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कृष्ण जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल की स्थापना कैसे करे

जन्माष्टमी की जानकारी

श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद मास की कृष्ण अष्टमी को मनाई जाती है। 

 द्वापर युग के अंत में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में बुधवार को अर्द्धरात्रि के समय श्री कृष्ण के रूप में प्रभु विष्णु ने आठवाँ अवतार लिया था। 


इसलिये प्रतिवर्ष इस तिथि को पूरे भारत और अन्य बहुल हिन्दू क्षेत्रों में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में कृष्ण जन्म महोत्सव मनाया जाता है।



krishna janmashtami




जन्माष्टमी की कथा 

 एक बार पृथ्वी पर पाप इतना बढ़ गया था, कि  पृथ्वी उसके असह्य भार से व्याकुल हो उठी।

तब पृथ्वी गौ रूप धारण कर के ब्रह्मा जी के पास गई तथा उनसे अपनी मुक्ति के लिये प्रार्थना करने लगी।  

ब्रह्मा जी शिव जी को और अन्य सभी देवी देवताओं को लेकर विष्णु जी के पास पहुँचे और पृथ्वी के कष्ट दूर करने के लिये उनसे  पुनः अवतार धारण करने की प्रार्थना की।  

इसीलिये विष्णु भगवान ने कृष्ण के रूप में आठवां अवतार धारण किया।  जन्माष्टमी की कथा संक्षेप में इस प्रकार है -  

द्वापर युग के अंत का समय था।  मथुरा में उस समय राजा उग्रसेन का शासन था। उनका कंस नाम का एक पुत्र था और देवकी नाम की पुत्री।  

देवकी का विवाह यदुवंश कुमार वासुदेव से सम्पन्न हुआ।  कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल छोड़ने जा ही रहा था कि तभी आकाशवाणी हुई।

'हे कंस तेरे पापों का घड़ा भर चुका है और देवकी के  आठवे पुत्र के रूप में तेरा काल जन्म लेने वाला है। यह आकाशवाणी सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को तुरंत कारागृह में डलवा दिया।  

पिता उग्रसेन ने इसका विरोध किया तो कंस ने उन्हें भी कारागृह में डलवा दिया और स्वयं राजा बन बैठा।  

देवकी ने एक-एक कर के सात पुत्रों को जन्म दिया और उन सब को कंस ने शिला पर पटक कर मार डाला।  और अब वह आठवीं सन्तान को जन्म देने वाली थी।  

कारागृह पर पहरा बढ़ा दिया गया था। भाद्रपद अष्टमी की रात को देवकी ने एक शिशु को जन्म दिया शिशु के जन्म लेते ही सभी पहरेदार गहरी नींद में सो गए।  

कारागार प्रकाश से भर गया और शिशु के स्थान पर श्री हरी विष्णु उपस्थित थे। 

श्री हरि बोले 'हे वासुदेव मुझे गोकुल में नन्द के घर छोड़ आओ और वहां उनकी कन्या जो मेरी योगमाया है उसे ले आओ कंस को जल्दी ही उसके पापो का फल मिलेगा' और फिर वह पुनः शिशु बन गए।  

देवकी और वासुदेव की बेड़िया और कारागार का द्वार स्वयं ही खुल गया।  सारे सैनिक  गहरी निद्रा में सोते रहे और वासुदेव एक टोकरी में शिशु को लिटाकर सिर पर रखकर वेगवती यमुना को पार करने लगे।  

श्री कृष्ण के चरण छूने के लिये यमुना की लहरे हिलोरे लेने लगी और उनके चरण स्पर्श कर के वह शान्त हो गई और फिर यमुना ने  वासुदेव को मार्ग दे दिया।  

घनघोर वर्षा हो रही थी और वासुदेव के पीछे-पीछे शेषनाग कृष्ण के ऊपर छत्र की तरह वर्षा से उन्हें बचाते हुए तैर रहे थे। 

वासुदेव  गोकुल पहुँचे और नन्द के घर पर उनकी पत्नी यशोदा के पास शिशु को लिटा दिया और उनकी नवजात कन्या को उठा लाये।  

यशोदा प्रसव के बाद मुर्छित हो गई थी और उन्हें नही मालूम था कि उनकी सन्तान पुत्र है या पुत्री। इस कार्य में नन्दबाबा ने उनकी सहायता की क्योंकि वह रिश्तें में वासुदेव के भाई थे।  

वासुदेव जैसे ही कन्या को लेकर कारागार में पहुँचे कारागार का द्वार बन्द हो गया। उनके हाथ-पैरों में फिर से बेडियाँ पड़ गई और सभी सैनिक जाग गए तथा कन्या रोने लगी। 

शिशु के जन्म का समाचार सुनते ही कंस तुरंत वहाँ पहुँच गया और कन्या को तुरंत देवकी के हाथों से छीन कर शिला पर पटकने को हुआ। 

तभी कन्या उसके हाथ से छूट कर अष्टभुजी देवी बन कर आकाश में स्थित हो गई और बोली तेरा काल जन्म ले चुका है और यह कहकर अंतर्ध्यान हो गई।

कंस ने आसपास के गाँवों में जितने भी नवजात शिशु जन्मे थे, उन सब को मारने के लिये पूतना राक्षसी को  भेजा।  उसने अपना विषैला दूध पिला कर अनेको बच्चों की जान ले ली। 

लेकिन जब वह कृष्ण को अपना दूध पिलाने लगी तो कृष्ण दूध के साथ उसके प्राण भी पीने लगे और वह राक्षसी मारी गई।  

उसके बाद कंस ने कृष्ण को मारने के लिये तर्णावृत को भेजा।   वह असुर बड़ा बवंडर बन के कृष्ण को उड़ा ले गया कृष्ण ने अपना भार इतना बड़ा लिया, कि वह उनका बोझ उठाते-उठाते थक गया, फिर कृष्ण ने उसका गला दबा दिया और वह मृत होकर भूमि पर गिर पड़ा।  

फिर वत्सासुर एक बछड़ा बन कर आया और बछ्ड़ो में शामिल हो गया। अवसर देखकर उसने कृष्ण पर आक्रमण कर दिया पर कृष्ण ने  उसके प्राण पखेरू उड़ा दिये।  

अघासुर नामक असुर एक बड़ा भारी अजगर बन कर  आया और अपना गुफा जैसा मुख खोलकर ग्वालो के मार्ग में जड़ हो कर लेट गया। 

ग्वाल बाल उसके मुख को गुफा समझ कर अन्दर चले गए।  कृष्ण ने उन्हें रोकने का प्रयास किया पर वह नही माने इसलिये कृष्ण भी उसके मुख में चले गये और अपना शरीर बढ़ाने लगे और अघासुर का पेट फाड़ कर उसे मार डाला।  

वकासुर एक बड़ा बगुला बन कर उन्हें मारने आया और कृष्ण को अपनी विशाल चोंच में पकड़ लिया, कृष्ण ने स्वयं को इतना गर्म कर लिया कि उसकी चोंच जलने लगी और उसने कृष्ण को छोड दिया।

फिर कृष्ण ने उसकी एक चोंच पर पैर रखकर दूसरी चोंच को हाथो से ऊपर उठा कर उसे चीर डाला।    

केशी एक घोड़ा  बन कर आया उसे कृष्ण ने एक योद्धा की तरह लड़ कर मृत्यु की गोद में सुला दिया, अरिष्टासुर  एक बैल बन कर आया उसे भी कृष्ण ने यमलोक पहुँचा दिया।

व्योमासुर एक ग्वाल बालक बन कर आया और उसने सभी बालको को एक गुफा में छुपा दिया कृष्ण उसकी चाल समझ गए और उसे मार कर ग्वाल बालों को बचाया  और फिर एक दिन कंस भी कृष्ण के हाथो मृत्यु को प्राप्त हुआ।  

कृष्ण ने अपने माता पिता और नाना को कारागार से छुड़वाया और नाना उग्रसेन का पुनः राजतिलक किया। 

जन्माष्टमी व्रत विधि और पूजन   

इस दिन जन्माष्टमी को जो जातक व्रत रखते है उन्हें कृष्ण की कथा अवश्य सुननी कहनी चाहिएं।  जन्माष्टमी व्रत को व्रतराज कहा जाता है।

जो जातक इस व्रत को नियम पूर्वक पूरा करते है उन्हें पूरे वर्ष के व्रतों का फल प्राप्त हो जाता है।  

इस दिन सुबह से उपवास रखें। स्वच्छता और भक्ति-भाव से व्रत का संकल्प लें।  

ब्रह्मचर्य का पालन करें। 

कृष्ण कन्हैया की सरल भाव से पूजा करें। 

रात्रि को 12 बजे अर्ध रात्रि का समय होता है इसलिये इसी समय कृष्ण को भोग लगाने का प्रचलन है।

इस दिन माखन मिश्री पंचामृत और धनिये के प्रसाद आदि से कान्हा को भोग लगाया जाता है।  

उसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है और प्रसाद ग्रहण किया जाता है। 

इस दिन अन्न ग्रहण नही करते है। अन्न नवमी तिथि लगने के बाद ही ग्रहण करें।   

जो जातक लड्डू गोपाल की स्थापना करना चाहते हो उन्हें जन्माष्टमी के दिन ही उनकी स्थापना करनी चाहिये। 

लड्डू गोपाल की स्थापना 

लड्डू गोपाल की स्थापना के लिये आपको कुछ सामग्री एकत्र कर लेनी चाहिये।  

लड्डू गोपाल की स्थापना के लिये सामग्री:

खीरा, लाल कपड़ा, माखन मिश्री, मखाने की खीर, हल्दी, चंदन, दूध, दही, शहद, तुलसी पत्र, गंगाजल, लड्डू गोपाल के वस्त्र आभूषण, बांसुरी। 

लड्डू गोपाल की स्थापना विधि: 

स्थापना के लिये जन्माष्टमी की रात्रि को बारह बजे से एक- दो घन्टे पहले एक थाली में एक बड़ा सा खीरा रखें।

खीरे को एक सिक्के की सहायता से फाड़ लें।   

उसके बीच में लड्डू गोपाल को बिठा दें और लाल कपड़े से ढक दें। 

खीरे को गर्भ का सांकेतिक रूप माना जाता है, फिर बारह बजे जब कृष्ण जन्म का समय होता है तब कपड़े को हटा दें। 

फिर उनको दूध, दही, गंगाजल, तुलसी और शहद से बने पंचामृत से स्नान करायें और फिर साफ जल से स्नान करायें, जैसे नवजात शिशु को कराया जाता है।  

फिर नए वस्त्र-आभूषणो से उनका श्रंगार करें।  

लड्डू गोपाल को झूले में बिठाएं। 

फिर उनको हल्दी या चंदन का तिलक लगाये।  

धूप दीप से उनकी आरती करें। 

फिर माखन मिश्री, मखानों की खीर, धनिये का कसार, और जो भी भोग सामग्री आपने बनाई हो उसका भोग लगायें।  

उनको नई बांसुरी और नये खिलौने उपहार में दें।   

अब गोपाल आपके घर के सदस्य बन गए है। 

निसंतान दम्पत्तियों को घर में लड्डू गोपाल की स्थापना अवश्य करनी चाहिएं।  गोपाल का हर जन्माष्टमी को जन्मदिन मनाएं।

खीरे का उपयोग केवल प्राण प्रतिष्ठा के दिन ही करना होता है ।  प्रतिवर्ष जन्मदिन मनाने के लिये उसकी आवश्यकता नही है।  हाँ, अन्य फलों की तरह खीरे का भोग लगा सकते है।  

जो खीरा प्राण प्रतिष्ठा में उपयोग किया गया था उसे घर की महिला को ही खाना चाहिएं।

लड्डू गोपाल का उसी प्रकार ध्यान रखें जैसे एक नन्हें शिशु का रखा जाता है।  

उनको दिन में 4-5 बार भोजन करायें।  रात को दूध पिलाए।  फिर उन्हें प्यार से थपकी दे कर सुलायें।  

सुबह उन्हें प्यार से आवाज देकर जगाएं।  नहलाये और धुले हुए वस्त्र पहनाएं।  

सर्दियों में उन्हें गर्म वस्त्र पहनाएं।  

उन्हें  कभी-कभी अपने साथ घुमाने भी ले जायें और अगर कुछ दिनो के लिये ताला लगा कर कहीं जाना हो और उन्हें  साथ ले जाना सम्भव न हो, तो किसी  को उनकी देखभाल की जिम्मेदारी दे दें।

जिनके घर में लड्डू गोपाल नही है, तो कृष्ण की जो भी मूर्ति या चित्र हो उसी की तिलक, धूप, दीप आदि से पूजा करें और माखन मिश्री का भोग अवश्य लगायें।  

कृष्ण को माखन चोर भी कहते है पर वास्तव में यह भी कृष्ण की लीला का ही एक रूप है।  बचपन में वह अपने सखाओं के साथ गोकुल के घरों में से दही-माखन चुरा-चुरा कर खाते थे।
   
सभी गोपियां यशोदा के पास शिकायत करने जाती थी।  पर सत्य यह था कि शिकायत के बहाने वह सब नन्हे श्याम का मनभावन रूप निहारने ही जाती थी।  

कृष्ण के ऐसा करने के पीछे भी एक ठोस कारण था।  कंस गोकुल का सारा दही माखन कर के रूप में मथुरा मँगवा लेता था।  वह प्रजा को करों के बोझ से दबा कर रखता था।  

कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ योजना बनाई कि  गोकुल का दही माखन मथुरा जाने के लिये बचना ही नही चाहिये। 

इसलिये वह सारा दही माखन खा जाते थे और बंदरोँ में भी बाँट देते थे।  कंस इसी खीज में राक्षसों को भेजता था, पर  वह भी मारे जाते थे।  

देश भर में जन्माष्टमी 

इस दिन मन्दिरों में बहुत सजावट की जाती है।  कान्हा को भोग लगाने के लिये 56 प्रकार के भोग बनाये जाते है। सभी श्रद्धालु मन्दिरों में जाकर कान्हा को झूला झुला कर कृतार्थ हो जाते है।

रात्रि बारह बजे सभी मन्दिरों में कान्हा का जन्मोत्सव मनाया जाता है।  कन्हैया के विग्रह को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और भोग लगाया जाता है और फिर सभी भक्तों को प्रसाद दिया जाता है। 

इस दिन गोकुल, मथुरा और वृंदावन की धूमधाम देखने योग्य होती है, क्योंकि कृष्ण का बचपन यहीं बीता था।  इसके अलावा पूरे देश के मन्दिरों की शोभा अवर्णनीय होती है।  

अनेको स्थानो पर रासलीला नृत्य के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।  महाराष्ट्र में जन्माष्टमी का उत्सव बड़े अनूठे तरीके से मनाया जाता है।  वहाँ दही से भरी हांड़ी को तोड़ने की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है।  

दही हांड़ी को बहुत ऊंचाई पर लटकाया जाता है।  प्रतियोगी उस तक पहुँचने के लिये प्रयास करते है और जो विजयी होता है उसे पुरुस्कार दिया जाता है। 

मन्दिर्रों में इस दिन कृष्ण लीला की एक से एक मनोहर झाँकियाँ लगाई जाती है।  

अपने बचपन में मैने देखा है, कि जन्माष्टमी के दिन गली-गली में बच्चे जन्माष्टमी की झाँकियाँ लगाया करते थे।  घर से जब हम मन्दिर की ओर निकला करते थे,  तो हर गली हर रास्ते पर बच्चों की प्यारी-प्यारी झाँकियाँ मन मोह लेती थी। 

रात के बारह बजे भी बाहर दिन जैसी रौनक नज़र आती थी।  हमने भी बचपन में जन्माष्टमी पर खूब झाँकियाँ लगाई है।  पर अब झाँकियाँ और रौनक केवल मन्दिरों तक सीमित हो गई है।  आज की पीड़ी में त्यौहारों के प्रति वो उत्साह नज़र नही आता।  

पर फिर भी यह देखकर प्रसन्नता होती है कि  आज भी मन्दिरों में कृष्ण की एक झलक देखने के लिये उन्हें एक बार झूला झुलाने के लिये लोग शान्ति से पंक्तियों में खड़े होकर अपनी बारी का इन्तज़ार कर रहे होते है।  

यह देखकर लगता है कि हमारे त्यौहारो की संस्कृति एक अमरदीप की तरह पीड़ी दर पीड़ी यूँ ही जगमगाती रहेगी।









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