गणगौर पर्व 16 दिवसिए पर्व है। यह भगवान शिव और माता गौरी की पूजा का उत्सव है। गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ माँ गौरी है।
इस पर्व में सभी सुहागन स्त्रियाँ भक्ति और श्रद्धापूर्वक भगवान शिव तथा गौरी का व्रत रखती है। इस व्रत को सौभाग्य प्रदान करने वाला माना जाता है।
गणगौर का पर्व चैत्र माह में होली के अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को प्रारंभ होता है तथा इसकी समाप्ति चैत्र के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है।
यह पर्व मुख्यत: राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है।
गणगौर की कथा
एक बार भगवान शिव तथा पार्वती नारद जी को साथ लेकर भ्रमण पर जा रहे थे। चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन वह तीनो एक गाँव में पहुँचे।
गाँव के सभी लोगो को जैसे ही शिव जी और माता पार्वती के आगमन का समाचार मिला वह सभी उनके आतिथ्य के लिये भोजन पकवान आदि बनाने लगे।
समृद्ध घर की स्त्रियाँ उनके लिये अधिक से अधिक व्यंजन बनाने में लगी हुई थी। परन्तु जो निर्धन स्त्रियां थी। उन्होने जो थोडा बहुत उनके पास था, वह ही ले जा कर भगवान शिव और माता पार्वती के चरणों में रख दिया।
माता पार्वती उनके श्रद्धा भाव से बहुत प्रसन्न हुई तथा जितना भी सुहाग रस उनके पास था वह सारा उन्होने निर्धन स्त्रियों पर छिडक दिया और उन्हें सौभाग्य का आशीर्वाद दिया।
उन स्त्रियों के जाने के बाद धनी घरों की स्त्रियाँ अनेको व्यंजन थालों में सजाकर उनके लिये लेकर आती हुई दिखाई दी।
भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि अब तुम इन स्त्रियों को क्या दोगी। तुमने सारा सुहाग रस तो उन स्त्रियों पर छिडक दिया था।
माता पार्वती जानती थी कि इन स्त्रियों की श्रद्धा में भी कमी नही है। अधिक आतिथ्य करने के प्रयास में इन्हें थोड़ा विलम्ब हो गया है।
माता पार्वती ने कहा, कि हे देव, मैं इन्हें भी खाली हाथ नही भेजुंगी। मैं अपनी अंगुली चीर के अपने रक्त के छींटे इन पर सुहाग रस की तरह छिड़क दूंगी तथा इससे इन्हें सौभाग्य प्राप्त होगा।
उन स्त्रियों ने भी भक्ति-भाव से शिव और पार्वती का पूजन किया तथा भोजन प्रदान किया। पार्वती जी ने उन स्त्रियों पर अपनी अंगुली चीर कर रक्त छिड़का और उन्हें भी सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया।
स्त्रियों के जाने के बाद पार्वती जी ने शिव जी और नारद जी को वही छोड़ा और नदी पर स्नान करने चली गई। स्नान के पश्चात उन्होने नदी के किनारे की रेत से शिवलिंग बना कर पूजन किया तथा भोग सामग्री अर्पित की।
फिर दो कण प्रसाद स्वयं ग्रहण किया। भगवान शिव उसी समय शिवलिंग से प्रकट हुए तथा पार्वती जी को वरदान दिया कि आज के दिन जो भी स्त्री मेरा और तुम्हारा पूजन तथा व्रत करेगी, वह अटल सौभाग्यवती होगी।
फिर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए। पार्वती जी को गए बहुत देर हो चुकी थी। फिर पार्वती जी वापिस उस स्थान पर आ गई जहां शिव जी और नारद जी बैठे थे।
शिव जी ने पूछा कि आपको लौटने में इतना विलम्ब कैसे हो गया। पार्वती जी ने बहाना बनाते हुए कह दिया कि नदी के तट पर मेरे भाई भाभी मिल गए थे, वह मुझे साथ ले गए और दूध भात खिलाने लगे, इस कारण देर हो गई।
शिव जी यह सुनकर बोले कि चलो मैं भी चलता हूँ मुझे भी दूध भात खाने की इच्छा हो रही है। शिव जी आगे-आगे और पार्वती जी पीछे-पीछे चलने लगी।
पार्वती जी मन ही मन भगवान शिव का ध्यान कर के उन्हीं से अपने मुख से निकले वचनो की रक्षा की प्रार्थना करने लगी। जब वे तीनो नदी तट पर पहुँचे, तो वहाँ एक सुंदर महल खड़ा था।
महल के अंदर पहुँचते ही शिव जी के साले और सलहज ने उनका स्वागत किया। दो दिन तक वह वहीं रहे। तीसरे दिन पार्वती जी शिव जी से प्रस्थान का आग्रह करने लगी।
परंतु शिव जी नही माने तो पार्वती जी नाराज़ होकर अकेली ही चल पड़ी। उनके चलने पर शिव जी भी चल पड़े। थोड़ी दूर निकलने पर शिव जी ने नारद जी से कहा कि मेरी माला महल में रह गई है, जाओ जा कर ले आओ।
नारद जी माला लेने चले गए। पर वहाँ उन्हें कोई महल नही मिला। दूर-दूर तक घने जंगल के अलावा कुछ नही था। तभी नारद जी को एक पेड़ पर शिव जी की माला लटकी हुई दिखाई दी।
नारद जी माला उतार कर शीघ्रता से शिव जी के पास पहुँचे और उन्हें उस स्थान का वृतांत सुनाया। भगवान शिव हँस कर बोले, यह तो पार्वती की माया है।
पार्वती जी बोली, भगवन सब आपकी ही माया है। मैं तो आपकी ही दासी हूँ। नारद जी ने शिव और पार्वती दोनो को हाथ जोड़ कर नमन किया।
गणगौर व्रत पूजा विधि
यह पर्व चैत्र कृष्ण तृतीया से शुरु होता है। इस दिन होली की राख तथा गाय के गोबर की अलग-अलग आठ-आठ पिन्डियां बनाते है।
इन्हें बाँस की टोकरी में दूब बिछा कर ऊपर से रख देते है। फिर इनकी रोज़ पूजा की जाती है।
इन पिन्डियों को रोज़ कुमकुम और काजल की बिन्दी लगते है, तथा एक-एक बिन्दी दीवार पर लगाई जाती है। 16 दिन तक रोज़ ऐसे बिन्दियां लगाई जाती है।
आप दीवार को साफ रखने के लिये दीवार पर एक कागज़ चिपका कर उस पर बिन्दियां लगा सकते है। रोज़ पिन्डियों की पूजा की जाती है।
एकादशी के दिन एक मिट्टी के कुंड में जवारी बोई जाती है।
इस दिन मिट्टी के शिव और गौरी बनाये जाते है। शिव को गण तथा माँ गौरी को गौर कहा जाता है।
इन्हें गणगौर कहते है, इन्हें भी एक मिट्टी के कुंड में स्थापित किया जाता है।
फिर नित्य उनकी भी पूजा की जाती है।
गण जिन्हें ईसर कहा जाता है, उन्हें वस्त्र पहनाये जाते है। गौर माता को भी वस्त्र पहनाए जाते है तथा श्रंगार किया जाता है।
16 दिन तक रोज़ दोपहर को पूजा तथा कथा की जाती है।
जल में दूध, गंगाजल, हल्दी तथा एक सुपारी, एक कौड़ी तथा एक चाँदी का छल्ला डाल कर सुहाग जल बनाया जाता है।
दूब को सुहाग जल में भिगो कर गणगौर पर छिड़का जाता है। फिर सुहागन स्त्रियां अपने ऊपर भी सुहाग जल छिड़कती है।
गणगौर को धूप, दीप, तिलक, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है।
भोग लगाने के लिये मुख्यत: खीर, पूरी, मठरी, चूरमा आदि बनाए जाते है।
पिंडियों की पूजा भी रोज़ इसी तरह की जाती रहेगी।
चैत्र शुक्ल द्वितीया को गणगौर को पास के किसी नदी या तालाब में स्नान कराया जाता है तथा पानी पिलाया जाता है।
चैत्र शुक्ल तृतीया को धूमधाम के साथ पालकी में गणगौर को ले जाया जाता है तथा जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
जहाँ गौरी माता की स्थापना की जाती है उसे उनका मायका माना जाता है तथा जहाँ विसर्जन किया जाता है उसे ससुराल माना जाता है। इसलिये नाचते गाते हुए उनका विसर्जन किया जाता है।
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