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मौनी अमावस्या पर क्यो रखते है मौन व्रत

माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या कहा जाता है।  इस दिन पवित्र नदियों में स्नान तथा दान का विशेष मह्त्व माना जाता है।  

इस दिन संगम पर भारी संख्या में लोग स्नान करने पहुँचते है।  क्योंकि यहाँ तीन महानदियों के स्नान का पुण्यफल प्राप्त होता है।  

परन्तु जो लोग यहाँ से बहुत दूर रहते है, वह अपने आस-पास की अन्य नदियों में स्नान कर लेते है।  


mauni amavasya



वैसे भी सभी नदियों को गंगा का ही स्वरूप माना जाता है।  यदि किसी भी नदी पर जाना सम्भव न हो सके तो घर में ही स्नान के पानी में दो बूंद गंगाजल डाल कर माँ गंगा का स्मरण करके स्नान कर लिया जाता है। 

इस दिन अन्न, फल, वस्त्र, तथा अन्य वस्तुओं का यथा सम्भव दान अवश्य करना चाहियें।  इस दिन भगवान विष्णु की तथा पीपल की पूजा की जाती है तथा व्रत रखा जाता है।  

इस दिन मौन व्रत का बहुत मह्त्व है, इसीलिये इसे मौनी अमावस्या कहते है।  वास्तव में मौनी अमावस्या मौन व्रत रखनें का दिन है।  इस दिन मौन रखने से कुंडली के ग्रहों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 




मौनी अमावस्या की कथा

एक समय की बात है, देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण था। वह कांचीपुरि नगर में निवास करता था।  उसकी पत्नी का नाम धनवती था।  उसके सात पुत्र तथा सबसे छोटी एक पुत्री थी।  पुत्री का नाम गुणवती था।  

सातो पुत्रों के विवाह  के पश्चात देव स्वामी ने गुणवती के विवाह के बारे में सोचा।  उसने अपने सबसे बड़े पुत्र को गुणवती के लिये सुयोग्य वर ढूंढने के लिये नगर से बाहर भेज दिया,  तथा कन्या के विवाह हेतु  एक ज्ञानी पंडित से परामर्श किया।  

पंडित गुणवती की कुंडली देखकर बताते है,कि यह कन्या सप्तपदी पूरी होते-होते विधवा हो जायेगी।  देवस्वामी यह सुनकर  पंडित से प्रार्थना करता है कि कन्या की कुंडली से यह दोष मिटाने का कोई उपाय बतायें।

पंडित ने कहा कि सिंहल द्वीप पर एक सोमा नामक धोबन रहती है।  वह महान पुण्यवती देवी है।  तुम किसी तरह उन्हें यहां ले आओ।  

उनके आशीर्वाद से गुणवती की कुंडली से वैधव्य दोष मिट सकता है।  यह सुनकर देव स्वामी अपने सबसे छोटे पुत्र तथा पुत्री गुणवती को सोमा को लेने भेजता है।  

वह दोनो चलते-चलते सागर के पास पहुँच जाते है और फिर थक कर एक पेड़ के नीचे बैठ जाते है। उस पेड़ पर एक गिद्ध का घोंसला था।  उस समय घोंसले में केवल गिद्ध के बच्चे थे।  उनकी माता उनके लिये भोजन ढूंढने गई थी।  

शाम को मादा गिद्ध आई और अपने बच्चों को भोजन कराने लगी।  परंतु बच्चों  ने भोजन नही किया।  वे बोले कि माता, हमारे पेड़ के नीचे दो पथिक सुबह से भूखे प्यासे बैठे है।  वह हमारे अतिथी है,  इसलिये उन्हें खिलाए बिना खाना उचित नही होगा।  

मादा गिद्ध यह सुनकर उन दोनो  भाई बहन के लिये कुछ भोजन इकट्ठा कर के उनके पास जाती है और उन्हें भोजन देती है।  

उनसे बात करके मादा गिद्ध को पता चलता है, कि वह दोनो सिंहल द्वीप जाना चाहते है।  मादा गिद्ध कहती है कि अभी आप दोनो विश्राम करें।  सुबह मैं आप दोनो को वहाँ पहुंचा दूंगी।  

सुबह होते ही मादा गिद्ध उन दोनो को अपनी पीठ पर बिठा कर उड़ जाती है और उन्हें सिंहल द्वीप ले जाती है।  तथा सोमा धोबन का घर ढूंढ कर उन्हें वहाँ छोड़ देती है।  वह दोनो सोमा धोबन के घर के पास ठहर जाते है।  

अब वह रोज़ सुबह उठ कर सोमा धोबन के घर की भली प्रकार से साफ सफाई कर देते थे और गाय के गोबर से लीप देते थे।  

सोमा धोबन ने देखा, कि पहले तो कभी घर इतना साफ सुथरा नही लगता था।  उसने अपनी बहुओं को बुला कर पूछा कि आजकल सुबह-सुबह घर की साफ-सफाई, लिपाई-पुताई कौन करता है।  

सभी कहती है कि हम ही करती है, और कौन करेगा।  पर सोमा धोबन के मन में शन्का रहती है।  

वह रात को सोती नही है और जाग कर ध्यान रखती है, तो देखती है,  कि सुबह सूरज निकलने से पहले ही दोनो भाई बहन उसके घर की साफ-सफाई कर रहे है।  सोमा ने उन दोनो से पूछा, तो उन्होने सब कुछ बता दिया।  

सोमा उन दोनो परिश्रमी और भोले-भाले भाई-बहन पर बहुत प्रसन्न होती है।  वह उनके साथ जाने को तैयार हो जाती है।  

जाने से पहले वह अपनी बहुओं से कहती है, कि अगर मेरी अनुपस्थिति में परिवार में किसी की मृत्यु हो जाए तो मेरे वापिस आने से पहले उसका अंतिम संस्कार मत करना।  

फिर वह तीनो कांचीपुरि की ओर प्रस्थान करते है।  उनके पहुँचते ही देव स्वामी उनका स्वागत करता है, तथा अगले दिन ही अपनी पुत्री का विवाह करने का निश्चय ले लेता है।   

अगले दिन विवाह का आयोजन हो जाता है।  जैसे ही गुणवती सप्तपदी पूरी करती है, उसके वर की मृत्यु हो जाती है।  सोमा यह देख कर द्रवित हो जाती है।  

वह संकल्प द्वारा अपने सभी पुण्यकर्मों का फल गुणवती को दे देती है।  उसके पुण्य कर्मों के फल से गुणवती का वैधव्य दोष मिट जाता है तथा उसका पति जीवित हो उठता है।  

सोमा उन दोनो को आशीर्वाद देती है और फिर वह अपने घर की ओर प्रस्थान करती है।  

उधर सोमा के पुण्य क्षीण हो जाने से उसके घर पर उसके पति, पुत्र और  जामाता की मृत्यु हो जाती है।  

फिर वह दुबारा से पुण्य प्राप्ति के लिये पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर भगवान विष्णु की आराधना करती है, तथा पीपल की 108 परिक्रमा लगाती है।  

उसकी पूजा से भगवान विष्णु प्रसन्न हो जाते है और उसके पुत्र, पति और जामाता को पुनर्जीवित कर देते है। 

मौनी अमावस्या व्रत पूजन विधि

इस दिन सुबह संगम में स्नान करने की परम्परा है।  परंतु यदि यह सम्भव न हो तो किसी भी नदी में स्नान कर लें या घर में ही माँ  गंगा का स्मरण कर के स्नान कर लें।

इस दिन व्रत रखने वालो को पूरे दिन मौन व्रत भी धारण करना चाहियें। 

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करें। उन्हें हल्दी का तिलक, धूप, दीप, पीले पुष्प अर्पित करें। 

इस दिन विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम तथा विष्णु जी के मंत्र 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:' का जाप करें।

पूजा के बाद गरीबों को यथा सम्भव दान करें।

सन्ध्याकाल में भगवान विष्णु की पूजा करके उन्हें पीले फल,व्यंजन तथा मिष्ठान आदि का भोग लगायें तथा फिर भोजन ग्रहण करें।

मौनी अमावस्या का मह्त्व

मौन हमारे शरीर को ऊर्जा देता है।  यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि  बोलने में हमारी काफी सारी ऊर्जा खर्च हो जाती है।  

यदि हम वाणी पर संयम रख पाए तो हमारी ऊर्जा की बचत होगी और हम उस ऊर्जा को अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर लगा सकते है।  

अधिक बोलने से मानसिक थकान अनुभव होती हैं और अगर  मस्तिष्क थक जाता है, तो वह आपको सही दिशा निर्देश नही दे सकता। 

इस कारण आपका शरीर भी थकान अनुभव करने लगता है।  हमारे योग गुरुओं ने इसीलिए मस्तिष्क को शक्ति तथा ऊर्जा देने के लिये मौन धारण करने का उपाय बताया है।

हमारे ऋषि मुनियों द्वारा मौनी अमावस्या के दिन को मौन व्रत प्रारंभ करने के लिये निश्चित किया गया था।  अर्थात् इस दिन से मौन व्रत प्रारंभ कर के फिर कई दिनो तक मौन व्रत रखने का संकल्प किया जाता था।  

ऋषि मुनि कई महीनो तक मौन व्रत रखा करते थे।  मौन व्रत के दौरान वह ध्यान में लीन रह कर अपने मस्तिष्क की ऊर्जा बढ़ाते थे। 

परंतु अब लोग केवल मौनी अमावस्या के विशेष दिन ही मौन व्रत धारण करते है।  परंतु वह भी सब लोग नही करते।  

यदि  वर्ष में केवल एक दिन मौनी अमावस्या पर ही पूरा  दिन  मौन व्रत धारण करने का कष्ट आप उठा पाए तो भी आप मौन व्रत के काफी लाभ अर्जित कर सकते है।





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