नवरात्र का पर्व वर्ष में चार बार आता है। चैत्र के नवरात्र और अश्विन के नवरात्र जिन्हें प्रत्यक्ष नवरात्र कहते है तथा माघ और आषाड़ के नवरात्र जिन्हें गुप्त नवरात्र कहते है।
सभी नवरात्र शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से प्रारंभ होते है। इस लेख में हम चैत्र नवरात्र तथा आषाड़ नवरात्र के बारे में जानेंगे।
नवरात्र नवदुर्गाओं की पूजा का पर्व है। नवरात्र दोनो बार मिले जुले मौसम में आते है। चैत्र के नवरात्र के समय सर्दी जाने और गर्मी आने का समय होता है तथा अश्विन के नवरात्र में गर्मी जाने और सर्दी के आने का समय होता है।
यह हिंदुओं का पवित्र पर्व है और भारत भर में धूमधाम से मनाया जाता है। भारत के अलावा भी विश्व भर के हिन्दू इस पर्व को बहुत भक्ति-भाव से मनाते है।
नवदुर्गाओं के नाम
नवरात्र के नौ दिनो में आदि शक्ति के नौ रूप की पूजा की जाती है।
नवदुर्गाओं के नाम नीचे दिये गए है।
शैलपुत्री
ब्रह्मचारिणी
चंद्र घन्टा
कूष्माण्डा
स्कंद माता
कात्यायिनी
कालरात्रि
महागौरी
सिद्धिदात्री
नवरात्र पूजा की सरल विधि
सबसे पहले पूजा के लिये आवश्यक सामग्री एकत्र कर लें।
पूजा सामग्री
माँ की मूर्ति या चित्र, माँ के लिये लाल चुनरी।
धूप, तांबे, पीतल या मिट्टी का दिया, रुई की बाती, रोली, कलावा, चावल, गंगा जल।
यज्ञ के लिये एक मिट्टी का पात्र, गाय के गोबर का उपला, लोंग, कपूर, बताशे, गाय का घी।
कलश स्थापना के लिये एक मिट्टी का कलश, एक सुपारी, एक सिक्का, दूर्वा, नारियल।
खेत्री के लिये एक मिट्टी का पात्र, मिट्टी बालू आदि, जौ।
पूजा विधि
पूजा के लिये निश्चित स्थान को जल से साफ कर लें और फिर गंगा जल छिड़क दें।
फिर एक लकड़ी की चौकी रखे तथा चौकी पर लाल कपड़ा बिछायें।
कपड़े पर चावल की नौ छोटी-छोटी ढेरियां गोलाई में बनाएं और उनके बीच में देवी माता की मूर्ति या चित्र रखें।
अगर माँ की मूर्ति है तो उन्हें गंगा जल से स्नान करा कर बिठाएं और अगर चित्र है तो गंगा जल छिड़क दें।
फिर माता को लाल चुनरी उड़ायें।
अब कलश स्थापना करें। कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहते है। घट का अर्थ मिट्टी का कलश या पात्र होता है।
इस तरह से देखा जाए तो घट स्थापना के लिये सबसे श्रेष्ठ मिट्टी का कलश ही है, परंतु अगर वह न हो तो तांबे या पीतल का कलश भी रख सकते है।
कलश को शुद्ध जल से भरें। जल में एक सिक्का, एक सुपारी और थोडी सी दूर्वा अर्थात दूब घास और थोड़ा सा गंगा जल डालें।
कलश के मुहं पर आम के पत्ते लगायें।
अब खेत्री के लिये मिट्टी के पात्र को धो कर शुद्ध कर के रखें।
उसमें मिट्टी या बालू भरें फिर उस पर जौ फैलायें। और फिर ऊपर से थोड़ी सी मिट्टी फैलायें।
अब देवी माँ के चित्र के आगे धूप तथा दीप प्रज्ज्वलित करें।
फिर देवी माँ को रोली चावल से तिलक करें और कलावा अर्पित करें।
फिर कलश को कलावा बांधे।
फिर नारियल ले, उसके ऊपर एक लाल कपड़ा लपेटे या मौली बांधे। उसके बाद उसे कलश पर स्थापित करें।
कलश और नारियल पर रोली से स्वास्तिक बनाएं।
उसके बाद पूजा में उपस्थित सभी जनों को तिलक लगायें और कलावा बांधे।
अज्ञारी के लिये एक मिट्टी के पात्र में उपले का एक टुकड़ा रखे, फिर पात्र को दीपक के पास रखें।
उपले पर कपूर और बताशे चढ़ाएं। घर के सभी सदस्य लौंग का एक-एक जोड़ा चढ़ाएं। फिर उस पर घी की आहुति दें। फिर अज्ञारी में अग्नि स्वयं प्रज्ज्वलित हो जाती है।
फिर देवी माँ की आरती करें।
आप अपनी इच्छानुसार दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्रोत या दुर्गा सप्तशती का पाठ भी कर सकते है।
फिर बताशो का भोग सभी देवी देवताओं को लगायें।
पूजा पूरी करने के बाद खेत्री के पात्र में भी जल दें।
प्रसाद वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
अखंड ज्योति
कुछ लोग अखंड ज्योति स्थापित करते है जिसे आम भाषा में अखंड जोत भी कहते है।
माना जाता है कि अखंड ज्योति जिस घर में जलाई जाती है, वहाँ माँ नौ दिनो तक साक्षात रूप में वास करती है। और मनोवांछित कामनाये पूरी करती है।
अगर आप अखंड ज्योति स्थापित करना चाहते है तो उसका विशेष ध्यान रखना होता है। आप को दिये में घी बार-बार डालते रहना होगा।
अच्छा होगा कि अखंड ज्योति के लिये आप बड़ा दिया प्रयोग करें। जिस घर में अखंड ज्योति जलाई जाती है वहाँ ताला नही लगाना चाहिये।
घर में कोई न कोई उपस्थित रहना चाहिये। जिस कमरे में ज्योति जल रही हो वहाँ रात्रि को कोई न कोई अवश्य सोये और जमीन पर ही बिस्तर बिछा कर सोयें।
नवरात्र पूजा और व्रत के नियम
अगर आप नवरात्रि पूजा करते है तो घर में स्वच्छता बनायें रखें।
ब्रह्मचर्य का पालन करें।
मांस मदिरा जैसे तामासिक भोजन का प्रयोग न करें।
भोजन में लहसून और प्याज़ न डालें।
सात्विक जीवं शैली अपनाये ।
अधिकतर लोग नवरात्रि के पूरे व्रत रखते है। पर यदि कुछ लोग पूरे व्रत नही रख सकते, तो प्रथम और अष्टमी व्रत रख लें इससे भी नवरात्रि व्रत का पूर्ण फल मिलता है।
व्रत रखने वाले जनों को काम, क्रोध और ईर्ष्या आदि दुर्गुणो से दूर रहना चाहिएं।
निरंतर देवी माँ का स्मरण करें और पवित्रता बनायें रखें।
नवरात्रि व्रत में अनाज ग्रहण न करें। जो व्रत रखे वह केवल एक समय फलाहार करें।
कुछ लोग केवल तरल आहार पर भी व्रत रखते है। यदि सम्भव हो तभी आप ऐसा करें।
इतना कठिन व्रत न करें जिसके कारण आपके मन में क्लेश हो।
श्रीमदभागवत गीता के अनुसार हमारी जीवात्मा भी परमात्मा का ही अंश है। यदि हम जीवात्मा को क्लेश देते है तो परमात्मा को प्रसन्नता नही दुख होगा।
रोगी और गर्भवती स्त्रियों को उपवास नही रखना चाहिये। वह केवल नियमित रूप से पूजा करे, मन को शुद्ध रखें और देवी माँ का स्मरण कर ले तो भी देवी माँ प्रसन्न हो जायेंगी।
कन्या पूजन का मह्त्व
नवमी के दिन कन्या पूजन करना चाहिएं। व्रत रखने वाले जन अन्तिम नवरात्र के दिन कन्याओं को भोजन करा के ही अन्न ग्रहण करते है।
कुछ लोग नवमी को भी पूरा दिन उपवास रखते है और दशमी तिथि में ही अन्न ग्रहण करते है।
बहुत से लोग अष्टमी को भी कन्या पूजन करते है। अत: अपने परिवार की परम्परा के अनुसार अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन करें।
इस दिन कम से कम नौ बालिकाएं और एक बालक का पूजन अवश्य किया जाता है। नौ बालिकाएं नौ देवियों की प्रतीक होती है और बालक लान्गुर वीर हनुमान का प्रतीक होता है।
कन्या पूजन कैसे करें?
अष्टमी या नवमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर भोजन बनाएं।
इस दिन के प्रसाद में सूजी का हलवा, काले चने और पूरी बनाई जाती है।
कन्याओं के लिये और भी कुछ व्यंजन बनाना चाहे तो बनाएं, लेकिन सात्विक भोजन ही बनाएं।
भोजन बनाने के बाद नित्य की तरह देवी माँ का पूजन करें।
फिर नारियल को फोड़ें। अज्ञारी करें, अज्ञारी पर नित्य की तरह लौंग, कपूर, बताशे चढ़ाएं तथा फिर नारियल, हलवा, पूरी और चने का प्रसाद भी चढ़ाएं।
सभी कन्याओ को तथा एक बालक को भोजन के लिये आमंत्रित करें।
कन्याओं तथा बालक के चरण धुलवायें।
फिर उन सभी को आसन पर बिठायें।
फिर सभी कन्याओं तथा बालक को रोली चावल से तिलक करें तथा कलावा बाँधे।
फिर उनको श्रद्धापूर्वक भोजन करायें।
भोजन के उपरांत उन्हें श्रद्धानुसार कुछ दक्षिणा और उपहार दें। फिर उन्हें चरण छू कर विदा करें।
उपवास रखने वाले जन कन्याओं को भोजन कराने के बाद स्वयं भी माता का प्रसाद ग्रहण कर के व्रत का पारण करें।
दशमी के दिन क्या करें?
दशमी के दिन आपने जहाँ देवी माँ की मूर्ति स्थापित की थी वहाँ से उठा कर उन्हें फिर से यथास्थान बिठा दें। चौकी पर बिखरे चावल उठा लें उन्हें पक्षियों को खिला दें।
खेत्री के कुछ अंकुर माता के चरणो में समर्पित करें और फिर जौ को मिट्टी के पात्र से निकाल लेंऔर मिट्टी वाले स्थान पर ही फैला दें।
धार्मिक परम्परा के अनुसार अधिकतर लोग जौ की खेत्री को भी जल में प्रवाहित कर देते है। पर मेरा मानना है वह हरी फसल है। उसे मिट्टी वाले स्थान पर फैला दिया जाये तो अधिक अच्छा होगा। या तो उसे कोई पशु खा लेगा या वह मिट्टी में मिलकर खाद बन जायेगी। दोनो ही प्रकार से पर्यावरण के लिये अच्छा होगा।
हमारे धार्मिक नीति नियम कठोर नही है बल्कि बहुत लचीले है। समय और परिस्थितियों के अनुसार इनमें परिवर्तन होते रहे है और आगे भी होते रहेंगे। इससे हमारे धर्म को कोई हानि नही होगी।
अज्ञारी की राख को एकत्र कर के रख दें। यज्ञ की सामग्री को जल में प्रवाहित करने का विधान है। इसलिये इसे नदी में प्रवाहित कर दें पर यदि सम्भव न हो तो चाहें तो खेत या बाग-बागीचे में फैला दें। वह मिट्टी में मिश्रित हो जायेगी।
कलश के जल को पौधो में डाल दें। और उसमें से दूर्वा निकाल कर उसे भी जल में प्रवाहित करवा दें तथा सुपारी को पूजा के स्थान पर रख दें। और सिक्के को अपने गल्ले या बटुए में रख लें।
बंगाल, उड़ीसा और असम के लोग दशमी के दिन दुर्गा जी की मूर्ति विसर्जन करते है। अगर आप मूर्ति विसर्जन करना चाहते है तो दशमी के दिन मूर्ति को श्रद्धा पूर्वक उठा कर ले जायें और किसी जल स्रोत में विसर्जित कर दें।
अगर आप मूर्ति विसर्जित करना चाहते है तो ऐसी मूर्ति स्थापित करें जो पर्यावरण के अनुकूल हो।
कृषि से नवरात्र का सम्बंध
हमारे देश के बहुत से त्यौहार कृषि से जुडे हुए है। क्योंकि हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। मार्च के समय में रबी की फसल की कटाई का समय होता है।
जिसकी खुशी में पहले नवरात्र और फिर होली का उत्सव मनाया जाता है और ग्रीष्म ऋतु का स्वागत किया जाता है।
इसी प्रकार अक्टूबर के आस-पास खरीफ की फसल की कटाई का समय होता है।
उस समय भी नवरात्र मनाये जाते है और फिर दशहरा तथा दीवाली के उत्सव मना कर धन लक्ष्मी का पूजन किया जाता है तथा शीत ऋतु का स्वागत किया जाता है।
नवरात्र उपवास के लाभ और मह्त्व
नवरात्रि के उपवास का धार्मिक दृष्टिकोण से तो मह्त्व है ही, साथ ही इसका वैज्ञानिक कारण भी है। नवरात्रि वर्ष में दो बार ऋतु परिवर्तन के समय मनाये जाते है।
ऋतु परिवर्तन के शरीर पर कुछ दुष्प्रभाव पड़ते है। इस समय में खाँसी, जुकाम, बुखार और कई संक्रामक रोग लोगो को अपना शिकार बनाते रहते है।
इसलिये इस समय स्वच्छ्ता और खान-पान का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। नवरात्रि की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए लोग अपने घरों की भली प्रकार सफाई करते है।
साफ-सफाई रखने से काफी हद तक रोगो से बचा जा सकता है। रोज़ अज्ञारी का यज्ञ करने से घर के सभी किटाणु नष्ट हो जाते है।
इसी के साथ उपवास रखने से हम इस समय फलाहार करते है। नौ दिन तक फलाहार शरीर को बहुत लाभ पहुँचाता है।
हमारे धार्मिक ग्रंथ दुनिया भर के उपवासों की महिमा से भरे हुए है। हर पूजा के साथ उपवास को जोड़ दिया गया है, ताकि लोग ईश्वर के नाम पर सप्ताह में एक बार या महीने मे एक-दो बार उपवास रख ले और स्वस्थ्य रहें।
सभी व्रतों में नवरात्रि के व्रत सबसे महत्वपूर्ण है। आप और उपवास न रखे तो हर 6 महीने बाद 9 दिन के उपवास रख लें। यह स्वास्थ्य के लिये सर्वोत्तम है।
कुछ लोग भूख सहन नही कर पाते पर व्रत भी रखना चाहते है। ऐसे बहुत से लोग कोटू के आटे के या सिंगाड़े के आटे के परांठे, पूरियां, सामक के चावल, आलू, सीता फल, घिया आदि की सब्ज़ी और इसके अलावा भी बहुत कुछ पेट भर के खाते है।
मेरी सलाह है कि जब आप व्रत रख ही रहे है तो क्यों न उसका पूरा लाभ उठाया जाए। शायद आप को यह बात कुछ अजीब लग रही होगी। मैं आप को ठीक से समझाती हूँ।
देखिये हमारे शरीर के अंदर एक पाचन तन्त्र है जो कि लगातार काम में व्यस्त रहता है। क्योंकि हम हर 3-4 घन्टे बाद कुछ न कुछ खाते ही रहते है।
हम तो आराम कर लेते है लेकिन हमारा पाचनतंत्र कभी आराम नही करता और आपको आराम का मह्त्व समझाने की आवश्यकता नही है।
आप जानते है कि आराम तो एक मशीन को भी चाहिये होता है। अगर आप एक मशीन को लगातार चलाते जाए तो क्या होगा?
जी हाँ वह खराब हो जायेगी। पर कोई बात नही आप नई मशीन ले आयेंगे।
शरीर में भी कुछ अंग जैसे कि दांत टूट गए तो नकली लगवा लेंगे। आंखे कमज़ोर हो गई तो चश्मा लगवा लेंगे। गन्जे हो गए तो नकली बाल लगा लेंगे।
लेकिन पाचनतंत्र बैठ गया तो क्या कीजियेगा? इसका कोई विकल्प नही है। उसके बाद दवाईयों पर जीने के अलावा कोई चारा नही है। इसीलिये उपवास बनाए गए है।
अगर आप नौ दिन के लिये सिर्फ फल लेते है और पानी खूब पीते है तो आपके शरीर को इससे काफी लाभ मिलेगा क्योंकि फल सरलता से पच जाते है।
मै समझ सकती हूँ कि भूख सहन करना कोई आसान काम नही है। परंतु यह परेशानी केवल पहले दिन महसूस होती है। अगले दिन आप को भूख इतना परेशान नही करेगी।
क्योंकि यह मानव शरीर ईश्वर का सबसे बडा चमत्कार है, यह परिस्थितियों में बहुत आसानी से ढल सकता है।
कुछ लोग तो नवरात्र के उपवास में केवल तरल पदार्थ ही ग्रहण करते है। सही मायने में उपवास का असली लाभ तो वही लोग उठाते है।
इसे ठीक से समझने की आवश्यकता है। जब नौ दिन तक केवल तरल पदार्थ ग्रहण किये जाते है जैसे फलों का रस और दूध तो समझ लीजिये पाचनतंत्र को 9 दिन की छुट्टी मिल गई।
साथ ही खूब सारा पानी पीने से शरीर के सारे विषाक्त पदार्थ इन 9 दिनो में शरीर से बाहर निकल जाते है।
बिल्कुल ऐसे समझ लीजिये, जैसे कि आप अपनी गाड़ी की सर्विस 5-6 महीने में कराते है।
उस दिन गाड़ी के सारे हिस्से जैसे धोये जाते है वैसे ही इन नौ दिनो में आप को पानी पी-पी कर अपने शरीर को अंदर से अच्छी तरह धो-धो कर स्वच्छ करना चाहिये।
इसके साथ ही एक काम की बात और सुनिये। शरीर के अंदर आप साबुन का प्रयोग तो कर नही सकते तो बेहतरीन सफाई के लिये रोज़ दिन में 3-4 बार थोड़ा-थोड़ा नीम्बू पानी पिये।
नीम्बू पानी शरीर की दुगनी सफाई तो करेगा ही साथ ही यह रक्त संचार को सामान्य रखेगा। और आप उपवास के दौरान भी ऊर्जा से भरपूर रहेंगे।
अगर केवल अपने स्वास्थ्य के खातिर आप इस प्रकार से उपवास रखते है तो जीवन भर आपका पाचनतंत्र सुचारु रूप से अपना काम कर पायेगा।
Comments
Post a Comment