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सोलह सोमवार व्रत की कथा, व्रत विधि और उद्यापन विधि

भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिये सोमवार के दिन उनकी उपासना करने का विशेष मह्त्व है।  सोमवार के व्रत तीन प्रकार होते है।  प्रति सोमवार, सोम प्रदोष तथा सोलह सोमवार।  इन सब में सोलह सोमवार के व्रतों का विशेष मह्त्व है।  यह लगातार सोलह सोमवार तक रखें जाते है तथा सत्रहवें सोमवार को इनका उद्यापन कर दिया जाता है।   यह किसी विशेष इच्छा या कार्य सिद्धि के लिये रखे जाते है।  इन व्रतों का पालन करने से निश्चय ही कार्य सिद्ध हो जाता है।  यह दूसरे सोमवारो के व्रतों से थोड़ा कठिन होते है।   इस व्रत में सत्य भाषण, सदाचार, ब्रह्मचर्य, अहिंसा जैसे सद्गुणों का पालन करना अनिवार्य है।   भूल से भी परनिंदा, क्रोध तथा किसी भी जीव को हानि नही पहुंचानी चाहियें।  ऐसा होने पर व्रत भंग हो जाता है।  यदि सभी नियमों का पालन किया जाए तभी व्यक्ति को इस व्रत का लाभ मिलता है।   जब कोई व्यक्ति किसी ऐसी वस्तु की इच्छा से व्रत रखता है जो उसके भाग्य में ही नही है, तो वह स्वयं अनुभव करेगा कि व्रत भंग होनें की परिस्थितियाँ बार-बार उसके सामने आयेंगी तथा कई बार व्रत भंग भी हो जाते है।   इसलिये इन व्रतों को करने के लिये स्वय

सावन के सोमवार व्रत का मह्त्व

सावन का महत्व श्रावण माह हिन्दू वर्ष का पाँचवा माह है।   इसे आम भाषा में सावन कहते है।   यह  माह वर्षा ऋतु के प्रारंभ होने की सूचना देता है इसलिये इस माह में पूरी प्रकृति धवल हरियाली से हरी-भरी हो जाती है।   वर्षा ऋतु के सौंदर्य के लिये तो यह माह प्रसिद्ध है ही, लेकिन साथ ही यह माह भगवान शिव की पूजा का विशेष माह भी है।   वैसे तो महादेव की पूजा करने के लिये किसी विशेष दिन की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नही है वह तो कभी भी की जा सकती है, लेकिन सावन को भगवान शिव का प्रिय माह माना जाता है। इसलिये शिव जी को प्रसन्न करने के लिये इस माह में शिव जी की विशेष पूजा की जाती है।  शिव पुराण में इस माह का महात्मय वर्णित है।  यह माह भगवान शंकर का प्रिय माह क्यों है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है।  कहा जाता है कि जब माता सती ने अपना शरीर त्याग किया था उसके बाद उन्होने हिमालय राज के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया।  इस जन्म में उनका नाम पार्वती पड़ा।   उन्होने युवा होने पर भगवान शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त करने के लिये कठिन तप किया। इस जन्म में सबसे कठिन तप उन्होने श्रावण माह में किया था तथा इसी माह में

रविवार व्रत की कथा और व्रत विधि

रविवार व्रत का महत्व रविवार का व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित होता है।  रवि का अर्थ सूर्य है।  तथा हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार आकाश में स्थित नौ ग्रहों में से सूर्य भी एक है।   परंतु सूर्य को सबसे विशेष माना जाता है, केवल सूर्य ही एक ऐसे देवता कहलाते है, जिन्हें प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है। सूर्य ही पृथ्वी पर जीवन का आधार है।  सूर्य की ऊर्जा से ही पेड़-पौधो, जीव-जन्तुओं तथा मनुष्यों को जीवन मिलता है। जहाँ सूर्य की किरणे नही पहुँचती, वहाँ कीड़े-मकोड़े पनपते है।  सीलन पैदा होती है, जिसके कारण किटाणु जन्म लेते है तथा बीमारियाँ पैदा होती है।   सूर्य की गर्मी हर वस्तु को किटाणु मुक्त करने की शक्ति रखती है।   इसके साथ ही सूर्य का प्रकाश विटामिन डी का एकमात्र स्रोत है।  विटामिन डी हड्डियों की मज़बूती के लिये बहुत ज़रूरी होता है।  विटामिन ,डी की कमी से हड्डियों के रोग उत्पन्न हो जाते है।  सूर्योदय के समय नारंगी रंग के सूर्य के सामने थोड़ी देर बैठने से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है। ऐसा भी माना जाता है कि सूर्य की किरणे नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है।   इसीलिये वास्तु के अनुसार घर को इ

शनिवार व्रत की कथा और व्रत विधि

शनिदेव का परिचय शनिवार के दिन शनि ग्रह की पूजा का दिन है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र है। इनका स्वभाव अति क्रोधी है।    शनि की गति सभी ग्रहों से धीमी है, शनि ग्रह को सूर्य की एक  परिक्रमा लगाने में  30 वर्ष का समय लग जाता है। शनि की साड़सती के प्रति लोगो में जितना भय देखा जाता है, उतना किसी भी अन्य ग्रह की दशा के प्रति नही दिखाई देता।   शनि की दृष्टि वक्री कही जाती है।   रामायण की कथा के अनुसार हनुमान जी ने रावण की कैद से शनिदेव को मुक्त कराया था।  उसके तुरंत बाद शनिदेव ने रावण पर अपनी वक्री दृष्टि डाली तथा रावण की कुंडली में साड़सती शुरु हो गई तथा साड़सती के कारण ही उसका विनाश हुआ।   इसी वृत्तांत के कारण माना जाता है, कि शनिदेव को प्रसन्न करना है तो हनुमान जी की पूजा करो, शनिदेव स्वयं ही प्रसन्न हो जाएंगे।   शनिदेव को दण्डाधिकारी कहा जाता है।  वह सभी को उनके कर्मो का फल प्रदान करते है।  शुभ कर्म करने वाले मनुष्यों को वह साड़सती में भी शुभ फल ही प्रदान करते है।  शनिवार व्रत कथा एक बार नव ग्रहों में विवाद छिड़ गया कि उनमें से सबसे श्रेष्ठ कौन है। उनका विवाद समाप्त होने

शुक्रवार के दिन कैसे रखें वैभव लक्ष्मी व्रत

माता लक्ष्मी तीन महादेवियों में से एक है, यह भगवान विष्णु की शक्ति कहलाती है।  इन्हीं की कृपा से सन्सार के मनुष्यों को जीवन के सभी सुख प्राप्त होते है।    माता लक्ष्मी के आठ रूप है जिन्हें अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है।  यह आठो रूप मनुष्य को विभिन्न प्रकार के सुख प्रदान करते है, लक्ष्मी जी के इन्हीं आठ रूपों में से एक रूप है,  धन लक्ष्मी।   धन लक्ष्मी को वैभव लक्ष्मी भी कहते है।  माता वैभव लक्ष्मी धन-सम्पत्ति का सुख प्रदान करती है,  जीवन में वैभव प्रदान करती है।  व्यवसाय तथा नौकरी जैसे कार्यो में सफलता के लिये इनकी उपासना तथा व्रत करने का बहुत प्रचलन है।   माता वैभव लक्ष्मी का व्रत तथा पूजन शुक्रवार के दिन  किया जाता है।  माना जाता है कि यदि विधि-विधान पूर्वक वैभव लक्ष्मी व्रत को सम्पन्न किया जाए, तो माता अवश्य ही व्रत रखने वाले व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण करती है।   लेकिन यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस व्रत को पूर्ण विधि विधान से करना बहुत महत्वपूर्ण है।  इस लेख में माता वैभव लक्ष्मी व्रत की पौराणिक कथा दी जा रही है, इसके साथ ही व्रत की तथा उद्यापन की सम्पूर्ण विधि भी दी जा रही है। वैभव लक