नवदुर्गाओं के रूप और मंत्र
नवरात्रों में हम देवी के जिन नौ रूप की उपासना करते है वह माँ आदि शक्ति के ही विभिन्न रूप है। आइए इन के बारे में विस्तार से जानते है।
शैलपुत्री
प्रथम नवरात्र को माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है। इनका वाहन बैल है तथा यह कमल और त्रिशूल धारण किये हुए है।
माता पार्वती पर्वतराज हिमालय की पुत्री कही जाती है। इसलिये इन्हें शैलपुत्री भी कहा जाता है। शैल का अर्थ पत्थर या चट्टान होता है।
यह नौ दिन की उपासना एक तपस्या की तरह होती है। माँ की कृपा से चट्टान जैसा दृढ़ संकल्प धारण करें।
इनको गाय के घी से बना भोग अर्पित करें।
माँ शैलपुत्री के जाप मन्त्र -
ऊँ शैल पुत्र्यै दैव्ये नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।
ब्रह्मचारिणी
माता पार्वती ने शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिये हज़ारो वर्ष तक तपस्या की थी। उन्होने सब कुछ खाना-पीना छोड़ कर केवल शिव में ही अंतर्मन को लगा लिया था।
उनके इस तपस्विनी रूप का ही ब्रह्मचारिणी नाम पड़ा। कहा जाता है कि तपस्या के समय एक सिंह उनके पास आ कर रहने लगा।
उनके तेज से वह शेर उनका भक्त बन गया और तपस्या पूरी होने तक उनकी रक्षा करता रहा। जब माता की तपस्या पूरी हुई तो उन्हें उस सिंह पर बड़ा प्यार आया। तभी से वह माता की सवारी बन गया।
माँ ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में कमण्डल और एक हाथ में जपमाला है।
इनकी उपासना के साथ ही उपासक को ब्रह्मचर्य धारण करने की शक्ति मिलती है।
माँ ब्रह्मचारिणी को चीनी या मिश्री का भोग लगायें।
माँ ब्रह्म चारिणी के जाप मंत्र -
ऊँ ब्रह्मचारिण्यै दैव्यै नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।
चंद्रघन्टा
इस रूप में देवी माँ के शीश पर भगवान शिव के ही समान अर्द्ध चंद्र सुशोभित होता है। इसलिये इन्हें चंद्रघन्टा कहते है।
यह दशभुजा देवी अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए है तथा इनका वाहन भी सिंह है। यह माँ का ऊर्जा देने वाला रूप है। शीश पर चंद्र शीतलता का प्रतीक है।
इनकी उपासना से मस्तिष्क को शीतलता और शरीर को ऊर्जा प्राप्त होगी।
माँ को दूध से बने व्यंजन का भोग लगायें।
माँ चंद्र घण्टा के जाप मंत्र -
ऊँ चंद्रघण्टायै दैव्यै नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चंद्रघण्टायै नम:।
कूष्माण्डा
यह सिंह पर सवार अष्ट भुजी देवी है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड में जीवन का संचार इनके मधुर हास्य की ध्वनि से हुआ।
यह अपने आठ हाथों में चक्र, गदा, धनुष, बाण, कमण्डल, माला, अमृत कलश और कमल धारण किये हुए है। यह मधुर मुस्कान वाली देवी है।
मन को प्रसन्न और क्रोध मुक्त रखने के लिये इनकी उपासना करें।
माँ को मालपुए का भोग लगाये या हरे फल का भोग लगाये।
माँ कूष्माण्डा के जाप मंत्र
ऊँ कूष्माण्डायै दैव्यै नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्माण्डायै नम:।
स्कंद माता
स्कंद कार्तिक्य का ही दूसरा नाम है। इस रूप में माता ने बालक स्कंद को गोद में लिया हुआ है। यह चतुर्भुजा देवी है तथा इनका वाहन सिंह है।
यह माँ का ममतामयी रूप है। इस रूप की उपासना से सन्तान प्राप्ति की बाधाएं समाप्त होती है।
माँ को केले का भोग लगाये।
माँ स्कन्द माता के जाप मंत्र -
ऊँ स्कंदमातायै दैव्यै नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।
कात्यायिनी
महर्षि कात्यायन ने कठिन तपस्या कर के माता भगवती को पुत्री रूप में मांगा था। इसलिये माता ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था इसलिये उनका नाम कात्यायिनी पड़ा।
यह भी सिंह पर सवार चतुर्भुजा देवी है। यह देवी कमल और तलवार धारण किये हुए है। यह माता का बालिका रूप है।
इनकी उपासना से विवाह सम्बन्धी बाधाएं दूर होती है।
माँ को शहद का भोग लगाये।
माँ कात्यायिनी के जाप मंत्र -
ऊँ कात्यायन्यै दैव्यै नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायन्यै नम:।
कालरात्रि
काल रात्रि काली माता का ही रूप है। यह त्रिनेत्री देवी है। इनका रंग घोर काला है तथा लाल नेत्र है।
इनके हाथो में खड्ग और वज्र है, तथा एक हाथ वर मुद्रा में और एक हाथ अभय मुद्रा में है। इनके भयंकर रूप की उपासना करने वालो से दुष्ट आत्मायें कोसो दूर रहती है।
इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है। यह रूप उपासक को भयमुक्त करता है।
माँ को गुड़ का भोग लगायें।
माँ काल रात्रि के जाप मंत्र -
ऊँ कालरात्र्यै दैव्यै नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।
महागौरी
महागौरी माँ का शान्त निर्मल रूप है। इनका श्वेत वर्ण है और श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण किये हुए है, तथा बैल इनका वाहन है।
यह चतुर्भुजा देवी है। यह डमरू और त्रिशूल धारण किये हुए है, तथा एक हाथ अभय मुद्रा में और एक हाथ वर मुद्रा में है।
माता के यह रूप धैर्य और शान्ति प्रदान करता है।
माँ को दूध का भोग लगायें तथा जो लोग अष्टमी को कन्या पूजन करते है वह हलवा, पूरी, चने, नारियल का भोग लगायें।
माँ महागौरी के जाप मंत्र -
ऊँ महागौर्य दैव्यै नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्य नम:।
सिद्धिदात्री
यह सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी है। यह अपने चारो हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुए है तथा पद्म अर्थात कमल पर विराजमान है।
यह अंतिम नवरात्र की देवी है। जिन्होने भी पूरे नौ दिन माँ की पूर्ण समर्पण के साथ उपासना की होती है उन्हें माता मनवान्छित फल प्रदान करती है।
यह अन्तिम नवरात्र की देवी है। इसलिये इन्हें अन्न का भोग लगा कर व्रत का पारण करना होता है।
इसलिये जो जातक नवमी को कन्या पूजन करते है वह इस दिन देवी को हलवा, पूरी, चने, नारियल का भोग लगायें और यदि आप अष्टमी को कन्या पूजन करते है तो भी नवमी के दिन
माता को अन्न का भोग अवश्य लगायें।
माँ सिद्धिदात्री के जाप मंत्र
ऊँ सिद्धिदात्र्यै दैव्यै नम:।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:।
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