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बसन्त पंचमी पर माँ सरस्वती की पूजा कैसे करें

हमारा भारत देश ऋतुओं का देश कहलाता है।  यहाँ की तरह अनेको ऋतुएं किसी और देश में नही होती।  हर ऋतु के साथ भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल, फल, सब्जियां, हमारे जीवन में नित नई ताज़गी का अहसास कराते रहते है।  

हमारे देश में छ: ऋतुए होती है, ग्रीष्म ऋतु , वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु, शिशिर ऋतु  और बसंत ऋतु।  इनमें बसंत ऋतु को सबसे श्रेष्ठ माना गया है और इसे ऋतुराज कहा जाता है। 



basant panchami






बसंत ऋतु  के आगमन की खुशी में प्रतिवर्ष  माघ मास की शुक्ल पंचमी के दिन बसंत पंचमी मनाई जाती है।  इसे श्री पंचमी भी कहते है।    

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बसंत पंचमी की पौराणिक कथा

मुख्यत: बसंत पंचमी माता सरस्वती की पूजा का दिवस है।  क्योंकि इसी दिन माता सरस्वती का अवतरण हुआ था।

सरस्वती पुराण के अनुसार भगवान विष्णु जी की नाभि से एक कमल की उत्पत्ति हुई जिस पर ब्रह्मा जी विराजमान थे।  ब्रह्मा जी ने ही ब्रह्मांड की रचना की। 

उन्होने पेड़-पौधे, अनेकों प्रकार के जीव-जन्तु और मानव की रचना की।  पर उन्हें अपने बनाये ब्रह्मांड में एक रिक्तिता का अनुभव हो रहा था।  ब्रह्मांड बड़ा सूना-सूना सा लग रहा था।  

ऐसा क्यों है, उनके सृजन में क्या कमी रह गई है , वह समझ नही पा रहे थे।  

तब उन्होने प्रभु विष्णु का स्मरण करके अपनी समस्या का समाधान करने की प्रार्थना की, तथा अपने कमण्डल में से जल हाथ में लेकर छिड़का। 

 उनके जल छिड़कते ही वहां एक श्वेत वर्णा देवी प्रकट हुई। यही देवी माता सरस्वती थी।

माता सरस्वती का रूप बड़ा ही शान्त और मन को धैर्य देने वाला था।  उनके वस्त्र श्वेत थे और वह श्वेत कमल  पर विराजमान थी।  

वह चतुर्भुजा देवी थी।  उनके एक हाथ में रुद्राक्ष की माला, दूसरे हाथ में पुस्तक, तीसरे हाथ में कमण्डल और चौथे हाथ में वीणा थी। 

उन्होने वीणा के तार छेड़ कर एक मधुर ध्वनि से ब्रह्मांड को गून्जित कर दिया। तथा उनकी कृपा से ब्रह्मांड के कण-कण में सजीवता का संचार होने लगा।  

जल कल-कल ध्वनि करता हुआ बहने लगा, वायु भी सर-सराती हुई ध्वनि युक्त हो गई, बादलो की गड़गड़ाहट  होने लगी और आकाशीय बिजली नृत्य करने लगी।  

झरने झम-झम, झर-झर करते घुंघरुओं की तरह संगीतमय हो गए तथा सन्सार के समस्त प्राणी वाणी प्राप्त कर के सजीवता का अनुभव करने लगे।  

पक्षियों के कलरव से वातावरण उल्लासित होने लगा। पशुओं को अनेकों प्रकार के स्वर प्राप्त हो गए।  तथा  उनके चंचल चपल स्वरों से वातावरण चहक उठा, भँवरे गुंजार करने लगे, मक्खियां, ततैया फूलों पर भिन-भिन करके गुनगुनाने लगे। 

प्रकृति देवी ने इस शुभ दिन नए खिले पत्तो के वस्त्रों और फूलो के आभूषणो से स्वयं को सुसज्जित कर लिया।   

माता सरस्वती ने मनुष्यों के अंत: करण में बुद्धि का दीप प्रज्ज्वलित किया।  तथा मनुष्यों के लिये विद्याओं और कलाओं का निर्माण किया।  

मानव सभी प्राणियों से अधिक बुद्धिमान है।  उसका शरीर सबसे अधिक कार्य करने के योग्य है।

अतः उसे अकर्मण्य होकर केवल पशुओं की भान्ति भोजन को ही जीवन का ध्येय नही समझना चाहिये, बल्कि कला और विद्या से युक्त हो कर मानव जीवन का सदुपयोग करना चाहिये। 
जो लोग भी कला के उपासक है या किसी भी विद्या में निपुण होना चाहते है उन्हें बसंत पंचमी के दिन अवश्य ही माता सरस्वती की उपासना करनी चाहिये। 

बसंत पंचमी पर माता सरस्वती  की पूजा कैसे करें?

वैसे तो माता सरस्वती श्वेत वर्णा देवी है इसलिये इनकी पूजा में सफ़ेद रंग की वस्तुओं का विशेष  मह्त्व होता है परंतु  बसंत पंचमी पर माता सरस्वती की पूजा में पीले रंग की वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है।  

इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें।   
एक लकडी की चौकी पर पीले या सफ़ेद  रंग का कपडा बिछायें।  
फिर माता सरस्वती का चित्र स्थापित करें। 
माता को सफ़ेद चंदन का तिलक लगायें।  
सफ़ेद या पीले फूल अर्पित करें। 
धूप, दीप से माँ की आराधना करें। 
सरस्वती माँ  का मन्त्र "ऊँ सरस्वत्तय नम:" का जाप करें।   
माँ को सफ़ेद या पीले व्यंजनो का भोग लगाये।  
इस दिन पीले व्यंजनो का विशेष मह्त्व है।  अधिकतर घरों में  पीले रंग के मीठे चावल  बनाए जाते है।  
पूजा के स्थान पर माता सरस्वती के चित्र के साथ ही कला और विद्या से सम्बंधित वस्तुओं को रखकर उनकी भी पूजा करें, तथा माँ से कलावान और विद्यावान होने का आशीर्वाद प्राप्त करें।

सरस्वती पूजा का मह्त्व

माता  सरस्वती  विद्या की देवी है इसलिये विद्यार्थियों को उनकी पूजा अवश्य करनी चाहिएं।  विद्यार्थियों को किताब कलम दवात  आदि रखकर उनकी पूजा करनी चाहिये।

अगर किसी कला से जुडे हुए है तो उससे सम्बंधित वस्तुएं रखे।  जैसे चित्रकार हो तो रंग, तूलिका, पेन्सिल आदि रखे।  संगीत से जुड़े हुए हों तो वाद्ययंत्र रखें।  

लेखक हो तो कलम और दवात रखे।  इस प्रकार अपनी कला से जुड़ी हुई वस्तुओ को माता के चित्र के साथ रखे और उनका पूजन करें।

कला के क्षेत्रों से जुडे हुए सभी लोगो को माता सरस्वती की पूजा करनी चाहिएं।  तथा माँ से प्रार्थना करनी चाहिये कि वह जिस भी  कला से जुड़े हुए है उसमें पारंगत हों।  

लेकिन इसके साथ ही एक बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिये।  अपने अंतर्मन में चिंतन करके यह अवश्य जांच लें कि  क्या आप अपनी विद्या के प्रति पूरी निष्ठा के साथ समर्पित है। 
 
अगर आप शत प्रतिशत अपनी कला के प्रति निष्ठावान है और अपनी कला पर पूरी  ईमानदारी से मेहनत कर रहे है तो माँ  सरस्वती आप को आशीर्वाद अवश्य देंगी।  

अगर आप सोचते है की पूजा करने के बाद आप परीक्षा में बिना पड़े पास हो जायेंगे या नकल करके पास हो जायेंगे तो ऐसा नही होगा।  

ईश्वरीय शक्तियां भी उन्ही का साथ देती है जो अपने काम को पूरी मेहनत और ईमानदारी से करते है।

बसंत पंचमी का आयोजन

बसंत पंचमी के दिन सभी शैक्षणिक संस्थाओं में माता सरस्वती पूजन किया जाता है। तथा प्रसाद भी वितरित किया जाता है।  

इसके अलावा जगह-जगह पंडाल लगा कर भी माँ सरस्वती की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी विधि-विधान पूर्वक पूजा की जाती है।

बसंत पंचमी के दिन जगह-जगह मेलों का आयोजन भी होता है।  बच्चे, बूढे, जवान सभी मेलो का आनंद लेते है।  इस दिन बच्चे और बड़े पतंग  उड़ाने का भी आनंद लेते है।  

कई जगह पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है।  पतंगों  के साथ बच्चों के मन भी आकाश में उड़ने लगते है।

बसंत पंचमी है नई फसल की  खुशी का त्यौहार

इसी समय नई फसल भी कटाई के लिये तैयार हो रही होती है।  सरसो के खेतों में पीले फूल लहलहा रहे होते है।  

गेंहूँ की बालियाँ सूरज की धूप में   मंद-मंद पवन के झोंको के साथ लहराती हुई और सुनहरी हो जाती है और सोने जैसी प्रतीत होती है। 

विशेष रूप से  किसानो के लिये यह उत्सव का समय होता है।  उन के लिये वास्तव में ये फसल की बालियाँ सोने के समान है।

इसी फसल को मंडी  में बेच कर उनके घर में धन आता है और इसीलिए वह सभी बसंत पंचमी के दिन नये पीले कपड़े और पीली पगड़ी पहनते है।  

उनके खेत पीली सुनहरी फसलों के साथ लहलहा रहे होते है।  इसलिये वह भी पीले वस्त्र पहन कर प्रकृति के रंगों में स्वयं को रचा लेते है।  गाँवों में बसंत पंचमी की धूम सचमुच देखने योग्य होती है। 

यद्यपि शहरों में इतनी धूमधाम दिखाई नही देती।  क्योंकि शहरों में पेड़ पौधे ही इतने कम है कि उनका सौंदर्य दौड़ते-भागते लोगो का ध्यान अपनी और आकर्षित  नही कर पाता।  

गाँवों और विशेषकर जंगलो से लगे हुए क्षेत्रों में रहने वाले ही बसंत की असली रौनक का  दर्शन कर पाते है।   

महानगरों में रहने वाले लोग प्रकृति से कटे होने के कारण इस ऋतु के उत्सव का आनंद ही नही ले पाते जिस उत्सव को पूरी प्रकृति मना रही होती है।  

पीले रंग का बसंत पंचमी के  साथ क्या सम्बंध है? 

हमारा देश कृषि प्रधान देश है।  इसलिये हमारे यहाँ बहुत से त्यौहार नई फसल की खुशी से जुड़े हुए है।  नई फसल की बालियाँ सुनहरी रंग की होती है जो कि धूप में पीले सोने की तरह चमकती है।  

सोना धन का प्रतीक है।  इसी समय सरसो की भी अधिकतम खेती होती है और सरसो के पीले फूलो से धरती ऐसी लगती है जैसे कि  धरती माता ने पीली चुनर ओढ़ रखी हो।  

इसलिये इस दिन लोग पीले कपड़े पहन कर और पीले रंग के व्यंजन बना कर इस उत्सव का आनंद लेते है। 

एक अन्य कारण यह भी है, कि  सरस्वती माता की पूजा विद्या अर्जन के लिये की जाती है और विद्या का सम्बन्ध बृहस्पति ग्रह से है  तथा पीला रंग  बृहस्पति ग्रह से जुड़ा हुआ है।  

ज्योतिष के अनुसार  विद्या अर्जित करने के लिये बृहस्पति ग्रह को अपनी कुंडली में सकारात्मक और मज़बूत करने की आवश्यकता होती है और पीले रंग के उपयोग से बृहस्पति ग्रह की कृपा प्राप्त होती है।  

इस कारण से भी इस दिन सरस्वती माता की पूजा में पीली वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है।  

बसंत का सौंदर्य वर्णन

बसंत सर्दी और गर्मी के बीच का समय होता है।  इसलिये इस ऋतु में न सर्दी सताती है न ही गर्मी।  इसलिये सभी का मन प्रसन्न रहता है।  

पतझड़ की समाप्ति के बाद बसंत शुरु होता है।  पतझड़ की ऋतु में कुछेक  पेड़-पौधों को छोड़ कर लगभग सभी के पुराने पत्ते झड़ जाते है।  

और फिर बसंत का आगमन होता है।  बसंत के आने पर पेड़-पौधो पर फिर से नई कोंपलें निकलने लगती है और कुछ ही दिनों में पेड़-पौधे फिर से नए-नए फूल पत्तो से लद जाते है।  

ऐसा लगता है मानो प्रकृति देवी ने पुराने वस्त्रों का त्याग करके नए वस्त्र धारण किये हो।  बसंत के आने की खुशी जितनी मनुष्यों को होती है उतनी ही जीव-जन्तुओं को भी होती है।  

पक्षी बसंत आते ही नए हरियाले पेड़ों पर अपने नए घोंसलें बनाने के लिये  बड़े उत्साह से फुदक-फुदक कर तिनके जमा कर रहे होते है।  

तोता, मैना, कोयल, मोर, पपीहे और बुलबुलें  मीठी बोलियों में  गीत गा-गा कर बसंत का स्वागत कर रहे होते है।  हरी-हरी घास से मैदान भर जाते है और घास चरने वाले पशु आनंदित हो उठते है।  

गिलहरियां कभी घास पर तो कभी पेड़ो की डालों पर फुदकती हुई सब का मन मोह लेती है।  मोर प्रकृति के सौंदर्य को देख कर भाव-विभोर होकर अपने सुंदर पंख फैला कर नृत्य करने लगते है।  

फूलों पर तितलियाँ और भँवरे इठलाते मंडराते मधुर गुन्जन करने लगते है।  पके हुए मधुर फलों की मादक सुगंध सब का जी ललचाती है।  

फलो के पेड़ों पर बैठ कर  पक्षी मीठे फलो का आनंद लेते है और सुंदर फूलो की मादक सुगंध वायु को भी सुगंधित बना देती है।  

मधु मक्खियां शहद बनाने के लिये फूलो के पराग को एकत्रित करने लगती है।  पूरी प्रकृति बसंती रन्ग में रंग जाती है और  नवजीवन का आरम्भ करती है।  





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