्रतिमा तथा उनकी पोटली को विसर्जित करें।
गणेश जी की मूर्ति कैसी हो?
विसर्जन के लिये हमेशा ऐसी मूर्ति की स्थापना करें जो पर्यावरण के अनुकूल हो। कच्ची मिट्टी की मूर्ति सबसे बेहतर है।
कुछ लोग आजकल चॉकलेट के गणेश जी की स्थापना भी करते है और विसर्जन के दिन उनको एक बड़े बर्तन में दूध भर कर उसमें विसर्जित कर देते है।
थोड़ी देर में चॉकलेट उस दूध में मिल जाती है। फिर उस दूध को प्रसाद रूप में बाँट देते है। मैं इस शुरूआत की प्रशंसा करती हूँ।
कई स्थानो पर लोग घास-फूस, फूल पत्तियों से गणेश जी की मूर्ति बनाते है। यह बिल्कुल पर्यावरण के अनुकूल है।
एक बार मैने अखबार में पढ़ा था कि एक स्थान पर लोगो ने फल-सब्जियों से गणेश जी की मूर्ति बनाई और विसर्जित करने की बजाए पूजा करने के बाद वह सारी फल सब्जियां प्रसाद रूप में बाँट दी। यह प्रशंसनीय कार्य है।
पुराने समय में मूर्तियाँ कच्ची मिट्टी की ही बनाई जाती थी। पर नय समय में त्यौहारो का बाजारीकरण हो गया है।
मूर्तियों को सुंदर बनाने के लिये मिट्टी के स्थान पर पेरिस प्लास्टर का प्रयोग होने लगा है और उसे और सुंदर बनाने के लिये हानिकारक रसायन युक्त रंगो का प्रयोग होता है।
हमें ऐसी मूर्तियों को खरीदने की उपेक्षा करनी होगी, ताकि मुनाफाखोर लोगो को सबक मिले और वह पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मूर्तियाँ बनाएं।
हमारे जीवन के बदलाव हमारे पर्यावरण पर भारी पड़ रहे है। पूजा करना हमारी आस्था है। लेकिन अपने पर्यावरण का ध्यान रखना भी हमारा ही कर्तव्य है।
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